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  • fatah kabul (islami tarikhi novel) part 21

      इल्यास की हैरत…….. 

                                      


                                                       

    जब सुबह  हुई तो यह काफला दादर  से दूर निकल गया था। लेकिन अब भी उन्हें तआक़ुब का अंदेशा था। कमला इस नवाह के रास्तो से बखूबी वाक़िफ़ थी। उसने राह छोड़ी और उन्हें लेकर एक गैर मारूफ  रास्ता पर रवाना हुई। चुकी उन्होंने सीधा रास्ता छोड़ दिया  इसलिए कई दिन में उस बस्ती में पहुंचे जो कमला का वतन था। रात को उन्होंने कमला की झोपडी में क़याम किया। चुकी  कुछ रात गए वहा पहुंचे इसलिए किसी ने   उन्हें देखा नहीं। 

    • सलेही ने तये कर लिया की पिछली रात वहा रवाना हो  जाये। कमला  का इरादा  उनके साथ  चलने का था  लेकिन इल्यास  समझा दिया की इस वक़्त उसका चलना मुनासिब नहीं। वह अनक़रीब यहाँ   आएंगे और तब साथ ले चलेंगे। वह मान गयी उसने आधी रात को उठ कर उनके लिए नाश्ता तैयार  करना शुरू किया। कुछ देर के बाद यह सब लोग भी उठ गए   और सफर की तैयारी शुरू कर दी। जब उन्होंने घोड़ो पर जैन कस लिए तो कमला इल्यास को नाश्ता देने के बहाने से बुला कर ले गयी और झोपड़ी के एक तरफ लेजाकर कहा “तुम जा रहे हो मेरी ख्वाहिश थी तुम्हारे साथ चलू लेकिन तुम न मालूम किस मस्लेहत से नहीं ले जा रहे। मै भी सोचती हु की मेरे पिता बूढ़े है।   मेरे चले जाने का उन्हें सदमा होगा मैं ही दुनिया में आसरा हु। मेरा यहाँ ठहरना ही मुनासिब है। लेकिन तुमसे एक वादा लेना चाहती हु। 
    • इल्यास : कमला तुमने हम पर बड़ा अहसान किया है। तुम्हारी बदौलत मैंने सुगमित्रा को देखा। मेरे हमराहियों को अमन मिला। तुमने रहबरी करके हमें यहाँ तक पंहुचा दिया हम सब तुम्हारे शुक्र गुज़र है। 
    • कमला : मैं यह न समझती  थी की तुम्हे दादर की मशहूर धार में लेजाकर मैं अपने  पैरो पर कुल्हाड़ी मार रही हु। सुगमित्रा  जो राजकुमारी  है  और जिस पर कई राजकुमार फरिफ्ता है जो अपने हुस्न पर इस क़द्र मगरूर है की किसी की तरफ  आंख उठा कर भी नहीं  देखती तुम्हे चाहने लगी। इस बात का मुझे एतराफ़ है की मै सुगमित्रा जैसी  हसीन नहीं हु की तुम मुझे अपनी बहन समझना। 
    • इल्यास : मैं वादा करता हु की तुम्हे अपनी बहन  समझूंगा और तुम से मिलने ज़रूर आऊंगा। 
    • कमला : मैं अपने भैया को याद करती रहूंगी। 
    •                इल्यास ने वह थैली खोली जो सुगमित्रा ने उसके लिए भेजी थी। उसमें  सोने के सिक्के थे। उन्होंने मुठी भर कर कमला को दे कर कहा  .”भाई का तोहफा क़बूल करो। “
    •                   कमला ने  ले  लिए उसका दिल भर कर आया और इल्यास के शाना से लग कर रोने लगी। इल्यास ने तसल्ली  दी और कहा “हमारे मुल्क अरब में कोई बहन भाई से मिल कर नहीं रोया करती। “
    • कमला : मैं भी न रोती अगर मुझे यह उम्मीद होती की तुम जल्द वापस आ जाओगे। 
    • इल्यास : अगर खुदा ने चाहा तो जल्द आऊंगा। 
    •                 कमला उन्हें लेकर झोपड़ी में आयी और नाश्ता दे कर दोनों सलेही वगेरा के पास आये।   यह सब घोड़ो पर सवार हुए। कमला की लम्बी आँखों में आंसू   झलक  आये  लेकिन उसने  ज़ब्त किया।  जब यह चल पड़े तो उसके ज़ब्त बंद टूट गया। वह रोने लगी और रोती हुई अँधेरे में उनके पीछे चल पड़ी। कुछ दूर चल  कर वह एक चट्टान पर बैठ गयी। उसने साड़ी के अंचल से आंसू खुश्क किये और बुलंद आवाज़ से गगाना शुरू कर दिया  वह गा रही थी। 
    •              “ए मुसाफिर तू जा रहा है मुझे तड़पता छोड़  कर मेरा ख्याल रखना। मेरा दिल तेरी जुदाई से चूर हो गया  है। मैं एक एक दिनदिन का एक एक लम्हा तेरी याद में रो रो कर गुज़रूंगी। मुझे हूल न जाना। “
    •                  फिर उसका दिल भर आया और चट्टान से लग कर   ज़ारो क़तार रोने लगी। इल्यास और उनके साथियो  ने  दर्द भरी आवाज़ सुनी। इल्यास बड़े मुतासिर हुए उनका दिल चाहा की वह वापस जाकर उसे तसल्ली  दे लेकिन ज़ब्त कर गए। जब वह दूर निकल गए तब आवाज़  आनी बंद हो गयी। 
    •                     यह काफला कोच व क़याम करके अजरंज के क़रीब पंहुचा। उन लोगो ने शहर में मुनासिब नहीं समझा  .बाहर ही क़याम किया। अभी चार घडी दिन बाक़ी था की उन्होंने शब् बाशी का इंतेज़ाम कर लिया। 
    •                    इल्यास पानी लेने चले। उन्हें मालूम था चश्मा वहा से क़रीब है। जब वह चश्मा के किनारे पर पहने  तो उन्होंने एक औरत को वहा बैठे किसी गहरी फ़िक्र में ग़र्क़ देखा। औरत अधेड़ उम्र की थी लेकिन अब भी  हसीन थी। इल्यास ने उन्हें पहचान लिया वह वही औरत थी जिसे  अजरंज के सीपा सालार जो मुस्लमान हो गए थे और जिन  का नाम अब्दुल्लाह रखा गया था। कही से उठवा कर लाये थे और बताया था की  वही राबिया को अगवा करके लायी थी। 
    •               उसे देख कर वह बहुत खुश हुए। उन्हीने उससे मुखातिब हो कर कहा ” मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हु  .”
    •              उसने उनकी तरफ देखा  कुछ देर टिकटिकी लगा कर देखती रही।  फिर हंसी और उठ कर  खड़ी हो गयी। इल्यास ने कहा “तुम बसरा से राबिया को लायी थी ?”
    •           औरत फिर हंसी और वहा से चली गयी। इल्यास ने उसे रोकना मुनासिब नहीं समझा। वह पानी भर कर  चले आये और अपने साथियो से उसका ज़िक्र किया। सलेही ने कहा “शायद उस औरत के दिमाग में खलल  आगया है। “
    • इल्यास : मैं भी इंसान ही समझता हु। अगर तुम इजाज़त दो तो मैं शहर जाकर अब्दुल्लाह से मिल आऊं। 
    • सलेही : तुम न जाओ बल्कि शहर का कोई आदमी मिल जाये तो उसे इनाम का लालच देकर अब्दुल्लाह के पास भेजो  . 
    •               थोड़ी देर के बाद वहा एक आदमी आगया। सलेही ने उसे बुला कर इनाम का   लालच देकर अब्दुल्लाह के पास भेजा  .जब यह लोग मगरिब की नमाज़ से फारिग हुए तो अब्दुल्लाह आगये।  वह उन्हें देख बहुत खुश हुए  उनसे हालात पूछने लगे। इल्यास ने तमाम वाक़ेयात ब्यान किये। अब्दुल्लाह ने मुस्कुरा  कर कहा “तुम बड़े खुशकिस्मत हो। सुगमित्रा तो ऐसी मगरूर है की राजकुमारो से बात नहीं करती। 
    • इल्यास :कैसे वह औरत होश में आयी ?
    • अब्दुल्लाह : उसका दिमाग ख़राब हो गया है। कभी तो होश में आजाती है  कभी ला अकल हो जाती है। 
    • इल्यास : उसने राबिया के मुताल्लिक़ कुछ बताया ?
    • अब्दुल्लाह : वहा बताया। मगर अजीब बात कही मुझे यक़ीन नहीं आया। 
    • इल्यास : क्या कहती है ?
    • अब्दुल्लाह : उसने कहा की राबिया को उससे  महाराजा  छीन लिया था और उन्होंने उसे परवरिश किया है। 
    • इल्यास : शायद वह कनीज़ बना ली गयी है। 
    • अब्दुल्लाह : नही.. 
    • इल्यास : तब राजकुमारी की सहेली बनाई गयी होगी। 
    • अब्दुल्लाह : नहीं ‘वह कहती है खुद राजकुमारी सुगमित्रा ही राबिया है। 
    •                  फर्त हैरत से इल्यास का मुँह खुला का खुला रह गया। उन्होंने कहा :
    •           “सुगमित्रा राबिया है !”
    • अब्दुल्लाह : हां वह तो यही बताती है। 
    • इल्यास : मैंने सुगमित्रा को पास से और गौर से देखा है। मैंने जिस क़दर  पहाड़ी लड़किया देखि है उनसे वह नहीं मिलती  .मैं यह नहीं कह सकता   लड़किया कैसी होती है। 
    • अब्दुल्लाह : काबुल की लड़कियों के खदो व खाल अच्छे होते है। मौजूदा  महाराजा की महारानी जवानी में इस क़दर  खूबसूरत और माह पीकर थी की जो देख लेता था फरिफ्ता हो जाता था। 
    • इल्यास : एक हसीन औरत की लड़की भी हसीन हो सकती है। 
    • अब्दुल्लाह : मशहूर तो यही है की सुगमित्रा अपनी माँ पर गयी है। अलबत्ता बाज़ कहते है की माँ से भी बढ़   गयी है। 
    • इल्यास : तुमने उससे एक मर्तबा यह बात पूछी है या कई मर्तबा। 
    • अब्दुल्लाह : पहली मर्तबा जब उसने मुझसे बात कही तो यक़ीन नहीं आया। मैंने चंद रोज़ के बाद फिर उससे पूछा। उस वक़्त वह अपने  हवास में थी। उसने कहा “राबिआ  से लायी थी। बड़ी अच्छी लड़की थी। मेरा इरादा  था की उसे महाराजा  काबुल को देकर इतनी दौलत लेलु जिससे वह मालदार हो जाऊं। महाराजा  ने लड़की पसंद किया और मुँह मांगी रक़म भी दी। लेकिन यह वादा लेलिया की वह न किसी से उस लड़की का ज़िक्र  करे और न उस लड़की से कभी मिले। मैंने वादा कर लिया। वह दौलत लेकर कश्मीर  चली गयी। इतना बयान करने के बाद फिर पागलो की तरह बाते  करने लगी  .एक रोज़ फिर  मेरे दरयाफ्त करने पर उसने बताया की दूर  बरस के बाद वह कश्मीर से काबुल में आयी थी।  उसने देखा था की  राबिया  महाराजा   ने अपनी बेटी बना लिया है।  उसे राजकुमारी के लिबास में देखा था। वह वसूक़ और यक़ीन  से यह बात कहती थी की  राबिया ही का नाम सुगमित्रा है। 
    • इल्यास : वह पागल  कैसे हो गयी। 
    • अब्दुल्लाह : किसी  दौलत छीन ली और उसे ऐसी  दवाई खिलाई जिससे वह पागल बन गगयी। 
    • इल्यास :वह औरत मुझे आज चश्मा किनारे मिली थी।  मैंने उससे बाटे करनी चाही मगर वह  हस्ती हुई चली गयी। 
    • अब्दुल्लाह : आजकल वह बिल्कुल पागल  बनी हुई है। 
    • इल्यास : क्या महाराजा काबुल तुर्क है ?
    • अब्दुल्लाह : काबुल में सल्तनत एक तुर्क ने ही क़ायम की थी जो मुद्दत तक उसके खानदान में रही। मौजूदा महाराजा  उस खानदान से नहीं है। मैं तुम्हे कल काबुल के राज के मुताल्लिक़ मुफ़स्सल हालत सुनाऊंगा। मैंने तुम्हारे लिए खाने  इंतेज़ाम  कर दिया है। वह लेकर आऊं। 
    •                  वह उठ कर वहा से चले गए। इल्यास ने गौर करने लगे की क्या वाक़ई राबिया ही सुगमित्रा है।   क्या वह इस बात को जानती है। खुद ही उन्होंने तये कर लिया की अगर वह राबिया ही है। जो अपना नाम भूल चुकी है.

                                                 अगला भाग (काबुल का राजा )

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  • fatah kabul (islami tarikhi novel )part 20

    रिहाई……. 


               

                                       


              दीना और इल्यास दोनों निहायत ख़ामोशी  और एहतियात से कोठरी से निकले और दबे क़दमों चले। अभी तक दीना के नरम हाथ इल्यास का हाथ था। उसने उनके कान में  कहा  बिलकुल खामोश रहना  न कुछ कहना  पूछना। 
    • दीना हसीन वा नौजवान थी। इल्यास चाहते थे वह उनसे अलग रहे उन्होंने उसके हाथ में से अपना हाथ छुड़ाना चाहा  उसने और दबा लिया  और उनके मुँह के पास अपना मुँह लेजाकर कहा। “तुम्हारे हाथ में लाल नहीं है ?मै  छीन लेंगे यूही चले चलो। 
    •             अगर कोई और होता तो उस नाज़नीन का मुँह चूम लेता लेकिन इल्यास मुस्लमान थे और मुस्लमान जानते है के यह बाते गुनाह है इसलिए उनके दिल में इस क़िस्म का ख्याल भी पैदा नहीं हुआ। 
    •               रात अँधेरी थी। न मालूम किन रास्तो से चल कर दीना   उन्हें शहर से  बाहर लायी। उसने उन्हें  एक थैली दी और कहा “यह थैली राजकुमारी ने दी है उसमे कुछ नकदी  है। रस्ते में काम आएगी। 
    •            इल्यास ने ली और कहा। “सुगमित्रा से शुक्रिया अदा करने के बाद कह देना की इंशाल्लाह मैं जल्द वापस आऊंगा। 
    • दीना : राजकुमारी ने यह भी कहा था की तुम उन्हें भूल न जाना। 
    • इल्यास : कह देना की मैं उनका इस क़दर मश्कूर और ज़ेरे बार अहसान हु की कभी न  भूलू। 
    • दीना : अच्छा भगवान् तुम्हारी सहायता करे। 
    •                  वह उनका  हाथ छोड़ कर चली गयी। इल्यास आगे बढे। न हमवार पहाड़ी रास्ता था। आंखे  फाड़ फाड़ कर देखते और संभल संभल कर क़दम रखते चलने लगे। थोड़ी ही दूर चले ही थे की किसी ने पीछे से उनके कंधे पर हाथ रख दिया। वह हस्ते थे एक दम चौंक पड़े। मगर फ़ौरन ही उन्हें महसूस  हाथ मरदाना नहीं ज़नाना  है। उन्होंने घूम कर देखा। कमला  खड़ी है बेसाख्ता ु उनकी ज़बान  से निकला। “तुम  कहा ?”
    • कमला : जहा तुम। 
    • इल्यास : आखिर तुम कैसे यहाँ आगयी। 
    • कमला : मेरे सामने पेशवा ने तुम्हे क़ैद किया था। मैंने उसी वक़्त तुम्हारी रिहाई की तदबीरें  सोचनी करदी  थी। रात को मैंने राजकुमारी और दीना को तुम्हारे पास जाते देखा। मुझे मलाल भी हु भी हुआ और रश्क भी।  क्युकि तुम्हे मैं रिहा  कराना चाहती थी मैंने तदबीर  भी कर ली थी। जब वह दोनों चली गयी तब मैं अपनी तदबीर पर कारबन्द   देखा की दीना तुम्हे अपने  साथ लिए जा रही है मैं भी पीछे लग ली। जब वह तुम्हे  यहाँ पहुंचा कर वापस लौट गए मैं तुम्हारे पास आयी। 
    • इल्यास : मैं तुम्हरा  गुज़ार हु की तुमने मेरी रिहाई के लिए कोशिश शुरू कर दी थी। 
    • कमला : अब कहा चलने का इरादा है। 
    • इल्यास : ज़रनज में शायद वहा मेरे साथी मौजूद  हो। 
    • कमला : तुम्हारे साथी यही आगये है। 
    •                 इल्यास ने हैरत से उसकी तरफ देख कर कहा “कहा है वह ?”
    • कमला : इत्तेफ़ाक़ से मुझे उनके आने की इत्तेला हो गयी। मै जानती थी की तुम्हारी गिरफ़्तारी की खबर कुछ लोगो को हो गयी है की तुम्हारे साथी शहर के क़रीब आये तो कही वह भी गिरफ़्तार   न कर लिए जाये इसलिए मैं उनके पास गयी और एक खड में छिपा  दिया। 
    • इल्यास : यह तुमने उनके साथ बड़ा अहसान किया। उन्होंने मुझे तो नहीं पूछा था ?
    • कमला : क्यू न पूछते। सबसे पहले उन्होंने तुम्हे ही पूछा। जब मैंने उन्हें बताया की तुम गिरफ्तार हो गए हो तो उन्हें बड़ा गुस्सा आया  वह उसी वक़्त हमला करने को तैयार हो गए। मेरे समझाने से बाज़ रहे। यह देख कर मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ की तुम लोगो में आपस में किस क़दर मुहब्बत है। 
    • इल्यास : मुसलमानो में अखहुअत और मुहब्बत बहुत ज़्यदा है। हर मुस्लमान दूसरे मुस्लमान का भाई है। 
    • कमला :यही बात है। उसका मेरे दिल पर बड़ा असर हुआ है। 
    • कमला :आओ। 
    •               वह उन्हें लेकर एक गड में पहुंची। आधी रात से ज़्यदा चुकी थी। पहाड़ ख़ामोश थे। चट्टानें खामोश थी। आसमान से पहाड़ तक सिकवत  छाया हुआ था। इल्यास ने क़द्रे फासला पर  पत्थरो के ढेर लगे देखे। जब  वह बढ़ कर  उनके पास गए तो घोड़े हिनहिनाये। उन घोड़ो के पास सलेही वगैरा थे। वह जाग गए  और जल्दी से उठ बैठे। इल्यास ने दूर से कहा “मैं हूँ इल्यास ” सलेही ने कहा  “खुश आमदीद  आ जाओ “
    •             इल्यास और कमला उनके पास पहुंच गए। सलेही ,अब्बास और मसूद तीनो उठे देख कर बहुत खुश हुए। उनकी रिहाई पर उन्हें मुबारक बाद दी। उनके साथ कमला को देखा कर वह यह समझे की वही उन्हें  रिहा  कर लायी है। सलेही ने कहा “उस लड़की ने हम पर बड़ा अहसान किया है। उसने हमारे पास आकर हमें तुम्हारी गिरफ़्तारी का हाल सुनाया और हमें यहाँ लेकर छिपा दिया। यही शायद तुम्हे भी  रिहा करा कर लायी। “
    • इल्यास : नहीं मुझे खुद राजकुमारी सुगमित्रा ने रिहा कराया है। अलबत्ता उसने मुझे तुम्हारा पता दिया और यहाँ  तक रहबरी की। 
    •               कमला ने कहा “मैंने  उनकी रिहाई की तदबीर कर्ली थी  लेकिन मुझसे पहले ही राजकुमारी  ने उन्हें रिहा करा  दिया। “
    • सलेही :राजकुमारी के दिल में क्या आयी ?
    • कमला : यह उन्हें ही मालूम होगा। 
    • इल्यास  : शुरू रात में वह मेरे पास आयी थी। मुझे अपने मज़हब में दाखिल करने की तरग़ीब देने लगी। जब  मैंने इंकार किया तो वह चली गयी और उसने  अपनी एक सहेली को भेज कर मुझे रिहा करा दिया। 
    • सलेही : यह सब खुदा का फज़ल व करम है। 
    •               इल्यास ने कमला से कहा “मैंने तुम्हे यह नहीं  बताया था की मैं मुस्लमान हु  तुमने कैसे समझ लिया और कैसे जान लिया  की यह लोग मेरे साथी है। “
    • कमला : जब धार में पेहसवा ने तुम्हे रोका तो मैं गयी की तुमसे मशकूक हो गए है। मैं जानती थी वह ऐसे लोगो से दूसरे  कमरों में जाकर तनहा बाटे किया करते है। मैं  जल्दी से उस कमरे में जाकर ऐसी जगह छिप  गयी जहा से तुम्हारी  बाते सुन सकूँ। थोड़ी देर में पेशवा तुम्हे वहा लेकर आगये और उन्होंने गुफ्तुगू शुरू करदी  .जब तुमने  बताया की तुम अरब हो और मुस्लमान हो तो फ़ौरन मेरे दिल में यह ख्याल गुज़रा की तुम  जासूस हो। जब  तुमने पेशवा को बताया की तुम अपने चाचा और अपनी मंगेतर को तलाश करने आये हो तो मैं तज़बज़ब  में पड़ गयी। फिर पेशवा ने तुम्हे बुद्धमत में दाखिल होने की  तरग़ीब दी। तुमने इंकार  कर दिया। उससे मुझे  ख़ुशी हुई। जब तुम क़ैद खाने में भेज दिए गए और पेशवा वहा से चले गए तब मैं  पनाह गाह  से निकली। मेरे क़दम खुद बखुद शहर से  बाहर की तरफ उठ गए मई बाहर निकल गयी  और दूर तक  चली गयी। मैंने उनलोगो को आते हुए देखा। पहले तो मैं झिझकी की कही यह लोग मुझे गिरफ्तार न कर ले। लेकिन फिर उनके पास  पहुंच गयी और उनसे  पूछा। “क्या तुम्हारे साथ एक नौजवान  भी है ?”उनमे से किसी ने जवाब दिया “हां थे उनका क्या हुआ  “मैंने कहा “वह गिरफ्तार कर लिए गए है “उन्हें बड़ा अफ़सोस हुआ। मैंने उनसे कहा  “अगर तुम लोग शहर से क़रीब जाओगे तो तुम भी गिरफ्तार कर लिए जाओगे। “उनमे से एक ने कहा “हमें उसकी परवाह नहीं है। हम अपने साथी की रिहाई की कोशिश करंगे मैंने कहा “तुम हरगिज़ उन्हें रिहा न करा पाओगे। मुझ पर इत्मीनान रखो। मैं कोशिश  करुँगी। बेहतर   यह है  की तुम कही छिप जाओ “उनके समझ में आगयी। मैंने उन्हें यहाँ लेकर छिपा दिया। 
    • सलेही ; बेशक उस लड़की ने हम पर बड़ा अहसान किया है। अगर यह हमें छिप जाने की तरग़ीब न देती और तुम्हे रिहा करा  लाने का वादा न करती तो हम जोश में शहर के क़रीब पहुंच जाते और खुदा जाने फिर क्या होता। “
    • इल्यास :मैं इस नाज़नीन का बहुत शुक्र  गुज़ार हु। 
    • कमला : अब यहाँ ठहरना मुनासिब नहीं है। इसी वक़्त यहाँ से रवाना हो जाना चाहिए उनके (इल्यास की तरफ इशारा करके )फरार हो जाने का हाल जब पेशवा को मालूम होगा तो वह उन्हें गिरफ्तार  कराने के लिए चारो तरफ दौड़ाएंगे अभी काफी रात बाक़ी है  .हम सुबह होते बहुत दूर नकल जायँगे। 
    • सलेही : निहायत नेक  मशवरा है। तैयारी करो चलो। 
    •                   यह सब लोग उठे और जल्दी जल्दी घोड़ो पर असबाब  लाड कर खुद भी उनपर सवार हो गए। एक घोड़े  पर कमला को बिठाया और सब शहर ज़रंज की तरफ रवाना हो गए। 

                                                          अगला भाग  (इल्यास की हैरत)


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  • fatah kabul (islami tarikhi novel ) part 19

      इक़रार ,,,,,,,,,,,, 


    जब  सुगमित्रा चली गयी तो इल्यास तज़बज़ब में  पड़ गए। वह सर झुकाये हुए थे फिर क़दमों   की चाप  हुई। उनहोंने नज़र उठा  कर देखा। वही लड़की जो सुगमित्रा के पास वक़्त ख़त्म होने का पैगाम लायी थी। वो खाने की  थाल लिए हुए थी। उसने थाल इल्यास के  सामने रख दिया और कहा “सुगमित्रा ने तुम्हारे लिए खाना  भेजा है। 

    • इल्यास :उनका बहुत बहुत शुक्रिया। मुझे अब भूक नहीं रही है। 
    • लड़की : उन्होंने कहा है के अगर आपने मेरी और कोई बात नहीं  मानी तो यह ज़रूर मान लीजिये खाना खा लीजिये। 
    • इल्यास : यह बात ज़रूर मान लूंगा 
    •                उन्होंने खाना खाया। जब खाने से फारिग हो चुके तो लड़की ने कहा “आप ने राजकुमारी की बात क्यू नहीं मानी ?
    •              इल्यास ने लड़की की तरफ देखा। वो भी नो ख़ेज़ व  हसीन थी। उन्होंने कहा “राजकुमारी ने वह बात चाही जिसे मैं मरते दम तक क़ुबूल नहीं कर सकता। 
    • लड़की :जानते है वह कैसे आपके पास आयी थी ?
    • इल्यास : शायद पेशवा ने भेजा था। 
    • लड़की : नहीं राजकुमारी ने खुद पेशवा की खुशामद करके इजाज़त हासिल की थी। बात यह है के उन्हें आपसे प्रेम हो  गया है। 
    • इल्यास : यह उनका हुस्न जन है वरना मैं एक मुफ़लिस अरब कहा वह राजकुमारी। फिर इस क़दर हसीन व नाज़नीन की चश्म फलक ने भी आज तक न देखि होगी। 
    • लड़की : तुम्हे भी उनसे प्रेम है। 
    • इल्यास : अब यह ज़िक्र फ़ुज़ूल है। 
    • लड़की : सुना करती थी की मुस्लमान बड़े कठोर होते है अब खुद देख रही हु। 
    • इल्यास : मुस्लमान सख्त दिल नहीं होते। निहायत नरम दिल होते है। लेकिन मुस्लमान मज़हब दब्दील नहीं कर  सकता। 
    • लड़की : मुहब्बत में सब कुछ हो जाता है। 
    • इल्यास : मुस्लमान पहले खुदा से मुहब्बत करता है और फिर और किसी से। 
    • लड़की : अगर तुम ने राजकुमारी की बात न मानी तो शायद उन्हें अपनी ज़िन्दगी का बलिदान देना पड़ेगा ! 
    • इल्यास : उनसे कह देना की मैं  की चिराग सेहरी हु। मेरे जुर्म की सजा मौत है। मैं का इंतज़ार कर रहा हु। वह मेरे लिए अपनी जान की क़ुरबानी   न दे। मेरी दरख्वास्त है की  रहे। 
    • लड़की : मैं तुम्हारा पैगाम पंहुचा  दूंगी। 
    •                  लड़की चली गयी। दरवाज़ा बंद हो गया। इल्यास ने चाहा की शमा गुल कर दे मगर फिर  कुछ सोच कर रुक गया। कोठरी में मामूली फर्श पड़ा हुआ था। वह उसी पर पद। गए उनके दिल में सुगमित्रा ख्याल  था। उसकी भूली सूरत उनके दिल में नक़्श थी। वह देर तक  करवटे लेते रहे। नामालूम कब और किस तरह उन्हें नींद  आगयी। यह नहीं कहा जा सकता की कितनी देर सोये की किसी ने उनका बाज़ू झिंझोड़ा और वह उठ कर बैठ गए। देखा तो वही लड़की सामने है जो  खाना लेकर आयी थी। इल्यास ने कहा “क्या बात है ?”
                    इल्यास ने राजकुमारी को अबतक नहीं देखा था। नज़र उठा कर देखा। वह लड़की के पीछे  खड़ी थी। 
    •              इल्यास ने कहा ” ज़हे  क़िस्मत आप तशरीफ़ लाये आईये आईये। 
    •              राजकुमारी शर्माती बढ़ी और इल्यास के सामने बैठ  गयी। उसने बैठते ही कहा “क्या बेफिक्री की नींद सो रहे थे “
    • इल्यास : नींद तो सूली पर भी आजाती है। यह तो जेल खाना ही था। 
    • सुगमित्रा : लेकिन मुझे नींद नहीं आयी। 
    • इल्यास :  तुम  दुनियाए मुसररत में झूला झूल रही हो। तुम्हे न जागने की परवाह न नींद का ख्याल। 
    • सुगमित्रा : ठीक है। यह सच है की तुम्हारे धार में आने से पहले मैं मुसर्रत की दुनिया में  राहत की झूला झूल रही थी। लेकिन अब गम की  दुनिया में दर दर करब के पहाड़ के निचे दबी जा रही हु।  मुझे यह शिकवा नहीं की तुमने मेरी बात नहीं मानी। अगर तुम मेरी बात मान लेते तो राहत व मुसर्रत वह चंद हो जाते। मैं यह समझा  करती थी  की दुनिया में कोई ऐसा शख्स नहीं हो सकता जो मेरी बात न माने है जिसे जो इशारा कर दूंगी  वह हुक्म की तामील करेगा। भगवान् ने मेरा मगरूर सर निचा कर दिया मुझे पहले ही वह ठोकर लगी की सारा  गुरूर खाक में मिल गया। तुम मेरी बात नहीं मानते न मनो मुझे हुक्म दो मैं तामील करुँगी। 
    • इल्यास :  राजकुमारी एक मुफ़लिस अरब से ऐसी बाटे करके उसे शर्मा रही हो मैंने जब तुम्हारे हुस्न की तारीफ सुनी थी और दिल में तुम्हारी  दीद का इश्तियाक़ पैदा हो हुआ था। इसी वक़्त मुश्ताक़ दिल को यह बता  दिया था की वह राजकुमारी है और दुनियाए हुस्न की मलका है उसके हुज़ूर में तुझे लेकर चल तो रहा हु लेकिन अपनी बिसात से आगे पाओ  न  बढ़ाना और जब तुम्हे देखा तो तुम मुझ पर  छा गयी। तुम्हारी मुहब्बत रग रग में पेवस्त हो गयी। तब अपनी इस हिमाक़त पर बहुत ज़्यदा अफ़सोस हुआ की क्यू हुस्न  सरकार में आया। क्यू न पहले ही यह गौर कर लिया की तू कौन है और वह काया है। राजकुमारी !मुझे शर्मिदा न करो  .मुझे इस बात का  एहसास है की तुम आफताब हो और मैं ज़र्रा बेमिक़्दार। तुम हुस्न व जमाल  की मलका हो और मैं मामूली अरब में हुक्म दुनिया तो दरकिनार तुमसे दरख्वास्त भी नहीं कर सकता। किस मुँह  से दरख्वास्त करू मेरी बिसात ही क्या। 
    • सुगमित्रा : और कुछ कह लो। शायद अरब बाते बनाना ज़्यदा जानते है। 
    • इल्यास : बखुदा अरबो को बाते बनानी आती। वह जो कुछ कहते है सच कहते है। 
    • सुगमित्रा : तुमने क्या पैगाम भेजा था। “
    • इल्यास : यही की मैं एक मजबूर व बेकस   इंसान हु मौत का इंतज़ार कर रहा हु। खुदा के लिए तुम मेरे लिए कोई क़ुरबानी न करना। 
    • सुगमित्रा :  तुम दिल में ज़रूर कहोगे की कैसी बेहया और जज़्बाती लड़की है की एक ही  मुलाक़ात में बे निकली  . मुझे खुद अपनी हालत पर ताज्जुब है। वाक़ई में ऐसी न थी जिसकी तरफ मैं आँख उठा कर देख लेती थी  . वह फख्र करता था  और जिससे गुफ्तुगू कर लेती थी वह समझ लेता था था की दुनिया की  दौलत उसे मिल गयी किसी की  तरफ देखे और किसी से बाटे करने को मेरा दिल न चाहता था मगर तुम्हे देख कर मजबूर  हो गयी। मुझे ऐसा मालूम होता है  जैसे मैं अरसा से तुमसे वाक़िफ़ हु। मैं प्रेम को बिलकुल न जानती थी। तुम्हे देख    कर प्रेम का सबक़ !  पढ़ लिया। अभी वक़्त है ज़िद न करो मेरी क़ुरबानी नहीं चाहते तो मेरी बात मान  लो। 
    • इल्यास : सुगमित्रा  मै तुम्हारी हर हुक्म की तामील कर सकता हु। लेकिन इस बात के मैंने से मजबूर हु। 
    • सुगमित्रा ; अच्छा तो मुझे अपने साथ ले चलो। 
    • इल्यास : मेरा एक राज़ है जो मै तुम पर ज़ाहिर किये देता हु। पेशवा को सिर्फ इतना मालूम हुआ है की मै मुस्लमान  हु लेकिन मुस्लमान होने के  अलावा कुछ और भी हु वो भी तुम पर ज़ाहिर किये देता हु और इस बात का  इक़रार तुमसे नहीं लेता  उसे ज़ाहिर   न करना अलबत्ता यह  लड़की। ….. 
    •                   सुगमित्रा उनके चेहरे की तरफ टिकटिकी लगाए देख रही थी। उसने कहा। “उसे मेरी सहेली समझो या  बहन मुझे उसपर पूरा भरोसा है। यह मेरी राज़दार  है। 
    • इल्यास : अच्छा तो सुनो मैं इस्लामी सल्तनत का जासूस हु। 
    •                 सुगमित्रा सख्त मुताज्जुब हुई। उसने कहा “तुम जासूस हो ?”
    • इल्यास : है मैं जासूस हु अमीररूल मूमिनीन को जो मुसलमानो के शहंशाह है यह इत्तिला ली थी की  महाराजा काबुल मुसलमानो पर  चढ़ाई की तैयारी कर रहे है। मै यह बात मालूम करने के लिए यहाँ आया हु। 
    • सुगमित्रा : तुमने क्या मालूम किया। 
    • इल्यास : यही की  महाराजा काबुल मुसलमानो पर हमला करने वाले है। 
    • सिगमित्रा : यह सच है।  इस धार में मुसलमानो पर फतहयाबी पर दुआ मांगी गयी है। 
    • इल्यास : अगर मैं यहाँ से रिहा हो गया तो वतन जाकर इस्लामी फ़ौज के साथ यहाँ आऊंगा  शान के साथ ले जाऊंगा। 
    • सुगमित्रा ; वादा करते हो फिर आओगे। 
    • इल्यास : वादा करता हु। इंशाल्लाह ज़रूर आऊंगा। 
    • सुगमित्रा : मुझे इत्मीनान हो गया तब मौक़ा है की मैं तुम्हे इस वक़्त यहाँ से निकल दू। 
    • इल्यास : लेकिन शहर से  बाहर किस तरह निकलूंगा। 
    • सुगमित्रा : नेरी दुनिया तुम्हे शहर से  बाहर कर आएगी उसके साथ जो लड़की थी उसका नाम  दीना  था। 
    •               दीना ने कहा “मैं इस खिदमत को अंजाम दे लुंगी। “
    • सुगमित्रा : अच्छा अब इजाज़त चाहती हु। थोड़ी देर में दीना तुम्हारे पास आएगी। 
    •                 सुगमित्रा   उठी   और चली गयी।   .वक़्त गुज़रता रहा। कई घंटे गुज़र गए। उन्हें मायूसी होने लगी। उन्होंने फिर पड़ जाने का इरादा किया। उस वक़्त दीना आयी। उसने खामोश रहने का इशारा किया। शमा गुल किया।  और इल्यास का हाथ पकड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चली। 



    •                                    अगला भाग ( रिहाई )
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    •                   
  • fatah kabul (islami tarikhi novel ) part 18

     गिरफ़्तारी  …… 

                                             


        

    • इल्यास को  ताज्जुब हुआ के पेशवा ने उन्हें  क्यू रोका। वह एक तरफ खड़े हो कर गौर करने लगे। उनकी समझ में कुछ न आया। वह उन हसीन लड़कियों को रुखसत होता देखने लगे जो दुआ में शरीक हुई थी। वह सुगमित्रा को भी देखना चाहते थे। लेकिन डरते थे उसकी सूरत देखते ही उनके दिल पर तीर सा लगता था। जब आँखे टकरा जाती थी तो बिजली सी गिर पड़ती थी। 
    •                  सुगमित्रा के चेहरा से बड़ा ही भोला पन  टपकता था। हूरो जैसी मासूमियत ज़ाहिर होती थी। ऐसा मालूम होता था जैसे वह अपने हुस्न और हुस्न की हशर खेजो से बिलकुल ही वाक़फ़ियत नहीं। मस्त शबाब होने पर भी अपने आप को बच्चा समझती है। 
    •                 जब लड़कियों की ज़्यदा तादाद वहा से चली गयी तो सुगमित्रा ने पेशवा के पास आकर कहा :”क्या मुझे भी जाने की इजाज़त है ?”
    •                  इल्यास ने उसकी शीरे और सुरीली आवाज़ सुनी। उन्होंने  उसके चेहरे की तरफ देखा वह हूरो जैसी शान से कड़ी थी। उसकी निगाहे इल्यास पर जमी हुई थी। उनके देखते ही उसने शर्मा कर नज़रे झुका ली और इल्यास कुछ मुज़्तरिब हो गए। 
    • पेशवा : तुम जा सकती हो बेटी। 
    • मालूम होता था के सुगमित्रा भी वहा से जाना नहीं चाहती थी। उसने कहा ;’पेशवा आप मुझ से कुछ कहना चाहते थे। 
    • सुगमित्रा फिर इल्यास को देखा। फिर निगाहे दो चार हुई। उसने शर्मा कर आंखे नीची कर ली। इल्यास लड़खड़ा गए। 
    •                सुगमित्रा ने पेशवा को सलाम किया आहिस्ता आहिस्ता रवाना हुई। इल्यास की निगाहे उसका  तआक़ुब करने लगे। वह ऐसे देखते ही कुछ ऐसे महू हुए के उन्होंने यह नहीं देखा के पेशवा उन्हें देख रहे है। पेशवा ने उन्हें मुगतिब किया और कहा। “क्या देख रहे हो नौजवान। “
    • इल्यास ने चौक कर उन्हें देखा कुछ शर्माए और कहा। “मैं उस लड़की को देख रहा था। 
    • पेशवा :      जानते हो यह कौन है ?
    • इल्यास :     सुना है यह  महारजा काबुल की लड़की है। 
    • पेशवा :       और इस धार में पहली मर्तबा आयी है। आओ  मैं तुम से कुछ पूछना चाहता हु। 
    •                     पेशवा आगे चले। इल्यास उनके पीछे रवाना हुए। दोनों दूसरे  कमरे में पहुंचे। पेशवा मसनद पर     बैठ गए। उन्होंने इल्यास  को बैठने का इशारा किया। वह भी उनके सामने बैठ गए ,पेशवा ने कहा “नौजवान !मैं तुमसे जो कुछ दरयाफ्त करू तुम उसका सही सही जवाब देना। “
    • इल्यास :    मैं सही ही जवाब दूंगा। 
    • पेशवा:      क्या तुम अरब हो ?
    • इल्यास :    हां मैं अरब हु। 
    • पेशवा :     और मुस्लमान हो ?
    •                  इल्यास तज़बज़ब में पद गए। उसका क्या जवाब दे। अगर सही बताते है तो गिरफ्तार का अंदेशा  .गलत बताते है तो झूट बोलना पड़ता है। वह खामोश हो गए।  पेशवा ने कहा “तुम ने सही जवाब देने  का वादा किया ह। 
    • इल्यास :     बेशक यह मेरी कमज़ोरी थी के मैं खामोश हो गया। मैं वाक़ई मुस्लमान हु। 
    • पेशवा :      तुम भेस बदल कर धार में ? 
    • इल्यास :     यह  देखने के यहाँ क्या होने वाला। 
    • पेशवा :       जानते हो  इस जुर्म की क्या सजा है ?
    • इल्यास :      मै जनता तो नहीं मगर समझता हु के इस जुर्म की सजा मौत होगी। 
    • पेशवा :      तुमने ठीक कहा। यह भी जानते हो तुमने धार को नापाक कर दिया है। 
    • इल्यास :     माफ़ कीजिये मैं धार में जाकर खुद ही नापाक हो गया हु। 
    • पेशवा :     तुम जासूस हो ?
    • इल्यास :      आप जो चाहे समझ ले। लेकिन मैं यहाँ आया इसलिए के देखु होता क्या है ?
    • पेशवा :     फिर तुमने क्या देखा। 
    • इल्यास :     मैंने देखा के मुसलमानो पर फतह एबी की दुआ मांगी गयी है। 
    • पेशवा :     क्या मुस्लमान काबुल पर हमला करने का मक़सद कर रहे है। 
    • इल्यास :      नहीं। 
    • पेशवा :      फिर  जासूसी करने क्यू आये ?
    • इल्यास :     हमें यह मालूम हुआ था के महारजा काबुल मुसलमानो पर हमला करने की तैयारी कर रहे है। 
    • पेशवा :     मैं तुमसे साफ़ तौर पर कहता चुके यह सही है। क्या तुम एक बात और बताओगे ?
    • इल्यास :     जो बात मालूम होगी बता दूंगा। 
    • पेशवा :     जासूसी के लिए क्यू आये क्या तुम्हे काबुल की सियहत का शौक़ खींच लाया है या सुगमित्रा के हुस्न  की शोहरत लायी ?
    • इल्यास :      इन दोनों बातो में से कोई बात मुझे यहाँ लेन की मुहर्रिक नहीं हुई। मैं यहाँ अपने चाचा को तलाश  करने आया हु। 
    • पेशवा :      तुम्हारे चाचा यहाँ कब आये ?
    • इल्यास :     बहुत अरसा हुआ जब मैं न समझ बच्चा ही था के वह यहाँ आये थे। 
    • पेशवा :     आखिर किस क़द्र अरसा हुआ ?
    • इल्यास :     पंद्रह बरस के क़रीब हुए। 
    • पेशवा :      क्या नाम था तुम्हारे चाचा का ?
    • इल्यास :     उनका नाम राफे था। 
    •                    पेशवा चौक पड़े।  उन्होंने  कहा  “क्या तुम्हारा  नाम इल्यास है ?
    •             इल्यास अपना नाम सुन कर सख्त मुताज्जुब हुए। उन्होंने कहा हां मेरा नाम इल्यास ही है  .लेकिन आप को   कैसे पता। 
    • पेशवा :     मैं इस धार  पेशवा हु  हम पेशाओं  को ऐसी बाते मालूम हो जाती है। 
    •                  इल्यास को यक़ीन नहीं आया। उन्होंने कहा। “आप बुज़ुर्ग है आपकी बात यक़ीन ही कर लेना चाहिए  लेकिन बात दिल को नहीं लगती। 
    • पेशवा :     मैं भी बहस करना नहीं चाहता। तुम्हारी माँ ने तुम्हे आने की कैसे इजाज़त देदी ?
    • इल्यास :     मेरी माँ मेरे चाचा से बेटे से ज़्यदा मुहब्बत करती थी वह उन्हें अबतक नहीं भूली। 
    • पेशवा :     वह बड़ी अच्छी खातून है। क्या तुम अपने चाचा ही को तलाश करने आये थे ?
    • इल्यास :     चाचा को भी मंगेतर को भी। 
    • पेशवा :      तुम्हारी मंगेतर यहाँ कहा आगयी ?
    • इल्यास :     मेरा क़िस्सा अजीब है मुख़्तसर अर्ज़ करता हु। मेरे चाचा राफे की एक लड़की राबिया थी। इस मुल्क की एक औरत वहा  गयी थी। वह उसे अपने साथ ले आयी चाचा उसे तलाश करने आये मैं उन दोनों को ढूंढ रहा हु। 
    • पेशवा :     बड़ी दिलेरी की तुमने। तुम्हे उन दोनों में से किसिस का पता चला। 
    • इल्यास ;     अभी तक नहीं चला। 
    • पेशवा :     तुम अपनी मंगेतर को पहचानते हो ?
    • इल्यास :     वह छोटी उम्र में अगवा हो गयी न मैं उसे पहचानता हु न वह मुझे पहचान सकती है। 
    • पेशवा :     तब तुम फ़ुज़ूल तकलीफे उठा कर यहाँ तक आये हो। 
    • इल्यास :     खुदा के भरोसे पर चला आया हु। वही मदद करेगा। 
    • पेशवा :      खुदा ने तुम्हारी मदद नहीं की। तुम्हारा राज़ खुल गया और अब तुम्हे उसकी सजा मिलेगी। 
    • इल्यास :    यह भी खुदा की मर्ज़ी। 
    • पेशवा :     सिर्फ एक सूरत ऐसी   है  के तुम  सजा से बच जाओ। 
    • इल्यास :     क्या ?
    •  पेशवा :     पहले यह बताओ तुमने सुगमित्रा को देखा है ?
    • इल्यास :     अच्छी तरह देखा है। 
    • पेशवा :     तुम उसे पसंद  करते हो। 
    • इल्यास :    कौन उसे पसंद  करेगा। 
    • पेशवा :     मैं  तुम्हे सजा से बचा सकता हु और इस बात की कोशिश करने का भी वादा करता हु के सुगमित्रा  तुम से बियाह दी जाएगी अगर तुम बुद्धमत इख़्तियार करलो। 
    • इल्यास :    यह न   मुकिन है। 
    • पेशवा :     अच्छा बुद्धमत इख़्तियार न करो। बुध को सजदा करो। 
    •                  जब दिन छिप गया तब उन्होंने मगरिब की नमाज़ पढ़ी। इस वक़्त काफी अँधेरा फैल गया। जब से वह उस   कोठरी  थे कोई उनके पास  आया था। उन्हें ख्याल  वह उन्हें भूका और प्यासा रखना चाहते है। उन्हें पियास  तो नहीं थी अलबत्ता भूक मालूम होने लगी। थोड़ी देर में उन्होंने ईशा की नमाज़ पढ़ी।  नमाज़ से फारिग  ही हुए थे की कोठरी का दरवाज़ा खुला और एक शख्स शमा  वापस जाने लगा।  उससे कहा। “यह रौशनी  क्यू कर दी मुझे  अँधेरा बुरा मालूम नहीं होता। 
    •                  उस आदमी ने जवाब दिया। “तुमसे बाटे करने के लिए राजकुमारी आने वाली है। “
    • इल्यास :    राजकुमारी कौन ?
    • वही शख्स :    तुम राजकुमारी को  नहीं जानते। महाराजा काबुल की सुपुत्री। 
    • इल्यास :     क्या सुगमित्रा ?
    • शख्स :       जी हां। 
    •                    वह आदमी चला गया। इल्यास सोचने लगे के शायद पेशवा ने सुगमित्रा को भेजा है। वह रहज़न  सबर व् क़रार ईमान पर डाका डालने आरही है। वह उनसे  ज़रूर तबदीली मज़हब की दरख्वास्त करेगी। उन्होंने अपने दिल को टटोला  .उस हुर विष की मुहब्बत के नक़ूश उसमे देखे। उन्होंने दुआ मांगी  “इलाही  मुझे इस अज़ाब में गिरफ्तार न करो। मुहब्बत अज़ाब ही।  मेरी मदद कर और मुझे तौफ़ीक़ अता फरमा  के मैं टेरी ही इबादत करता  रहूं। सिवाए तेरे किसी दूसरे को सजदा न करू। 
    •                         यह दुआ कर बैठ ही थे के हलके क़दमों की चाप हुई। सुगमित्रा के आने के ख्याल से ही उनका दिल धड़कने  लगा। उन्होंने दरवाज़ा की तरफ देखना शुरू किया। उनके देखते ही देखते  परी चेहरा सुगमित्रा  कोठरी में दाखिल हुई। उसके बढे हुए हुस्न की वजह से शमा झिलमिलाने लगी। उसकी हयात बख्श  लबो पर दिलफरेब तबस्सुम था। 
    •                        इल्यास ने उसके रुख ज़ेबा पर नज़र डाली। उसने भी उनकी निगाहो  में निगाहे  डाल दी। इल्यास कुछ खो से गए। वह बड़ी बे  तकल्लुफी के साथ उनके सामने जाकर बैठ गयी। और निहायत ही शीरे  लहजा में बोली। “तुमने धोका क्यू दिया ?”
    • इल्यास :     मैंने धोका  नहीं दिया।  देने की मेरी आदत है। 
    • सुगमित्रा :    तुम  मुस्लमान हो भेस बदल कर धार में क्यू गए ?
    • इल्यास :     सच यह है के मैंने यह भेस तुम्हे देखने के लिए बदला था। 
    • सुगमित्रा :    अगर यह सही है तो अब मज़हब भी बदल लीजिये। 
    • इल्यास :      मज़हब के मुताल्लिक़ —–
    •                  ज़रा ठहरिये “सुगमित्रा ने  कता कलम करते हुए कहा “क़ब्ल उसके के तुम अपना ख्याल।  मैं यह बता दू  के अगर तुम मज़हब दब्दील करलोगे तो जो पेशवा ने तुमसे कहा है वह होगा। तुम्हारे लिए दुनिया  की तमाम मुस्सरते मुहैया की जायँगी और अगर तुमने  इंकार किया तो नतीजा अच्छा च्छा न होगा। 
    • इल्यास :      यह सुन चूका हु। अब तुम्हारी ज़बान से भी सुन लिया। दुनिया की  राहते और दुनिया की मुस्सरते चंद  रोज़ा है। जब मौत आजायेगी सब कुछ यही रह जायेगा। आख़िरत की  ज़िन्दगी हमेशा की ज़िन्दगी है। इस दुनिया में जिसने नेक काम किये खुदा को पहचानना। उसके अहकाम की तामील की आख़िरत में उसे उसके नेक आमाल  का सिला मिलेगा। जन्नत में दाखिल होगा। उस जन्नत में जिसका ज़िक्र  क़ुरान शरीफ  में है। जिसमे राहत ही राहत है उसमे दिलकश खुशनुमा बख़ीचे है। निहायत उम्दा और बड़े आराम वह  मकानात है। लज़ीज़ व खुश ज़ायक़ा मेवे है। नज़र फरेब सब्ज़ा  ज़ार है। उन सब्ज़ा ज़ारो में मीठे  और सफीना पानी के चश्मे रवा है। वहा न ज़्यदा गर्मी है न अज़ीयत रसा सर्दी है। मौसम खुशगवार रहता है। …. 
    •                         सुगमित्रा ने कता  कलाम करके कहा “तुम शायद अपने मज़हब के मुबल्लिग हो “
    • इल्यास :      नहीं। मगर हर मुस्लमान अपने मज़हब का आलिम है और मुबालिग़ भी। हम खुदा का कलाम पढ़ते  और उसकी तब्लीग करते है। 
    • सुगमित्रा :      जानते हो मैं तुम्हारे पास किसलिए आयी हु ?
    • इल्यास :       मैं गायब दा नहीं हु। लेकिन जो बात तुमने कही है इससे मालूम होता है के तुम मुझे मज़हब दब्दील  करने की तरग़ीब देने आयी  हो। 
    • सुगमित्रा :      मैं यह कहने आयी हु के तुमने धार को नापाक कर दिया है  इसकी सजा मौत है। 
    • इल्यास :       मगर मैंने सुना है के बुध जी हर जानदार पर रहम करने का हुक्म दिया है। 
    • सुगमित्रा :      लेकिन मुजरिम को सजा देने का हुक्म दिया है। अगर मुजरिमो को सजा न दी जाये तो दुसरो  को इबरत  न हो। और जुर्मो की तादाद बढ़ जाये। 
    • इल्यास :       अगर मुझे मुजरिम क़रार दिया जाता है तो मैं सजा भुगतने के लिए भी तैयार हु। 
    • सुगमित्रा :     क्या तुम जानते हो के दुनिया में सबसे अज़ीज़ चीज़ ज़िन्दगी है ? 
    • इल्यास :       मैं सबसे अज़ीज़ चीज़ मज़हब को समझता हु। 
    • सुगमित्रा :     सुना करती थी के मुस्लमान बड़े ज़िद्दी होते है। आज खुद देख रही हु। तुम यहाँ क्यू आये हो ?
    • इल्यास :      अपने चाचा और चाचा की बेटी तलाश करने। 
    • सुगमित्रा :     क्या तुम्हारे चाचा और चाचा की बेटी तुमसे नाराज़ हो कर चले आये थे। 
    • इल्यास :      नहीं मेरे चाचा की बेटी को तुम्हारे मज़हब की एक औरत बहका कर ले आयी थी और चाचा उसे तलाश करने आये थे। 
    • सुगमित्रा :     कितना अरसा हुआ इस बात को ?
    • इल्यास :     पंद्रह बरस हो गए। 
    • सुगमित्रा :     ओह् इतने आरसे के बाद तुम उन्हें तलाश करने आये हो। बड़ी गलती की तुमने वह ज़िंदा कहा  होंगे। 
    • इल्यास :     मेरा दिल कहता है वह ज़िंदा है। 
    • सुगमित्रा :    मैं यक़ीन दिलाती हु के काबुल में कोई मुस्लमान नहीं है। 
    • इल्यास :      मुझे उस औरत का पता चल गया है जो मेरी मंगेतर को अगवा करके लायी थी। 
    • सुगमित्रा :    तुम अपनी मंगेतर को तलाश करते फिर रहे हो। शायद की बहुत खूबसूरत होगी। 
    • इल्यास :      जी हां। 
    • सुगमित्रा :    तुमने उस औरत से नहीं पूछा ?
    • इल्यास :     जब मैं उससे मिला था तो वह  हवास म न थी। 
    • सुगमित्रा :    क्या पागल हो गयी है ?
    • इल्यास :      नहीं या तो वह बीमार हो गयी है या उसे कोई हादसा पेश आगया था। 
    • सिगमित्रा :     मुझे तुमसे हमदर्दी पैदा हो गयी है। 
    • इल्यास :     तुम्हारा शुक्रिया !
    • सुगमित्रा :     मैं चाहती हु की तुम ज़िंदा रहो। 
    • इल्यास :     मेरे और तुम्हारे चाहने से कुछ नहीं होता हां खुदा  चाहेगा तो ज़िंदा  रहूँगा। 
    • सुगमित्रा :    अगर तुम बुध मज़हब क़बूल करलो तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ सकता। 
    • इल्यास :      तुम शायद इस बात को नहीं समझती हो की मौत और ज़िन्दगी खुदा के इख़्तियार में है। मेरी मौत  अपने वक़्त पर आएगी कोई उसे न रोक सकेगा। 
    • सुगमित्रा :    इस मुल्क में मेरे पिता महाराजा का हुक्म चलता है और और पिता मेरा कहना  मानते है। मैं तुम्हे  बचा सकती हु। 
    • इल्यास :     बचा सकती हो लेकिन बचा नहीं सकती  क्यू की मैं अपना मज़हब न बदलूंगा। 
    • सुगमित्रा :    बड़े ज़िद्दी हो काश मैं तुम्हे न देखती। मै पेशवा से इजाज़त लेकर तुम से मिलने आयी थी। मेरा ख्याल  था की तुम मेरा कहना मान लोगे। मुझे तुम्हारे मारे जाने का बड़ा सदमा होगा। 
    • इल्यास :     ज़माना  इस सदमा को दूर कर देगा। 
    • सुगमित्रा :     ज़िन्दगी भर यह सदमा बाक़ी रहेगा। मान जाओ मेरी दुनिया को तरीक न करो। 
    • इल्यास :     सुगमित्रा !सुनो। मैं सफाई के साथ इक़रार करता हु की मुझे तुमसे मुहब्बत हो गयी है। बेपनाह   मुहब्बत लेकिन अफ़सोस में मज़हब नहीं बदल सकता। 
    •                  सुगमित्रा मगमूम  हो गयी। उसी वक़्त एक  लड़की दाखिल हुई। उसने कहा “वक़्त ख़त्म हो गया। “पेशवा का  की अगर उन्होंने आपकी बात मान ली है तो उन्हें साथ ले कहलिये नहीं मानी तो छोड़ दीजिये। 
    • सुगमित्रा :    अफ़सोस इन्होने मेरी बात नहीं मानी। वह उठ कड़ी हुई उसने इल्यास  पर एक निगाह डाली और वहा से चली गयी। .. 



              अगला भाग   (   इक़रार ).        

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  • fatah kabul (islami tarikhi novel) part 17

     हूरविष  सुगमित्रा। …….. 

                                         


     भी दादर पहुंच गया। दादर के तीन  अएतराफ़ में  पथ्हर   चट्टानें फ़सील की तरह उठती  चली गयी  थी और  सामने की दीवार  मज़बूत  बड़े बड़े पथ्तरों से बनाई गयी।  चुकी और तरफ चट्टानें थी इसलिए उधर दरवाज़े  नहीं थे। जो   दीवार बनाई  गयी थी  उसमे तीन   दरवाज़े थे। एक दरवाज़ा जो  दरमियान में था  वह  इतना बड़ा था के  हाथी उसमे गुज़र  सकता था। और  दरवाज़े जो इसके इधर उधर थे वह भी इतने बड़े थे के घोड़े सवार आसानी से आ जा सकते थे। 

    •              शहर काफी बड़ा था। पहाड़  होने की वजह से उसमे काफी सर्दी थी। सब ऊनी लिबास पहने हुए थे। कमला ने भी एक पश्मीना वास्केट पहन ली थी। इल्यास के पास कोई वास्केट नहीं। थी। उन वहा की सर्दी तकलीफ देने लगी थी कुछ नकदी उन्होंने सलेही से लेली  थी।  वह इस फ़िक्र में   थे  के कोई अच्छी वास्केट मिल जाये  खरीद ले। एक रोज़ कमला ने देखा सुबह का वक़्त था। सर्दी की वजह से उनका रवा खड़ा हो   गया था। उसे बड़ा अफ़सोस हुआ। उसने अपनी वास्केट उतार कर उन्हें देनी चाही और कहा। “लो इसे पहन लो “
    •          इल्यास ने मुस्कुरा कर कहा तम्हारा शुक्रिया   पहला तो यह वास्केट मेरे आने की नहीं। दूसरा मुझसे ज़्यदा  तुम्हे ज़रूरत है। 
    • कमला : आओ तो बाजार चले। वहा से कोई अच्छी और  बड़ी वास्केट खरीदेंगे। 
    •                दोनों बाजार की तरफ चल पड़े  चुके शहर में बाहर से काफी तादाद  और मर्द आगये थे इसलिए हर वक़्त चहल पहल रहती थी। नो ख़ेज़ व हसीन लड़किया ज़्यदा आयी हुई थी। इन मस्त शबाब लड़कियों से बाजार भरा हुआ था। दुकानदार ने दुकाने सजा  रखी हुई थी। हर दुकान पर अच्छी खासी भीड़ लगी हुई थी। 
    •                 यह दोनों चले जा रहे थे  के शोर हुआ बड़े पेशवा की सवारी आरही है। सब रास्ता के दोनों तरफ खड़े हो गए। बड़े पेशवा की इज़्ज़त व अज़मत हर शख्स करता था। कमला और  एक दुकान के सामने खड़े हो गए। पेशवा की सवारी आयी।  लम्बी कोच सी थी। उसके पिछले सिरे पर एक गोल कमरा बना हुआ था। निहायत  खुशनुमा   कमरा था। उसपर सोना चाँदी का गंगा जमुनी काम हो रहा था। 
    •                  कमरा के सामने एक छोटा सा तख़्त था जिस पर मसनद बिछी थी। मसनद पर बड़े तकिये रखे थे एक तकिया के सहारे से पेशवा बैठे थे। उनकी सूरत से बड़ा जलाल ज़ाहिर था। 
    •                 उनकी कोच बीस आदमी कंधो पर उठाये चले आरहे थे। जिन औरतो और मर्दो के सामने से उनकी सवारी  गुज़रती थी वह हाथ जोड़ जोड़ कर सर झुकाते चले  थे। जब  पास उनकी सवारी आयी तो कमला ने हाथ जोड़ कर सर झुका दिया लेकिन इल्यास ने हाथ न जोड़े। न सर झुकाया  .हलके कमला ने ठोका  मार कर उन्हें आगाह भी किया। फिर भी वह सर उठाये खड़े रहे। पेशवा ने उन्हें गौर से देखा। उनके चेहरे से बरहमिया गुस्सा के आसार ज़ाहिर नहीं थे बल्कि  हैरत और  ताज्जुब की नज़रो से देख   रहे थे। 
    •                 इल्यास भी उन्हें टिकटिकी लगाए देख रहे थे। पेशवा को इस तरह देखना सख्त गुस्ताखी  थी। दफ्तान  घंटिया बजी और सवारी रुक गयी। पेशवा ने इल्यास से मुखातिब हो कर दरयाफ्त किया। “तुम किस मुल्क से आये हो ? 
    • इल्यास की ज़बान से बेसाख्ता निकला  “इराक से” 
    • पेशवा चौक पड़े। उन्होंने कहा “तुम्हारे खादों खाल अरबो जैसे है ” 
    • इल्यास को खौफ हुआ। कही वह जासूस  समझ कर गिरफ्तार न कर लिए जाये उन्हें अपनी इस गलती का अफ़सोस हुआ  के उन्होंने यह क्यू कह दिया के वह इराक से आये है। लेकिन यह बात ज़बान से निकल चुकी थी  और अब अफ़सोस करना बेकार था। उन्होंने कहा। “मैं इसी नवाह का रहने वाला हु “
    • पेशवा :   तुम्हे सर्दी मालूम हो रही है नौजवान !लो यह वास्केट पहन लो। 
    •                पेशवा ने एक वास्केट दी  की तरफ पश्मीना था। निहायत गर्म थी। इल्यास  बढ़ा कर लेली और शुक्रिया  अदा किया। सवारी बढ़ गयी। कमला ने आहिस्ता से कहा “पेशवा ने भी तुम्हे पसंद किया है “
    • इल्यास :  नेक आदमी मालूम होते है। 
    • कमला : तुम्हारी क़िस्मत खुल गयी। किसकी तक़दीर की पेशवा उसे कोई चीज़ अता करे। 
    •                 अब उनके पास मर्दो और लड़कियों का झूमगात आ लगा।  सब उन्हें मुबारक बाद देने लगे। एक शोख  व शरीर लड़की ने कमला से आहिस्ता से कहा :” यह शायद तुम्हारे मंगेतर है मुबारक हो। “
    •  कमला के चेहरे पर सुर्खी बिखर गयी। उसने शर्मा कर सर झुका लिया। थोड़ी देर में मजमा छठा और यह दोनों वापस लौट आये। जब अपनी क़याम  गाह पर पहुंचे तो कमला ने अपने बाप से पेशवा के इल्यास को वास्केट  देने का क़िस्सा बयान किया। बूढ़े ने इस वास्केट को अपने सर पर रखा और इल्यास से कहा ” बड़ी तक़दीर  वाले हो बेटा तुम “
    •                 इल्यास ने पेशवा के उस अतिये को कोई खास अहमियत न दी। उन्होंने वास्केट  पहन ली ठीक आयी कमला ने आहिस्ता से शरमाते हुए कहा :”तुमने उस शरीर लड़की की बात सुनी थी। “
    • इल्यास : बेवक़ूफ़ थी वह। 
    •        कमला को उनके इस जवाब से अफ़सोस सा हुआ। 
    • दिन गज़रते गए ,यहाँ तक के सिर्फ दो दिन दुआ में बाक़ी रह गए।  में इस क़द्र नौजवानो और ख़ेज़ लकियो की आमद  हुई के शहर भर में तिल रखने की भी जगह बाक़ी न रही। सबको महाराजा काबुल की बेटी सुगमित्रा  के आने का इंतज़ार था। 
    •                         जब एक रोज़ बाक़ी रहा तो सुगमित्रा भी आगयी। कमला और इल्यास को भी मालूम हो गया। वह महाराजा  के बेटी थी बड़े एहतेमाम और शान के साथ आयी थी। उसके ठहरने के लिए दादर के हुक्मरान  ने अपना खास महल खली कर दिया था। महल के गिर्द  पहर अलग गया था। इल्यास ने कमला से पूछा ” क्या तुमने सुगमित्रा को देखा है ?”
    • कमला :   नहीं लेकिन सुना है बहुत ज़्यदा हसीन  व मस्त शबाब है। कही तुम उस पर फरिफ्ता न हो जाना। 
    • इल्यास : मैं ऐसी हिमाक़त क्यू करूँगा। 
    •                     आखिर  दुआ का वक़्त  आगया। सुबह होते ही सबने अच्छे अच्छे कपडे पहने और धार की तरफ  रवाना हुए। धार  की चार दीवारी निहायत ऊँची थी। सहन बहुत कुशादा था। तमाम सहन मर्दो और औरतो से भर  गया था। लड़किया निहायत खूबसूरत और माह जबीन थी। और गुल रुखसार थी। उनके हुस्न  से तमाम धार जगमगाने लगा था। 
    • इल्यास और कमला दोनों बहुत सवेरे धार में पहुंच गए थे इसलिए वह इस हाल से मिले खड़े थे जिसमे बुध का बुत  था। थोड़ी  थोड़ी देर में गुल रगो का एक  गिरहो आया एक से एक सेम तन और नाज़ुक अंदाम थी। उनके झुरमुट में वह पीकर हुस्न व नाज़ भी थी जिसके देखने के लिए मर्द  औरत सब मुश्ताक़ थी। यानी महारजा काबुल की बेटी सुगमित्रा  .वह रेशम  का लिबास और सोने व जवाहरात के जेवरात पहने थी। इस क़दर हसीं थी  .के उसका चेहरा चौदहवी रात के चाँद की तरह जगमगा रहा था।      
    •                        जब वह अदा नाज़ से बल खा कर चलती हुई इल्यास के क़रीब पहुंची तो उन्होंने  उस हूर विष  को देखा। वह इस क़दर हसीन व माह जबीन थी के उसे देख कर उनकी आंखे झपक गयी  .इत्तेफ़ाक़ से सुगमित्रा  की भी निगाह भी इल्यास पर  पड़ गयी उसकी होश रहा निगाहो ने उन्हें  कर दिया। उन्हें मालूम हुआ  जैसे उनके पहलु से कोई चीज़ निकल गयी। 
    •                   सुगमित्रा ने दफा नहीं कई मर्तबा देखा। वह वह ठिठकती हुई चली गयी  दाखिल हो गयी। उसके पीछे बहुत सी औरते। लड़किया  और मर्द भी हाल में दाखिल हुए उनमे इल्यास और कमला भी थे। 
    •                   इल्यास बुत के क़रीब जाकर खड़े हुए। यह बुत क़द आदम से कुछ छोटा  था। खालिस सोने का था। उसकी  आँखों में दो लाल लगे हुए थे जो चमक रहे थे। 
    •                   बुत के सामने दो रो यह क़तर नो ख़ेज़ हसीं  लड़कियों की कड़ी हुई थी। लड़कियों के पीछे और लड़किया औरते  और मर्द खड़े हो गए। सुगमित्रा सब से आगे हाथ में फूलो का हार  थी। 
    •                     दफ्तान सुरीला बाजा बजने लगा। उसी  वक़्त पेशवा के बराबर के कमरा से निकल कर आये उन्होंने हसीन  व खूब रो लड़कियों पर सरसरी नज़र डाली। जब वह इल्यास  क़रीब पहुंचे तो उन्होंने फिर उसे गौर से देखा और बढ़  कर बुत के सामने जा कर खड़े हुए। 
    •                     सुगमित्रा भी उनके पास  जा कड़ी हुई। उसके चेहरा से हुस्न की शुआयें निकल रही थी। उसने फिर मपाश निगाहो से इल्यास को देखा। इल्यास लड़खड़ा गए। 
    •                 चंद लड़कियों ने गाना  शुरू किया। सुगमित्रा भी गाने में शरीक हो गयी उसकी आवाज़ निहायत शेरीन  और  सुरीली थी। उसने आगे बढ़ कर बुत के गले  दाल दिया। और सीधे और क़दमों वापस आयी। 
    •                      सब सजदा में गिर गए। इल्यास और पेशवा खड़े  रह गए। सजदा से  सर उठा कर उन्होंने फतह व कामरानी  की दुआ मांगी। इल्यास टिकटिकी लगाए सुगमित्रा को देखते रहे। वह भी नज़रे चुरा कर उन्हें देख लेती थी।  सब पर खुद फरामोशी की हालत तारी थी। दुआ ख़त्म हुई। बहार निकलने लगे। इल्यास भी चले पेशवा ने उनके कंधे  पर हाथ रख कर कहा। “तुम ठहरो” ठहर गए।


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    •                                 अगला भाग ( गिरफ़्तारी )
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  • fatah kabul (islami tarikhi novel) part 16

     हमदर्द नाज़नीन। ……..

                                               

    जब यह लोग दादर के क़रीब पहुंचे तो उन्होंने मशवरा किया के जो कपडे अब्दुल्लाह ने कबिलियो जैसे दिए है। वह बदल ले या अपना ही  लिबास पहने  रहे
    । 

    •  सलेही ने कहा  : अगर हम लिबास दब्दील कर भी ले तो अपनी सुरते नहीं बदल सकते इसलिए लिबास बदलना फ़ुज़ूल है। 
    • मसूद ने कहा : मेरे ख्याल में  हमें दाढ़ी वालो को तो लिबास नहीं बदलना चाहिए लेकिन इल्यास बदल ले यह उनमे मिल सकेंगे। 
    • इल्यास : अगर लिबास बदलना गुनाह में दाखिल नहीं है तो मैं बदल लूंगा और अगर गुनाह है तो हरगिज़  बदलूंगा। 
    • सलेही : भई रसूल अल्लाह गैर क़ौमो की सूरत में लिबास में और तौर तारिक़ में तक़लीद करने की मुनिअत फ़रमाई है। लेकिन यह दब्दीली एज़ाज़ समझ कर या फख्र जान कर या किसी  करने के लिए की जाए तो मना है। और अगर मस्लेहतान मुल्क  भलाई की जाये  तो रवा। है तुम जासूसी करने के लिए ऐसा कर रहे हो इसमें बुराई नहीं है। 
    • इल्यास : तब मैं लिबास दब्दील करूँगा। 
    • सलेही : तुम लिबास  बदल कर हमसे  अलग हो जाओ। इसतरह हमसे कुछ फासला पर रहो के वक़्त पर हम तुम्हारी मदद कर सके और किसी को यह भी न मालूम हो के तुम हमारे साथ हो।
    • इल्यास : लेकिन मै उन लोगो की ज़बान भी तो अच्छी तरह नहीं  जानता। 
    • सलेही : यह वक़्त   ज़रूर है लेकिन कह देना के मै ज़्यदा तर अरबी मुमालिक में रहा हु। 
    • इल्यास : खैर मै सब कुछ कर लूंगा। 
    •                इल्यास ने लिबास बदल लिया मगर वह अपने  खदो खाल  न बदल सका। तर्ज़ व अंदाज़ न बदल  सके। रफ़्तार व गुफ़्तार न बदल सके। उन्होंने यह बड़ी जुर्रत की उन्हें मालूम हो गया था जासूसी  की सजा क़तल  है और उनपर जासूसी का शुबा हो जाना बहुत आसान है फिर भी वह डरे नहीं। 
    •                 लिबास बदल कर वह उनसे अलग हो गए और अलग ही सफर करने लगे। एक रोज़ वह एक पहाड़ी  बस्ती के क़रीब पहुंचे शाम का वक़्त हो  गया था। बाज़ लड़किया अपनी बकरिया हाँकती हुई बस्ती की तरफ जा  रही थी। बाज़ लड़किया कोल्हू पर गगरे रखे चश्मे से पानी भरने चली आ रही थी। बाज़   शोख व शंग लड़किया आपस में चहल करती आरही थी। उनमे से कई ने इल्यास को देखा। ज़ेरे लब मुस्कुरायी। कुछ अजब अंदाज़ से शाख गुल की तरह लचके और चली। 
    •               यह पहाड़ी लड़किया काफी हसीन थी। उनके सफ़ेद चहरो पर  सुर्खी झलक रही थी। आँखे बड़ी बड़ी  और सुरमगि थी। एक लड़की जो उनमे सबसे ज़्यदा हसीन व नाज़नीन थी शर्माती लजाती आरही थी। कुछ फासला पर एक घाटी ख़ंदक़ की तरह थी  .ऐसा मालूम होता था के वह ख़ंदक़ बस्ती के चारो तरफ है  लकड़ियों  के तख्ता का पुल  बंधा हुआ था और सब लड़किया तो  उस पुल पार गयी। लेकिन जिस वक़्त इल्यास पुल पर पहुंचे ठीक उसी वक़्त वह नाज़नीन भी पुल पर आयी। इल्यास उससे बच कर पुल  के किनारे पर हो गए। उस माह पीकर ने उनके  क़रीब आकर अपनी लम्बी पलके उठाई उन्हें देखा और आहिस्ता से कहा “तुम शायद मुसाफिर हो “
    • इल्यास ने जवाब दिया : हां  मैं मुसाफिर हु। दूर से   आ रहा हु। 
    • उसने भी दिलफरेब निगाहो से उन्हें देखा और कहा “कहा से आरहे हो ?”
    • इल्यास : अरब की सरहद से। 
    • नाज़नीन : बड़ा लम्बा सफर किया है  तुमने। शायद तुम दुआ में शिरकत  के लिए आये हो। 
    • इल्यास :  इरादा  तो दुआ में   शरीक होने का ही है। 
    • नाज़नीन : तुम्हारा लहजा किसी और मुल्क वालो का सा है। 
    • इल्यास : मैं अरबी मुमालिक में घूमता रहा हु। 
    • नाज़नीन : क्या तुम्हे खूंखार अरबो ने गिरफ्तार नहीं किया। 
    • इल्यास : नहीं। अरब तो  खूंखार नहीं बड़े इंसान और मेहमान नवाज़ है। 
    • नाज़नीन : लेकिन यहाँ तो कहा जा रहा  है के अरब खूंखार दरिंदे है। 
    • इल्यास : ये गलत है। इस मुल्क वालो को अरबो के खिलाफ भड़काने के लिए ऐसा क्या कहा जा रहा है ?”
    •                 इनदोनो ने अब पुल को उबूर कर लिया था। लड़की ने कहा ” क्या यहाँ तुम्हारा कोई शनासा है “?
    • इल्यास : नहीं मैं पहली बार यहाँ आया हु। 
    •                   नाज़नीन ने फिर लम्बी पलके उठा कर देखा और कहा ” तब तो हमारी झोपडी में चलो “
    • इल्यास : तुम्हे तकलीफ होगी। 
    • नाज़नीन : तकलीफ नहीं रहत होगी। मै भी दादर चलूंगी  साथ चलना। 
    •                  इल्यास ने सोचा मौक़ा अच्छा है। उन्होंने उसके साथ चलने का इक़रार कर लिया। उसे बड़ी ख़ुशी  हुई। उसने कहा “हमारी  झोपडी बस्ती के उस तरह पच्छिम की जानिब है। 
    •               वह कभी कभी किन आखियो से उन्हें देख  लेती थी। इल्यास आंखे  झुकाये साथ चल रहे थे लेकिन कभी कभी वह भी गैर  इरादी  उसकी तरफ देख लेते थे। कई मर्तबा दोनों की नज़रे  टकराई। 
    •             यह दोनों चलते चलते बस्ती बिलकुल क़रीब पहुंच गए। बस्ती एक पहाड़ी  टीला पर वाक़े थी। एक कुशादा रास्ता चट्टान पर चढ़ता चला गया था। इस रास्ता के दोनों तरफ गढ थे। चट्टान पर चढ़ कर लड़की मगरिब की तरफ घूम गयी और पगडण्डी  पर चलने लगे। इल्यास उसके पीछे हो लिए। तो वह साथ साथ चलने लगी। दोनों चले जा रहे थे के किसी ने कहा ” अच्छा कमला !अच्छा बड़ी शर्मीली बनती थी। “
    •          दोनों ने एक साथ नज़रे उठा कर देखा एक सोख  शरीर लड़की सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी। कमला शर्म्म गयी  .कुछ बोली नहीं लड़की ने पूछा “तुम्हारे मेहमान का नाम क्या है ?”
    •              इल्यास यह सुन कर धक् से हो गए। उन्हें यह ख्याल ही नहीं था के कोई उनका नाम पूछेगा। वह यह भी नहीं जानते थे  इलाक़ा वालो के नाम कैसे होते है। उन्होंने अक्सर  था महेन्दर वह  था। उन्होंने सोच लिया था के अगर कोई पूछेगा तो वह अपना नाम महेंद्र बता देंगे। 
    •            कमला ने आहिस्ता से पूछा  ” तुम्हारा नाम क्या है “उन्होंने जवाब दिया। महेंद्र कह लो “
    •               कमला ने  आवाज़ से कहा “इनका नाम महेंद्र है ” 
    • लड़की चली गयी। यह दोनों एक झोपडी  पहुंचे  कमला ने कहा “हमारी झोपड़ी  यही है ” 
    •          उसी वक़्त झोपडी के अंदर एक बूढ़ा आदमी निकला। उसके दोनों कान झींदे हुए थे और कानो में किसी चीज़ की मोटी मोटी मारकीया पड़ी थी उसने पहले इल्यास को देखा और फिर कमला को देख कर कहा। बेटी यह कौन है ” 
    • कमला ने कहा। “पिता जी !यह एक मुसाफिर है दादर में दुआ में शरीक होने के लिए जा रहे है। “
    • बूढ़ा :मुल्क को ऐसे ही  नौजवानो की ज़रूरत है लेकिन बेटी !महात्मा बुध ने फ़रमाया है मुकश (निजात) नर्वाण पर मुंहजिर है। और नर्वाण का पहला उसूल सही नज़र है। ख़यालात की पाकीज़गी ज़रुरु चीज़ है जो कोई अपनी जान को पाकीज़ा बना कर अपने नफ़्स से दुनिया की लज़्ज़तो और  ऐश व राहत की ख्वाहिशो  मिटा दे। उसे नर्वाण हासिल हो जाये। कमला :मैं जनिति हु पिता जी। 
    • बूढ़ा : एक बात और याद रख बेटी !मुसाफिर की खातिर करना अच्छी बात है लेकिन इससे प्रेम करना बुरा है तूने सुना  होगा मुसाफिर किसके मीत। 
    • कमला : पिता जी मैं यह भी जानती हु। 
    • बूढ़ा अब इल्यास से मुखातिब हुआ उसने कहा “नौजवान !तुम्हारी आना मुबारक हो क्या नाम है  बेटा तुम्हारा “
    • क़ब्ल इसके के इल्यास जवाब दे कमला ने कहा “इनका नाम  महेंद्र है पिता जी “
    • अब दिन चिप गया था। इल्यास को फ़िक्र थी के किसी  पढ़ ले। बूढ़े ने कहा। “महन्दर हम भी सुबह दादर जा रहे  है तुम्हारे साथ चलना  बस्ती में कई नो ख़ेज़ व हसीन लड़किया है वह भी जायेंगे। बड़ी मुद्दत के बाद दुआ की तक़रीब अमल   वाली है। हमारे देश के लामा (पेशवा ) भी शरीक होंगे। महाराजा ! पहला क़दम ईरान  को अपनी ममलिकत में शामिल करने के लिए उठाने वाले है। चलो झोपडी में चल कर बैठना। मैं भी आरहा हु कमला ! मुसाफिर के लिए  तैयार करो। “
    • इल्यास झोपड़ी में दाखिल हुए। कमला और बूढ़ा बहार रह  गए। उन्हें मौक़ा मिल गया। उन्होंने मगरिब की नमाज़  तीन फ़र्ज़ अदा किये।  थोड़ी देर में कमला उनके लिए खाना लायी और उन्होंने खाया। इस झोपडी में घांस  बिछी हुई थी। उस पर एक तरफ  बिस्तर कर दिया गया। एक तरफ कमला के लिए और दरमियान में बूढ़े का बिस्तर  रहा। 
    •             ईशा की नमाज़ इल्यास ने इशारो से अदा कर ली। सुबह उठ कर बस्ती से बाहर हवाइज ज़रुरिया  अदा  करने गए। वही उन्होंने नमाज़  ली। जब वापस झोपड़ी में आये   बूढ़ा दोनों सफर की तैयारी कर रहे थे। उन्हें देखते ही कमला ने उनके सामने  पहाड़ी फल रख दिए। कुछ मेवे भी थे। उन्होंने नाश्ता किया। बूढ़े ने कहा ” बेटा !तुम्हारा लहजा हमारे  नहीं है “
    • इल्यास : मैं ज़्यदा तर फारस और अरब में रहा हु। 
    • बूढ़ा : तुम अरब और फारस में  कैसे पहुंच गए। “
    • इल्यास : क़िस्मत ले गयी और क्या कहु ?
    • बूढ़ा  : हमारे एक लामा भी जो दादर के इसी  धारे में रहते है जिस में दुआ की तक़रीब अदा हो होगी कुछ अजीब लहजा  रखते है। वह भी कहते थे। के वह अरबो में ज़्यदा रहे है। दरअसल एक ज़माना हुआ जब भिक्षु फारस और अरब की तरफ गए थे उनमे  बहुत से इस नवाह में रह थे  काफला तैयार हो गया। चलो। 
    •              सामने एक चट्टान पर कई मर्द और कई लड़किया  बिस्तर और दूसरा सामान हाथो में लिए हुए जमा  हो रहे थे। यह तीनो भी असबाब उठा कर उनमे शामिल हो गए। इल्यास ने खुदा का शुक्र अदा  किया के वह पहाड़ी  लोगो में शामिल हो गए।  अभी सूरज कुछ थोड़ा ही ऊँचा हुआ था के यह लोग  दादर की तरफ  रवाना हुए। 
                                                  अगला भाग (हूर विष सुगमित्रा   )



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  • fatah kabul (islami tarikhi novel) part 15

     तिजारत। …… 

                                              


                       थोड़ी देर के बाद अब्दुल्लाह आये। उन्होंने इल्यास से मुखतिब हो कर कहा “मैंने पहचान लिया  .औरत वही है जो राबिया को लायी थी। 

                       इल्यास खुश हो गए। उन्होंने कहा “खुदा का शुक्र है। यक़ीनी है के अब राबिया का पता चल जायेगा। 

    • अब्दुलाह :मुझे खौफ है के शायद अभी हमें कामयाबी न होगी। 
    • इल्यास : क्यू ?
    • अब्दुल्लाह : इसलिए के औरत ग़ुम मगम  है। या तो उस पर किसी मर्ज़ का ऐसा हमला हुआ है। जिसने उसके हवास खो दिए है और उसकी ज़बान काबू में नहीं रही है। या उसे ऐसी दवाई खिलाई गयी है जिनसे उसकी ताक़त स्लैब हो गयी है। 
    • इल्यास : यह तो बुरा हुआ। 
    • अब्दुल्लाह : इसवक्त उसपर ग़शी के दौरे पड़ रहे है। मैंने और लोगो को बुलाया है। उसे अपने महल में ले जाऊंगा। और वहा उसका इलाज कराऊंगा अगर वह अच्छी हो गयी  यक़ीनन है के सब कुछ बता देगी। 
    • सलेही : शायद उसके अच्छा होने में कुछ अरसा लगे। 
    • अब्दुल्लाह : हां दस पन्द्रह रोज़ ज़रूर लगेंगे। 
    • सलेही : इतने दिन हम क्या करे। 
    • अब्दुल्लाह : मैं  तुम्हे शहर में रहने की इजाज़त दिला दूंगा शहर में रहना। 
    • सलेही : लेकिन हम दादर में जाकर दुआ की तक़रीब भी देखना चाहते है। 
    • अब्दुल्लाह ; और उस तक़रीब का ज़माना  बहुत क़रीब आगया है एक दो रोज़ में यहाँ की लड़किया रवाना होने वाली है। 
    • सलेही : तब हमें भी  रवाना होना चाहिए। 
    • अब्दुल्लाह : मेरे ख्याल में दो रोज़ और ठहरे मुमकिन है के इस अरसा में उस औरत को होश अजय और वह बाते करने के क़ाबिल हो जाये। 
    • सलेही ; बेहतर है। 
    • अब्दुल्लाह :मैं शहर जाकर उस औरत का आराम का।  तीमारदारों का इंतेज़ाम करता हु। और तुम्हारे लिए शहर में रहने  की इजाज़त हासिल करके तुम्हारे पास परवाना भिजवा दूंगा। 
    • सलेही : हमारे लिए  तकलीफ न करो। हमें यहाँ भी आराम है। 
    • अब्दुल्लाह : यह तो ठीक है लेकिन मैं मुस्लमान हो गया हु जी चाहता है के मुसलमानो की कुछ खिदमत करू। 
    •  सलेही : जैसी तुम्हारी मर्ज़ी। 
    •               अब्दुल्लाह वहा से चले गए। दुपहर के वक़्त उन्होंने कई कहारों को एक अजीब सी सवारी कंधो पर ले जाते देखि। उन्होंने खाना खाया और बैठ कर बाते करने लगे। उन्हें इस बॉट्स ेबड़ी ख़ुशी थी के कुफ्रिस्तान में उनका एक ऐसा हमदर्द पैदा हो गया है जो मुस्लमान हो चूका है। इल्यास को यह ख़ुशी और ज़्यदा थी के उस औरत का पता चल गया है जो राबिया को अगवा करके  लायी थी। 
    •               थोड़ी देर इ बाद उनके पास वह सवार आये। उनके पास वह परवाना था जिसमे अरब सौदागरों को शहर में दाखिल होने की इजाज़त दे दी गयी। 
    • या सब घोड़ो पर असबाब बार के खुद भी घोड़ो पर सवार  हुए। और शहर की तरफ चले। जब वह शहर में दाखिल हुए तो उन्होंने देखा के शहर काफी वसीय है लेकिन इमारते  दक्यानुसी क़िस्म की मामूली दर्जा की है। 
    •                   उनके लिए एक माकन मख़सूस कर दिया गया था। वह उस  मकान में जाकर उतरे असर के वक़्त अब्दुल्लाह उनके पास आये। उन्होंने बताया के होश आने लगा है। जब बिलकुल उसके हवस दुरुस्त हो जायेंगे तब वह उन्हें लेजाकर उनसे मुलाक़ात  करांगे। 
    •             अभी अब्दुल्लाह बैठे बाते ही कर रहे थे के एक बूढ़ा सिपाही मुसलमानो के पास आया और उसने बताया  के शहर के हुक्मरान इनसे मुलाक़ात करना  और उनका माल देखना चाहता है। 
    • अब्दुल्लाह उनके पास हो लिए और चारो अरब  बेश क़ीमत माल लेकर  रवाना हुए। हाकिम अपने महल में मौजूद था। उसने वही  उनलोगो को तालाब किया  जब महल में दाखिल हुए तो उन्होंने देखा के महल काफी काफी बड़ा  है। उसमे एक छोटा सा बगीचा भी है। कमरे निचे और तंग है। कमसिन लड़किया तंग शालुके और लहंगे  पहने आ जा रही है। .वह एक कमरा में  लेजाकर बिठाये गए। उस वक़्त दिन चिप गया। सलेही वगेरा  वही जमात के साथ नमाज़ पढ़ी। जब वह नमाज़ से फारिग हुए तो एक लड़की आकर उन्हें अपने साथ ले गयी  और एक बड़े कमरे पहुंचे। उस कमरा में पीतल के शमादान थे और उनमे मुश्ते रोशन थी। तेल की जलने की बदबू  आरही थी लेकिन रौशनी  ऐसी तेज़ के आँखे झपकी जाती थी। 
    •        उन लोगो ने देखा के एक अधेड़   उम्र का शख्स मज़बूत  जिस्म का  घुटनो तक धोती बंधे और एक खुशनुमा  वास्केट सी पहनी मुकट  सर पर रखे एक तख़्त पर बैठा था। तख़्त पर फर्श था। उसके एक तरफ कई औरते बैठी थी। यह सब औरते शकील थी  दूसरी तरफ नो ख़ेज़ व  हसीन लड़किया भी थी। 
    •                       अरबो ने हुक्मरान को स्लैम किया। और चुके नामहरम औरते और लड़किया वहा मौजूद थी इसलिए सर  झुका कर खड़े हो गए। हुक्मरान और सब औरतो और लड़कियों ने उन्हें देखा  सबकी निगाहे इल्यास पर  जम गयी। ख़ुसूसन लड़किया उन्हें टिकटिकी लगा कर देखने लगी। 
    •             हुक्मरान ने उन्हें बैठने का इशारा किया। और वह  बैठ गए। उसने पूछा। 
    • “तुम कहा से आये हो ?”
    • सलेही ने जवाब दिया “बसरा से “
    • हुक्मरान : किस लिए आये हो ?
    • सलेही :तिजारत करने। 
    • हुक्मरान : तिजारत का क्या माल है तुम्हरे पास। 
    • सलेही : मला हिज़ा फरमाइए। 
    •                उन्होंने  चंद चीज़े इल्यास को दी और इल्यास ने हुक्मरान के सामने पेश किये। पहले उसने देखे फिर औरतो  और लड़कियों ने देखे। उनमे से  बाज़ चीज़े औरतो ने बाज़ लड़कियों ने बाज़ हुक्मरान ने पसंद किये और खरीद  ली। 
    •                अरबो का तर्ज़ गुफ्तुगू अंदाज़ नशिस्त और अदब व लिहाज़ का तरीक़ा हुक्मरान को बहुत पसंद आया। उसने कहा “मैं तुम लोगो से मिल कर बहुत खुश हुआ तुम जब तक चाहो यहाँ ठहर सकते हो। 
    •            सलेही ने अर्ज़ किया :”हम आपका शुक्रिया अदा करते है। हम ताजिर भी है और सय्यियाह भोई। तिजारत भी करते है और सय्यिहत भी  .आप ने इजाज़त देदी है तो चाँद रोज़ क़याम करके आगे बढ़ जायँगे “
    •           कुछ और देर के बाद वह वहा से रवाना हुए। अपने मस्कन पर आकर उन्होंने ने नमाज़ पढ़ी और खाना खा कर  सो गए। 
    •               सुबह को सूरज निकलने के बाद अब्दुल्लाह आये और सलेही और इल्यास के साथ अब्दुल्लाह के मकान पर पहुंचे। यह मकान मामूली दर्जे का था। इसी में वह औरत थी जो राबिया के लेकर आयी थी। अब्दुल्लाह ने उन्हें एक कमरा में बिठाया  और कहा।  मुआलिज का ख्याल है के उस औरत को सदमा पंहुचा है  .बीमारी नहीं। 
    • सलेही :  क्या वह औरत अपने  हवास में आगयी है। 
    • अब्दुल्लाह : उसकी अजीब हालत है कभी बिलकुल हवास में आजाती है और कभी बेहोश हो जाती है आओ  मैं दिखाऊ। 
    •                 वह उन्हें साथ लेकर एक और कमरा में पहुंचे। उस कमरे में एक औरत नरम नरम बिस्तर पर पड़ी  थी।  उस वक़्त उसकी आँखे खुली हुई थी। और वह बे माद्दा छत की तरफ देख  रही थी और यह तीनो उसकी बिस्तर पर खड़े हो गए और उसे देखने  लगे। 
    •            अगरचे उस औरत की उम्र चालीस साल के क़रीब थी लेकिन अब भी इस क़दर हसीन थी के उसकी सूरत  देखते रहने को जी चाहता था। इल्यास ने दरयाफ्त किया “यह कुछ बोली भी ” 
    •            अब्दुल्लाह ने ” बिलकुल नहीं बोली “
    •                       मुएलिज भी  आगया। उसने पहले उस औरत की नब्ज़ देखि। उस के जिस्म का मुआयना किया और फिर कहा ” मेरा ख्याल  सही है उसे कोई बीमारी नहीं। है कुछ  सदमा है एक हफ्ता में जाकर यह बोलने के क़ाबिल हो। जाएगी 
    •            इल्यास उस औरत के ऊपर झुक गए। उन्होंने बुलंद आवाज़ में कहा “मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता  हु “
    • औरत  ने उनकी तरफ देखा न ताउज्जा की। बराबर छत को देखती रही। मुअलिज ने कहा ” अभी यह कुछ सुनती  है न समझती है। 
    •                यह लोग वहा से चले आये। उन्हें मालूम हुआ के कुछ लड़किया और औरते उस शहर से दादर रवाना हो गयी है। 
    •              इनलोगो ने अब्दुल्लाह और उनके ज़रिये से हुक्मरान  इजाज़त ली।  जो चीज़े उनसे खरीदी थी उनकी क़ीमत  अदा की और उन्हें जाने की इजाज़त देदी। 
    •                  यह लोग दूसरे दिन दादर की तरफ रवाना हो गए। 

                                            अगला भाग ( हमदर्द नाज़नीन )
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  • fatah kabul (islami tarikhi novel) part 14

     सुराग  रसी……… 


                 हिंदी का नाम अब्दुल्लाह  रखा गया। अब्दुल्लाह ने कहा। “अगर मैं इस बात को ज़ाहिर न करू के मैं मुस्लमान हो गया हु तो कोई हर्ज तो नहीं। 

    सलेही :कोई हर्ज नहीं है। 

    अब्दुल्लाह :मैं इसलिए अभी ज़ाहिर नहीं करना चाहता के यहाँ के लोग सब बुध मज़हब के पेरू और  मुसलमानो के खिलाफ है। मैं ऐसे बहुत से लोगो से वाक़िफ़ हु जो किसी अच्छे मज़हब की तलाश  है। मैं कोशिश करूँगा के वह भी मुस्लमान हो जाये। अगर वह मुस्लमान हो गए तो यहाँ का हुक्मरा भी मुस्लमान होजायेगा। 

    सलेही :खुदा तुम्हे तुम्हारे इस इरादे में कामयाब करे। 

                      इल्यास को यह जानने का बड़ा इश्तियाक़ हुआ के वह कौन मुस्लमान था जो अरसा हुआ किसी की तलाश म आया था। चुनांचा उन्होंने अब्दुल्लाह दरयाफ्त किया। “जिस मुस्लमान का  आपने तज़करा किया उनका नाम आपको मालूम है। 

    अब्दुल्लाह : नाम तो उन्होंने ज़रूर बताया था लेकिन ज़यादा अरसा गुजरने की  वजह से याद नहीं रहा। 

    इल्यास : उनका नाम राफे तो नहीं था ?

    अब्दुल्लाह : मुझे नाम बिलकुल याद नहीं रहा। 

    इल्यास : कुछ शकल सूरत याद है ?

    अब्दुल्लाह : शकल सूरत तो तुम मुसलमानो की एक सी होती है। 

    इल्यास :कुछ यह मालूम हुआ हो के वह किस चीज़ की तलाश में थे। 

    अब्दुल्लाह : उन्होंने यह नहीं बताया था। वह बच्चो से बड़ी मुहब्ब्बत करते थे। ख़ुसूसन छोटी लड़कियों से। अजब बात यह है के लड़किया उनसे जल्द मानूस हो जाती थी।  सैय्याह थे। हमारी ज़बान खूब जानते थे और  मज़हबी किताबे यानी तृप्तक भी पढ़ते रहते थे। 

    इल्यास : वह दुबारा यहाँ नहीं आये ?

    अब्दुल्लाह : हां वह यहाँ नहीं आये। बल्कि मैं उनसे मिलने दादर भी गया था।  वहा भी नहीं थे। मैंने पता लगाया के कोई मुस्लमान तो वहा नहीं आया था  .सबने ला इल्मी ज़ाहिर की। 

    इल्यास : तब वह शायद दादर नहीं गए। 

    अब्दुल्लाह : दादर तो गए होंगे लेकिन वहा ठहरे नहीं। मुमकिन है वह काबुल चले गए हो लेकिन तुम क्यू उन्हें दरयाफ्त करते हो ?

    इल्यास : तक़रीबन पंद्रह बरस का ज़माना हुआ के मेरे चाचा इस तरफ आये थे वह वतन वापस नहीं गए। 

    अब्दुल्लाह : मुझे उस मुस्लमान के यहाँ आने की ठीक मुद्दत भी याद नहीं है क्या वह भी सय्याहैत के लिए आये थे। 

    इल्यास : नहीं बुध मज़हब की एक औरत वतन में गयी थी वह उनकी लड़की को अपने साथ ले आयी थी। अपनी लड़की की तलाश में यहाँ आये आये थे। 

                           अब्दुल्लाह को जैसी भूली हुई बात याद  आगयी हो। उन्होंने कहा  ” मुझे याद आगया वाक़ई एक खूबसूरत सी औरत एक लड़की को साथ लायी। थी उस लड़की के खदो खाल अफगानी और ईरानी लड़कियों जैसे नहीं थी। वह निहायत  हसीन थी  .उसकी सुरत ऐसी दिलकश थी के जो कोई एक दफा देख लेता था देखता रह जाता था। वह ज़रूर अरब की नाज़नीन। थी 

    इल्यास : वह लड़की मेरी मंगेतर और मेरे चाचा की बेटी थी। चाचा  तलाश  में यहाँ आये थे। उस वक़्त मैं  बहुत छोटा   था। 

    अब्दुल्लाह : तुम्हारी बाते सुन  कर मेरा दिमाग  रोशन होता जाता। है  भूली हुई बाते याद आती   है। उस औरत से  उस लड़की के   मुताल्लिक़  दरयाफ्त   किया था। उसने मुझे बताया था के उस लड़की की सिर्फ माँ  ज़िंदा थी  वह और लड़की दोनों बुध  भगवान् के मज़हब में दाखिल हुए थे। क़ज़ाए इलाही से उसकी माँ चंद रोज़ बीमार रह कर फौत हो गयी थी। मरते वक़्त उसने उस लड़की का हाथ मेरे हाथ में  पकड़ा दिया था। मैं उसे लेकर यहाँ  चली आयी। 

    इल्यास  जोश में आकर कहा  : “उसने झूट कहा था “

    अब्दुल्लाह : मैं उसी वक़्त समझ गया था के वह झूट बोल रही है उसकी आँखे उसकी ज़बान से मुताबिक़त नहीं कर रही थी। मैंने उस लड़की को उससे लेना चाहा  क़ीमत इतनी मांगी के मैं  दे न सका। 

    इल्यास : क्या यहाँ बरदा फरोशी होती है?

    अब्दुल्लाह : आम तौर पर तो नहीं लेकिन क़ानूनन मुमनात  है। मगर उसे  बेटी बनाने के लिए खरीद रहा था वह शायद उस बात को समझ गयी थी   इसलिए उसने उसके बदले में चाँदी देने का   मुतालबा किया था। 

    इल्यास :  तब उसने ज़रूर उसे बेच डाला होगा। 

    अब्दुल्लाह :यक़ीनन वह बड़ी हरीश और तमा थी। 

    इल्यास : मगर वह बुध मज़हब की मुबल्लिग बताई जाती थी। 

    अब्दुल्लाह : थी वह मुबल्लिगे ही। 

    इल्यास : क्या मुबल्लिगे भी हरीश होती है ?

    अब्दुल्लाह : पहले तो शायद मैं  यह बात न कहता  जबकि मैं मुस्लमान हो गया हु। बे खौफ  बुध मज़हब के भिक्षु  मर्द हो या औरत लालची और   बदनीयत होते है। अगरचे  नहीं होते लेकिन ज़्यदा तर ऐसे ही होते है। 

    इल्यास : तुमने  औरत और लड़की को नहीं देखा। 

    अब्दुल्लाह : नहीं  हालके उस लड़की को देखने की तमन्ना एक महीना में कई कई मर्तबा  में पैदा हुई और मैं दादर और काबुल भी  गया लेकिन मुझे वह औरत न मिली। 

    इल्यास : लेकिन अगर वह ज़िंदा है। तो इंशाल्लाह मैं उसका सुराग लगा कर रहूँगा। 

    अब्दुल्लाह : अगर वह  ज़िंदा है तो इस वक़्त हुसन और खूबसूरती नाज़ व नज़ाकत दिल रिहाई और रानाई में उसका जवाब नहीं होगा। लेकिन मैं तुम्हे मुतनब्बा  करता हु के तुम किसी और के सामने उस लड़की का ज़िकर  क्यू के लोग फिर तुम्हे ताजिर नहीं जासूस समझेंगे। और उस मुल्क में जासूसों को क़तल की सजा दी जाती है।  तुम यक़ीनन कर डाले जाओगे। 

    इल्यास : माफ़ करना मैं वक़्त  जोश में कुछ  अज़ खुद  गया। इंशाल्लाह आईन्दा एहतियात करूँगा। 

    अब्दुल्लाह : अगर तुम उसे तलाश कर रहे हो तो अपनी ज़बान में ताला  डाल लो। मेरा ख्याल है के तुम्हारे चाचा जो अपनी बेटी को तलाश करने आये थे  ज़रूर मारे गए है उन्होंने लोगो से बेटी के मुताल्लिक़ मालूमात हासिल करनी चाही होंगी। किसी ने  उनकी मुखबरी करके उन्हें पकड़वा पकड़वा दिया और वह क़तल कर दिए गए। 

                         इल्यास को फिर जोश आगया। उन्होंने जोशीले लहजे में कहा “अगर वह क़तल कर दिए गए होंगे तो मैं खुदा की क़सम उनका भी इन्तेक़ाम लूंगा। 

                अब्दुल्लाह ने उनकी तरफ देख कर कहा “फिर तुम्हे जोश आगया “

    इल्यास :क्या करू चाचा की क़तल की खबर सुनने से जोश आगया। मगर अब ज़रूर एहतियात रखूँगा। काश मुझे वह औरत मिल जाए। 

    अब्दुल्लाह : फिर तुम ऐसी बाते करने लगे। 

    इल्यास : यह तो मैं तुम्हारे सामने कह रहा हु। 

    अब्दुल्लाह : मेरे सामने भी न कहो। 

    इल्यास : बहुत अच्छा तुम्हारे सामने भी न कहूंगा। 

    अब्दुल्लाह : अगर वह औरत अभी ज़िंदा है तो अधेड़ उम्र की होगी।  और चुके वह जवानी में काफी हसीन थी इसलिए अब भी खूबसूरत होगी। अगर  आजाये तो अब भी उसको पहचानना कुछ मुश्किल न होगा। 

    इल्यास : खुद  मिल जाए। 

    अब्दुल्लाह : अगर वह मिल जाए तो उस लड़की  का पता आसानी से चल जाये। अब मेरी दरख्वास्त है के आईन्दा भी तुम लोग चंद रोज़ यही क़याम करो। 

                       इल्यास ने सलेही की तरफ देखा। सलेही ने कहा “कल अपने फ़रमाया था के शहर दादर के धार में दुआ मांगने की तक़रीब अमल में आने वाली है। और वहा मुल्क की माया नाज़ हसीन व नाज़नीन औरते  जमा होंगी। मुमकिन है इल्यास के मंगेतर उन लड़कियों में आजाये या वह औरत मिल जाए जो उसे लायी थी इसलिए हमें यहाँ न रोकिये। 

                     अब्दुल्लाह  कुछ कहना चाहता था के एक सवार  दादर की तरफ से घोड़ा दौड़ाये आता नज़र आया। क़रीब आकर जब उसने अब्दुल्लाह को देखा तो वह घोड़ा से उतर  के उनके क़रीब आया और बोलै। “मैं आप ही के पास जा रहा था। “

    अब्दुल्लाह : किसलिए ?

    सवार : मैं डाक लेकर गया था  .जब चौकी पर डाक डी कर लौटा  तो घोड़ा बे काबू हो कर कर जंगल में घुस गया। कुछ  दूर जाकर मुझे एक  झोपड़ी  मिली। उस झोपड़ी में  एक औरत बेहोश पड़ी थी। शायद उसे बुखार था। मैंने घोड़े से  उतर कर उसकी देख भाल की। उसे होश आगया। उसने  मुझसे पूछा मैं  कहा जा रहा हु। मैंने  बताया। उसने  कहा “तुम वहा के सीपा सालार को मेरे पास बुला लाओ “मैं उसी वक़्त चल पड़ा और  यहाँ   पंहुचा। 

    अब्दुल्लाह : उस औरत का कुछ हुलिया  बयान करो। 

    सवार : वह अधेड़ उम्र की औरत है। अब भी बड़ी खूबसूरत है। 

                       अब्दुल्लाह  इल्यास   की तरफ देखा और कहा “मुमकिन है वही हो मैं जाकर देखता हु। 

             सवार ने हैरत से अब्दुल्लाह को देखा।  अब्दुल्लाह उठ खड़े हुए और घोड़े पर सवार हो कर सवार  के साथ चले। इल्यास ने चाहा के खुद भी उनके साथ चले मगर मस्लेहत मालूम न हुई रुक गए  और दुआ मांगने लगे के अल्लाह वह औरत वही हो जो राबिया को लेकर आयी थी। 


                                                            अगला भाग ( तिजारत )

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  • fatah kabul ( islami tarikhi novel) part 13

       तब्लीग इस्लाम,,,,,,,


    इन  लोगो ने रात निहायत आराम से बसर की। सुबह को नमाज़ पढ़ कर तिलावत करने लगे। इल्यास निहायत खुश थे। एक तो क़ुरान की निहायत ही शीरें ज़बान है। दूसरे  इल्यास का लहजा बड़ा ही प्यारा था। सुनने वालो को वजद आजाता था। जिस वक़्त वह  कर रहे थे  वही हिंदी जो ज़रनज का सिपह सालार था आगया। उनके क़रीब बैठ कर सुनने लगा। जब उन्होंने तिलवात ख़त्म की तो ” कैसा  है यह क्या है?
    • इल्यास : यह वह मुक़द्दस किताब है जो परवरदिगार आलम ने अपने मुहतरम रसूल खुदा हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल अल्लाह अलैहि वसल्लम के  ज़रिये  नाज़िल फ़रमाया है। 
    • हिंदी : काश मै अरबी  वाक़िफ़ होता और उसे पढ़ कर समझता। 
    • इल्यास : यह  कुछ मुश्किल नहीं है। बहुत जल्द तुम इस ज़बान को हासिल कर सकते हो। 
    • इल्यास : मैं चंद बाते दरयाफ्त करना चाहता हु। 
    • इल्यास : शौक़ से दरयाफ्त कीजिए। 
    • हिंदी : ईश्वर भगवान् या खुदा के मुताल्लिक़  क्या ख्याल है ?
    • इल्यास :हमारा एतेक़ाद है  के अल्लाह ही ने सब कुछ पैदा किया है। वही जिलाता और माररता है। जैसा के खुद अल्लाह फरमाता है “तमाम तारीफे अल्लाह के लिए है जिसने आसमानो और ज़मीनो को पैदा किया। है और उजाले को पैदा किया है। 
    •               एक मुक़ाम पर अल्लाह फरमाता है “सिवाए उसके कोई माबूद नहीं।  उसने हर चीज़ पैदा की है की है। उसी की इबादत करो। 
    • हिंदी : हमारा  अक़ीदा शायद तुम्हे मालूम नहीं। 
    • इल्यास : मालूम है। तुम खुदा को कुल चीज़ो का ख़ालिक़ यानि पैदा करने वाला नहीं मानते। 
    • हिंदी : यही बात है हमारा अक़ीदा है के भगवान् आत्मा रूह और पुर (मादा)हमेशा से है। 
    • इल्यास : सोचने और समझने की बात यह है के रूह और मादा को भी किसी ने ज़रूर पैदा किया है। जिसने उन्हें पैदा किया है। वही ख़ालिक़ कुल  क़ादिर मुतलक़ है उसी को खुदा कहते है। क़ुरआन शरीफ में है “और अल्लाह ही के लिए असम्मान और ज़मीन की बादशाहत है। (और उसकी भी )  दरमियान में है। वह जो कुछ चाहता है पैदा करता है। और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है। 
    • हिंदी : मैं हलफ से कहता हु के खुदा को मैं भी ऐसा ही समझता था। जिसने सब चीज़ो को पैदा  और जो हर चीज़ पर  क़ादिर नहीं है। वह हो सकता। 
    • इल्यास : वही पैदा करता है वही  मारता है। परवरदिगार अपने कलाम पाक में खुद फरमाता है। “वही ज़िन्दगी बख्शता है। और उसी की तरफ लौट कर जाओगे। 
    • हिंदी : तुमने सच कहा। मेरा भी यही ख्याल है।
    • इल्यास : जो लोग गुनाह करके उससे   माफी चाहते है उन्हें माफ़ कर देता है। चुनांचा उसने क़ुरआन  शरीफ में फ़रमाया है ” वह  लोग के  गुनाह  करे  और  जानो  पर ज़ुल्म  करे अल्लाह को याद करेंगे अपने गुनाहो की  बख्शीश मागेंगे। और   कौन बख्शा है गुनाहो को मगर अल्लाह और जो कुछ  उन्होंने किया उसपर ज़िद न करे। और वह जानते हो यह लोग (यानी मांगे वालो का ) बदला बख्शीश है उनके  से बहिश्ते जिनके निचे  नहरे बहती है वह उसमे हमेशा रहेंगे।  और नेक काम करने वालो का सवाब अच्छा है। 
    • हिंदी : उससे तो अवगुन  का मसला   हल  हो जाता है।  यह अक़ीदा गलत है  के एक दफा गुनाह  करने के बाद उसकी माफ़ी नहीं होती बल्कि जून की तब्दीली  सजा मिलती है। 
    • इल्यास : जून की तब्दीली  की कोई सजा नहीं है। फ़र्ज़   करो एक शख्स उस  जून में इंसान है। उससे कोई गलती सरज़द हो गयी। कल वह बिल्ली या कुत्ते के जून में आगया जब इंसान हो कर जिसे अकल व समझ अता हुई है गलती की तो जानवर होने पर तो  और भी उससे गलतिया सरज़द होंगी और जो जो वह गलतिया गलतिया करता जायेगा। बुरे से बुरे जून में जायेगा फिर उसे मुक्ति या निजात की उम्मीद कैसे हो सकेगी। और जब ईश्वर या खुदा उसे माफ़ ही नहीं कर सकता।  इबादत करने  क्या फायदा किसी की इतआयात की सिला में उम्मीद की जाती है। अगर सिला की तवका हो तो एतायत भी की जाये। इसी तरह इबादत भी  सवाब के लिए की जाती है।  और जिस इबादत से सवाब न मिलता हो उस  फायदा। जब हर गलती  हर गुनाह की पवश जून  बदलने से ज़रूर मिलेगी ईश्वर  खुदा गलतियों   और गुनाहो  को माफ़ नहीं कर सकता। तो उसे ईश्वर की इबादत कौन और क्यू करे। 
    • अब इसके मुक़ाबले में इस्लामी तालीम लीजिये। खुदा ने साफ़ तौर पर अयलान कर दिया के जो लोग गुनाह करंगे। अपने गुनाह की बख्शीश मांगे। अल्लाह उन्हें माफ़ करके बहिश्त में दाखिल करेगा। गोया अल्लाह ने अपनी क़ुदरत का इज़हार कर दिया। साथ ही या भी फार्मा दिया के बुरे अमल यानि गुनाह न करो वार्ना उसकी सजा मिलेगी। इरशाद होता है “जो कोई बुरा अमल करे उसे उसका बदला मिलेगा। और वह सिवाए अल्लाह के कोई दोस्त और मदद करने वाला न पायेगा। यानी कोई भी उसकी मदद न कर सकेगा। एक और जगह इरशाद होता है “जो कोई अपने रब के पास गुनहगार होकर आये उसके लिए जहन्नम है वह उसमे न मरेगा न जियेगा। यानि अजीब ख्वाहिश में मुब्तिला रहेगा। मरने की ख्वाहिश करेगा न मरेगा और ज़िन्दगी मौत से बदतर होगी। जहन्नम क्या जय उसके मुताल्लिक़ भी सुन लीजिये। अल्लाह ताला इरशाद फारमाता है। “यानी और क्या जाने के दोज़ख क्या है। वह न बाक़ी रखती है न छोड़ती है। चमड़ी को झुलस देती है। 
    •             दोज़ख में आग ही आग होगी। आग का बिस्तर होगा। आग का ओढ़ना होगा। आग खाने को मिलेगी  और आग से खोलता हुआ पानी पीने को मिलेगा। आग के शोले भड़कते होंगे। खुदा जहन्नम से पनाह दे। बहुत ही बुरी जगह है। 
    •             यह भी सुन लीजिये के अल्लाह ताला बड़े से बड़े गुनाह बख्श देगा लेकिन शिर्क करने वालो को हरगिज़ न बख्शेगा। चुनाचा परवरदिगार आलम ने फ़रमाया “यानी अल्लाह नहीं बख्शता उसे जो  शरीक लाये। और सिवाए उसके जिसे चाहता है बख्श देता है। 
    • हिंदी : शिर्क क्या है ?
    • इल्यास :शिर्क की तसरीह तो बहुत कुछ है लेकिन मुख़्तसरन यह है के अल्लाह के साथ किसी को शरीक न करे। वह यकता है। उसके कोई औलाद नहीं। यू वह हर जगह और हर वक़्त मौजूद रहता है। लेकिन इंसान बन कर और किसी कालिब में कभी नहीं आया। उसे कभी किसी ने नहीं देखा। इंसानी हाथो से बनाये हुए बुटो को खुदा समझ कर कर सजदा करना। किसी इंसान को खुदा के बराबर संह कर उसकी परस्तिश करना। इंसान के अलवाह  चीज़ को सजदा करना शिर्क है। 
    •   हिंदी : नौजवान तुम्हारी बातो ने इस वक़्त मेरे दिल पर बड़ा असर किया है। तुम्हारी थोड़ी सी तो उम्र है लेकिन मज़हबी मालूमात किस क़दर बढ़ी हुई है।फिर तुम्हरी गुफ्तुगू करने का अंदाज़ किस क़दर दिलचस्प है। बहुत अरसा हुआ जब यहाँ एक मुस्लमान आया था न मालूम वह क्सिकी तलाश में था  शायद एक महीना तक यहाँ ठहरा था। मैं भी जाता था। वह भी अपने मज़हब की बाते करता रहता था। मेरे दिल पर उसकी बातो का असर हुआ हुआ था। मैंने मुस्लमान होने का इरादा कर लिया था। लेकिन अभी उस पर यह बात ज़ाहिर नहीं की थी के अचानक एक रोज़ वह दादर की तरफ रवाना हो गया। 
    •        हिंदी कहे जा रहा था और इल्यास बड़ी गौर से सुन रहा था। उनका दिल तेज़ी से धड़कने लगा था। हिंदी कह रहा था। मुझे उसके इस तरह चले जाने का बाद अफ़सोस हुआ था। वह लोगो को मुस्लमान  काया  मुस्लमान करते हो ?
    • इल्यास :क्यू नहीं। है मुस्लमान मुबल्लिग है। 
    • हिंदी : अच्छा तो मुझे मुस्लमान करलो। 
    •            इल्यास को बड़ी ख़ुशी हुई। उन्होंने उसे वज़ू कराया और कलमा और कलमा शहादत पढ़ा कर मुस्लमान  बाद उन्होंने सलेही ,अब्बास,और मसऊद को बुला कर उसके मुस्लमान होने की खुशखबरी सुनायी  बहुत ही खुश हुए। 
                            
                                                     अगला भाग (सुराग रसी ) 
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  • fatah kabul (islami tarikhi novel) part 12

     एक  हमदर्द ,,,,,,,,,

    •  मुसलमानो को इस बात का बहुत अफ़सोस हुआ के शहर ज़रनज के मर्ज़बान ने उनकी मदारत करना तो  दरकार  उन्हें अपने शहर में रात बसर करने की भी इजाज़त न दी। वह इस बात को समझ गए के उसे मुसलमानो से क़ल्बी  अदावत है। इस बात का सुराख़ लगाने का मौक़ा न मिल सका के वह मुसलमानो से लड़ाई की तैयारी तो नहीं कर रहा है। 
    • रात उन्होंने मैदान में जाकर बसर की और सुबह होते ही वहा से  कश की तरफ चल पड़े। अब वह उस इलाक़े में सफर कर रहे थे जो  बिलाद हिन्द के के नाम से मशहूर है। शहर  ज़रनाज और कश का दरमियानी इलाक़ा बिलाड़ हिन्द ही कहलाता था। 
    •         अब तक जिस मुल्क को यह लोग तये कर रहे थे। व खासा गर्म था लेकिन अब जिस इलाक़े में दाखिल हुए उसमे गर्मी काम थी। यह लोग कश को आबूर करके अजरंज में पहुंचे। यह इलाक़ा काफी सर सब्ज़  व शादाब था। यहाँ गर्मी और भी कम थी। इस नवाह के लोगो को इन्होने अच्छा और तंदुरस्त और सुर्ख व सफ़ेद रंग का पाया। लेकिन वहा के मर्दो और औरतो के चेहरों में दिलकशी और जज़्बीयत नहीं थी। नक़्श व निगार भी अच्छे नहीं थे। सब्ज़ा अलबत्ता बहुत भला था।  एक रोज़ उन्होंने  अजरंज में  क़ियाम करना चाहा। जब वह शहर के क़रीब पहुंचे तो  उन्हें  चंद आदमी मिले।  उन्होंने उनसे कहा  “तुम शायद वही अरब हो जिन्होंने ईरान पर क़ब्ज़ा कर लिया है। 
    •            सलेही ने जवाब दिया  “है हम उस क़ौम से है। 
    • एक हिंदी ने कहा :”तब हम तुम्हे मशवारा देते है के तुम शहर के अंदर न जाओ। 
    • सलेही :क्या बात है। 
    • हिंदी : बात यह है के इस नवाह के तमाम लोग तुम्हारी क़ौम से नाराज़ है। खौफ है  कही बाज़ जोशीले तुम्हे नुकसान न पहुचाये। 
    • सलेही : लेकिन हम सौदागर है। 
    • हिंदी : हम तो यह जानते है के तुम मुस्लमान हो। 
    • सलेही : लेकिन हम तुम लोगो से तो नहीं लड़ते। 
    • हिंदी : मगर ईरानियों ही से क्यू  लड़े। 
    • सलेही : इसलिए ईरान के मगरूर बादशाह ने हमारे मुहतरम रसूल  अल्लाह  को गिरफ्तार करने के लिए अपने एक वाली याज़ान को लिखा था। हम उसकी यह खुद साडी और दीदादिलेरी  बर्दाश्त न कर सके। 
    •  हिंदी : हम समझते है के तुम अपनी हुकूमत को वसीय और मज़बूत कर रहे हो। तुमने एक तरफ ईरान और दूसरी तरफ रूमी हुकूमत पर एक साथ हमला कर दिया। 
    • सलेही : हमीरण पर हमला करने की वजह बता चुके है अब रूमी सल्तनत पर यलगार करने का सबब भी सुनो। हमारे मुकर्रम व  मुअज़्ज़म रसूल अल्लाह ने जो तमाम दुनिया की हिदायत के लिए तशरीफ़ लाये थे। हरक़ल आज़म  क़ैसर  रूम  के पास अपना सफीर दावत इस्लाम के लिए भेजा।  हरक़ल आज़म के गवर्नर शरजील ने उन्हें बिला किसी कुस्सोर के शहीद  कर डाला हरक़ल आज़म  ने  उससे कोई बाज़ पर्स नहीं की बल्कि जब उससे क़सास तलब किया गया तो उसने निहयात मगरूराना जवाब दिया और शरजील को लिख दिया के वह अरबो से जंग शुरू करदे। 
    • अगर रूमी लश्कर अरब पर हमला कर देता। तो सारी दुनिया यह समझ लेती के मुस्लमान कमज़ोर है। उनका क़ासिद मारा गया। वह उसका इन्तेक़ाम न ले सके। और रूमीओ के हमले भी बढ़ जाते इसलिए उन पर लश्कर कशी की गयी और उन्हें उनके ही मुल्क में रोक दिया गया। 
    • हरक़ल आज़म ने अपनी पूरी क़ुअत से मुसलमानो का मुक़ाबला किया लेकिन खुदा की मदद मुसलमानो के शामिल हाल थी उसके लश्करों को पारा पारा कर दिया गया। उसके मुमालिक छीन  लिए गए। यहाँ तक के उनके दारुल सल्तनत पर क़ब्ज़ा कर लिया गया। 
    • हिंदी : इसतरह तुम हमला करने में हक़ बजानिब थे। लेकिन यहाँ के लोगो को यह हालात मालूम नहीं है। वह तो सिर्फ यह समझते है के तुमने मुल्क गिरी की हवस में उन दोनों ज़बरदस्त सल्तनतों पर हमला करके उन्हें उलट दिया है और इसलिए ख़ाइफ़ है के कही तुम हम पर हमला न कर दो। 
    • सलेही : मुस्लमान उस वक़्त तक हमला नहीं करता जब तक उस पर हमला न किया जाये। या उसे छेड़ा न जाये। अगर तुम लोग हमारे मुक़ाबला की तैयारी न करोगे तो हम इत्मीनान दिलाते है के तुम पर हरगिज़ लश्कर कशी न करंगे। 
    • हिंदी :बात यह है के यहाँ के लोगो को तुम्हारा एतबार नहीं रहा है। मै तुमसे कोई बात छिपाना नहीं चाहता। यह हक़ीक़त है के काबुल से ज़रनज तक जंगी तैयारियां हो रही है। और यह कोशिश की जा रही है के यहाँ के सब हुक्मरान मिल कर तुम पर हमला करे। और अगर  ज़रूरत हो तो भारत वर्ष के राजाओ से भी मदद तलब की जाये। 
    • सलेही : यह भारत वर्ष कोण सा मुल्क है ?
    • हिंदी : बार्रे आज़म हिन्द का नाम भारत वर्ष है। जिस इलाक़ा में इस वक़्त तुम हो यह भी हिन्द ही में शामिल है। 
    • सलेही : अरबो ने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा है। मुसलमानो ने तुम्हारे किसी एक आदमी को भी तकलीफ नहीं पहचायी है। गवर्नमेंट इस्लामिया का इरादा तुम पर हमला करने का बिलकुल ही नहीं है। फिर तुम क्यू उन पर लश्कर कशी की तैयारी कर रहे हो। 
    • हिंदी : हमे खौफ है के तुम हम पर भी ज़रूर यलगार करोगे। 
    • सलेही : पहले मैं यह मालूम करना चाहता हु के तुम कौन हो। 
    • हिंदी : मैं इस क़िला की फ़ौज का अफसर हु। 
    • सलेही : यह बहुत अच्छा हुआ के हमें तुम से गुफ्तुगू करने का मौक़ा मिल गया। लड़ाई की तैयारी करने से यह अच्छा है के तुम सुलह कर लो। 
    • हिंदी : मेरा मशवरा यह था लेकिन काबुल के महाराज ने उस बात को नहीं माना। 
    • सलेही : वह क्या चाहते है ?
    • हिंदी : वह ईरान को अपनी हुकूमत में शामिल करना चाहते है। 
    • सलेही : तो अब बताईये के मुल्क गिरी की हवस किसे कहते है। और लड़ाई का ख्वाहिशमंद कौन है। 
    • हिंदी : यह बात नहीं बल्कि यह देखना चाहिए के यह तहरीक किस वजह से पैदा हुई। 
    • सलेही : क्या काबुल के महाराजा ने जंगी तैयारियां कर ली है। 
    • हिंदी : कुछ कर ली है। कुछ की जा रही है। 
    • सलेही : अफ़सोस है के मुसलमानो को कोई क़ौम चैन से नहीं बैठने देती। अभी ईरानियों और रूमियों से जंग  करके निम्टे है। अब काबुल के महाराज लड़ने को तैयार है। मैं यह बता दू के इंसान पैगाम अमन लेकर आया है हम खुद भी अमन वा आमान से ज़िन्दगी बसर करना चाहते है। और सारी कालमृद में भी अमन देखना चाहते है। हमने किसी मुल्क पर अज़ख़ुद हमला नहीं किया। न आइंदा करना चाहते है। मालूम होता है आप भी अमन व आमान ही के ख्वाहिश मंद है। आप अपने हुक्मरान के ज़रिये से फिर इसी तहरीक को उठाईये। शायद महाराजा काबुल की समझ में  आजाये और आने वाली जंग की बाला टल जाये। 
    • हिंदी : अब यह बात मुमकिन नहीं मालूम होती। कूके महाराजा काबुल जिस बात का इरादा कर लेते है। उसे अधूरा नहीं छोड़ते। दवार में जो भगवन बुध का बूत है उससे फतह व कामरानी की दुआ मांगी जाने। 
    •  सलेही : ददावर कहा है ?
    • हिंदी ; यहाँ से थोड़े ही फैसला पर एक मशहूर शहर दावर है। उसमे एक ज़बरदस्त।  इस धार  भगवान् बुध का बुत है। जो खालिस सोने का है उसकी दोनों आँखों में दो ऐसे लाल लगे है जो बड़े ही नायब और क़ीमती है। 
    • सलेही : यह धार क्या चीज़ है ?
    • हिंदी : तुम धार को भी  जानते। यानि बुध मज़हब वालो का माबाद है। 
    • सलेही : क्या उस धार में जाकर उस बुत के सामने दुआ मांगने का कोई खास सबब है ? 
    • हिंदी : हां उस धार में आम तौर पर मुल्क की माया नाज़ हसीं औरते और मेहजबीन लड़किया जमा हो कर दुआ माँगा करती है। महाराजा काबुल की सुपत्री सिघमित्रा भी जो इस ज़माना की बे नज़ीर हसीना है इस धार में आने वाली है। वह इस क़दर खूबसूरत और माह जबीन लड़की है के शायद चश्म फलक ने आज तक भी न देखि होगी। 
    • सलेही : आपने तो उसकी तारीफ करके उसके देखने का इश्तियाक़ हमारे दिलो में पैदा कर दिया। है 
    • हिंदी : वह देखने और देखते रहने के क़ाबिल है। मैंने इस बहार हुस्न और मस्त शबाब को दूर से एक नज़र देखा है। मेरा ख्याल है के अगर पास से देख लेता तो ज़रूर अपने होश व हवास खो बैठता। 
    • सलेही : क्या हम भी उस हूर जबीन को देख सकते है ?
    • हिंदी : न मुमकिन है। अलबत्ता अगर तुम लिबास तब्दील कर वह तो शायद नाज़ह जमाल कर सको। 
    • सलेही : क्या आप हमारे लिए लिबास मुहैया करने की तकलीफ गवारा करंगे। 
    • हिंदी : अच्छा तुम यही शहर के बहार क़याम करो। मैं चार जोड़े भेज दूंगा। 
    •             हिंदी अपने हमराहियों के साथ चला गया और उस काफला ने शहर के बहार एक अच्छा मुक़ाम देख कर  क़ायम कर दिया। 

                                      अगला भाग (तब्लीग इस्लाम )

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