दीन अल्लाह में दाखिला … …
Author: umeemasumaiyyafuzail@gmail.com
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fatah kabul (islami tareekhi novel) part 31
जिस अरसे में लश्कर कोच के लिए तैयार हुआ। उस अरसा में अब्दुर्रहमान ने अब्दुलरब और उनके साथियो की इस्तेकबाल की। उनके सामने खुजुरे पेश की। और सत्तू घोल कर रखा।अब्दुलरब उनका सदा खाना देख कर भी ताज्जुब हुआ। उन्होंने कहा ‘तुम्हारी ग़ज़ा यही है। “अब्दुर्रहमान : ऐसे तो हम खाने को सब कुछ खाते है परिंदो का गोश्त ,ऊँट का गोश्त ,बकरो का गोश्त ,रोटी लेकिन हमें रग़बत खुजूरो से है। सत्तू भी बड़े शौक़ से खाते है। इन्हे ही मुसलमानो के सामने पेश करते है।अब्दुलरब ने खुजूरो और सत्तू को कुछ ज़्यादा पसंद न किया। हक़ीक़त यह है की हर मुल्क की माशरत अलग है। आब व हवा अलग है। खाना अलग है जिस मुल्क का जो फ़ल होता है उसी मुल्क वालो को ज़्यादा पसंद आता है। दूसरे मुल्क वाले कम पसंद करते है।इतने में अब्दुलरब ने खुजूर खायीं और सत्तू पिया इतने में लश्कर तैयार हो गया। सब के बाद अब्दुर्रहमान का खेमा लादा गया। और यह सब लोग अरजनज की तरफ रवाना हुए।अब्दुलरब अपने चंद सवार अब्दुल्लाह के साथ आगे दौड़ाये और उन्हें समझा दिया की मुसलमानो का शानदार इस्तेकबाल करे चुनांचा जब मुस्लमान क़िला के पास पहुंचे तो क़िला की फ़सील के ऊपर से अग्नि बाण आसमान की तरफ उड़ाए गए। और फ़ौरन ही तमाम लश्कर दरवाज़े से निकल कर सामने वाले मैदान में बढ़ गया। उन्होंने बड़ी शान से मुसलमानो का इस्तेकबाल किया।अब्दुर्रहमान ने मैदान में ही कैंप दाल दिया। अब्दुलरब और अब्दुल्लाह क़िला के अंदर चले गए। उस रोज़ अब्दुलरब ने तमाम लश्कर की दावत की और राशन भेज दिया। दूसरे रोज़ वह अब्दुर्रहमान और तमाम अफसरों को लेकर क़िला के अंदर गए क़िला खूब सजाया गया था। इस नवाह के लोगो ने मुसलमानो को नहीं देखा था वह उन्हें देखने के लिए उमड़ आये। मर्द औरत और बच्चे आकर रास्तो के किनारो पर बाजार के सरो पर दुकानों पर और मकानों की छतो पर खड़े हो गए। जिस तरफ और जहा तक नज़र जाती थी इंसानो का सैलाब नज़र आता था।मुस्लमान घोड़ो पर सवार बड़ी शान से चले जा रहे थे। अरजनज वालो को यह शनाख़्त करना मुश्किल हो गया की मुसलमानो में अफसर कौन है और सिपाह सालार कौन है। सब एक ही क़िस्म का लिबास पहने हुए थे। अगर कुछ फ़र्क़ था तो यह था की अब्दुर्रहमान के हाथ में इस्लामी अलम (झंडा) था।इलियास भी उनके साथ थे। सबसे कम उम्र वह थे। गंदमी रंग के खुशनुमा आज़ा और दिलफरेब खदो खाल के थे। जो एक दफा उन्हें देखता था दुबारा देखना ज़रूर चाहता था।औरते और लड़किया उन्हें घूर घूर कर देख रही थी। एक औरत ने दूसरी से कहा “तुमने उस लड़के को देखा। यह भी लड़ने आया है ?”पहली : सुना है माएँ खुद छोटे छोटे बच्चो को भी जंग में भेज देती है।दूसरी : बड़ा दिल गिरोह है उनका या उन्हें अपने बच्चो से मुहब्बत नहीं होती।पहली : भला माँ को मुहब्बत क्यू नहीं होती होगी। सुना यह है की बच्चो के लड़ कर मरने का बड़ा सवाब समझा जाता है। माँ को भी सवाब मिलता है।इस अरसा में मुस्लमान दूर निकल गए थे। यहाँ तक की वह अब्दुर्रब के महल पर पहुंचे। वहा उन्हें मसनदों पर बिठाना चाहा। अब्दुर्रहमान ने कहा ” अब नमूद व नुमाइश की बातो को छोड़ दो। खुदा का सबसे अच्छा फर्श ज़मीन है। उस मसनद को उठा दो। ज़मीन पर बैठेंगे।उसी वक़्त मसनदे उठा दी गयी। और सादा फर्श बिछा दिया गया। सब उस पर बैठ गए। अब्दुलरब ने पहले उनके सामने मेवे रखे जिनमे किशमिश और बादाम वगैरा थे। उन लोगो ने लिहाजन खाये मगर उन्हें कुछ अच्छे मालूम हुए।उसके बाद अब्दुलरब ने कहा ” मेरी रानी और राजकुमारी मुस्लमान होना चाहती है।अब्दुर्रहमान : उन्हें पर्दा करा कर बिठा दीजिये।अब्दुलरब : हमारे यहाँ पर्दा नहीं है।अब्दुर्रहमान : इस्लाम में पर्दा है।अब्दुलरब : घूँघट निकाल लेंगी।अब्दुलरब अपनी बीवी और बेटी दोनों को ले आये। रानी ने तो घूँघट निकाल रखा था। लेकिन राजकुमारी बेनक़ाब थी .वह जवान भी थी और खूबसूरत भी। अच्छे लिबास और उम्दा जेवरात ने उसे और भी हसींन बना दिया था। मुसलमानो ने उसे देखते ही अपनी निगाहें झुका ली। अब्दुर्रहमान ने उन दोनों को मुस्लमान कराया। अब्दुलरब उन्हें ले गए .उनके बाद लगभग दो सौ लोगो मुस्लमान हुए।जब वह सब चले गए। तब इलियास ने अब्दुल्लाह से दरयाफ्त किया कहिये वह औरत अपने हवास में आयी ?”अब्दुलरब : हां अब वह अपने हवास में है।इलियास : कुछ और वाक़्यात मालूम हुए।अब्दुल्लाह : उसने अब भी वही बयांन किया है जो मदहोशी के आलम में बयान किया था। मतलब यह की राबिआ ही राजकुमारी है।अब्दुलरब भी उस वक़्त बैठे थे। उन्होंने दरयाफ्त किया। कौन राबिआ और कैसी राजकुमारी ?”अब्दुल्लाह ने तमाम हालात उनसे ब्यान किये। राजा ने कहा। “उसका कुछ हाल मुझे भी मालूम है। मैंने सुना था की काबुल के राजा ने कोई लड़की गोद ली है। मुझे और सब लोगो को अच्छी तरह मालूम था। महाराजा ला दल्द है। मैंने मालूम किया की उन्होंने किसकी लड़की गोद ली है। पहले तो पता चला की हिन्द के किसी राजा की बेटी है .देखने वालो ने बताया की निहायत खूबसूरत और परी चेहरा लड़की है। कुछ अरसा के बाद किसी ने मुझे बताया की वह लड़की किसी अरब की है। मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ की महाराजा ने एक गैर क़ौम और गैर मुल्क की लड़की को गोद कैसे और क्यू लिया। उसके शायद दो साल बाद में काबुल गया था। मैंने उस लड़की को देखा था सचमे परकाला आतिश थी .ऐसी हसीन और ऐसी भोली की मैंने अपनी उम्र में ऐसी लड़की नहीं देखि थी। मुझे क़रीब से देखने का इश्तियाक़ पैदा हुआ। अचानक से महाराजा ने मुझे रनवास में बुलाया। जब मैं वहा पंहुचा तो महाराजा किसी काम में मसरूफ थे। मैं बगीचा में गया और टहलने लगा। अचानक से राजकुमारी एक रोष पर अपनी चंद सहेलियों के साथ मसरूफ थी। मैं उसे क़रीब से देखने का मुश्ताक़ था ही। उसकी निगाह दिल से जिगर तक उतर गयी। अगरचे वह बहुत ही कमसिन थी लेकिन आँखों में गज़ब की दिलकश थी। सूरत से नूर की बारिश हो रही थी। ऐसा दिलकश चेहरा मैंने नहीं देखा था। मैंने उससे कहा “राजकुमारी ! मैं तुम्हे देखने का बड़ा मुश्ताक़ था।मुझे देख कर मुस्कुरायी। उसकी मुस्कराहट ने मुझे दीवाना बना दिया। उसके हमवार दांतो की सफ़ेद लड़िया सच्चे मोतियों की मात कर रही थी। उसने निहायत शीरी लहजा में कहा “शुक्रिया “मैंने दरयाफ्त किया “तुम कहा की रहने वाली हो ?”वह : बहुत दूर की। महारजा से पूछता।अभी इस क़द्र गुफ्तुगू हुई थी की महारानी आगयी। मैंने उन्हें सलाम किया और वहा से चला आया। मैंने यह देख लिया की वह लड़की न काबुल की है न हिन्द की। किसी और ही मुल्क की है।अब्दुल्लाह : वह लड़की अरब की है। जो औरत उसे अगवा करके लायी थी खुद उसने बताया था।अब्दुलरब : ज़रूर होगी।अब्दुल्लाह : वह औरत खुद तुमसे मिलना चाहती थी।इलियास : यह और भी अच्छी बात है।अब्दुर्रहमान : क्या वह औरत इलियास को जानती है ?अब्दुल्लाह : नहीं। जब मैंने उसे बताया की एक अरब लड़का उस लड़की को तलाश करने आया था। तो वह कुछ सोचने लगी। बड़ी देर के बाद उसने कहा ” वह लड़का आया था वह वही होगा। ज़रूर वही होगा।मैंने दरयाफ्त किया “क्या तुम उस लड़के को जानती हो ?’उसने कहा ” मुझे याद आगया ,मैं पहचान गयी। अब तो वह जवान हो गया होगा।मैं : अभी तो जवान नहीं अलबत्ता नौजवान है।वह : बहुत शकील होगा।मैं ; है बड़ा शानदार और खूब रु है। वह कौन है ?वह : वह मंगेतर है। मैंने बुरा किया की उस बच्चे का दिल दुखाया। मुझ पर उसकी माँ की बद्दुआ की वजह से मुसीबते नाज़िल हुई।इलियास : अच्छा तो यह है की वह वालिदा के पास चले।अब्दुल्लाह : वह उनके सामने जाने की जुर्रत न करेगी।उस वक़्त अज़ान हुई और यह लोग नमाज़ पढ़ने चले गए।अगला भाग ( आप बीती )/////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////// -
fatah kabul (Islami Tareekhi novel) part 30
ईमान की पुख़्तगी……..
दूसरे रोज़ हुक्मरां और अब्दुल्लाह के साथ पचास सवारों के रवाना हुए अब्दुल्लाह ने एक क़ासिद अपनी और हुक्मरां की आमद की खबर करने के लिए आगे रवाना कर दिया। क़ासिद को समझा दिया कि वह यह भी खबर देदे की हुक्मरां मुस्लमान हो गए है।क़ासिद ने अब्दुर्रहमान की खिदमत में पहुंच कर तमाम हालात बयान कर दिए। अब्दुर्रहमान को बड़ी ख़ुशी हुई। उन्होंने से सलेही से सुन लिया कि इलियास की गुफ्तुगू से मुतास्सिर होकर अब्दुल्लाह मुस्लमान हुए है। उन्होंने सलेही और इलियास के हमराह पांच सौ मुस्लमान को उनके इस्तेकबाल के लिए भेज दिया। यह लोग चार पांच मील तक बढ़े चले गए। वहा उन्हें अब्दुल्लाह और हुक्मरान वगैरा आते हुए मिले उन लोगो ने अल्लाहु अकबर का पुर शोर नारा लगा कर उनका इस्तेकबाल किया।एक दफा तो हुक्मरा इतने मुसलमानो को देख कर रुक और नारा सुन कर डर गया लेकिन अब्दुल्लाह ने उसका इत्मीनान कराया और बताया की यह लोग यक़ीनन हमारा इस्तेकबाल करने के लिए लिए आये है। हुक्मरा को इत्मीनान हो गया।जब यह लोग क़रीब आये तो फिर मुसलमानो ने नारा तकबीर बुलंद किया और रास्ता पर दूर वह खड़े हो गए। सलेही और इलियास ने आगे बढ़ गए और उनका इस्तेकबाल किया और उन्हें सलाम किया उन अल्फ़ाज़ से अस्सलामु अलैकुम पूरा सलाम किया। अल्लाह की रहमत हो और बरकत हो। अब्दुल्लाह ने जवाब दिया अलैकुम सलाम व रहमतुल्लाह व बर्कातहु मतलब और तुम पर भी सलामती हो और अल्लाह की रहमत हो और बरकत हो।सलेही ने खुश आमदीद। हमारे अमीर को और तमाम मुसलमानो को आपके आने से बड़ी ख़ुशी हुई है। “अब्दुल्लाह ने कहा “हम तमाम मुसलमानो के और अमीर के शुक्र गुज़ार है। ”सलेही : मैं वाली अज़रंज के मुसलमान होने पर मुबारक बाद अर्ज़ करता हु। “हुक्मरान :मुबारकबाद उन्हें दो। जिनका नाम तुमने अब्दुल्लाह रखा है उन्होंने मेरी रहबरी की है। मुझे तारीकी से रौशनी में निकाला है। बा खुदा मझे अफ़सोस हो रहा है की अब तक में क्यू अँधा रहा। अब तक क्यू उस बुत को पूजता रहा जो न फायदा पंहुचा सकता है न नुकसान। मैंने अपनी इतनी उम्र कुफ्र व शिर्क में गुज़ारी।सलेही : चुकी तुमने तोबा कर ली है मुसलमान हो गए हो इसलिए अल्लाह ताला तुम्हारे गुनाह माफ़ कर देगा। मुस्लमान होने के बाद इंसान के तमाम पिछले गुनाह माफ़ हो जाते है। वह बिलकुल ऐसा हो जाता है जैसे बच्चा माँ के पेट से मासूम पैदा होता है।हुक्मरा : यह अल्लाह का अहसान है।अब यह सब लश्कर इस्लाम की तरफ आहिस्ता आहिस्ता बाते करते हुए जब वह लश्कर के क़रीब पहुंचे तो एक हज़ार मुजाहिदीन ने उनका शानदार इस्तेकबाल किया। उन इस्तक़बाल करने वालो में कई बड़े बड़े अफसर भी थे।हाकिम बहुत खुश थे की हर मुस्लमान उनके सामने झुका जा रहा है और हर मुस्लमान उनके मुस्लमान होने से बहुत खुश है। जब वह कैंप के किनारे पर पहुंचे तो अब्दुर्रहमान ने तमाम लशकर के उनका गर्मजोशी से खैर मुक़द्द्म किया।सलेही ने हाकिम को इशारे से अब्दुर्रहमान को बताया की यह हमारे सिपह सालार है। हाकिम ने उन्हें देखा और ताज्जुब करते हुए कहा ‘आप सिपाह सालार है। आप तो नौजवान है।अब्दुर्ररहमान : मेरी उम्र तो कुछ है भी लेकिन हमारे वाली जिन्हे है, अमीर कहते है और जो कई सूबो के गवर्नर है वह तो मुझसे भी कम उम्र है। वजह यह है की हम मुस्लमान कमसिनी में ही फुनून जंग सीख लेते है और नौ उमरी में लड़ाईयों में शरीक हो कर तजरबात हासिल कर लेते है जंग का फन और तजर्बा कार होने पर दफीर मुक़र्रर कराये जाते है। लेकिन जंगजू और तजर्बा कारी के साथ साथ परहेज़गारी और इबादत गुज़ारी भी ज़रूरी है। जो शख्स जितना परहेज़गार और इबादत गुज़ार होगा। मुसलमानो में उतनी ही उसकी इज़्ज़त व अज़मत होगी और वह बड़े से बड़े उम्दा का हक़दार हो जायेगा हमारे नबी हज़रत मुहम्मद (स,अ ,स) ने एक गुलाम उसामा बिन ज़ैद को सततरह साल की उम्र में सिपाह सालार बना दिया था।हाकिम : तुम सब एक लिबास में रहते हो। किसी अफसर के पास न कोई इम्तियाज़ी निशान है न इम्तियाज़ी लिबास।अब्दुल्लाह : हम सब अपना क़ौमी लिबास पहनते है। शान और नमूद के लिए अच्छा लिबास पहन सकते जो लिबास एक आम मुजाहिद का होगा वही अफसरों का होगा। सिपाह सालार का होगा यहाँ तक की हमारे बादशाह का भी वही लिबास है हमारी शान अच्छे लिबास से नहीं बल्कि नूर इमान से है। तक़वा और परहेज़ से है। खुदा परस्ती और खुदा तरसी से है। इस्लाम झूटी नुमाईश नहीं देता। नमूद व नुमाईश चाहने वालो को शैतान आसानी से बहका लेता है।हाकिम: तुम सच कहते हो। मुझे उसका तजर्बा है मैं शान व नमूद चाहता रहा अपनी रियाया को अपने से कमतर और खुद को उनसे बरतर समझता रहा कई मर्तबा शैतान ने मुझे वरगलाया की मैं हाकिम नहीं अपनी रियाया का खुदा हूँ। लोग बुध की मेरी पूजा करे।अब्दुर्रहमान : यह इंसानी तबीयतो का खासा है की जिस शख्स की लोग जिस क़द्र इज़्ज़त व अज़मत करते है इतना ही वह मगरूर होकर चाहता है की और ज़्यादा इज़्ज़त अहतराम करे हमारी क़ौम में यह बात नहीं है। हमारी क़ौम में सब बराबर है। गरीब ,अमीर बादशाह व फ़क़ीर सब एक है। .किसी को किसी पर फ़ौक़ियत नहीं। एक गरीब अमीर को ही नहीं बल्कि बादशाह को भी उसकी गलत रोई पर टोक सकता है। हमारे बादशाह की यह मजाल ही नहीं की वह ख़ुदसरी से कोई काम कर सके। वह अपने अफआल व अमाल का तमाम मुसलमानो के सामने जवाब दे सके। अगर वह गलती करे तो हम उसे माज़ूल कर सकते है। मैं सिपाह सालार हु लेकिन अगर मैं गलती करू तो सिपाही मुझे मेरे ओहदा से अलग कर सकते है। हम में एक को दूसरे पर कोई फ़ौक़ियत नहीं इस वजह से हम में कोई शख्स फख्र गुरूर नहीं कर सकता।अब यह लोग कैंप में दाखिल हुए। हाकिम ने नज़रे उठा कर देखा। मुसलमानो के तमाम खेमो में एक ही क़िस्म के कम्बलो का फर्श बिछा हुआ था। यहाँ तक की अब्दुर्रहमान के खेमा में भी वैसा ही फर्श था।कैंप में पहुंच कर तमाम मुजाहिदीन अपने अपने खेमो पर पहुंच गए। सिर्फ चंद अफसर ,सलेही और इलियास रह गए अब्दुर्रहमान ने सदर में हाकिम को बिठाया और उनके सामने सब बैठ गए। हाकिम ने कहा ” आज मुझ पर मुसलमानो की मसावात का बड़ा असर हुआ है। मैं तो यह समझता हु की मुसलमानो की तरक़्क़ी का राज़ ही मसावात में है।अब्दुर्रहमान : मुसलमानो का तरक़्क़ी का राज़ खुदा परस्ती ,इबादत ,तक़वा और परहेज़गारी है। बात यह है की मुस्लमान खुदा से डरता ,उसकी इबादत करता और उसके अहकाम पर अमल करता है। आपने यह देख लिया की मुसलमानो से वह अज़ीम व शान सल्तनते टकराये एक ईसाईयों की रूमी सल्तनत और दूसरी ईरान की मजूस हुकूमत .दोनों ने मुसलमानो को कुचल डालना और दुनिया से नेस्त व नाबूद कर देना चाहा लेकिन खुदा ने मुसलमानो की मदद की और मुठी भर मुसलमानो ने सल्तनतों को पारा पारा कर दिया।हाकिम : दुनिया मुसलमानो के उन कारनामो को देख कर हैरान रह गयी है। और उनकी बहादुरी शुजाअत और इस्तेक़लाल का लोहा मान गयी है।अब्दुर्रहमान : हमारी बहादुरी का राज़ शहादत में मुज़मर है। खुदा और खुदा के रसूल ने यह फ़रमाया है की जिहाद में शहीद होने वाला जन्नत में दाखिल होंगे। अल्लाह ने यह भी फ़रमाया की शहीदों को मुर्दा मत समझो वह ज़िंदा है और अल्लाह उन्हें रिज़्क़ देता है। क़यामत तक वह आराम व राहत से रहेंगे और क़यामत के बाद बगैर हिसाब किताब के जन्नत में दाखिल किये जायेंगे। अल्लाह ने जज़ा व सज़ा के लिए दो चीज़े बनाई है। एक जन्नत दूसरी दोज़ख। अच्छे अमल करने वाले जन्नत में जायँगे और बुरे अमल करने वाले दोज़ख में शामिल होंगे। दोज़ख आतिश ज़ार है जिसका ईंधन गुनहगार इंसान जिन्न और पत्थर है। वह आग के शोलो में हमेशा रहेंगे उन्हें दर्दनाक अज़ाब होता रहेगा। जन्नत में आराम ही आराम है ,न वहा फ़िक्र होगा न परेशानी ,जरंगगार मसनदों पर सोने चांदी के तख्तो पर तकिये लगाए आराम करते होंगे। जन्नत में कई दर्जे है। जिसके जितने अमाल होंगे वह इतने ही अच्छे दर्जे में होंगे। सबसे बुलंद दर्जा शहीदों को मिलेगा। उनकी खिदमत के लिए ऐसी हसींन हूरे होंगी जिनके चेहरों से हुस्न व जमाल की रौशनी फूटती होंगी। अगर उनमे से कोई हूर दुनिया में आजाये तो साड़ी दुनिया उसे देख कर दीवानी हो जाये।हाकिम : उन बातो को सुन कर मेरा ईमान और पुगता हो गया।अब्दुल्लाह : उनका इस्लामी नाम तज़वीज़ कर दीजिये।अब्दुर्रहमान : उनका नाम अब्दुलर्रब रखा गया।अब्दुलरब : मैं आप लोगो को अपने साथ ले चलने के लिए इसलिए आया हु की क़िला आपके हवाले कर दूँ।अब्दुर्रहमान : आप मुस्लमान हो गए है। आपका क़िला और आपकी हुकूमत आपको मुबारक रहे। अब कोई मुस्लमान आपके क़िला की तरफ आँख उठा कर देखने की भी जुरअत नहीं कर सकता।अब्दुलरब : तब आप मेरे मेहमान बन कर चलिए।अब्दुर्रहमान : बड़े शौक़ से।उन्होंने कोच का अएलान करा दिया ,मुस्लमान तैयारी करने लगे।अगला पार्ट ( दीनउल्लाह में दाखिला ),,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, -
fatah kabul (islami tarikhi novel)part 29
वादी अरजनज आगोश इस्लाम में…..
शहर अरजनज के फतह होने का कश तक इलाक़ा पर असर पड़ा। वहा के आतिश परस्त भी घबरा गए। कुछ तो उनमे से भाग निकले। कुछ अपनी अपनी बस्तियों में आबाद रहे उन्होंने तय कर लिया की जब मुसलमान उनके पास आवेंगे तो उनकी इतायत करंगे।
चुनांचा जब मुस्लमान कश के इलाक़ा में दाखिल हुए तो वहा के बस्ती वालो ने उनकी एतायत कर ली और उनसे तिजारत शुरू कर दी।
मुस्लमान हर चीज़ की अच्छी क़ीमत देते थे। उनसे तिजारत में बड़ा फायदा होता था। इसलिए हर क़ौम उनसे तिजारत करने की आरज़ू करती थी। .
गैर मुस्लिम लोग इस्लामी लश्कर में दुकाने खोल लेते थे। चुकी मुस्लमान बड़े मुहज़्ज़ब और ईमानदार थे इसलिए किसी दुकानदार से कोई चीज़ ज़बरदस्ती या मुफ्त न लेते थे बल्कि वह जो चीज़ लेते थे उसकी क़ीमत खातिर ख़्वाह देते थे जो दुकानदार जिस चीज़ की क़ीमत जो मांगता वही देते। इससे तजिरो को बड़ा फायदा होता था और वह लश्कर के साथ रहते थे।
मुसलमान उनकी उनके माल की हिफाज़त भी करते और उन्हें सावरिया भी देते मुसलमानो को यह फायदा था की उन्हें लश्कर ही में ज़रुरियात की चीज़े मिल जाती थी।
इस्लामी लश्कर के आने और शहर अरजनज और कश के इलाक़ा को फतह कर लेने की खबर अरजनज तक पहुंच गयी। अब्दुल्लाह अरजनज ही में थे। उन्हें बड़ी ख़ुशी हुई और जब उन्होंने सुना की इस्लामी लश्कर क़रीब आगया। है तो एक रोज़ उसने अपने आक़ा यानी हुक्मरान से कहा ” क़रीब आगया है। हमारे शहर और इलाक़ा के लोग परेशान और ख़ौफ़ज़दा हो रहे है। “
हुक्मरां :मुझे मालूम है लेकिन क्या किया जाये। इनकी परेशानी कैसे दूर की जाये।
अब्दुर्रहमान : पहले यह तय कीजिये की मुसलमानो का मुक़ाबला किया जाये या सुलह कर ली जाये।
हुक्मरां :मैं मुसलमानो का मुक़ाबला करना चाहता हु। मैंने उनकी बहादुरी और इस्तेक़लाल की बड़ी तारीफे सुनी है .देखो कहा तक ठीक है।
अब्दुल्लाह : क्या आपने यह नहीं देखा की बहुत थोड़े मुसलमानो ने ईरान जैसी ज़बरदस्त सल्तनत पर चढ़ाई की। शाह ईरान ने उनके मुक़ाबले में ज़बरदस्त जमीयते बड़े बड़े बहादुर और अफसरों की सर करदगी में भेजे। साडी फौजे तबाह हो गयी और सब अफसर तो मारे गए या गिरफ्तार हो गए। यहाँ तक की शाह ईरान पर मुसलमानो ने क़ब्ज़ा कर लिया।
हुक्मरान :मैंने यह सब बाते सुनी है। लेकिन देखना यह चाहता हु की आखिर वह क्या बात है जिस से वह अपने हरीफ़ पर ग़ालिब है।
अब्दुल्लाह :मुझसे सुन लीजिये। वह न आग को पूजते है। न बुतो को। न और किसी चीज़ को सिर्फ खुदा की परस्तिश करते है खुदा उनकी मदद करता है। वह फतहयाब होते है।
हुक्मरान :मै इस बात को नहीं मानता। हम भगवान् बुध को मानते है और उनकी पूजा करते है। वह हमारी मदद क्यू करते।
अब्दुल्लाह : मुस्लमान कहते है की इंसान खुदा नहीं होता। न और कोई चीज़ खुदा है। खुदा वह है जिसने हर चीज़ को पैदा किया है। वह हमेशा से है और हमेशा रहेगा। हर वक़्त और हर जगह मौजूद रहता है। उससे कोई बात पोशीदा नहीं .वह दिलो के भेद तक जनता है। उसे किसी ने नहीं देखा है। न कोई उसे देख सकता है। इंसानी आँख उसके जलवे की मुहताहमिल नहीं हो सकती। वही पैदा करता है ,वही जिलाता है और वही मारता है। वह पुकारने वालो की पुकार सुनता है जो उसकी नाफ़रमानी करता है वह उसे सजा देता है।
हुक्मरान :आज तुमने अजीब बाते ब्यान की है। अगर कोई खुदा है तो सच में ऐसा ही हो सकता है। लेकिन आखिर हम और हमारे बाप दादा जिस मज़हब पर पाबंद है वह क्या है।
अब्दुल्लाह : मुस्लमान कहते है की जो खुदा की सुरते बना के बैठे हुए है। वह बुतपरस्त है। जब खुदा को किसी ने देखा ही नहीं तो उसकी तस्वीर या मुजस्समे कैसे बना लिए या तो वह ख़याली तस्वीरें है या मज़हबी बुज़ुर्गो की है। उनकी पूजा करना गुनाह है खुदा सीए लोगो से नाखुश होता है जो बुतो को पूजते है .वह कहते है उसकी मिसाल बिलकुल ऐसी है जैसे कोई बादशाह हो उसकी रियाया उसके वज़ीरो और अमीरो की तो इतायत करे और बादशाह की इतायत न करे।
हुक्मरान : बात तो ठीक कहते है। कही हम जिहालत और गुमराही में तो पड़े नहीं है।
अब्दुल्लाह : मैंने उन सौदागारो से गुफ्तुगू की थी जो यहाँ आये थे उन्होंने ऐसी बाते बयान की थी की मेरा अक़ीदा ही बदल गया और मुझे यक़ीन हो गया की यह बुत खुदा नहीं खुदा वह है जिसने सबको पैदा किया है और जिसे किसी ने नहीं देखा।
हुक्मरान : मैं अरसा से मुसलमानो के बारे में तो सुन रहा था लेकिन उनके मज़हब के बारे में कुछ नहीं सुना था। वार्ना उनसे गुफ्तुगू करता।
अब्दुल्लाह : मुझे उनके मज़हब की अक्सर बाते मालूम है। मुसलमानो का अक़ीदा है की अल्लाह ने जब देखा की उसके बन्दे उससे मुन्हरिफ़ हो कर बुतो को पूजने लगे तो उसने एक और अवतार मतलब रसूल भेजा। उसके ज़रिये से एक किताब नाज़िल की। उस किताब का नाम क़ुरआन शरीफ है। क़ुरआन शरीफ है। खुदा की तारीफ है। बुतो की मुज़म्मत है अहकाम खुदा वन्दी है गुनाह और सवबकी तशरीह है बुरे अमाल की सजा और अच्छे अमाल का जज़ा का ज़िक्र है। मैंने उस किताब पढ़ा है उसमे एक जगह लिखा है”यानी अल्लाह वह है जिसने आसमानो को बगैर सुतूनों के बुलंद किया। तुमसे देखते हो यानी आसमान को फिर अर्श पर क़रार पकड़ा और मसखर किया सूरज और चाँद को हर एक वादा मुक़र्ररा पर पता चलता है। काम की तदबीर करता है। निशानिया तफ्सील से ब्यान करता है ताकि तुम साथ मुलाक़ात अब अपने रब का यक़ीन करो और वही है जिसने ज़मीन को खींचा और उसमे पहाड़ रखे और नेहरे बहाये और मेवे के जोड़ी पैदा किये दो क़िस्म के। दिन रात को ढँक देता है। तहक़ीक़ उनमे उनके लिए निशानिया है। जो है।
हुक्मरान निहायत ताउज्जो से सुन रहा था। जब अब्दुल्लाह ने दोनों आयेते पढ़ कर उनका तर्जुमा और तफ़्सीर बयान की तो उसने बेसाख्ता कहा “वाह क्या कलाम है। मुझे तो बहुत पसंद आया। मै उसी अल्लाह पर ईमान लाता हु। “
अब्दुल्लाह खुश हो गए उन्होंने कहा “अगर आप अल्लाह पर ईमान ले आये है तो मुसलमान हो जाईये।
हुक्मरान : मुस्लमान आये तो मैं मुस्लमान हो जाऊ।
अब्दुल्लाह : आज मै एक बात आप पैट ज़ाहिर करता हु। जब मुस्लमान सौदागर यहाँ आये थे और उन्होंने मुझे अपने मज़हब की बाते बताई थी तो मैं मुस्लमान हो गया था। इस बात को मैंने आज तक छिपाया। लेकिन अब जबकि अल्लाह ने आपको भी इस मज़हब की तरफ रागिब कर दिया तो मैंने ज़ाहिर कर दिया।
हुक्मरान :तुम अच्छे रहे। अब जब मुस्लमान यहाँ अजायँगे तो मैं भी मुस्लमान हो जाऊंगा।
अब्दुल्लाह : अगर आप मुस्लमान होना चाहे तो मैं कर सकता हु।
हुक्मरान : भई मैं तैयार हु।
अब्दुल्लाह : पढ़िए कलमा शहादत ….. यानी गवाही देता हु मैं की सिवाए अल्लाह के कोई इबादत के लायक नहीं और गवाही देता हु की मुहम्मद अल्लाह के रसूल है।
हुक्मरान न पढ़ा और मुस्लमान हो गए। उसने कहा यह वही मुहम्मद है जो अरब में पैदा हुए थे। “
अब्दुल्लाह : हां. वही मुहम्मद है अल्लाह ने अपने बन्दों को आगाह कर दिया की मुहम्मद उसके रसूल है यौम उन्हें बहक कर खुदा के बराबर न समझ लेना . हुक्मरान : यह अजीब बात है की जब मैं मुहम्मद का नाम सुनता था तो मेरे दिल में उनकी मुहब्बत पैदा हो जाती थी .
अब्दुल्लाह : जो उनसे मुहब्बत करता है मुस्लमान हो जाता है। अब अगर आप हुक्म दे तो मैं मुस्लमान को आपके मुस्लमान होने की इत्तेला देदू।
हुक्मरान : मैं और तुम ऐसा ही क्यू न करे की उनके पास चले।
अब्दुल्लाह : अच्छी बात है . चलिए।
हुक्मरान :अच्छा कल चलेंगे।
अब्दुल्लाह वहा से चले आये।
अगला भाग ( ईमान की पुख्तगी)
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fatah kabul (islami tarikhi novel)part 28
मसालेहत ……….
मुसलमानो ने वापस आते हुए सबसे पहले शहीदों को एक जगह जमा किया। जनाज़ा की नमाज़ पढ़ी और गढ़े खोद कर दफन कर दिया। उसके बाद वह तमाम मैदान में फैल गए और कुछ आदमी मक़तूलाइन के घोड़ो को पकड़ने और मरने वालो के हथियार जमा करने लगे। जो काफिर चांदी का कोई ज़ेवर पहने हुए थे वह भी उतर लिए शुमार करने पर मालूम हुआ की सवा दो सौ मुस्लमान शहीद हुए और साढ़े सात हज़ार काफिर मारे गए .उनके ज़ख़्मियो की तादाद तो मालूम न हो सकी अलबत्ता मुस्लमान दो सौ के क़रीब ज़ख़्मी हुए .उनमे से डेढ़ सौ के मामूली ज़ख्म थे अलबत्ता पचास कुछ शदीद ज़ख़्मी हुए थे।
मुसलमानो ने कैंप में वापस आकर ज़ख़्मियो की मरहम पट्टी की। जिनको तीमारदारों की ज़रूरत थी उन्हें औरतो के क़रीब खेमो में ठहरा दिया और औरतो ने उनकी देख भाल शुरू कर दी।
दूसरे रोज़ मुसलमानो ने आगे बढ़ आकर क़िला का मुहासिरा कर लिया। मर्जबान पर खौफ तारी हो गया। वह क़िला के ब्रिज में आकर देखने लगा उसने देखा उस तरफ के मुस्लमान निहायत इत्मीनान से इस तरह लेटे या बैठे है जैसे वह अपने घर पर हो। वह वहा से दूसरी तरफ गया। उधर भी देखा। वह समझ गया की मुसलमानो को किसी क़िस्म का फ़िक्र नहीं है। वह तो घर की तरह मुत्मइन है। उसने अपने शहर के मुअज़्ज़िन और सल्तनत के अराकीन को बुलाया। उनसे मशवरा लिया। उनमे से एक ने दरयाफ्त किया “आप किसी बात में मशवरा लेना चाहते है ?
मर्जबान :मुसलमानो के मामले में तुमने देख लिया की मै अपनी पूरी ताक़त के साथ उनपर हमला आवर हुआ। ख्याल था की उन्हें हाज़िमत दे कर भगा दूंगा लेकिन उल्टा उन्होंने हमें शिकस्त दी और अब यह जिसारत की के हमारा मुहासिरा भी कर लिया।
एक मुअज़ज़ शख्स ने कहा “अब अगर मै सच बात कहु तो आपकी खफ़गी का अंदेशा गलत कहूं तो मशवरा दुरुस्त न होगा इसलिए कुछ कहना ही मुनासिब मालूम होता है। “
मर्जबान ;बात सही और दुरुस्त केहनी चाहिए। खफ़गी का बिलकुल खौफ न करो।
वही शख्स : तब सुनिए आपने देखा था की मुसलमानो ने ईरान जैसी अज़ीम सल्तनत पर हमला करके उसे पारा पारा कर दिया। यज़ीद गर्द शाह ईरान भागता फिरा और आखिर कार गरीब उल वतन में मर गया। आपको मुसलमानो के मुक़ाबले की तैयारी नहीं करनी चाहिए थी। जब बीज ही कड़वा बोया है तो फल भी कड़वा ही मिलेगा .
दूसरा : ये उन्होंने मेरे दिल की बात कही है। मुसलमानो के खिलाफ जब तैयारी शुरू की गयी थी। मेरा माथा उसी वक़्त तिनका था .क्यू की मुझे मालूम था की मुसलमानो के खिलाफ कही भी कोई बात की जाये उन्हें ज़रूर मालूम हो जाती है अब खुदा जाने वो इल्म नुजूम में माहिर है या गैब दान है। या जिन्न के ताबे है देख लो यहाँ तैय्यरी हुई और उन्हें खबर भी हो गयी .खैर ये तो हुआ ही था। अभी कुछ अरसा हुआ चन्द अरब ताजिर यहाँ आये थे। मै समझता हु की वह सौदागर नहीं थे बल्कि जासूस थे वह शहर क़याम करना चाहते थे नहीं ठहरने दिया बल्कि नाराज़ हो कर बाहर अगर वह जासूस होते तो क्या मालूम कर लेते हमें चाहिए था की उन्हें ठहराते की उनके साथ अच्छी तरह पेश आते। वह हमारे मश्कूर होते। उनके खिलाफ वह हमसे नाराज़ हो गए और हम पर मुसलमानो को चढ़ा लाये। उनके मुक़ाबले की हम में ताक़त नहीं है।
मर्जबान :मगर मैं दूसरे फार्मा रवावो से मदद तलब कर सकता हु अरजनज और दादर के हुक्मरान और काबुल के महाराजा हमारी मदद कार सकते है।
तीसरा : आप मदद तलब कर सकते है लेकिन यह बात मुसलमानो से छिपी न रहेगी। वह पुर ज़ोर है,ला करके क़िला फतह कर लेंगे .मर्दो को क़तल कर डालेंगे और हमारी औरतो को अपनी कनीज़े बना लेंगे।
मर्जबान :तब हमें क्या करना चाहिए ?
कई आवाज़े आयी “जिस तरह भी हो मसालेहत कर लेनी चाहिए “
जब मर्जबान ने देखा की सब सुलह के ख्वाहिशमंद है तो उसने कहा “खुद मेरी राये भी सुलह की थी। लेकिन तुमसे मशवरा लेना ज़रूरी था। अब भी अगर कोई साहेब सुलह की मुखालिफत करना चाही तो मै सुनने को तैयार हु। “
सबने कहा “सुलह का कोई मुखालिफ नहीं है अगर जंग की गयी तो हम तबाह हो जायँगे “
मर्जबान :अच्छा क़ासिद किसे बनाया जाए ?
सबने कहा “जिसे आप मुनासिब समझे “
मर्जबान ने कहा ‘कोई बूढ़ा मुदब्बिर होना चाहिए। “
बूढ़े ने अर्ज़ किया “मै ये खिदमत बजा लाने के लिए तैयार हु। “लेकिन उस वक़्त जब मुझे पुरे पुरे इख़्तियारात देते है। जिस कीमत पर हो मसालेहत कर लेना।
बूढ़ा :अब मै बड़े ख़ुशी से इस खिदमत को अंजाम दूंगा। लेकिन यह और बता दीजिये की वह तावान और खराज तलब करंगे किस क़द्र तावान और किस क़द्र खराज कर लिया जाये ?
मर्जबान :अगर चार लाख दिरहैम तावान और दो लाख दिरहम सालाना खराज पर भी मामला हो जाये ?कर लिया जाये।
बूढ़ा : बेहतर है।
वह अपना मख़सूस लिबास पहन कर क़िला से बाहर आया और मुसलमानो के क़रीब आकर पुकारा। “मुसलमानो !मैं क़ासिद हु तुम्हारे सरदार के पास जाना चाहता हु। “
कई मुस्लमान आये और उसे अब्दुर्रहमान की खिदमत में ले गए। बूढ़े का ख्याल था की मुसलमानो का सरदार बड़ी शान से होगा। उसके खेमा में आला दर्जा का फर्नीचर होगा। दरवाज़ा पर कई पहरा दार होंगे आला क़िस्म का लिबास होगा। लेकिन जब उसने उन्हें देखा तो हैरान वह गया। न उनके खेमा पर पहरा था। न खेमा के अंदर फर्नीचर था। न उम्दा क़िस्म के कपड़े पहने थे। बल्कि और मुसलमानो की तरह मामूली लिबास पहने कम्बल के फर्श पर बैठे थे वह उन्हें सरदार समझा भी नहीं। जो लोग उसे अपने साथ लाये थे जब उन्होंने बताया ा तब वह पहचाना .उसने उन्हें सलाम कहा। अब्दुर्रहमान ने सलाम का जवाब दिया और बड़े अख़लाक़ से पेश आये। उसे अपने क़रीब बिठाया और पूछा “कैसे आये हो ?”
बूढ़े ने कहा “मै क़ासिद हु सुलह की दरख्वास्त लेकर आया हु।
अब्दुर्रहमान :हमने खुद सुलह की पेशकश की थी लेकिन तुम्हारे मर्जबान ने नहीं माना।
क़ासिद : उसका उन्हें अफ़सोस है।
अब्दुर्रहमान : हमें अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है की अब हम सुलह के लिए तैयार नहीं।
बढ़े ने हर चंद अर्ज़ मरूज़ की मगर अब्दुर्रहमान तैयार न हुए जब उसने ज़्यदा असरार किया तो ुनओने कहा “हम उस वक़्त सुलह की दरख्वास्त पर गौर कर सकते है जब तुम्हारा मर्जबान खुद आकर पेश करे।
बूढ़ा : क्या आप उस बात का आकर अक़रार करते है की अगर मर्जबान यहाँ आये और मसालेहत न हो तो आप उनसे कोई तरुज न करेंगे वापस जाने देंगे ?
अब्दुर्रहमान : है हम इक़रार करते है और यह भी वादा करते है की जब तक वह अपने कालमृद में वापस न चले जाएंगे हम क़िला पर हमला न करेंगे।
बूढ़ा चला गया उसने मर्जबान से तमाम गुफ्तगू बयान की। लोगो ने मर्जबान को मजबूर किया की वह जाए। चुनांचा वह अपने साथ दस फौजी अफसरों को लेकर रवाना हुआ। उसे भी मुसलमानो ने अब्दुर्रहमान बैठे। मर्जबान ने कहा “मुझे अपनी गलती का इक़रार है। आपकी खिदमत में सुलह की दरख्वास्त लेकर हाज़िर हुआ हूँ।
अब्दुर्रहमान :अफ़सोस यह है की अपने हमारे आदमियों के साथ निहायत बदसलूकी और बद इख़लाक़ी की आप यह न समझे की हर मुस्लमान सल्तनत इस्लामिया का एक रुक्न है। उसकी तौहीन सल्तनत की तौहीन है। खलीफा की तौहीन है और खुद इस्लाम की तौहीन है।
मर्जबान :मैंने न समझी से ऐसा क्या नादिम व शर्मसार हूँ।।
अब्दुर्रहमान :अगर तुम सुलह की अजीज़ाना दरख्वास्त पेश न करते तो मै हरगिज़ मसालेहत न करता। अच्छा बताओ तुम किस खराज पर मसालेहत करते हो।
मर्जबान :जो आप मुक़र्रर करे।
अब्दुर्रहमान : तुम बताओ की आसानी के साथ किस क़द्र खराज अदा कर सकोगे।
मर्जबान :दो लाख दिरहम सालाना अदा कर सकूंगा। एक साल का खराज आपको अभी अदा कर दूंगा।
अब्दुर्रहमान :हमें माज़ूर है। लेकिन तुम्हे यह इक़रार करना होगा की हमारे दुश्मनो से कोई साज़ बाज़ न करोगे। हमारे मुक़ाबले में उन्हें कोई मदद न डोज। न किसी दुश्मन को पनाह दोगे।
मर्जबान : मैं इन बातो का इक़रार करता हूँ।
अब्दुर्रहमान :अगर तुम हमारे खिलाफ कोई कार्रवाई करोगे तो सुलह फ़स्ख़ हो जाएगी।
मर्जबान :ऐसी सूरत में हमें आपसे कोई शिकायत न होगी।
गरज़ दो लाख दिरहम पर सुलह हो गयी और शहर अरजनज भी इस्लामी कालमर्ड में शुमार होने लगा।
अगला भाग ( वाई अर्ज़ खज आगोश इस्लाम में )
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fatah kabul (islami tarikhi novel) part 27
शिकस्त ….
अभी तक मर्जबान भी एक हज़ार सवारों को अपने जुलु में लिए क़ल्ब में खड़ा लड़ाई का तमाशा देख रहा था। वह भी बहादुर और जंगजू था। मुसलमानो की हमलो की शान देख देख कर उसे भी गुस्सा और जोश आरहा था। लेकिन वह अभी तक अपनी जगह जमा खड़ा था और बड़े गौर से मैदान जंग की तरफ देख रहा था।
- अचानक उसने रकाबो पर खड़े होकर जंग की दूसरी तरफ देखा उसे अबुर्रहमान और उनका रिसाला कुछ ऐसा बिखरा हुआ खड़ा नज़र आया की वह उनकी सही तादाद का अंदाज़ा नहीं कर सका। उसे यह ख्याल हुआ की मुसलमानो का आधा लश्कर हमला आवर हुआ है। बाक़ी लश्कर अपनी जगह जमा खड़ा है। यह मौक़ा अच्छा है। अगर हमारी फ़ौज इस वक़्त जी तोड़ कर हमला करे तो मुसलमानो को पीसपा कर सकती है।
- अफसर : मुझे तो मुसलमानो की लड़ाई का ढंग देख कर ताज्जुब हो रहा है। कम्बख्त किस जोश व खरोश से लड़ रहे है।
- मर्जबान : उनका जोश उसी वक़्त तक है जब तक उनपर पूरी ताक़त से हमला नहीं किया जाता। जब पुरे ज़ोर से हमला होगा तो उनका जोश ख़त्म हो जायेगा और वह बजाए बढ़ने के पीछे हटने पर मजबूर हो जायेंगे।
- अफसर :लेकिन उन्होंने हमारी तीसरी सफ को भी तोड़ दिया है।
- मर्जबान :हमने देख लिया है। ज़रा तुम दौड़ कर अफसरों को इत्तिला कर दो की में आकर तेज़ी से हमला करे।
- अफसर :बेहतर है।
- वह घोडा दौड़ा कर मैदान जंग में आया और उसने एके बाद दूसरे तमाम अफसरों को मर्जबान का हुक्म सुना दिया। सब अफसरों ने सिपाहियों को जोश दिलाया। तबल जंग और भो ज़ोर ज़ोर से बजा और काफिरो के दस्ते ने निहायत जोश से बढ़ कर बड़े ज़ोर से हमला किया।
- काफिरो का यह हमला निहायत सख्त हुआ मुस्लमान जो सर झुकाये लड़ाई में मसरूफ थे। काफिरो का यलगार से अपनी जगहों पर क़ायम न रह सके वह ज़ोर और ज़द पड़ने पर क़दम क़दम पीछे हटने लगे .
- अगरचे अब भी मुस्लमान बड़ी सर फरोशी से लड़ रहे थे। अब भी उनकी तलवारे बराबर काट रही थी। वह हमला आवरो को क़त्ल कर रहे थे .लेकिन धकेल उन्हें पीछे हटने मजबूर कर रही थी और वह मारने काटने पर भी पीछे हटते आरहे थे।
- मुसलमानो को यह देख कर गुस्सा आगया। उन्होंने अल्लाह हु अकबर का नारा लगाया। उस नारे ने मुसलमानो की आंखे खोल दी। उन्होंने निगाहे उठा कर देखा उन्हें मालूम हो गया की काफिरो ने उन्हें काफी पीछे धकेल दिया है। उन्हें बड़ा तैश आया। उन्होंने मिल कर फिर अल्लाह हु अकबर का नारा लगाया और निहायत जोश से हमला किया। उनके इस हमले से काफिरो के सैलाब को रोक दिया .
- मुसलमानो न्र और भी फुर्ती से तलवारे चलानी शरू कर दी काफिरो ने भी ज़ोर से हमले किये जिनका ज़ोर और बढ़ गया। खून रेज़ी और भी तेज़ हो गयी। तलवारे निहायत फुर्ती से उठने लगी। सर कट कट कर उछलने लगी धड़ो पर धड़ गिरने लगी। खून के फवारे उबाल पड़े सरफरोश खून में नहा पड़े।
- कुफ्फार मुसलमानो को कुचलने और पीछे हटाने की सर तोड़ कोशिश कर रहे थे। और मुस्लमान काफिरो को मारने और पीसपा करने के लिए पूरी ताक़त से हमले कर रहे थे। चुकी फ़रीक़ैन जोश व गज़ब में भरे हुए थे इसलिए लड़ाई का हंगामा बहुत बढ़ गया था।
- कुफ्फार के लश्कर में तबल बज ही रहा था मगर वह क़ौमी नारे भी लगा रहे थे। नक़्क़ारो की आवाज़ और नारो का शोर तमाम मैदान को दहला रहे थे। उस पर तमाम तलवारो की आवाज़ और घोड़ो की हिनहिनाने की आवाज़ और मुस्जाद थी।
- मुस्लमान भी कभी कभी अल्लाह हु अकबर का नारा लगा कर साडी आवाज़ों को दबा देते थे। जब मुस्लमान नारा लगाते ही मुस्लमान बड़े ज़ोर से हमला करते थे गोया वह ताज़ा दम हो जाते थे। उनमे जोश के साथ साथ ताक़त भी आजा
- ती थी और वह पहले से भी तेज़ी और फुर्ती से लड़ने लगते थे। उनके तलवारे इस तेज़ी से काट करने लगती थी की काफिरो का सिथराओ कर डालती थी। उनके परे परे साफ़ करती थी एक दफा तो काफिर घबरा जाते थे .
- लेकिन सभल कर कुफ्फार भी मुसलमानो पर हमला कर देते थे और उनकी तलवारे भी मुसलमानो को काटने लगती थी .अलबत्ता यह ज़रूर था की मुस्लमान कम मारे जाते थे और कुफ्फार ज़्यादा।
- जबकि लड़ाई का बड़ा ज़ोर था मुस्लमान काफिरों को और काफिर को पीसपा करने की फ़िक्र वक़्त मर्जबान को जोश आगया। वह अपना रिसाला लेकर बढ़ा। इलियास ने देख लिया। उन्होंने अब्दुर्रहमान से कहा “आपने देखा मर्जबान भी हमला करने के क़स्द से चला है.”
- अब्दुर्रहमान :हमारी निगाह वही है।
- :इलियास : आप भी हमला करे।
- अब्दुर्रहमान :अभी और तवक़्फ़ करो।
- इलियास : आखिर आप किस वक़्त का इंतज़ार कर रहे है।
- अब्दुर्रहमान : मै मर्जबान के हमला का असर देखना चाहता हु।
- इस अरसा में मर्जबान लड़ने वालो पहुंच गया। उसने ललकार कर कहा “बहादुरों! बढ़ो देलिरि से हमला करो। अनक़रीब मैदान छोड़ कर भागने वाले है। “
- काफिरो ने जब मर्जबान को अपने क़रीब देखा और उसकी आवाज़ सुनी तो उन्हें और जोश आगया। उन्होंने बड़े ज़ोर से हमला किया। उस हमला में बहुत से मुस्लमान शहीद हो गए और बहुत से ज़ख़्मी हो कर भिन्ना गए।
- मुसलमानो ने फिर निगाहे उठा कर देखा। उन्होंने मर्जबान का रिसाला हमला पर तैयार देख कर फिर अल्लाह हु अकबर का नारा लगाया। इस नारे ने उनमे तज़ा जोश भर दिया। वह तलवारो के क़ब्ज़े मज़बूत पकड़ कर फिर हमला अवर हुए और इस ज़ोर से से हमला किया की कुफ्फार उनके हमला को रोक न सके .उन्होंने काफिरो को तलवारो की दिहारो पर रख लिया और इस शदीद से जिंदाल क़तल किया की कदमकदम पर दुश्मनो की लाशो के अंबार लगा दिए।
- यह कैफियत देख कर मर्जबान ने भी मा अपने रिसाला के धावा बोल दिया। मुसलमानो ने बड़े सब्र व इस्तेकबाल से उसके हमले को भी रोका और जोश में आकर काफिरो की सफो को चीरते हुए उनके बिच में घुस गए वहा पहुंच कर वह मौत की लड़ाई लड़ने लगे।
- अब्दुर्रहमान देख रहे थे। इलियास की भी निगाहे वही थी। अब्दुर्रहमान ने उनकी तरफ देखा जोश व गुस्सा से उनका खून खौल रहा था . अब्दुर्रहमान ने कहा “अब हमला का वक़्त आगया है तैयार हो जाओ .
- इलियास पहले ही से तैयार थे। इन दोनों ने घोड़ो की बागे ढीली कर दी। उनका रिसाला भी तेज़ी से चला। उन्होंने मुसलमानो के क़रीब पहुंच कर अल्लाह हु अकबर का दिल हिला देने वाला नारा लगा दिया।
- मुसलमानो ने निगाहे फेर कर उन्हें देखा। उनके हौसले बढ़ गए। उन्होंने भी अल्लाह हु अकबर का पुर ज़ोर नारा लगाया और निहायत जोश से हमला किया उधर अब्दुर्रहमान इलियास और उनके हमराही ने हमला किया। उन्होंने निहायत तेज़ी से बेद रेग एक सिरे से काफिरो पर बाढ़ रख दी और उस फुर्ती से उन्हें क़तल करना शुरू किया की सफे साफ़ कर डाली पहले ही हमला में कई हज़ार दुश्मनो को खाक व खून में लुटा दिया।
- अब्दुर्रहमान बड़े जोशीले और निहायत बहादुर थे। उन्होंने पुर ज़ोर हमला करके काफिरो को खस व खाशाक की तरह काट डाला जिस तरफ हमला करते थे एक दो सवारों को मार डालते थे। जहा लड़ाई देखते वहा जा पहुंचे और मार काट कर दुश्मनो को पीछे धकेल देते है।
- इलियास ने बड़े ज़ोर से हमला किया। उन्होंने जल्दी जल्दी में काफिरो क़त्ल करना शुरू किया। गोया वह तनहा सबको मार डालना चाहते थे। निहायत फुर्ती से इधर उधर घोडा दौड़ा कर हमले कर रहे थे और हर हमला पर एक दो सवार डालते थे। . वह काफिरो को मरते काटते मर्जबान की तरफ बढ़ रहे थे आखिर वह और उनके साथ तक़रीबन पचास सवार सफो को चीरते हुए मर्जबान के रिसाला पर हमला आवर हुए और उन्होंने इस शिद्दत से हमला किया की जो लोग सामने आये उन्हें उलट दिया इलियास की तलवारे बड़ी फुर्ती से क़तल कर रही थी उन्होंने कई काफिरो को सफाया करके अल्लाह हु अकबर का नारा लगाया और बड़े जोश से हमला किया साथ ही उनके हमराही टूट पड़े उन्होंने दूर तक लाशे बिछा दी और आखिरकार मर्जबान के रिसाला खास को उलट दिया। इत्तेफ़ाक़ से मर्जबान की नज़र उनपर पड़ी वह चौका उसने उन्हें गौर सेदेखा और कहा “अब लड़ना बेकार है यही वह नौजवान है जिसे मैंने खवाब में देखा था उसने मेरे रिसाले को उलट दिया है। भागो अब अब भागने से ही जान बच जाएगी। “
- पहले वह खुद भगा उसके पीछे उसका बचा रिसाला भाग पड़ा। उन्हें भागते हुए देख कर उसका सारा लश्कर भी भाग खड़ा हुआ। मुसलमानो ने उनका पीछा किया और क़त्ल करना शुरू कर दिया .मरते काटते लाशे बिछाते उनके पीछे लगे चले गए। जब काफिर क़िला में जा घुसे तब मुस्लमान वापस लौट आये .
- अगला भाग (मसलेहत )
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fatah kabul (islami tarikhi novel) part 26
खून रेज़ जंग ……
रात खैरियत से गुज़र गयी। जब सपिदा सेहर नमूदार हुआ तो इस्लामी लश्कर में सुबह की अज़ान हुई.अज़ान की आवाज़ सुनते ही मुजाहिदीन जल्दी जल्दी उठ कर कैंप से बाहर ज़रुरियात से फरागत करने के लिए चले गए। वहा से वापस आकर उन्होंने वज़ू किये नमाज़ पढ़ी अब्दुर रहमान ने नमाज़ पढाई।
नमाज़ खत्म करके मुस्लमान अभी दुआ ही मांग रहे थे की क़िला का दरवाज़ा खुला और मर्ज़बान का लश्कर दरवाज़ा में से निकल निकल क्र फैलने लगा अब्दुर रहमान ने जब देखा तो उन्होंने कहा मुज़्दा हो मुजाहिदों दुश्मन मुक़ाबला में आगया है पस दौड़ो तुम भी उनकी तरफ रहमत करे अल्लाह तुम पर। लगा लो तुम हथियार और सफ़े मरतब करो उनके सामने जाकर।
मुसलमान अपनी खेमो की तरफ दौड़े। उन्होंने जल्दी जल्दी हथियार लगाए घोड़ो पे जेन कसे और बड़ी शान से अकड़ते हुए गिरोह गिरोह मैदान में निकले हर दस्ता अपने सरदार के साथ आ रहा था और हर सरदार के हाथ में अलम था।
इलियास : मेरे दिल में भी जिहाद की उमंग है। शाहदत की तमन्ना है। मैं मैदाने जंग में जाने की इजाज़त लेने आया हु।
अब्दुर्रहमान :अज़ीज़ !तुम औरतो की हिफाज़त पर मामूर हो। उनकी हिफाज़त करते रहो अगर लड़ाई तुम तक पहुंच जाये तो तुम्हे इजाज़त है तुम भी शरीक हो जाओ।
इलियास :हज़रात इसकी नौबत ही नहीं आने की। लड़ाई मुझसे दूर ही रहेगी सलेही अपने हमराहियों के साथ औरतो की हिफाज़त पर मामूर है। सिर्फ मै अपने लिए आप से इजाज़त चाहता हु।
अब्दुर्रहमान :अच्छा तुम हमारे साथ रहो।
इलियास :बेहतर है आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
अब्दुर्रहमान और इलियास दोनों अपने अपने घोड़ो पर सवार हुए और मैदान में आये। अब्दुर्रहमान के पांच सौ सवार क़ल्ब में खड़े थे। वह इलियास को लेकर उनसे आगे जाकर खड़े होगये। लश्कर की तरतीब हुई मैमैना और मैसरा क़ायम हुए। कुफ्फार भी सफबन्दी कर चुके थे। उन्होंने तबल जंग बजाया। नक़्क़ारो की पुर शोर आवाज़ बुलंद हुई और आदाए इस्लाम के रिसाले तरतीब व निज़ाम के साथ आगे बढे। ऐसा मालूम होता था था जैसे इंसानी समुन्द्र में तूफानी मौजे उठने लगी है।
मुस्लमान उन्हें बढ़ते हुए देख रहे थे। उन्हें जोश आरहा था उनका दिल चाहता था की वह झपट कर हमला कर दे .लेकिन अभी उनके सालार ने हमला का इशारा नहीं किया था इसलिए वह अपनी जगह खड़े गज़ब नाक निगाहो से उन्हें घूर रहे थे।
काफिरो का सैलाब बढ़ा चला आरहा था और उस शान से आरहा था की देखने वालो को यह मालूम होता था की वह मुसलमानो को खस व कषाक की तरह बहा ले जायेगा।
अब्दुर्रहमान ने अल्लाह हु अकबर का नारा लगाया। मुस्लमान होशियार हो गए। उन्होंने दूसरा नारा लगाया मुसलमानो ने हथियार संभाल लिया उन्होंने तीसरा नारा लगाया तमाम मुस्लमान ने इस मुबारक नारा की तकरार की हीबत नाक शोर बुलंद हुआ। तबल जंग की आवाज़ इस शोर में गायब हो गयी .
अब मुसलमानो ने घोड़ो को बढ़ाया इस्लामी दस्ते इस शान से बढे की नेज़े हाथो में लेकर दुश्मनो की तरफ बढ़ा दे।
इस वक़्त आफताब बहुत कुछ ऊँचा हो गया था धुप तमाम मैदान में फैल गयी थी। हवा खामोश थी। फ़िज़ा डैम साधे इस खून रेज़ मंज़र को देख रही थी. आफताब की शुआयें से हथियार जगमगा रहे थे। काफिरो की सरो पर लोहे के खुद थे जो चमक रहे थे मुस्लमान अमामे बांधे थे। उनकी क़ाबाओ के लम्बे दामन लटक रहे थे।
काफिरो की दाड़िया मंडी हुई थी और मुसलमानो की दाड़िया उनके रोअब व जलाल को ज़ाहिर कर रही थी।
चुकि फ़रीक़ैन एक दूसरे की तरफ बढ़ रहे थे इसलिए फैसला काम होता जाता था। शुरू में यह ख्याल हुआ था की शायद नेजो से लड़ाई शुरू की जाये। लेकिन फ़रीक़ैन जोश व गज़ब में भरे हुए थे। जल्द से जल्द भिड़ना चाहते थे इसलिए तीरों की नौबत नहीं आयी।
काफिरो ने भी अपने नेज़े निकाल लिए थे। जब फ़रीक़ैन की पहली सफे एक दूसरे केहुए। मुक़ाबिल हुए तो दोनों ने हमला .मुसलमानो ने हमला करते वक़्त फिर अल्लाह हु अकबर पर शोर नारा लगाया। इस नारे की हियत से काफिरो के बहुत घोड़े अल्फ हो गए। सवार घोड़ो के संभालने में मसरूफ हुए। मुसलमानो ने उनके घोड़ो ही को बांध डाला।
एक तो घोड़े ख़ौफ़ज़दा हो ही रहे थे और उनपर नेजो की अनिया पड़ी वह घबरा कर दूसरे सवारों पर जा पड़े। इससे काफिरो की पहली सफ में इन्तेशार पैदा हो गए। कई सवार घोड़ो ने निचे गिर पड़े और रोंद दिए गए। कई घोड़े ज़ख्म खा कर पीछे की तरफ भागे इससे दूसरी सफ में अब्तरि पैदा हो गयी।
मुसलमानो की लम्बी सफ ने निहायत जोश के साथ नेजो से हमला किया। बाज़ लोगो ने उनके हमले रोके। लेकिन ज़्यदा तर कार गर हुए। कुछ लगे और कुछ घोड़ो के कुछ सवार ज़ख़्मी हो कर गिरे कुछ को घोड़ो ने उल्ट दिया। गरज़ काफिरो की पूरी सफ में अजब इन्तेशार और अब्तरि पैदा हो गयी। मुसलमानो को मौक़ा मिल गया। उन्होंने नेज़े का रकाब दिवार के सहारे के सहारे से खड़े किये और तलवारे हाथो में लेकर। दांत भींच कर हमले शुरू किये।
कुफ्फार ने भी उनकी तक़लीद की . उन्होंने भी तलवारे सौंत ली और वह भी मुसलमानो पर हमला अवर हुए। लड़ाई शुरू हुई। खून की बुँदे उछल उछल कर लड़ने वालो को रंगने लगी। साफ़ व शफ़्फ़ाफ़ तलवारे खून पी पी कर सुर्ख हो गयी और दहाड़ के साथ साथ शोर व गुल भी बढ़ गया। तबल जंग ज़ोर ज़ोर से बजने लगा कुफ्फार अजब अजब नारे लगाने लगे। मैदान जंग गूँज उठा.
मुस्लमान ख़ामोशी मगर जोश से लड़ रहे थे। उनकी खूंखार तलवारे बड़ी फुर्ती से उठ उठ कर इंसानी समुन्द्र में डूब रही थी और जब वह खून उगलती हुई उठतीथी तो खून आलूदा तलवारे का खेत सा ऊगा हुआ मालूम होता था।
हाथ पैर और सर कट कट कर उछल रहे थे। धड़ दरख्तों की तरह गुज़र रहे थे। खून पानी की तरह बहने लगा था . मुसलमानो ने काफिरो की पहली और दूसरी सफ का बिलकुल सफाया कर दिया था और अब वह तीसरी सफ पर हमला आवर हुए थे।
मुसलमान बड़ी बहादुरी और निहायत जिदारी से लड़ रहे थे। उन्होंने बहुत मुजाहिदों को शहीद कर डाला था . जब कोई मुस्लमान शहीद हो जाता था तो उसके पास के मुस्लमान को बड़ा जोश आजाता था और वह ग़ैज़ गज़ब में भर कर इस ज़ोर से हमला करते थे की हर मुस्लमान कम से कम दो काफिरो को मार डालता था।
कुफ्फार भी जोश में आकर हमला करते तेह। मगर जोश में आये हुए मुस्लमान उनके हमलो को शुरू करने से पहले ही रोक देते थे और उनके हमलो को रोक कर खुद निहायत ज़ोर और बड़े जोश से हमला करते थे। उनका हमला बे पनाह होता था उनकी तलवारे काफिरो को काट कर बिछा देती थी।
जबकि घमसान की जंग हो रही थी। सर और धड़ कट कर गिर रहे थे खून का दरिया बाह रहे थे इस वक़्त अब्दुर्रहमान और इलियास फैसला पर खड़े जंग का नज़ारा देख रहे थे। अब्दुर्रहमान चारो तरफ इसी ख्याल से देख रहे थे की किसी तरफ मदद की तो ज़रूरत नहीं। लेकिन इलियास का खून ख़ूंरेज़ी को देख देख कर जोश खा रहा था . वह जंग में शरीक होना चाहते थे। चुनांचा उन्होंने अब्दुर्रहमान से कहा “या अमीर !हमला करने की इजाज़त दीजिये। “
अब्दुर्रहमान ने उनकी तरफ देखा। उनका चेहरा जोश व गुस्सा से सुर्ख हो रहा था। उन्होंने कहा “पुर जोश नौजवान !ज़रा और तौक़फ़ करो.”
इलियास : देखिये तो सही किस क़द्र ख़ूंरेज़ हो रही है।
अब्दुर्रहमान : देख रहे है। अभी वक़्त। कुछ देर और ज़ब्त करो।
इलियास : ज़ब्त का पैमाना लबरेज़ होता जाता है।
अब्दुर्रहमान : फिर भी सब्र करो। देखो मुसलमानो ने तीसरी सफ को भी उल्ट दिया है।
वाक़ई मुसलमानो ने पुर ज़ोर हमला करके तीसरी सफ को भी उल्ट दिया था। इस वक़्त लड़ाई का ज़ोर बढ़ गया था .
अगला भाग ( शिकस्त)
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fatah kabul (islami tarikhi novel) part 25
सुलह से इंकार ……
इस्लामी लश्कर कोच व क़याम करता ईरान को तय करके सीतान की तरफ बढ़ा। अगरचे सिर्फ आठ हज़ार मुस्लमान थे और एक ऐसे मुल्क की तरफ बढ़ रहे थे जो ऐसे बर्रे आज़म से मिला हुआ था जिसकी आबादी करोड़ो की तादाद में थी। पहले तो खुद काबुल ही बे शुमार फौजे उनके मुक़ाबला में ला सकता था। फिर हिंदुस्तान और उसके राजा महाराजा तो टिड्डी विल लश्कर भेज सकते थे।
- लेकिन मुस्लमान डरा नहीं करता और फिर मुजाहिद उसके पेश नज़्ज़ार तो सिर्फ जिहाद रहता है वह इस बात को देखता भी नहीं की उसके मुक़ाबले में कौन है और कितने है उसकी सिर्फ एक ही तमन्ना शहादत होती है। मुस्लमान का यह अक़ीदा है की मौत अपने वक़्त पर आएगी और ज़रूर आएगी। मौत से छुटकारा पाना नामुमकिन है। उसका यह भी ईमान है की मरने के बाद वह किसी और कालिब में मुन्तक़िल हो कर यानी जोन बदल कर फिर दुनिया में नहीं आएगा इसलिए वह मौत से नहीं डरता। बल्कि उसका इस्तेकबाल करने के लिए हर वक़्त तैयार रहता है और उसका यह एतेक़ाद भी है। की शहीद हो कर उसके तमाम गुनाह माफ़ हो जाते है और वह सीधा जन्नत में पहुंच जाता है। इसलिए हर मुस्लमान जिहाद को बड़ा मरगूब रखता है। चाहता है की वह लड़ कर मज़हब के ऊपर शहीद हो जाये ताकि बे रोक टोक जन्नत में पहुंच जाये मुस्लमान जिहाद से रगबत ही नहीं रखता बल्कि खुश भी होता है। हक़ीक़त यह है की किसकी क़िस्मत जो जिहाद करे और शहीद हो जाये।
- गरज़ मुजाहिदीन इस्लाम बड़ी शान के साथ सफर कर रहे है। उनके साथ रसद भी थी और औरते भी है। रसद और औरते लश्कर के दरमियान में रहती थी। जो सवार औरतो की हिफाज़त में मामूर थे उनमे इलियास भी थे। बड़ी बूढी औरते और नौजवान लड़किया उन्हें देख कर अपने चेहरों पर नक़ाब खींच लिया करती थी। वह खुद भी बड़े शर्मीले थे। लड़कियों से तो इस लिए बचते थे की कही वह कोई आवाज़ न कस दे क्युकी अरब लड़किया शोख शरीर होती थी और बड़ी बुढ़ियो के पास जाते उन्हें हिजाब आता था। जब लश्कर फर्द काश हो जाता और औरते और लड़किया अपने अपने खेमो में चली जाती तब वह भी अपनी माँ के पास खेमा में चले जाते और जब कोच होता तो वह मुहाफ़िज़ दस्तो को लेकर एक तरफ हट जाते। जब औरते सवारियों में बैठ जाते तब वह आजाते और उनके पीछे चल पड़ते।
- मुसलमानो को आम तौर पर यह मालूम हो गया था की काबुल की कोई काफिर औरत एक मुस्लमान लड़की को अगवा करके ले गयी है। वह लड़की इलियास की मंगेतर थी इससे मुसलमानो में और जोश पैदा हो गया था की जल्द से जल्द काफिरो के मुल्क में पहुंच जाये और लड़ाई शुरू करदे। अब्दुर रहमान सालार अस्कर इस्लामिया को यह बात मालूम हो गयी की मुसलमानो में एक मुस्लमान लड़की के अगवा की खबर सुन कर बड़ा जोश पैदा हो गया है उन्होंने एक रोज़ सुबह की नमाज़ पढ़ कर मुस्लमान से कहा .”ठहर जाओ मै कुछ कहूंगा। “
- मुस्लमान में यह क़ायदा था की सीपा सालार उन्ही को मुक़र्रर किया जाता था जो आला दर्जा के जंगजू और बहादुर होने अलावा नमाज़ी परहेज़गार मज़हबी मालूमात ज़्यदा से ज़्यादा रखते थे। जिन्हे क़ुरआन शरीफ और उसकी तफ़्सीर पर अबूर होता फीका और हदीस से वाक़फ़ियत होती। जो अहम में फतवा दे सकते। वही इमामत करते थे। यानी सारे लश्कर को जमाअत के साथ नमाज़ पढाते थे।
- अगर अब्दुर रहमान बिन समरा जवान थे लेकिन उनमे ये सब तमाम खुसूसियत मौजूद थी। इसी वजह से तमाम मुस्लमान उनकी इज़्ज़त करते और उनसे मुहब्बत करते थे सब लोग रुक गए और अपनी अपनी जगह बैठ गए।
- अब्दुर रहमान ने कहा “मुसलमानो !मुझे मालूम हुआ है की तुम्हे इस बात पर जोश आज्ञा है की एक काफिर औरत एक मुस्लमान लड़की को अगवा करके ले गयी है लेकिन वह भी क़तल की मुस्तहिक़ नहीं। क्युकी औरत को क़तल करना बुरा है। तुम यह जोश अपने दिल से निकाल दो। खालिस अल्लाह के लिए जिहाद करो। अगर इसमें तुम्हारी यह गरज़ शामिल हो गयी है तो खौफ है कही तुम सवाब से महरूम न हो जाये .गरज़ का जिहाद नहीं कहलाता। इस बात का भी ख्याल रखना की अगर तुम्हे कोई काफिर या उस मुल्क का कोई बाशिंदा मिल जाये तो उसे क़तल न कर डालना बल्कि मेरे पास ले आना। मुमकिन है उससे कुछ मुफीद बाटे मालूम हो जाये। अब तुम दुश्मनो के मुल्क में दाखिल हो गए हो हर क़िस्म की एहतियात रखना। बस मुझे इसी क़द्र कहना था.”
- लोग उठ उठकर चले गए अब्दुर रहमान भी चले आये और थोड़ी देर के बाद लश्कर रवाना हो गया।
- कई दिन सफर करने के बाद मुस्लमान शहर ज़रंज के क़रीब पहुंचे। यह वही शहर था जिसके अंदर सलेही और उनके साथियो को नहीं ठहरने दिया गया था। अब्दुर रहमान ने शहर के एक तरफ कुछ फैसले पर क़याम किया। वहा के मर्जबान ने क़िला के फ़सील पर चढ़ कर देखा उसे मुसलमानो की तादाद ज़यादा ज़्यादा मालूम हुई। उसने अपने जासूस इस्लामी लश्कर की तादाद का पता लाने के लिए रवाना किये। वह रात को क़िला के बाहर ही रहे लेकिन मुसलमानो के लश्कर के पास जाने की जुर्रत नहीं हुई। दूर दुर फिरते रहे मुसलमानो ने तमाम कम्प में जगह जगह अलाव रोशन कर लिए थे। आग कसरत से जल रही थी। उस आग की रौशनी में मुसलमान चलते फिरते नज़र आरहे थे। जासूस उनका सही अंदाज़ा न कर सके।
- जब सुबह हुई तो फिर वह झाड़ियों और दरख्तों की आड़ में खड़े हो गए उनकी तादाद का अंदाज़ा करने लगे। बहुत कुछ देखने भालने पर भी वह सही तादाद मालूम न कर सके। उन्होंने सोलह हज़ार की फ़र्ज़ी तादाद क़ायम कर ली और क़िला में घुस कर वही मर्ज़बान से बयान करदी।
- मर्ज़बान के पास दस हज़ार लश्कर था वह यह समझा की जासूसों ने मुसलमानो की तादाद बहुत कम बताई है। सोलह हज़ार सवार लेकर वह काबुल की तस्खीर के लिए न आते। उसपर मुसलमानो पर रोअब छा गया।
- दूसरे रोज़ अब्दुर रहमान ने सलेही को मर्ज़बान के पास बतौर क़ासिद के रवाना किया। सलेही बे धड़क क़िला के पास जाकर ललकारा “अये अहले शहर मै क़ासिद हु। “
- ऊपर फ़सील से मर्ज़बान ने झांक कर देखा। उसने पुकार कर कहा “ठहरो हम आते है “थोड़ी देर में उस फाटक का दरवाज़ा की खिड़की खुली जिसके सामने सलेही खड़े थे। खिड़की तो खुल गयी लेकिन सलाखे लगी रही .मर्ज़बान ने सलाखों के पीछे से झांक कर उन्हें देखा। वह उन्हें पहचान गया। उसने कहा “मै तुम्हे पहचान गया तुम वही हो जो सौदागर के भेंस में आये थे। वह लड़का तो तुम्हारे साथ तो नहीं है। “सलेही : इस वक़्त तो मै तनहा हु।
- मर्ज़बान : मै पहले ही समझता था तुम जासूस हो कहो तुम क्या पैगाम लेकर आये हो।
- सलेही : हमारे सरदार कहते है की हम तुम से लड़ना नहीं चाहते आगे जाना चाहते है। अगर तुम सुलह करलो तो तुम्हारे लिए बेहतर है।
- मर्ज़बान को तैश आगया उसने कहा “सुलह हमारे लिए बेहतर है और तुम्हारे लिए ?”
सलेही : हमारे लिए भी जंग से सुलह ही अच्छी है। - मर्ज़बान : अगर तुम जंग से सुलह अच्छी समझते थे तो हमला अवरी ही क्यू हुए।
- सलेही :हमने सुना था की तुम कुछ इस्लामी इलाक़ा अपनी कलमरो में शामिल करने का ख्वाब देख रहे हो .हम यही बात मालूम करने तुम्हारे पास आये थे तुमने हमारे साथ यह सुलूक किया की हमें अपने शहर में ठहरने भी नहीं दिया।
- मर्ज़बान :जो अल्फ़ाज़ मैंने तुमसे उस वक़्त कहे थे वही अब भी कहता हु मै तुम लोगो को बिलकुल पसंद नहीं करता। सुलह से तुम्हारी मुराद यह है की तुम्हारा महकूम बन जाऊ। हरगिज़ यह नहीं हो सकता।
- सलेही : अगर तुम चाहो तो सुलह के शरायित पेश कर सकते ह।
- मर्ज़बान : यह और किसी को बहकाना। मै तुम्हारी बाते खूब समझता हु।
- सलेही : अच्छी तरह सोच लीजिये मै एक मौक़ा और देता हु।
- मर्ज़बान ने गुस्सा में आकर कहा “मुझे मौक़ा नहीं चाहिए मैंने खूब समझ लिया है। मै तुमसे बिलकुल नहीं डरता .कल मैदान में निकल कर तुम पर हमला करके तुम्हे भगा दूंगा। जाओ मेरा यही जवाब है। “
- ममर्ज़बान ने गुस्सा में आकर बाड़े ज़ोर से खिड़की बंद कर्ली। सलेही वहा से वापस लौट आये और सीधे अपने सालार अब्दुर रहमान के पास पहचे। उन्होंने उनसे तमाम गुफ्तुगू बयान करदी जो मर्ज़बान से हुई थी। अब्दुर रहमान ने कहा “खुदा करे वह अपने क़ौल पर अमल करे और मैदान में निकल आये। “
- सलेही : कही ऐसा न हो की उसने धोका दिया हो और रात को शब् खून मरे।
- अब्दुर रहमान : यही हो सकता है इंशा अल्लाह रात को लश्कर की हिफाज़त का मक़ूल इंतेज़ाम कर दिया जायेगा .
- उन्होंने उसी वक़्त तमाम लश्कर में अयलान कर दिया की लोग होशियार रहे और जब रात हुई तो पांच सौ सवार हिफाज़त पर मामूर करके उन्हें लश्कर से बाहर घूमने का हुक्म दे दिया।
अगला भाग ( खून रेज़ जंग ),,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, -
fatah kabul (islami tarikhi novel)part 24
लश्कर इस्लाम का कोच
अब्दुल्ला बिन आमिर ने सलेही को अमीर उल मूमिनीन की खिदमत में रवाना किया। इलियास और उनकी अम्मी दोनों दुआएं मांगते थे की खलीफा मुस्लिमीन लश्कर कशी की इजाज़त दे दे। सबसे ज़्यदा बेचैनी के साथ वही दोनों उनकी वापसी का इंतज़ार कर रहे थे।
- आखिर सलेही वापस आगये। अमीर उल मूमिनीन हज़रत उस्मान गनी खलीफा सोएम ने अब्दुल्लाह बिन आमिर को लिखा :
- “तुम काबुल से नज़दीक हो और मै दूर हु। तुमने जासूसों के ज़रिये के हालात मालूम कराये है। तुम मुझसे ज़्यदा सूरत हासिल से वाक़िफ़ रखते हो। मैंने सलेही से उस मुल्क के जो हालात मालूम किये है उनसे मालूम हुआ है की तमाम मुल्क पहाड़ी है। रस्ते दुश्वार गुज़ार है किसी बड़े लश्कर का जाना वहा मुश्किल है। लेकिन चुकी महाराजा काबुल इस्लामी कलमृद पर खुद हमला की तैयारी कर रहा है इसलिए उसे हमला अवरी का मौक़ा नहीं देना चाहिए। अब तक यही होता रहा है की जिस मुल्क ने मुसलमानो पर हमला क़सद किया है मुसलमानो ने उस पर हमला कर दिया है मुनासिब यही मालूम होता है की काबुल पर लश्कर कशी की जाये। सलेही ने राबिआ की दास्ताँ भी सुनाई है। हम एक दुख्तर इस्लाम और एक मुजाहिद को खो चुके है। इन दोनों की तलाश भी ज़रूरी है। हम तुम्हे इस मुहीम के पुरे इख्तिआरात देते है। लेकिन यह हिदायत करते है। की ज़्यदा लश्कर न भेजा जाये। मुजाहिदीन को हिदायत कर दी जाये की वह खुदा से डरते रहे। नमाज़ किसी वक़्त की क़ज़ा न होने दे। हमला में इस बात का ख्याल रखे की कोई बे गुनाह न मारा जाये। औरतो ,बच्चो ,बूढ़ो ,बीमारों,और मज़हबी पेशाओं पर तलवार न उठाये। मकानों और खेती को न जलाये। दूसरे के मज़हब और माबादो की तौहीन न करे। तुम पर और सब मुसलमानो पर सलमति हो. “
- खत मुफ़स्सल था। इस मुहीम की इख़्तियारात अमीर उल मूमिनीन ने अब्दुल्लाह बिन आमिर को दे दिए थे। अब्दुल्लाह ने तैयारी शुरू कर दी।
- इलियास को भी मालूम हो गया। उन्हें और उनकी वाल्दा को इस से बड़ी ख़ुशी हुई। इलियास एक रोज़ अमीर अब्दुल्लाह के खिदमत में हाज़िर हुए . अमीर उनसे बहुत मुहब्बत करते थे उन्होंने कहा “कहो फ़रज़न्द कैसे आये ?”
- इलियास ने अर्ज़ किया “मै यह दरख्वास्त लेकर हाज़िर हुआ हु की मुझे भी उस लश्कर के साथ जाने की इजाज़त दी जाये। “
- अमीर : तुम कमसिन हो तुम्हे जिहाद पर जाने की कैसे इजाज़त दी जा सकती .
- इलियास : अगर आपने इजाज़त न दी तो मुझे बड़ा ही रंज होगा। क्युकी इस जिहाद के लिए फि सबिलिल्लाह जाना चाहिए।
- इलियास : मेरे दिल में पहली उमंग जिहाद फि सबिलिल्लाह ही की है। खुदा इस बात को खूब जानता है अलबत्ता उसके बाद अपने चाचा और राबिआ की तलाश भी मक़सूद है शायद अल्लाह का फज़ल हो जाये और मै अपनी वाल्दा की आरज़ू पूरी करने में कामयाब हो जाऊ।
- अमीर : बेटा अभी तुमने किसी मुहीम में शिरकत नहीं की है तुम्हे लड़ाई का तज़र्बा नहीं है।
- इलियास : यह सच है की अभी तक मै किसी मुहीम में शामिल नहीं हुआ हु मैंने जिहाद नहीं किया। लेकिन मेरे दिल में जिहाद का शौक़ और जंग की तमन्ना है। जब तक किसी लड़ाई में शरीक न होऊंगा। जंग का तजर्बा कैसे होगा .रसूल अल्लाह के ज़माने में मझसे भी कमसिन बच्चो ने जंग की इजाज़त ली थी और हुज़ूर ने उन्हें इजाज़त दे दी थी। मै तो काफी बड़ा हु। समझदार हु फन हर्ब से वाक़िफ़ हु इस मुल्क में आया हु मुझे भी इजाज़त दीजिये .
- अमीर : अच्छा तुम एक वादा करो।
- इलियास : फरमाईये क्या ?
- अमीर : तुम जोश और गुस्सा में आकर अपनी जान को हिलाकत में न डालोगे।
- इलियास : मै वादा करता हु जब मै जासूसी के लिए उस मुल्क में गया था मैंने जब भी अपनी जान को हिलाकत में नहीं डाला था।
- अमीर : अच्छा तुम तय्यारी शुरू करदो।
- इलियास : अब और एक और दरख्वास्त है।
- अमीर : वह क्या ?
इलियास : मेरी माँ भी लश्कर के साथ जाना चाहती है। उन्हें भी इजाज़त दे जाये। - अमीर : वह किस लिए जा रही है?
- इलियास : दरअसल उनकी तमन्ना राबिआ को तलाश करके अपने साथ लाने की है लेकिन वह ज़ख़्मियो की मरहम पट्टी और देख भाल भी करेंगी और चुकी वह अब्बा जान मरहूम के साथ कई लड़ाईयों में शरीक हो चुकी है इसलिए उन कामो में खूब माहिर है .
- अमीर : अगर औरते भी लश्कर के साथ गयी तो उन्हें भी इजाज़त देदी जायँगी।
- इलियास : आपका शुक्रिया !
- वह वहा से सीधे अपनी माँ के पास आए और उनसे खुशखबरी बयां की के अमीर ने दोनों को लश्कर के साथ जाने की इजाज़त देदी है। लेकिन खुद उनकी इजाज़त इस शर्त के साथ है की औरते भी लश्कर के साथ जाये।
- उनकी माँ भी बहुत खुश हुई। दोनों ने बड़े खसुहि से तैयारी शुरू करदी।
- अमीर अब्दुल्लाह ने बड़ी जल्दी तैय्यरी कर ली उन्होंने इस मुहीम के लिए आठ हज़ार लश्कर नामज़द किया ज़ाद भाई अब्दुर रहमान बिन समरा को सिपा सालार मुक़र्रर किया। अरबो क़ायदा था की वह अक्सर लडाईओ में औरतो और बच्चो को भी साथ ले जाते थे। चुनांचा इस लश्कर के साथ भी औरते चलने को तैयार हो गयी।
- अमीर अब्दुल्लाह ने लश्कर की रवानगी की दिन और वक़्त मुक़र्रर करके ऐलान कर दिया मुजाहिदीन की इससे बड़ी ख़ुशी हुई .अज़ीज़ उनसे और वह अज़ीज़ो से रुखसत होने लगे। बसरा में खासी चहल पहल थी। जो मुजाहिदीन इस मुहीम पर जा रहे थे उनके जो अज़ीज़ थे वह उन्हें रुखसत करने और उनसे मिलने के लिए आगये थे। हर शख्स उनके लिए तोहफा लाया था।
- आखिर वह दिन आगया जिस रोज़ लश्कर को कोच करना था। बसरा की छावनी में लोगो का हुजूम लग गया। जिस तरफ नज़र जाती थी अमामे ही अमामे नज़र आते थे।
- आफताब बहुत कच ऊँचा हो गया था। धुप तमाम मैदान में फैल गयी थी अरब सरे मैदान में बिखरे पड़े थे। लश्कर कोच पर तैयार था। मुजाहिदीन सफ दर सफ घोड़ो पर सवार थे अब्दुर रहमान बिन समरा सबसे आगे अलम हाथ में लिए खड़े थे।
- अब्दुर रहमान भी जवान थे बहादुर थे कई लडाईओ में शरीक हुए थे उनके चेहरा से रोअब व जलाल ज़ाहिर था अमीर का आने का इंतज़ार कर रहे थे। थोड़ी देर में अमीर आये। वो भी घोड़े पर सवार थे .वह मुजाहिदीन के सामने आकर खड़े हो गए। उन्होंने कहा।
- शेर दिल मुजाहिदों !खुदा का शुक्र है की ईमारत का चार्ज लेने के बाद यह पहली मुहीम तस्खीर काबुल के लिए मेरे झंडे की निचे रवाना हो रही है अमर उल मूमिनीन ने इस मुहीम का मुख़्तार कुल मुझे क़रार दिया है। मैंने अपने चाचा ज़ाद भाई अब्दुर रहमान को अपना नाईब मुक़र्रर किया है।
- दिलेरान इस्लाम ! तुम उस मुल्क में जा रहे हो जिसे तुमने अभी तक नहीं देखा है। जहा तक मुझे मालूम है वह मुल्क पहाड़ी है उसके चप्पा चप्पा पर चट्टानें है। रस्ते दुश्वार गुज़ार है। मुल्क सर्द है। मुल्क शाम से भी ज़्यदा सर्द .तुम गर्म मुल्क के रहने वाले हो .जनता हु तुम्हे सर्दी से तकलीफ होगी .मै हरगिज़ तुम्हे वहा न भेजता लेकिन काबुल का बादशाह खुद हम पर हमला आवरी का क़स्द रखता है इसलिए दुश्मन को उसी के मुल्क में रोकने के लिए तुम्हे भेज रहा हु।
- फ़रज़न्द तौहीद ! इस बात का ख्याल रखना की नमाज़ किसी वक़्त का क़ज़ा न होने पाए। सिवाए खुदा के किसी से न डरना .कोई ऐसी हरकत न करना जिससे खुदा नाराज़ हो जाये। सिर्फ खुदा पर भरोसा रखना ,खुदा पर भरोसा रखना,खुदा पर भरोसा रखने वाले कभी नुकसान नहीं उठाते।
- अगर दुश्मन मसलेहत की गुफ्तुगू करे तो सुलह कर लेना। सुलह लड़ाई से बेहतर है अज़ीज़ो पर ईमान मांगने वालो पर ,औरतो पर,बच्चो पर , बूढों पर।,अपाहिजो पर ,बीमारों पर,हथियार न उठाना ,खेतो को ,मकानों को और फलदार दरख्तों को न जलाना न काटना न गिराना। किसी के मज़हब की तौहीन न करना न किसी मअबद को मुन्हदिम करना।
- मै तुमसे दूर रहूँगा। लेकिन मेरी दुआए तुम्हारे साथ होंगी। मुझे जो समझाना था समझा दिया। अब अपने अफआल व आमाल के तुम जवाबदेह होंगे। खुदा का नाम लेकर कोच कर दो खुदा तुम्हारी मदद करे .”
- अब्दुर रहमान ने बुलंद आवाज़ में कहा “बिस्मिल्लाह मजरीहा “तमाम मुसलमानो ने मिल कर अल्लाह हु अकबर कहा अलम ने फर्राटे भरा और लश्कर ने आहिस्ता आहिस्ता कोच किया। जब मुजाहिदीन कुछ दूर चले गए तो अमीर अब्दुल्लाह और तमाम मुसलमानो ने फतह याबी की दुआ हाथ उठा कर मांगी।
अगला भाग (सुलह से इंकार ),,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, -
FATAH KABUL (ISLAMI TARIKHI NOVEL) PART 23
राज़ की कुंजी ,,,,,,,,,- जासूसों का यह काफला तेज़ क़दमी से वापस लौटा। उन्होंने कश और ज़रनज का दरमियानी इलाक़ा बहुत जल्द तय कर लिया। सलेही तो चाहते थे की इत्मीनान और आराम से सफर करे लेकिन इल्यास की ख्वाहिश थी की या तो ज़मीन की तनाबे खींच जाये या उनके घोड़े के पर लग जाये और वह जल्द से जल्द बसरा पहुंच जाये।
- इस जल्दी की यह वजह थी की अब्दुल्लाह ने उन्हें बता दिया था सुगमित्रा की शादी अनक़रीब होने वाली है वह चाहते थे की अगर सुगमित्रा हक़ीक़त में राबिआ है तो वह गैर मुस्लिम से बियाही जाये। उन्होंने अपना ख्याल सलेही ने ज़ाहिर कर दिया था इसीलिए वह भी तेज़ी से सफर कर रहे थे।
- आखिर यह लोग ज़रनज पहुंचे वहा से उन्होंने अपनी रफ़्तार और तेज़ कर दी और अपने ख्याल व तवक़्क़ो से भी पहले बसरा आ पहुंचे।
- सलेही सीधे इराक के वाली अब्दुल्लाह बिन आमिर की खिदमत में पहुंचे अब्दुल्लाह उन्हें देख बहुत खुश हुए। उन्होंने कहा “मुझे तुम लोगो का फ़िक्र था। तुम्हारी खैरियत से वापसी की दुआए माँगा करता था। खुदा ने मेरी दुआ क़ुबूल कर्ली और तुम चारो खैर से वापस आगये। यह उनका अहसान है। कहो क्या देखा और सुना। “
- सलेही : काबुल का राजा ईरान का इलाक़ा अपनी कालमृद में शामिल करना चाहता है। उसने जंगी तैयरियां मुकम्मल कर ली है। शहर दादर के मशहूर धार में उस मुल्क की तमाम हसीन औरतो और माह जबीन लड़कियों ने मिल कर फतह की दुआ मांग ली है। जो खबरे यहाँ सुनी थी वह बिलकुल सच थी।
- अब्दुल्लाह : तब तो मुझे तमाम हालात अमीर उल मोमेनीन को लिख भेजने चाहिए। क्या तुम मदीना मानुर्रा तक जाने की तकलीफ गवारा करोगे ?
- मदीना मनव्वरा दारुल खिलाफा था। अमीरुल मूमिनीन ख़लीफ़ा सोएम हज़रात उस्मान गनी वही रहते थे। सलेही ने जवाब दिया “मै ख़ुशी से दियारे रसूल में जाने की तैय्यर हु।
- अब्दुल्लाह : मैं तुम्हारा भेजना इसलिए मुनासिब और ज़रूरी ख्याल करता हु की तुम इस मुल्क के हालात अपनी आँखों से देख आये हो। अमीरुल मूमिनीन जो कुछ दरयाफ्त करंगे उसका जवाब सही तौर पर दे सकोगे। अच्छा अब तुम जाकर आराम करो। कल अमीरुल मूमिनीन की खिदमत में रवाना हो जाना। इल्यास !तुम कहो। तुम्हे अपने चाचा का कुछ हाल मालूम हुआ।
- इल्यास : जी नहीं। चाचा का कुछ हाल मालूम नहीं हुआ। अलबत्ता राबिआ के मुताल्लिक़ कहा जाता है की उसे महाराजा काबुल ने अपनी बेटी बना लिया है। मुझे यह भी मालूम हुआ है की राजा उसकी शादी कर देना चाहता है। मैं चाहता हु की जल्द से जल्द काबुल पर लश्कर कशी कर दी जाये ताकि उसकी शादी न हो सके।
- अब्दुल्लाह : इंशाल्लाह ऐसा ही होगा।
- यह सब अमीर को सलाम करके चले आए। जब इल्यास अपनी अम्मी के पास पहुंचे तो वह उन्हें देख का बाग़ बाग़ हो गयी। इल्यास ने उन्हें निहायत अदब से सलाम किया। उन्होंने दुआ देकर उनकी पेशानी चूमि और कहा “खुदा का हज़ार हज़ार शुक्र व अहसान है की वह तुम्हे खैरियत से वापस लाया। मैं हर नमाज़ के बाद रात को सोते वक़्त दुआ माँगा करती थी। “
- इल्यास : अम्मी जान! मैं तुम्हारी दुआओ ही के तुफैल में तमाम आफतो से निजात पा कर वापस आया हु। मुझे शहर दादर के धार में यहाँ के पेशवा ने शनाख्त कर लिया और क़ैद कर दिया था।
अम्मी : बेटा! मुझे मुफ़स्सल हालत सुनाओ।
- इल्यास ने तमाम हालात निहायत तफ्सील के साथ ब्यान किये। उनके अम्मी निहयात तवज्जह से सुनती रही . जब वह ब्यान कर चुके तो उन्होंने कहा :”मुझे फखर हुआ की मेरे बेटे ने पेशवा के सामने सच कहा और यह ख़ुशी हुई की बेटा बाप की तरह बहादुर और निडर है। तुम उस पगली औरत से फिर नहीं मिले। “
इल्यास : एक दफा मिला था तो वह हवास में न थी। दूसरी दफा उसे तलाश किया तो मिली नहीं।
अम्मी :तुम ने उस औरत की आंखे देखि थी ?इल्यास : देखि थी। उसकी आँखों में कहर बायीं चमक मालूम होती थी। अगरचे उस वक़्त उसकी उम्र ढल गयी है और जूनून या बीमारी ने उसे कमज़ोर कर दिया है लेकिन अब भी वह काफी हसीन मालूम होती है।अम्मी : मैं यक़ीन से कह सकती हु की वह औरत वही है जो मेरी राबिआ को बहका कर ले गयी थी। लेकिन मैंने तो उसे कोई बद्दुआ नहीं दी। वह पागल कैसे हो गयी।इल्यास : खुदा ने उसे सजा दी। मालूम हुआ है उसे महाराजा काबुल ने मुँह मांगी दौलत दी थी। ख्याल यह है की उसके साथियो में से किसी ने उससे दौलत छीन ली। या तो वह दौलत छीन जाने की वजह से पागल हो गयी। या उसे कोई ऐसी अज़्ज़ियत पहुंची या दवा खिलाई गयी जिससे उसका दिमाग ख़राब हो गया।अम्मी : मुझे एक ख्याल और है .उसे राबिआ से बहुत मुहब्बत हो गयी थी। मुमकिन है राजा ने उससे मिलने न दिया हो और उसकी जुदाई में वह पागल हो गयी हो।इल्यास :यह बात भी मुमकिन है।अम्मी : तुमने सुगमित्रा को क़रीब से देखा था ?इल्यास : जी हां। इतने क़रीब से जितने क़रीब आप और मै बैठे है पहली मर्तबा धार के सेहन में देखा। वह मेरे पास से गुज़री .दूसरी मर्तबा बुध ज़ोर के बूतके सामने देखा। वह मेरे पास ही खड़ी थी। तीसरी मर्तबा रात को वह मेरे पास क़ैद खाना में आयी और पास बैठ कर बाते की।अम्मी : तुमने उसे कैसे पाया ?इलियास : क्या पूछती हो अम्मी जान !मैंने अपने मुल्क की काबुल के इलाक़े की सैकड़ो नहीं हज़ारो लड़किया देखि है उन लड़कियों में बड़ी ही खूबसूरत लड़किया नज़र से गुज़र है। लेकिन सुगमित्रा का हुस्न सबसे बढ़ा चढ़ा था।अम्मी : कुछ उसकी शक्ल व सूरत का नक़्शा तो बयान करो।इलियास : क्या नक़्शा बयांन करू चेहरा किताबी और बड़ा रोशन था। पेशानी ऊँची और बड़ी दिलफरेब थी। आंखे बड़ी बड़ी सियाह और चमकदार थी। भवे घनी थी। रुखसार उभरे हुए और बड़े ही दिलकश थे थे। दहन छोटा सा था दांत सफ़ेद मोतियों की लड़िया थे। ठोड़ी बहुत ही प्यारी थी। उसमे छोटा सा गढ़ा था जो बहुत ही भला मालूम होता था। सर के बाल काले और रेशम से ज़्यदा मुलायम थे। जब वह बात करती थी तो उसके मुँह से फूल झड़ते मुस्कुराती थी तो आँखों की सामने बिजली सी कूद जाती थी। उसके दोनों लब बारीक और कमान तरह ख़मीदा थे। हुस्न का यह आलम था जैसे चाँद ने अपनी रौशनी उसके चेहरे में भर दी हो। सफ़ेद रंगत पर सुर्खी ग़ालिब थी .अम्मी : भई मेरी राबिआ भी जवानी में ऐसी ही होगी बल्कि कुछ उससे बढ़ कर ही तुमने उसके चेहरे में एक बात नहीं देखि।इलियास : क्या ?अम्मी : उसके दाहने रुखसार पर एक तिल था।इलियास ख़ुशी से बे खुद होकर चिल्ला उठे “अम्मी था। खुदा की क़सम मैंने तिल देखा था। निहायत प्यारा मालूम होता था। जब वह क़ैद खाने मेरे सामने बैठी हुई थी तो मैंने उस वक़्त देखा था। मैंने अपने दिल में कहा था खुदा की शान है उसे और खूबसूरत बनाने के लिए अल्लाह ने उसके रुखसार में तिल रख दिया है। उस वक़्त मुझे यह ख्याल नहीं आया की राबिआ के भी तिल था। अम्मी जान ! वह ज़रूर राबिआ ही है .अम्मी : मेरे भी यही ख्याल है बेटा। वह तुम्हे नहीं पहचान सकी। शयद इसलिए की पंद्रह साल में बहुत कुछ बदल गए हो।इलियास : अम्मी मेरा ख्याल है वह मुझे क्या खुद को भी नहीं पहचानती। वह ऐसी छोटी उम्र में गयी थी। जब उसे कोई शऊर नहीं था। उन लोगो में रह कर उसने परवरिश पायी उन्हें जानती और पहचानती है। खुद को और और पिछली बातो को भूल चुकी है।अम्मी : खुदा करे वह राबिआ ही हो और उसकी शादी न होने पाए।इलियास : अमीन !अम्मी : खुदा करे अमीर उल मूमिनीन लश्कर कशी की इजाज़त देदी। मै भी लश्कर के साथ जाउंगी और अगर खुदा ने मदद दी तो राबिआ को साथ लेकर आउंगी।इलियास : एक बात मेरी बात समझ में नहीं आयी अम्मी जान।अम्मी : क्या ?
इलियास : जब पेशवा मुझसे बाते कर रहा था और उसने मेरे चाचा राफे का नाम सुना तो उसने खुद ही मेरा नाम बता दिया .कहने लगा तुम्हारा नाम इलियास है। मुझे हैरत है की वह कैसे मेरा नाम जान गया।अम्मी : मालूम होता है बेटा तुम्हारे चाचा से वाक़िफ़ था। उन्होंने उसे तुम्हारा नाम बता दिया होगा। पेशवा को तुम्हारे चाचा का हाल ज़रूर मालूम है।इलियास : यक़ीनन मालूम है खुदा करे अमीर उल मूमिनीन लश्कर कशी की इजाज़त देदे अब मुझे ख्याल होता है की पेशवा के हाथ में तमाम राज़ की कुंजी है। वह चाचा से और राबिआ से भी।अम्मी : बेटा !अब पहले खाना खा लो।अम्मी चली गयी और खाना लेकर आयी दोनों खाने लगे।अगला भाग (लश्कर इस्लाम का कोच ),,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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fatah kabul (islami tarikhi novel)part 22
काबुल का राजा…….
दूसरे रोज़ सुबह की नमाज़ के बाद अब्दुल्लाह आये उन्होंने बैठते ही दरयाफ्त किया। “दादर के धार में गए थे ?”- इल्यास ने जवाब दिया “मैं गया था “
- उसके बाद उन्होंने तमाम हालात उनसे ब्यान किये। उन्होंने कहा। “तुमने सुगमित्रा को क़रीब से देखा है ?”
- इल्यास :इतने क़रीब से देखा है जैसे मैं और तुम बैठे है।
- अब्दुल्लाह :बड़े खुश नसीब हो। मैं ऐसे कई राजकुमारों को जानता हु जो उसके नक़्श क़दम चूमने के लिए बेक़रार है।
- इल्यास :पहले तुम काबुल के राजाओ के तो हालात बयान करो।
- अब्दुल्लाह :इस वक़्त मैं इसीलिए आया हु। मुख़्तसरन ब्यान करता हु। यह बता दूँ की काबुल और हिंदुस्तान के राजाओ की कोई तारीख नहीं है। कुछ हालात सीना सीना चले आरहे है वही ब्यान करता हु। बहुत अरसा हुआ जब काबुल में कोई राजा नहीं था। तुर्क मुल्क तिब्बत से काबुल में आये। उन तुर्को ही में से एक शख्स काबुल का राजा हुआ। उसका नाम “बर्राह मगीन बर्ग “था ;उसके राजा होने का भी अजीब क़िस्सा है। वह काबुल में आकर बगैर किसी की इत्तेला के एक गार में चला गया। वह गार निहायत अजीब था और ऐसा दुश्वार गुज़ार की मुश्किल से उसमे आदमी दाखिल होता था। उस गार में एक चश्मा था। उस चश्मा को बड़ा मुक़द्दस और उसके बानी को बड़ा पाक समझते थे। गार के धाना के पास सालाना मेला होता था। काबुल और दूर दूर के लोग उसकी ज़ियारत के लिए आते थे और उसमे से पानी तैर कर ले जाते थे।
- उस गार के मुत्तसिल खेत थे उनमे काश्त होती थी बर्रे मगीन बर्ग के साथ कुछ तुर्क और भी आये थे वह बड़े क़द आवर और लहीम शमीम थे। काबुल के लोग उन्हें देख कर डर जाते थे। उनलोगो ने किसानो के लिए दिन के अवक़ात काम के लिए मुक़र्रर कर दिए थे। चांदनी रातो में काम दिन और रात में लिया जाता था।
- बररे मगीन और उसके साथी मर्दम खोर थे। इंसानो का गोश्त खाते थे वह रात को किसी किसान को पकड़ कर मार डालते और उसका गोश्त भून कर कुछ खुद खाते और कुछ बर्रे मगीन बर्ग के गार में पंहुचा देते।
- इन साजिश करने वाले तुर्को ने किसानो में यह मशहूर कर दिया की हमें तिब्बत के लामा ने यह बताया की काबुल में एक तुर्क इस गार में से नमूदार होगा वह काबुल में राज करेगा। किसान उसके नमूदार होने का इंतज़ार करने लगे।
- एक दिन साजिश तुर्को ने किसानो को बताया की तुम्हारा राजा कुल किसी वक़्त ज़रूर नमूदार होगा। उन्होंने दिन भर और रात भर खूब शराब पी। गाये और नाचे। दूसरे रोज़ कुछ दिन चढ़े बार्रे मगीन बर्ग उस शान से नमूदार हुआ की तुर्की लिबास जेब तन किये हुए थे। एक लम्बा करता जो जो घुटनो से निचा था पहने था। टोपी सर पर थी। बूट पाव में था। कमर में चौड़ी चमड़ा की पट्टी थी। पहलु में लम्बी तलवार थी। सीना के पास खंजर अड़सा हुआ था। उसके चेहरा से शाही जलाल ज़ाहिर था।
- गार के क़रीब हज़ार मर्द व जन का मजमा था। उसे इस शान में देख कर सब मरऊब हो कर उसके सामने झुक गए .उसने कहा “बुध भगवान् ने मुझे यहाँ हुकूमत करने के लिए भेजा है। “
- कबिलियो ने कहा “यह हमारी खुश क़िस्मती है हम तुम्हे अपना राजा तस्लीम करते है। “
- चुनांचा बार्रे मागीन राजा मुक़र्रर हो गया। वह काबुल का पहला राजा था। उसके खानदान में साठ पुश्त तक सल्तनत बराबर चली। आयी उन राजाओ का मज़हब बुध था। चुनांचातमाम काबुल में बुधमत राइज हो गया।
- इन तुर्क राजाओ में से एक कनक था। उसने पेशवर (पिशावर)में धार बनाया था। वह धारा उसके नाम से कनक धार अब तक मशहूर है। कहते है की उस राजा के पास कनूज के राजा के तोहफा भेजे। उनमे से एक निहायत नफीस कपड़ा भी था उस कपडे पर आदमी के पाओं का छापा था। राजा कनक ने अपने लिए उसकी पोशाक बनवानी चाही। दर्ज़ी ने हर चंद पेवंत लगा कर यह चाहा की शानो पर छापा न आये .लेकिन यह मुमकिन न हुआ। चुनाचा दर्ज़ी ने उसी बिना पर उसकी पोशाक बनाने से इंकार कर दिया और राजा से कहा की “राजा कनूज ने महाराज की तहक़ीर की लिए ऐसा तोहफा भेजा है “
- कनक बिगड़ गया। उसने उसे अपनी तौहीन समझा। चुनांचा वह लश्कर लेकर कनोज को तस्खीर और राजा की गोशिमली के लिए रवाना हुआ। जब कनोज के राजा को यह खबर पहुंची तो वह बड़ा परेशान हुआ। वह कनक के मुक़ाबला की क़ूवत नहीं रखता था। उसने अपने वज़ीर को मशवरा के लिए बुलाया। वज़ीर ने कहा “मैंने पहले ही अर्ज़ किया था की इस कपडे को न भेजे। अपने न माना और अपनी बेजा हरकत से एक ऐसे ज़बरदस्त शेर को चौका दिया जो अब तक सो रहा था। अब ऐसा कीजिये की आप मेरी नाक और होंठ कटवा दीजिये फिर मैं समझ लूंगा। “
- राजा को तज़बज़ब हुआ। वज़ीर ने कहा सिवाए इसके और तदबीर नहीं है चुनांचा राजा ने मजबूर हो आकर वज़ीर के होंठ और नाक कटवा दिए .निकट्टा वज़ीर कनक के पास पंहुचा कनक ने उससे कहा “यह तुम्हारा हाल किसने और क्यू किया “
- वज़ीर ने कहा “महाराज !मैंने राजा कनोज मशवरा दिया था की वह आप से माफ़ी मांग ले। लड़ाई न करे। उन्होंने समझा मैं आपके साथ साजिश रखता हु। चुनाचा बिगड़ कर उन्होंने मेरी नाक उड़वा दी और होंठ कटवा दिए। मैं राज कनोज से इन्तेक़ाम लेना चाहता हु। जिस रस्ते से आप चल रहे है। यह बड़े दूर दराज़ का है। एक रास्ता नज़दीक का भी है। आप उसे इख़्तियार करे। उस रास्ता में एक दिराना हाएल है उसमे पानी नहीं मिलता पानी साथ ले जाईये। “
- राजा ने कहा यह काया मुश्किल है उसने पानी लिए और वज़ीर बताये हुए रास्ते पर चल पड़ा। जब वीराना में पंहुचा तो उसके वीराना की इन्तहा नज़र न आयी .पानी ख़तम हो गया लश्कर प्यासा मरने लगा। राजा कनक ने वज़ीर से कहा :”यह वीराना नहीं आ रहा है। “
- वज़ीर ने कहा “मैं अपने आक़ा की सलामती का ख़्वाहा हु। आपको गलत रास्ता पर डाल दिया। इस वीराना से आईन्दा न निकलना न मुमकिन है। आपका तमाम लश्कर प्यासा हलाक हो जायेगा। मैं आपके सामने हाज़िर हु जो चाहे सजा दीजिये। “
- राजा को बड़ा गुस्सा आया वह घोड़े पर सवार होक नशेब की तरफ गया और वहा ज़मीन में अपना नेज़ा गाड़ दिया। जिस जगह नेज़ा गाड़ा वहा से पानी उबलना शुरू हो गया। तमाम लश्कर सैराब हो गया और बदस्तूर उबलता रहा। वज़ीर यह देख कर हैरान हो गया। उसने हाथ जोड़ कर कहा :”मैं कमज़ोर इंसानो को धोका दे सकता हु लेकिन कवि देवताओ को दम नहीं दे सकता .आप मेहरबानी करके मेरे आक़ा का क़सूर माफ़ करदे। “
- राजा कनक ने कहा “तो अपने मुल्क को वापस जा तेरे आक़ा को काफी सजा मिल गयी। “
- वज़ीर अपने मुल्क आया। उसने मालूम किया कनोज के राजा के हाथ और पाव उसी रोज़ से बेकार हो चुके है जिस रोज़ राजा कनक ने ज़मीन पर नेज़ा गाड़ा था।
- ुंटूरक राजाओ में आखरी राजा कटोर मान था। उसका वज़ीर एक बरहमन था। वज़ीर को एक बड़ा खज़ाना मिल गया था .बदक़िस्मती से राजा अय्याश और ओबाष था। जब उसकी बदकारी की शिकायते वज़ीर के पास पहुंची तो उसने राजा को क़ैद कर दिया और उसकी जगह ब्राह्मण को जिसका नाम समंद था राजा मुक़र्रर किया।
- लेकिन वज़ीर के मरते ही ब्राह्मण की हुकूमत ख़त्म हो गयी और फिर बार्रे मगीन बर्ग के खानदान में सल्तनत मुन्तक़िल हो गयी। माजूदा राजा इसी के खानदान से है वह भी बुध मज़हब के पेरू है।
- इल्यास : अजीब दास्तान सुनाई है अपने।
- अब्दुल्लाह :यह वह दास्तान है जो सीना बा सीना चली आती है। लेकिन अगर यह तुम या पूछो की कौन महाराजा किस सन में पैदा हुआ। किस सन में फौत हुआ तो नहीं बता सकता।
- इल्यास : यह तारीख की तरफ से अदम तवज्जहि का बास है।
- अब्दुल्लाह : यह सही है आपने और क्या देखा और मालूम किया।
- इल्यास : हमने मालूम किया की महाराजा लड़ाई की तैयारी कर चुके है।
- अब्दुल्लाह : फिर तुम्हारा क्या इरादा है ?
इल्यास : यह बात बुज़ुर्ग सलेही बतायंगे। - सलेही : हम जिस काम के लिए आये थे वह पूरा हो गया है लेकिन इल्यास जिस काम के लिए आये थे वह अभी पूरा नहीं हुआ।
- अब्दुल्लाह : उनका काम भी आधा पूरा हो गया है। उनके चाचा का पता नहीं चला। अलबत्ता उनकी मंगेतर का पता चल गया।
- सलेही : अभी उसमे शक है की सुगमित्रा ही राबिआ है।
- अब्दुल्लाह :मुझे उसमे शक नहीं है। उस पागल औरत ने बड़े यक़ीन के साथ यहाँ कहा है की राबिआ का नाम ही सुगमित्रा रखा गया है। मेरी ख्वाहिश तो यह है की आप फ़ौरन अपने मुल्क में वापस जाए और जो हालात आपको मालूम हुए है अपने बादशाह को सुना दे। यक़ीन है की तुम्हारे बादशाह लश्कर कशी करंगे। उससे एक तरफ तो महाराजा काबुल का मिजाज़ दरुस्त हो जायेगा। दूसरी तरफ सुगमित्रा भी हाथ आजायेगी मुझे मालूम हुआ है की महाराजा अनक़रीब उसकी शादी कर देने वाले है।
- इल्यास को बड़ा फ़िक्र हुआ। सलेही ने कहा। “तब हम कल रवाना हो जायँगे। तुम उस औरत से और मुफ़स्सल हालात मालूम करना। “
- अब्दुल्लाह : मैं मालूम करने की कोशिश करूँगा।
- कुछ देर और बैठ कर चले गए। इल्यास उस औरत की तलाश में चश्मा के किनारे पर पहुंचे लेकिन वह नहीं मिली। शाम के वक़्त वह मायूस होकर लौट आये दूसरे दिन उन्होंने तैयारी की बसरा की तरफ वापस लौट पड़े।
अगला भाग ( राज़ की कुंजी ),,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,









