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Author: umeemasumaiyyafuzail@gmail.com
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fatah kabul ( isalami tareekhi novel) part 50
जंग का आगाज़ ……
जिस रोज़ राजा को चरवाहे से राजकुमारी का हाल मालूम हुआ उसके दूसरे रोज़ इस्लामी लश्कर काबुल के सामने आ धमका। मुसलमानो ने पहाड़ी पर जो ऊँचा नीचा था खेमे लगाए। राजा ने क़रीब के ब्रिज में बैठ कर उनकी तादाद का अंदाज़ा किया मुसलमान आठ हज़ार से भी कम रह गए थे। कुछ तो शहीद हो गए थे। कुछ उन क़िला में छोड़ दिए गए थे जिन्हे फतह किया था। इस वक़्त अब्दुर्रहमान के अलम के निचे मुश्किल से सात हज़ार मुजाहिदीन थे।
राजा ने आठ दस हज़ार का अन्दाज़ा किया। उसके पास जंग के लोग ज़्यादा थे। यह ख्याल हुआ की वह मुसलमानो को शिकस्त दे सकेगा। लेकिन उसने वज़ीर और सिपाह सालार को बुला कर हुक्म दिया की अगले रोज़ सुबह होते ही आधा लश्कर क़िला से बाहर मैदान में निकले वह खुद भी निकलेगा और मुसलमानो पर हमला करेगा।वज़ीर ने समझाया “मुसलमान बड़े बहादुर और जफ़ा कश है। उनसे मैदान में निकल कर सामना करके कामयाबी हासिल होना मुश्किल है। काबुल का क़िला बहुत मज़बूत है क़िला बंद हो कर मुक़ाबला कीजिये। मुसलमान खुद ही टककरें मार कर चले जाये। जब वह वापस जाने लगे तब उन पर हमला कर दीजिये।राजा को उसकी यह राय पसंद आयी। उसने कहा ” मैं यह बुज़दिली की बाते सुन्ना नहीं चाहता मैंने जो हुक्म दे दिया उसकी बात मानी जाये। “अब कुछ कहने से फायदा नहीं था। इसलिए वज़ीर और सिपाह सालार दोनों खामोश हो गए। दूसरे रोज़ सुबह ही काबुल के क़िला का दरवज़ा खुला और सवारों का सैलाब मैदान की तरफ बहना शुरू हुआ।मुसलमान नमाज़ से फारिग हो चुके थे। काबुल को मैदान में निकलते देख कर वह बहुत खुश हुए। वह भी जल्दी जल्दी हथियार लेकर मैदान में निकल आये एक तरफ काबुलियों ने सफ बंदी शुरू की। दूसरी तरफ मुसलमान सफ बस्ता हुए जब सब लोग लाइन में खड़े हो गए अब्दुर्रहमान ने सफो के आगे निकल कर घोड़ो को कदा दिया शिमाल से जुनूब तक और जुनूब से शिमाल तक दो चक्क्र लगाए। इसके बाद वह दरमियानी सफ में खड़े हुए और बुलंद आवाज़ से कहा।“अये सब मुजाहिदीन यह वो क़िला है जिसका राजा अपनी फ़ौज अपनी दौलत ,सल्तनत और अपनी ताक़त पर घमंड हो कर मुसलमानो पर इसलिए हमला करना चाहता था की उन्हें ख़तम कर दे। इस्लाम को मिटा दे वह यह नहीं जानता कि हक़ आगया है। बातिल मिट गया। बातिल मिटने ही वाला था।इस्लाम हक़ है ,कुफ्र बातिल है बातिल मिट रहा है और इस्लाम बढ़ रहा है। खुदा की क़सम इस्लाम क़यामत तक न मिटेगा। चाहे दुनिया भर की शैतानी ताकते मिल कर भी क्यू न कोशिश करे। कुफ्फार यह नहीं समझते की इस्लाम वह चिराग नहीं है जो फूंको से बुझा दी जाये।शिराने इस्लाम ! काबुल के राजा ने यह देख कर कि मुस्लमान कम है और उसके सिपाह ज़्यादा। क़िला से निकल कर मुक़ाबला की हिम्मत की है। परवरदिगार की क़सम वह यह नहीं समझा की मुजाहिदीन इस्लाम को अर्ब की शीरीनो ने दूध पिला कर परवरिश किया है। अरब के लोग शेर के बच्चे है। यह खुदा के सिवा और किसी ताक़त से नहीं डरते।मुजाहिदीन इस्लाम ! सफ बंदी हो चुकी है जिहाद शुरू होने वाला है तुम जिहाद ही के लिए तो इतनी तकलीफे बर्दाश्त करके वतन से आये हो। शहादत तुम्हारी आँखों का तमन्ना है। तुम्हारे लिए जन्नते सजा दी गयी है। जन्नत के दरवाज़े खुल गए है हूरे सिंघार करके तुम्हारी मुन्तज़िर बैठी है। खुदा तुम्हे देख रहा है। जिहाद करके खुदा की ख़ुशनूदी हासिल करो और जन्नत के हिस्सेदार बन जाओ।इधर अब्दुर्रहमान की तक़रीर ख़त्म हुई उधर काबुल की फ़ौज में जंग के अलार्म बजे साथ ही अजीब अजीब तर्ज़ के सुरीले बाजे बजने लगे और काबुली फौजो ने आहिस्ता आहिस्ता पेश कदमी शुरू की।अब्दुर्रहमान क़ल्ब लश्कर में चले गए। उन्होंने भी लश्कर इस्लाम को बढ़ने का इशारा किया। मुजाहिदीन बड़ी शान से बढे। जो की दोनों लश्कर एक दूसरे की तरफ बढ़ रहे थे इसलिए बीच का फासला बहुत जल्द पार हो गया और दोनों फौजे आमने सामने आगयी।काबुल की फ़ौज में अब भी बाजे बज रहे थे। काबुली नेज़े तान कर बढे मुसलमानो ने अपने लीडर की तरफ देखा। वो हमला के इशारे के इंतज़ार में थे। लीडर ने पहला नारा लगाया मुस्लमान होशियार हो गए। दूसरा नारा लगाया उन्होंने भी नेज़े संम्भल लिए और जब उन्होंने तीसरा नारा लगाया तो मुसलमानो ने मिल कर अल्लाहु अकबर का नारा इस शोर से लगाया की ज़मीन हिल गयी। पहाड़ लरज़ गया और दुश्मन की फ़ौज उछल पड़ी।नारा लगाते ही मुसलमानो ने झपट कर नेजो से हमला किया। काबुली भी नेज़े हाथो में लिए तैयार थे। उन्होंने भी नेजो से वॉर किया। दोनों तरफ के नेज़े तेज़ से चले। कुछ मुस्लमान ज़ख़्मी हुए लेकिन काबुल वालो की भारी तादाद नेजो के फल खा कर लम्बी लम्बी लेट गयी। मुसलमानो ने अपने नेज़े खींचे कुछ नेजो के फल क़बूलियो क़बूलियो के जिस्मो में धंस गए बांस टूट कर हाथो में आगये। कुछ फल नाकारा हो कर दुबारा वॉर करने के क़ाबिल न रहे। मुसलमानो ने यह देख कर नेज़े फ़ेंक दिए और तलवारे मियानो से निकाल कर सख्ती से हमला कर दिया .तलवारे और फिर अरब की तलवारे जो सबसे बढ़ कर काट करती थी और शाह ज़ोर अरबो के हाथो में आकर तो वह क़तल करने की मशीन ही बन जाती थी। बिना रुके काफिरो को क़तल करने लगी।काबुल वाले भी बड़े ताक़तवर थे उन्होंने भी सख्ती से हमले शुरू किये। लेकिन अपने हमलो में मुसलमानो की सी शान पैदा न कर सके। उनकी तलवारे भी काट कर रही थी। लेकिन मामूली तरीक़ा पर कोई इक्का दुक्का मुस्लमान शहीद हो जाता था। लेकिन मुसलमानो की तलवारे भी बिजली की तेज़ी से चल रही थी और सरो पर सर और धड़ो के धड़ काट काट कर गिरा रही थी। लाशे तड़प रही थी। खून के नाले बाह रहे थे और मुस्लमान झपट झपट कर हमले कर कर के दुश्मन को ठिकाने लगा रहे थे। जब कोई मुस्लमान किसी काफिर को मार डालता था तो जल्दी से दूसरे पर टूट पड़ता था और उसे क़त्ल करके तीसरे पर जा झुकता था।गोया हर मुस्लमान यह चाहता था की वह ज़्यादा से ज़्यादा दुश्मनो को क़तल करके खुदा की हुज़ूर में हाज़िर हो जाये।इल्यास मैसरा में थे उनके हाथ में झंडा था। वह बाये हाथ से झंडा संम्भाले थे और दाहने हाथ से हमले कर रहे थे। खुदा ने उनके बाज़ू में इतनी ताक़त दी थी कि जिस शख्स पर वॉर करते थे उसके दो टुकड़े किये बगैर न रहते थे जिस पर उनकी तलवार पड़ती थी नरम घांस की तरह उसे काट डालती थी। उन्होंने कई दुश्मनो को खाक व खून में मिला दिया था। दुश्मनो के खून के छींटे उनके लिबास और जिस्म पर पड़ पड़ कर जम गए थे। वह सर से पैर तक खून में रंगे जा चुके थे। जैसे जैसे वह क़तल करते जाते थे उनका दिल और बढ़ता जाता था और वह भी तेज़ी और फुर्ती से हमले करते जाते थे।वह क़त्ल व खून रेज़ी में ऐसे बिजी थे की अपनी हिफाज़त का ख्याल न रहा था। एक मुजाहिद ने उन्हें टोका और कहा “सय्यद या सरदार )अपनी हिफाज़त का ख्याल रखो। कही। कही खुदा न ख्वास्ता किसी काफिर की तलवार कारगर न हो जाये।इल्यास ने कहा “मैं ऐसा ख़ुशक़िस्मत कहा हु मेरे दोस्त मुझे जिहाद करने दो खुदा की क़सम जितनी ख़ुशी मुझे इस वक़्त दुश्मनो को क़तल करके हो रही है ,कभी न हुई थी। “यह कहते ही उन्होंने अल्लाहु अकबर का नारा लगा कर हमला किया और एक दुश्मन को खीरे की तरह काट डाला .उनके नारा की आवाज़ सुन कर तमाम मुसलमानो ने संम्भल कर नारा लगाया और निहायत शिद्दत से हमला किया। इस हमला में बेशुमार काफिर मारे गए। वह पीछे हटने लगे। मुसलमानो ने बढ़ कर और सख्ती से हमला करके उनकी भारी तादाद क़तल कर डाली।इस वक़्त काफिरो के हौसले न रहे। वह तेज़ी से पीछे हटने लगे। मुस्लमान बढ़ कर हमले करने लगे। इल्यास एक एक वार में दो दो को उड़ाने लगे अचानक से एक काफिर की तलवार इल्यास के शोल्डर पर पड़ी वह लड़खड़ा कर गिरे कुछ मुस्लमान दौड़ कर उन्हें संम्भाला। अब दुश्मन पीसपा हो गया लेकिन मुसलमानो ने उसका पीछा नहीं किया .वह इल्यास की फ़िक्र में लग गए।अगला पार्ट ( सहर हुस्न ) -

fatah kabul ( islami tareekhi novel ) part 49
तलाश …..
महारजा काबुल के पास अगरचे जाबुल के हाकिम का खत मदद के लिए आगया था। मगर वह समझता था कि जाबुल के हाकिम के पास काफी फ़ौज है। मुसलमान उसे ज़ेर न कर सकेंगे इसलिए उसने मदद नहीं भेजी थी। वह इस फ़िक्र में था की जब जाबुल से दुबारा मदद की दरख्वास्त आएगी तब वह मदद देगा उसे ख्वाब में भी यह ख्याल था कि मुस्लमान आसानी से जाबुल की फतह कर लेंगे।
मगर जब उसने मेला में अचानक सुना कि मुसलमानो ने जाबुल को फतह कर लिया है और काबुल की तरफ बढे चले आरहे है। इसलिए वह भी क़िला में भाग कर घुस गए। रानी और उसकी साथी औरते भी गिरती पड़ती पहुंच गयी। मेला उजड़ गया और सारे मेला वाले दुकानदार ,खरीदार ,तमाशयी ,यात्री और तमाशा वाले गरज़ सब जिस तरह भी हुआ अपना अपना सामान ले कर क़िला में जा पहुंचे। क़िला वाले भी सब आ घुसे। जब सब आगये तो क़िला फाटक बंद कर दिया गया। दरवाज़ा पर पहरा लग गया और फ़सील पर फौजे चढ़ गयी।
जब राजा और रानी को थोड़ा आराम मिला तो उन्होंने सुगमित्रा को तलाश किया। उसके छोटे महल में देखा ,रनवास में देखा ,गरज़ हर जगह देख लिया लेकिन उसका कही पता न चला। फ़ौरन क़िला और शहर में उसकी तलाश शुरू हुई। लेकिन सुराग न मिला।
सुगमित्रा की सहेलिओ और कनीज़ों को बुला कर उनसे पूछा गया। जिन सहेलियों और कनीज़ों को सुगमित्रा ने सामान खरीद कर दिया था उन्होंने कह दिया की वह सामान ले कर आयी थी। उन्हें पता नहीं। जो सहेलिया और कनीज़ राजकुमारी के साथ रह गयी थी उन्होंने ब्यान किया की वह राजकुमारी के साथ पाक गार में गए थी। कमला भी वही मिल गयी थी। वह दोनों भीड़ में घुस कर अलग हो गयी। उसी वक़्त मुस्लमान का आने का वक़्त हो गया। उन्होंने राजकुमारी को तलाश किया। हर चंद ढूंढा मगर कुछ पता न चला। वह समझी की वह दोनों क़िला में चली गयी। इसी ख्याल से चली आयी।
अब राजा और रानी का फ़िक्र बढ़ने लगा। फ़िक्र और परेशानी ने उनपर ग़लबा कर लिया। महाराजा ने वज़ीर और सिपाह सालार को बुला कर राजकुमारी की गुमशुदगी का हाल सुनाया सिपाह सालार ने कहा ” मुमकिन है वह क़िला से बाहर गयी हो। मैं खुद फौजी दस्ता लेकर जाता हु यक़ीन है वह मिल जाएँगी। “
वज़ीर ने महाराजा को तसल्ली दी और सिपाह सालार से कहा ” मुक़द्दस गार के चारो तरफ चट्टानों की सरहद तक देख लेना और पाक गार के अंदर भी सिपाहियों को उतार देना। राजकुमारी वही कही छिपी होंगी। यह बड़ी गलती हुई की भागते वक़्त राजकुमारी को नहीं देखा।
वज़ीर ने गोया दर पर वह महाराजा पर यह इलज़ाम लगाया था। महारजा को शर्मिंदा हुई लेकिन उन्होंने फ़ौरन ही कहा “यह गलती मुहाफिजों और फौजियों की है। उन्हें वहा रह कर यह देख लेना चाहिए था की कोई बाहर तो नहीं रह गया। सबके बाद उन्हें आना चाहिए था।
वज़ीर : इन दाता का फरमाना दुरुस्त है। इन बदबख़्तो ने बड़ी गलती की है। लेकिन घबराने की बात नहीं है। सेना पति राजकुमारी को ढूंढ लाएंगे सिपाह सालार वहा से चला गया और एक हज़ार सिपाहियों को साथ लेकर क़िला से निकला। उसने मेला का कोना कोना छान मारा। गार के चारो तरफ देखा। अपने सिपाहियों को चट्टानों पर चढ़ा दिया .पहाड़ पर बिखेर दिया लेकिन न राजकुमारी मिली न कमला। न कोई और लड़की औरत या मर्द मिला। इस नवाह में चिड़िया भी नहीं थी। यह सब लोग अच्छी तरह देख भाल कर दिन छिपने क़रीब वापस आये।
महाराजा और रानी की निगाहे दरवाज़ा की तरफ लगी हुई थी। वह दोनों सिपाह सालार का इंतज़ार कर रहे थे। उनकी भूक प्यास उड़ गयी थी। सख्त ग़मगीन और संजीदा थे। जब सिपाह सालार तनहा आया तो उनके दिलो पर चोट लगी। महाराजा ने जल्दी से कहा “कहो मिली ?”
“नहीं अन्न दाता ” सिपाह सालार ने कहा और फिर अपनी कार गुज़ारी जताने के लिए कहा ” मैंने मेला का गार का पहाड़ और चट्टानों का चप्पा चप्पा देख डाला मुझे वहा चिड़िया भी नहीं मिली। “अचानक रानी ने चीख मारी और सुगमित्रा कह कर बेहोश हो गयी। राजा ने झपट कर उसे संम्भाला कई कनीज़ों के मदद से उसे बिस्तर पर लिटा दिया। राजा की आँखों से आंसुओ का सैलाब बह निकला उसने कहा ” राजकुमारी कहा गयी .कौन उसे ले गया। क्या ऐसा तो नहीं की कोई उसकी तलाश में था और मौक़ा पा कर ले उड़ा। अगर सुगमित्रा चली गई तो समझो इस खानदान की। इस क़िला की। इस क़ौम की इस मुल्क की खुश हाली और खुश इक़्बाली चली गयी। जबसे वह आयी थी ख़ुशी दौलत सर्वात ,हशमत और बे फ़िक्री ने डेरा जमाया हुआ था ऐसी खुश हाली लड़की शायद ही दूसरी हो।
वज़ीर और सिपाह सालार दोनों ने राजा को तसल्ली देनी शुरू की। कई कनीज़ तबीब ( डॉक्टर ) को बुलाने चली गयी .राजा ने वज़ीर से कहा “झूटी तसल्ली से दिल को तस्कीन नहीं हुआ करती मेरे दिल में होक सी उठती है। सीना फट गया है ,कलेजे के टुकड़े हो गए है। अगर वह आने वाली होती तो यह हालत न होती।
वज़ीर: कभी कभी झूटी तसल्लियो से दिल को तस्कीन देना पड़ता है। महाराज सोचे की एक तरफ राजकुमारी का ग़म है और दूसरी तरफ मुसलमानो की हमले की परेशानी है। अगर राजकुमारी के ग़म में सोग मनाते और हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहे तो मुसलमानो का मुक़ाबला पूरी तरह न कर सकेंगे और जब पूरी तरह मुक़ाबला न हो सकेगा तो कामयाबी और फतह की क्या उम्मीद है इसलिए मेरी दरख्वास्त है की रजुमारी की तलाशी के साथ साथ मुक़ाबला की तैयारी होती रहे। अगर फौजो की हिम्मत अफ़ज़ाई न की गयी तो उनकी हिम्मते कमज़ोर हो जाएँगी।
राजा : तुम्हरी बातो से पता चलता है की तुम भी राजकुमारी की वापसी से न उम्मीद हो गए हो।
वज़ीर : नहीं ,मैं न उम्मीद नहीं हु। बल्कि मेरा दिल कहता है की आज या कल या ज़्यादा से ज़्यादा परसो वह ज़रूर आ जाएँगी। इतने में वह आयी। महाराजा मुक़ाबला की तैयारी में ममस्रूफ़ हो उससे तबियत भी बहली रहेगी और ग़म भी मिट जायेगा।
राजा : मैं भी जो मुझसे हो सकेगा करूँगा लेकिन तुम होशियारी से सब काम अंजाम देते रहना।
इस वक़्त तबीब आया उसने रानी की नस देखि अपने साथ दवा की संदूक लाया था ,उसमे से दवा निकाल कर पिलाई .एक और दवा निकाल कर सुंघाई। थोड़ी देर में रानी को होश आ गया। उसने इधर उधर देखा। कुछ देर खामोश पड़ी रही। फिर अचानक चिल्लाई सुगमित्रा कहा है “
राजा ने तसल्ली देते हुए कहा ” आ रही है ज़रा तसल्ली रखो। “
रानी के आंसू जारी हो गए। उसने कहा ” आ चुकी मेरी सुगमित्रा अब न आएगी क़ुसूर मेरा है। क्यू मैंने उसे अलग जाने दिया। “
राजा और वज़ीर उसे तसल्ली देते रहे। तक वक़्त तक रोती रही जब तक आंसुओ का आखरी क़तरा भी आँखों से ख़ारिज न हो गया। जब आंख में आंसू न रहे तो रोती ही क्या। अब वह आहे और सिसकिया भरने लगी। बहुत कुछ कहने सुनने पर वह खामोश हो गयी और कुछ देर के बाद सो गयी।
दूसरी रोज़ सुबह को राजा कुछ फ़ौज लेकर खुद सुगमित्रा को तलाश करने गया। उसने दूर दूर तक तलाश किया मगर कुछ पता न चला। दुपहर के बाद वह वापस आगया। अब राजा का यह रोज़ का हो गया की सुबह को फ़ौज का एक दस्ता लेकर निकल जाता और दिन ढले वापस आता।
एक रोज़ उसे एक पहाड़ी चरवाहे ने बताया की राजकुमारी और एक लड़की दो सवारों के साथ जाबुल की तरफ जा रही थी .राजा ने उससे तरह तरह के सवाल करने शुरू किये ,जैसे राजकुमारी किसी चीज़ से बंधी हुई थी। गिरिफ्त करके तो नहीं ले जाई जा रभी थी। रो तो नहीं रही थी सवार उस पर सख्ती तो नहीं कर रहे थे।
चरवाहे ने कहा ” मैंने अच्छी तरह राजकुमारी को देखा तो आज़ाद थी घोड़े पर सवार थी। रोना तो दरकिनार ग़म वह भी नहीं थी। हंसी ख़ुशी जा रही थी।
राजा : क्या किया सुगमित्रा तूने तो खुद मौत के मुंह में चली गयी। जाबुल में तो वहशी मुस्लमान है। वह ज़रूर तुझे गिरफ्तार कर लेंगे।
अब राजा बिल्कुल न उम्मीद हो गया। वह लौट आया और उसने रानी से तमाम हाल ब्यान कर दिया। रानी को बड़ा सदमा हुआ।
अगला पार्ट ( जंग का आगाज़ )
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fatah kabul (islami tareekhi novel ) part 48
मिलाप……
सुगमित्रा कमला के साथ कभी तैयार न होती अगर उसे राजकुमार पिशावर से नफरत न होती और महाराजा ज़बरदस्ती उसके साथ शादी करने पर तैयार न हो जाते औरत में एक खूबी यह भी है की वह जिससे नफरत करती है उसके साथ रहने से मौत को अच्छा समझती है।
सुगमित्रा को यह भी मालूम न था की कमला ने उसके जाने का क्या इंतेज़ाम किया है। न उसे यह ख्याल था की उसे मेला में ही उड़ा दिया जयेगा। क्युकी वह खूब जानती थी की मेला में बेशुमार आदमी होते है।
लेकिन बिमला ने ऐसे लोग उसे ले जाने पर मुक़र्रर किये जो अपनी ज़िन्दगी को खतरा में डालने से भी गुरेज़ न करते। जिनकी इस्तलाह में लफ्ज़ ‘नामुमकिन ‘की गुंजाईश न थी। जो मुश्किल काम को आसान और मुमकिन काम को आसान समझते थे।
गरज़ यह दोनों सुगमित्रा और कमला देवी को लेकर तेज़ी से रवाना हुए। घोड़ो पत्थरो और खाईयो को फ्लागते चले जा रहे थे कुछ दूर दौड़ कर उन्होंने घोड़ो की बांगे सहारे और उन्हें रोक कर चट्टान की एक ज़ोफ़ दाखिल हुए। या तो किसी वक़्त ज़लज़ला के सदमे से फट गयी थी या उसमे कुदरती छेद था। इस छेद के दूसरी तरफ छोटा सा मैदान था। पंद्रह बीस गज़ मुरब्बा होगा। इस मैदान में कसरत से दरख्त खड़े थे और उसकी ज़मीन सब्ज़ पोश थी। सवारों ने मैदान में जाकर घोड़े रोके। पहले वह उतरे। फिर उन्होंने सुगमित्रा और कमला को उतारा। इन दोनों ने कहा “माफ़ करना हमें जो हुक्म दिया गया था हमने उसकी तामील की है। अब तुम यहाँ इत्मीनान से बैठो। यहाँ कोई खतरा नहीं है। थोड़ी ही देर में तुम्हारे लिए घोड़े आ जायेंगे और तुम आगे सफर करोगी।
वह दोनों आदमी वहा से हट कर शिगाफ़ के दरवाज़े पर जा खड़े हुए। यह दोनों सेम तन वहा रह गयी। सुगमित्रा ने कहा ” यह इंतेज़ाम तुमने किया है।
कमला : नहीं, तुम्हे खुद ही सब कुछ मालूम हो जयेगा।
सुगमित्रा : हमें कहा चलना होगा।
कमला : इस्लामी लश्कर में।
सुगमित्रा : मेरा धक् धक् कर रहा है कही मैंने गलती तो नहीं की।
कमला : अगर गलती का ख्याल है तो अभी कुछ नहीं गया। वापस चलो। किसी को भी मालूम न हुआ होगा की कहा गयी थी।
सुगमित्रा : कमला अगर मेरी शादी का क़िस्सा पेश न होता तो मैं हरगिज़ न आती।
कमला : और वह क़ैदी।
सुगमित्रृ : मैं उसे भूलने की कोशिश कर रही थी।
कमला : जानती हो वह कौन है।
सुगमित्रा : एक मुस्लमान है।
कमला : सिर्फ इतना ही जानती हो। वह तुम्हारा मंगेतर भी है।
सुगमित्रा ; फिर दिललगी की।
कमला : मैं सच कहती हु तुम्हे खुद ही सब कुछ मालूम हो जायेगा।
अब यह दोनों आदमी हट आये। उन्होंने कहा ” तैयार हो जाओ तुम्हारे लिए घोड़े आगये।
यह दोनों सब्ज़ा (घास ) पर बैठ गयी थी। यह सुनते ही खड़ी हो गयी और दोनों मर्दो के पीछे चल पड़ी। मर्दो ने घोड़ो के बांगे पकड़ी और चले। शिगाफ़ से बाहर आये। यहाँ चार घोड़े खड़े थे। दो पर सवार थे और दो कोतल थे। उनमे से एक पर सुगमित्रा और दूसरे पर कमला को सवार कराया और यह सब रवाना हुए। जिस रास्ता पर यह लोग चले उस से कमला वाक़िफ़ थी और न सुगमित्रा। घोड़े इतनी तेज़ी से चल रहे थे जिससे उन दोनों नाज़नीन लड़कियों को तकलीफ न हो।
रात को उन्होंने एक बस्ती में क़याम किया और सुबह होते ही फिर चल पड़े अभी यह थोड़ी ही दूर गए थे की उन्होंने एक औरत को सवार अपने से आगे जाते देखा। वह भी तेज़ी से जा रही थी। उन्होंने भी घोड़े बढ़ा दिए लेकिन उस औरत को न पकड़ सके।
दुपहर के क़रीब उन्होंने एक चट्टान के साये में क़याम किया। कुछ खाया और फिर रवाना हुए। दिन छिपते एक गाव में पहुंच कर ठहर गए और सुबह फिर चल पड़े। उन्होंने फिर उस औरत को आगे जाते देखा जिसे कल देखा था .सुगमित्रा ने कहा “यह औरत कौन है जो कल से हमसे आगे जा रही है।
कमला ने उसे पहचान लिया था। वह बिमला थी। मगर उसे बताया नहीं। सिर्फ इतना कहा ” यह भी मुसाफिर मालूम होती है .चलो पकड़े उन्होंने घोड़े तेज़ किये। लेकिन रास्ता के घूम पर जाकर गायब हो गयी। शाम के टाइम यह सब एक खुले मैदान में पहुंचे। इसी मैदान में खेमो का शहर आबाद था। कमला ने कहा “यह मुसलमानो का लश्कर मालूम होता है “
इस्लामी अलम (झंडा) देख कर कहा “मैंने पहचान लिया। इस्लामी लश्कर ही है। वह देखो इस्लामी झंडा लहरा रहा है।
सुगमित्रा ने भी देखा। उसने कहा ” मुझे तो खौफ मालूम हो रहा है। मुस्लमान वहशी होते है।
कमला : मुसलमान वहशी नहीं होते।
जो लोग उनके साथ आये थे। वह रुक गए यह दोनों बढे। जब लश्कर के किनारा पर पहुंचे तो उन्हें इल्यास मिले। जोश व ख़ुशी से उनका चेहरा सुर्ख हो रहा था। सुगमित्रा ने जब उन्हें देखा तो उसके सुर्ख व सफ़ेद चेहरा पर और भी सुर्खी बिखर गयी। आँखों में अजीब सहर ख़ेज़ चमक पैदा हो गयी। इल्यास ने कहा ” ज़हे क़िस्मत की तुम आगयी। खुदा का शुक्र है। लो तुम दोनों यह निक़ाब चेहरा पर डाल लो। “
दोनों ने चेहरे पर नक़ाब डाल लिए और इल्यास के साथ लश्कर में शामिल हो गयी। वह उन्हें लेकर खेमा पर पहुंचे .वहा उनकी अम्मी बड़ी बे सबरी से उनका इंतज़ार कर रही थी। जैसे ही सुगमित्रा और कमला घोड़ो से उतर कर उनके पास पहुंची। अम्मी ने दौड़ कर सुगमित्रा को अपने सीने से लगा लिया और जल्दी से कहा मेरी बच्ची ,मेरी राबिआ। “
सुगमित्रा हैरान रह गयी। लेकिन उसे अम्मी के आगोश में बड़ी राहत महसूस हुई। कुछ देर के बाद अम्मी उसे खेमा के अंदर ले गयी। वहा बिमला भी मौजूद थी। उसका जी भी चाहा की सुगमित्रा को अपने कलेजे से लगा ले लेकिन ज़ब्त किया अम्मी ने बिमला से कहा ” फातिमा ! मैं तुम्हारी मश्कूर हु तुमने जिस तरह राबिआ को अगवा करके मेरे दिल को दुखाया था .आज उसी तरह मुझ दुखिया से उसे मिला कर मेरे दिल को मसरूर किया है। खुदा तुम्हरी हर आरज़ू पूरी करे।
सुगमित्रा अम्मी की गुफ्तुगू का एक लफ्ज़ भी न समझ रही थी वह हैरान हो रही थी। अम्मी के कहने से वह बैठ गयी .कमला ने कहा ” तुम हैरान हो रही हो। अब सुनो तुम कौन थी हां इन्हे बताओ अम्मी। “
अम्मी ने कहा ” सुगमित्रा तेरा नाम राबिआ है। तू महाराजा काबुल की बेटी नहीं है। मेरे भतीजी है। तू बसरा में पैदा हुई थी .
उसके बाद उन्होंने तमाम हालात ब्यान किये। राबिआ निहायत गौर से सुन रही थी। वह अपने दिमाग पर ज़ोर दे रही थी .उसे भूली हुई बाते याद आरही थी। कई बचपन के वाक़ये याद आगये। यह भी याद आ गया की उसे कोई औरत अपने साथ लायी थी। आखिर खून ने जोश मारा। वह अम्मी जान से लिपट कर रोने लगी। इस क़द्र रोइ की गुलाबी रुख़्सारे आंसू से भीग गए। अम्मी के आँखों में भी आंसू झलक आये। उन्होंने कहा “बेटी अब न रो। मैं तुझे याद कर कर बहुत रो चुकी हूँ। खुदा ने मेरी फरियाद और ज़ादी पर रहम किया। मेरी आरज़ू पूरी की तुझसे मुझे मिला दिया।
राबिआ ने अपने आंसू खुश्क किये। अम्मी ने कहा ” यह बिमला है जो तुझे अगवा कर के लायी थी। किसी बुरी नियत से नहीं। उसे तुझसे मुहब्बत हो गयी थी। यही अब तुझे वहा से लायी है उसी ने मेरे दिल पर ज़ख्म लगाया था। उसी ने मरहम फाया रखा है। मैंने उसे माफ़ कर दिया। तू भी माफ़ कर दे। खुदा भी माफ़ करे !
अब बिमला ने उसे बाक़ी हालात सुनाये और कहा ” यह मेरा बेटा और मंगेतर है। उसे मैंने तेरी तलाश में भेजा था। उसने तेरा सुराख़ चलाया। “
राबिआ ने हया बार दिलकश निगाहो से इल्यास को देखा। दिलफरेब तबस्सुम उसके होंटो पर फैल गया। चेहरा रोशन हो कर जज़ीब नज़र बन गया। लेकिन वह निगाह भर कर उन्हें न देख सकी। शर्मा गयी। उसका शर्माने की अदा बड़ी ही रूह कश थी।
इल्यास के दिल पर चरका लगा। उनके चेहरे का रंग उड़ गया। उन्होंने लड़खड़ा कर नज़रे चुरा ली। इस वक़्त असर की अज़ान हुई। इल्यास नमाज़ पढ़ने चले गए। अम्मी और फातिमा ने भी वज़ू करके खेमा में नमाज़ शुरू की .राबिआ हैरत से देखने लगी। उसने किसी को इस तरह इबादत करते नहीं देखा था। जब यह दोनों नमाज़ पढ़ चुकी तो राबिआ ने कहा “यह तुम क्या कर रही थी अम्मी ?
अम्मी : मैं खुदा की इबादत कर रही थी।
राबिआ : वाओ। यह इबादत का क्या तरीक़ा है कभी खड़ी हो गयी। कभी झुक गयी थी कभी सजदा क्र लिया। कभी बैठ गयी। फिर सामने बुत तो रखा ही नहीं। तुमने किस की इबादत की किसे सजदा किया ?
अम्मी : मेरी भोली बेटी ! हम उस खुदा को सजदा करते और उसकी इबादात करते है जो हर वक़्त और हर जगह मौजूद रहता है। जिसके हाथ में ज़िन्दगी और मौत है जो इज़्ज़त दौलत सल्तनत सब कुछ देता है। बुत बेजान चीज़ है .उसकी इबादत करना खुदा को नाराज़ करना है। हम मुस्लमान है। तू भी मुस्लमान थी। लेकिन तूने काफिरो में पुर वर्ज़िश पायी। खुद भी काफिर होगी।
राबिआ : मेरी समझ में कुछ नहीं आया।
रफ्ता रफ्ता समझ जाएगी बेटी उसके बाद वह और बाते करने लगे।
अगला पार्ट ( तलाश )
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fatah kabul (islami tareekhi novel ) part 47
बदहवासी…….
काबुल का क़िला से बाहर जो गार था। इस पर मेला लगता था। यह मेला इस ज़माने से शुरू हुआ था जबकि तुर्को ने अपनी सल्तनत की बुनियाद रखी थी। बररह मगीन पहला वह शख्स था जो तिब्बत से आकर इस गार में छुप गया था। और जिसकी बाबत लिखने वालो ने लिखा है की वह इंसानो का गोश्त खाता रहा है। इस शख्स ने काबुल में तुर्को की सल्तनत की बुनियाद रखी थी। जिस तारिख को उसने सल्तनत की बुनियाद रखी उसी तारिख को हर साल वहा मेला भरने लगा। धीरे धीरे इस मेले ने मज़हबी मेला की हैसियत हासिल कर ली।
अगरचे तुर्को की सल्तनत काबुल से खत्म हो कर हिंदी लोगो की हुकूमत वहा शुरू हो गयी थी। लेकिन जो मेला तुर्को के ज़माने से शुरू हुआ था। वह हिंदी राजाओ के ज़माने में भी होता रहा है और हिंदी राजाओ के ज़माने ही में उसने मज़हबी हैसियत हासिल कर ली।
इस मेला में दूर दूर से लोग आते। घूमने वाले भी सौदागर भी तमाशाई भी और खरीद फरोख्त करने वाले भी। लेकिन ज़्यादा दूर से लोग मुसलमानो के खौफ की वजह से नहीं आते थे। फिर भी पिशावर तक के आदमी आगये थे।
मेला शुरू हो गया था। गार के चारो तरफ बाजार लग गए थे। बाज़ारो के आस पास अमीरो और मुहाफिजों के खेमे थे और उन खेमो के गिर्द फौजी चौकिया थी।
मेला में खासी रौनक आगयी थी। खरीद व फरोख्त शुरू हो गयी थी। मेला के दो बाजार हो चुके थे। तीन बाजार और बाक़ी थे .तीसरे रोज़ महाराजा ,महारानी ,सुगमित्रा और राजा के खानदान के तमाम औरत और मर्द भी मेला देखने आये थे। इस रोज़ बाजार खूब सजाये गए थे और दुकानदारों ने अपना तमाम माल निहायत सलीक़ा से सजा दिया था।
महाराजा हुस्न परस्त मालूम होते थे। वह महारानी के साथ नहीं रहते थे हसींन माह रूह औरतो की ताक झांक करते रहते थे। वह रानी को छोड़ कर चले गए। रानी अपनी औरतो और बांदियो के साथ हो ली। सुगमित्रा अपनी सहेलियों और हम उम्र कनीज़ों के साथ सैर करने लगी। अभी वह दो तीन ही बाज़ारो में घूमने पायी थी की कमला मिल गयी। कमला ने उसे सलाम किया। राजकुमारी को खौफ हुआ की कही कमला लड़कियों के सामने कोई इशारा न करे। उसका चेहरा भी फीका पड़ गया। कमला समझ गयी। वह उस वक़्त बगैर कुछ कहे सुने या कोई इशारा किये आगे बढ़ गयी।
सुगमित्रा ने इत्मीनान का साँस लिया जब कमला कुछ दूर चली गई तो उसने एक सहेली से कहा “ज़रा इस लड़की को बुलाना ”
इस लड़की ने कहा। “क्या बात याद आगयी। “
सुगमित्रा :याद कुछ नहीं आया। मैंने उसके साथ बे रूखी से बात की और न साथ चलने को कहा। वह अपने दिल में क्या कहेगी।
लड़की : यह क्यू नहीं कहती कि वह ज़रा नक सक दुरुस्त है।
सुगमित्रा ; पगली, यह बात नहीं है जा जल्दी बुला ला। कही वह गायब न हो जाये।
लड़की जल्दी से गयी और कमला को बुला लायी। सुगमित्रा ने उससे कहा “बहन माफ़ करना मैंने तुम्हारे साथ बे रूखी का बर्ताव किया। उस वक़्त मैं किसी और ही ख्याल में थी आओ मेरे साथ चलो।
कमला : माफ़ करना मैं एक हिजोली को देख रही हु।
सुगमित्रा : नाराज़ हो गयी मेरी बहन। गुस्सा थूक दो।
कमला : मेरी यह मजाल मैं खफा हो जाऊ।
सुगमित्रा : खैर मेरे साथ चलो।
कमला : राजकुमारी का हुक्म।
कमला राजकुमारी के साथ चल पड़ी। हसीनो का यह झुरमुट जिस तरफ जाता था मुश्ताक़ दीद (आंखे) उठती चली जाती थी। खास कर सुगमित्रा निगाहो का मरकज़ बनी हुई थी। उसके चाँद से चेहरे पर सबकी नज़रे पड़ी थी लेकिन हुस्न का कुछ ऐसा जलाल था की जो निगाहे एक दफा उठती थी दुबारा उठने की हिम्मत न करती थी। हर सौदागर की ख्वाहिश थी की वह रशक हूर उसकी दूकान तक आ जाये। चाहे कुछ खरीदे या न खरीदे। क़रीब से ज़ियारत तो हो जाये।
वह कई दुकानों पर गयी भी और उसने हर दुकान से कुछ न कुछ खरीदा भी जो चीज़ वह खरीदती थी वह एक दो सहेलियों और दो तीन कनीज़ों को वह चीज़ दे कर रुखसत कर देती थी। यहाँ तक कि उसके साथ चार सहेलिया और छह कनीज़ रह गयी। जो सामान उसने खरीदा उसकी क़ीमत मुँह मांगी अदा की। अगर वह क़ीमत न भी देती और मुफ्त ही ले लेती तब सौदागर उसके मश्कूर होते।
चलते चलते कमला ने आहिस्ता से कहा “गार पर चलो। पूजा में शरीक होंगे ” यह कह कर उसने राजकुमारी का हाथ दबाया .वह समझ गयी। उसने कहा “भई तुम जाओ मैं ज़रा देर में आउंगी। “
कमला : तुम्हे पूजा की क्या ज़रूरत है। लोग तुम्हे देवी समझ कर खुद तुम्हारी पूजा करते है।
सुगमित्रा ने मुस्कुरा कर कहा “शरीर “
कमला : क्या मैं गलत कह रही हु। देखो किस तरफ लोगो की अक़ीदत मंद निगाहे उठ रही है। अगर तुम ज़रा भी इशारा कर दो तो यह सब लोग तुम्हारे सामने सजदा में कर गिर जायेंगे।
सुगमित्रा : शरारत किये जाएगी।
कमला : काश कोई ऐसा हो जो तुम्हे भी नचाये।
सुगमित्रा : बताऊं।
कमला : लो मैं जा रही हु। पाक गार पर जाकर दुआ करुँगी की कोई तुम्हे सताने वाला भी मिल जाये।
कमला चली गयी सुगमित्रा आगे बढ़ गयी। उससे ज़रा फासला पर एक औरत खड़ी बड़े गौर से राजकुमारी को देख रही थी। यह बिमला थी। वह कमला के पीछे चल पड़ी। कुछ दूर चल कर उसे जा पकड़ा। कमला ने उसे देख कर कहा। “तुम”
बिमला : खामोश।
वह चुप हो गयी। यह दोनों बाजार में से निकल कर एक तरफ हो ली। यहाँ खेमे तो बहुत थे और आदमी कम थे। दोनों एक जगह खड़ी हो गयी। बिमला ने कहा “सुगमित्रा कहा गयी है। “
कमला : सैर को गयी है। वह गार में आने वाली है।
बिमला : तब चलो अभी हमें बहुत कुछ करना है। मेरा ख्याल है वह मुझे पहचान जाएगी।
कमला : फिर तुम सामने न होना।
बिमला : मेरा उसके सामने होना ठीक नहीं ,अगरचे मुमकिन है की वह मुझे न पहचाने लेकिन यह भी मुमकिन की पहचान ले।
कमला : मुझे हिदायत दे दो। मैं उस पर अम्ल करुँगी।
बिमला : तुम इस गार से जुनूब की तरफ चट्टान तक ले आओ। फिर सब कुछ हो जयेगा।
अभी यह दोनों बाते ही कर रही थी की दादर के पेशवा (राफे ) वहा आगये। दोनों ने उन्हें झुक सलाम किया। पेशवा ने बिमला से कहा। “तुम दादर के पाक धार में दुआ में शरीक नहीं हुई ?
बिमला ; मैं बीमार थी।
पेशवा : दुआ में सब औरते शरीक नहीं हुई। इसलिए बुध ज़ोर खफा हो गए। तुम दोनों यहाँ मश्वरा कर रही हो ?
बिमला : कुछ नहीं। हम दोनों अरसा के बाद मिली है। एक दूसरी का हांल पूछ रही है।
पेशवा वहा से चले गए। कमला ने कहा ” क्या तुम चट्टान के क़रीब मिलोगी ?”
बिमला : तुम राजकुमारी के साथ रहना मिल मैं ह जाउंगी।
कमला : आखिर चट्टान के पास कौन मिलेगा ?
बिमला : वह मर्द मिलेंगे। वह सुगमित्रा को लेकर दौड़ पड़ेंगे। तुम भी उनके पीछे दौड़ना। वह तुम्हे भी ले आएंगे।
कमला : कही तुम मुझे धोका न देना।
बिमला : मैं इल्यास की मुंह बोली बहन हु धोका नहीं दे सकती।
कमला उससे रुखसत लेकर आगे बढ़ी। वह बाजार में आगयी और आहिस्ता आहिस्ता चल कर गार पर आयी। गार के चारो तरफ काफी मैदान था। इस मैदान में औरतो और मर्दो के भीड़ लग रही थी। इस क़द्र भीड़ थी की अगर कोई किसी से अलग हो गया तो हज़ार कोशिश करने पर भी न मिल सका।
कमला एक तरफ खड़ी हो गयी। वह सुगमित्रा का इंतज़ार कर रही थी। खुश क़िस्मती से सुगमित्रा जल्द और इसी रस्ते से आगयी जिस से वह आयी थी। वह इस तरह खड़ी हो गयी जैसे उसने सुगमित्रा को देखा नहीं है। सुगमित्रा खुद उसके पास आगयी। कमला ने कहा ” क्या तुम भी पूजा में शरीक होने आयी हो। अगर ऐसा है तो मुंह न छिपा लो। वरना लोग तुम्हारी पूजा शुरू कर देंगे। “
यह कह कर कमला ने साड़ी का पल्लू उसके चेहरा पर खींच लिया। और उसका हाथ पकड़ कर जल्दी से भीड़ में घुस गयी। और लोगो को हटाती बढ़ी चली गयी। सुगमित्रा की सहेलिया और कनीज़ लोगो के झुरमुट में उलझ कर रह गयी .
कमला उसे खींचती हुई चट्टान की तरफ चल दी। कुछ दूर चल कर और आगे बढ़ कर एक दो आदमी रह गया।
सुगमित्रा ने कहा “कहा जा रही है ?
कमला : खामोश चली आओ।
वह उसे चट्टान के पीछे ले गयी। अचानक दो आदमियों ने सुगमित्रा को उठाया और भागे। कमला उनके पीछे भागी .कुछ दूर कुछ घोड़े मिले। एक शख्स सुगमित्रा को लेकर एक घोड़े पर सवार हुआ। दूसरा कमला को लेकर दूसरे घोड़े पर और दोनों ने घोड़ो की बागे उठा दी। उसी वक़्त मेला में जाबुल में जाबुल से भागे हुए कुछ लोग आये और उन्होंने शोर मचा दिया। की मुसलमानो ने जाबुल पर क़ब्ज़ा कर लिया और काबुल की तरफ बढे चले आरहे है।
इस शोर को सुन कर लोगो पर बदहवासी तारी हो गयी। हर शख्स काबुल की तरफ भागने लगा। अजब तूफान बे तमीज़ी पैदा हो गयी। सौदागर माल बांधने और मर्द औरतो को ढूंढने। औरतो बच्चो को तलाश करने लगी। शोर व बका से सारा मेला गूँज उठा। भाग दौड़ शुरू हो गयी। किसी की बीवी खो गयी तो किसी का बेटा अलग हो गया तो किसी की माँ।
महाराजा और महारानी भी भाग खड़े हुए .किसी ने यह नहीं पूछा की मुस्लमान कहा है। महाराजा ने राजकुमारी को दरयाफ्त न किया। ज़रा सी देर में मेला इधर उधर हो गया।
अगला पार्ट ( मिलाप )
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fatah kabul ( islami tareekhi novel) part 46
जाबुल पर क़ब्ज़ा ……
जाबुल के फरमा रवा को यह बात मालूम हो गयी की मुसलमानो ने बस्त भी फतह कर लिया और अब उसकी तरफ बढ़ रहे है। उसके पास काफी लश्कर था। फिर जो लोग दादर बस्त और खुद जाबुल के इलाक़ा से भाग भाग कर क़िला में आये थे। उसने उनमे से वहु जवानो और ताक़तवर अधेड़ उम्र के लोगो को भी छांट छांट कर फ़ौज में भर्ती कर लिया था।
उसे टिड्डी लश्कर देख कर यह इत्मीनान हो गया था की वह अरसा दराज़ तक मुसलमानो का मुक़ाबला कर सकेगा और अगर मुमकिन हुआ तो शायद शिकस्त देने में भी कामयाब हो जाये। फिर भी उसने महाराजा काबुल को मदद के लिए लिखा और क़ासिद आगे पीछे रवाना किये।
उसने मुसलमानो को नहीं देखा था। जो लोग दादर के इलाक़ा से भाग कर आये थे। उनकी ज़बानी कुछ हालात मालूम हुए। उसे यक़ीन नहीं था की मुसलमान इस क़द्र बहादुर और जान बाज़ होंगे कि ज़ेबुलिस्तान के लोग उनका मुक़ाबला ही नहीं कर सकते।
उसने जंग की तैयारी पूरी कर ली थी। गल्ला (अनाज) भी इस क़द्र फ़राहम कर लिया था की एक साल के लिए तमाम फौजो और क़िला वालो के लिए काफी हो। उसने लोगो को मना कर दिया था की वह क़िला से बाहर न निकले। न मालूम कब मुसलमान आ जाए।
आखिर एक रोज़ मुस्लमान आ ही गए। जाबुल के हुक्म ने क़िला पर चढ़ कर देखा। शीरान इस्लाम के दस्ते बड़ी शान से आ रहे थे। मुसलमान शाम तक आते और ठहर जाते। जब रात हो गयी तो हाकिम ने बड़े सल्तनत और फौजी अफसरों को मशवरा के लिए बुलाया। वह सब आ गए। हाकिम ने उनसे कहा “तुमने देख लिए मुस्लमान आकर क़िला के सामने मुक़ीम हो गए है। वह लम्बा और दुश्वार गुज़ार सफर तय करके आये है। थके मांदा है। रात को बे फ़िक्री नींद सोयेंगे। वह हमारी तरफ से गाफिल होंगे। मैं यह चाहता हु की उन पर शब खून मार कर उन्हें क़त्ल कर डालो। जो बाक़ी बच रहे उन्हें गिरफ्तार कर लो या भगा दो। “
और तो सबने उसकी राये की हिमायत की लेकिन उसके बूढ़े वज़ीर ने कहा ” मुसलमान बुज़दिल और कम हौसला नहीं .उन पर आसानी से फतह करना न मुमकिन है पहले तो यह मुनासिब है की उनसे सुलह कर ली जाये। अर्जज के हाकिम ने उनसे मसलेहत कर ली . वह बदस्तूर हुकूमत कर रहा है। और अगर सुलह करनी मंज़ूर नहीं तो देखो वह क्या करते है। जब वह लड़ाई शुरू कर दे तब किसी रोज़ मौक़ा देख कर उन पर शब् खून मारो। यक़ीन है इस वक़्त कामयाब हो जाओगे।
किसी ने भी उसकी बात की हिमायत नहीं की। बल्कि कुछ नौजवानो ने तो यह कह दिया की बूढ़े वज़ीर की मत मारी गयी है। .आज से बेहतर मौक़ा शब् खून मारने का नहीं हो सकता।
गरज़ यह तय हुआ की आधी रात को शब खून मारा जाये। इस वक़्त से लोगो ने तैयारी शुरू कर दी। फ़सील पर मुसलमानो को दिखाने के लिए कि वह होशियार है काफी रौशनी कर दी गयी। और क़िला के सहन में फौजे जमा होने लगी। आधी रात से कुछ पहले जाबुल का हुक्मरान आ गया। वह ज़िरह बख्तर पहने हुए थे। उसने आते ही लश्कर का जायज़ा लिया और दरवाज़ा खुलवा कर बाहर निकला।
रात अँधेरी थी। पिछली रात में चाँद निकलने वाला था। जाबुल का तमाम लश्कर पैदल था। सिर्फ राजा और चंद बड़े अफसर घोड़ो पर सवार थे।
यह लश्कर निहायत ख़ामोशी से इस्लामी लश्कर की तरफ बढ़ा। इत्तेफ़ाक़ से मुहाफ़िज़ मुसलमान इसी तरफ गश्त कर रहे थे। उन्होंने कुछ आवाज़े सुनी। हज़ारो आदमियों के क़दमों की चाप छिपी न रह सकी। उन्होंने जल्दी जल्दी मुसलमानो को बेदार किया और होशियार करना शुरू किया। और ख़ामोशी के साथ की शोर व गुल न हो।
क़रीब क़रीब तमाम मुस्लमान होशियार हो कर मुसलाह हो गए थे। लीडर अब्दुर्रहमान भी हथियार लगा कर आगये। उन्होंने सब मुसलमानो को खेमो की पहली और दूसरी क़तार के पीछे छिपा दिया। मुसलमान नेज़े हाथो में लेकर इस तरह बैठ गए की हुक्म होते ही नेजो से हमला कर दे।
जाबुल वाले निहायत एहतियात मगर तेज़ी से बढ़ते चले आरहे थे। वह समझ रहे थे की मुस्लमान गाफिल है। नींद के मज़े ले रहे है। आसानी से काबू में आ जायेंगे।
कैंप के क़रीब आ कर उन्होंने और भी एहतियात शुरू की। बहुत ही दबे क़दमों चले। आखिर जब वह कैंप में दाखिल हुए और खेमो की पहली क़तार के क़रीब पहुंचे तो अब्दुर्रहमान ने हमला का इशारा किया। मुस्लमान अल्लाहु अकबर का नारा लगा कर उठ खड़े हुए और नेज़े हाथो में लेकर पूरी लम्बी सफ में तेज़ी से बढे।
नारा तकबीर सुन कर काफिर काँप गए। और जब नेज़े हाथो में लिए मुसलमानो को झपट कर आते देखा तो होश जाते रहे . उनेक दाहिने हाथ में नंगी तलवार थी और बाए हाथो में ढाले। मगर वह कुछ ऐसे घबराये की न तलवारे याद रही न ढाले।
मुसलमानो ने उन्हें नेजो से छेद डाला उनकी पूरी सफ को गिरा दिया। जबकि कुछ नेज़े ऐसे घापे की खींचे से भी बाहर न निकल सके इसलिए मुसलमानो ने नेज़े छोड़ दिए और तलवारे मियानो में खींच कर निहायत ज़ोर से हमले किये। उनकी तलवारो ने दुश्मनो को काट कर बिछा दिया।
अब जाबुल के लोगो को होश आया। उन्होंने भी हमले शुरू किये। घमसान की लड़ाई शुरू हो गयी। सरो पर सर कट कट कर गिर रहे थे। कटे हुए धड़ो से खर खर की आवाज़े आने लगी। खून के पुर नाले बह गए। काफिरो ने हस्बे आदत शोर व गुल भी शुरू कर दिए। मुस्लमान निहायत ख़ामोशी से दाढीआ दांतो में बी भींच भींच कर जोश में आ आ कर निहायत सख्त हमले कर रहे थे। उनकी तलवारे भी या तो ढाले फाड़ रही थी या मुसलमानो को क़त्ल कर रही थी।
मुसलमानो को इस वक़्त बड़ा जोश आ जाता था जब कोई मुस्लमान शहीद हो कर गिर पड़ता। शहीद होने वाले मुस्लमान के क़रीब जो मुस्लमान होते थे ,वह जोश व गज़ब में आ कर हमला करके एक मुस्लमान के बदले में जब तक दस बीस को न मार डालते थे क़रार न लेते थे।
किसी मुस्लमान का शहीद हो जाना गज़ब हो जाता। और मुस्लमान शेर की तरफ बिफर कर हमले करके न सिर्फ उस मुस्लमान का शहीद करने वालो को मार डालते थे बल्कि जो काफिर उनके सामने आ जाता था उसे ही क़त्ल कर डालते थे। गरज़ मुसलमानो ने दम के दम में बे शुमार दुश्मनो को क़त्ल कर डाला। उनकी लाशो से मैदान पाट दिया। हर मुसलमान खूंखार शेर बन गया और पुर ज़ोर हमला करके लाशो के ढेर लगा दिए।
राजा खुद भी लड़ रहा था और अपनी सिपाह को लड़ने को कह रहा था। उसके सिपाही बड़ी दीदा दिलेरी से लड़ भी रहे थे। मगर मुसलमानो के सामने उनकी पेश न जाती थी। वह जोश में आकर हमला करते थे। जो लोग जोश में आकर हमला करते थे और मुसलमान उन्हें तलवारो की धारो पर रख लेते थे। जो लोग जोश में आकर बढ़ते थे मुसलमान उनके टुकड़े कर डालते थे।
अब्दुर्रहमान ,इल्यास और दूसरे अफसर बड़ी जान बाज़ी से लड़ रहे थे। उनकी तलवारे हर उस चीज़ को काट डालती थी जिन पर पड़ती थी। उन्होंने अपने गिर्द लाशो के अम्बार लगा दिए थे।
जबकि खून रेज़ जंग जारी थी। अब्दुर्रहमान ने अल्लाहु अकबर का नारा लगाया। तमाम मुसलमानो ने इस नारा की तकरार की और इस ज़ोर से हमला किया की दुश्मनो के सैकड़ो सिपाहियों को मार डाला।
इस हमला से घबरा कर जाबुल वालो के क़दम उखड़ गए। वह बे तहाषा भाग निकले। मुस्लमान उनके पीछे दौड़े वह उनके पीछे दौड़ते और उन्हें क़तल करते भागे।
इस वक़्त चाँद निकल आया था। और चांदनी की रौशनी फैलने लगी थी। पहले अँधेरा घप हो रहा था अब काफी रौशनी हो गयी थी ,इस रौशनी में कुफ्फार भागते और मुस्लमान उनका पीछा करते नज़र आ रहे थे।
जाबुल वालो का ख्याल था की मुस्लमान थोड़ी दूर तक पीछा करके वापस लौट जायेंगे जब मुसलमानो ने उनका पीछा न छोड़ा तो वह सहम गए। और कुछ लोग इधर उधर भाग गए। कुछ क़िला में घुस गए। मुस्लमान भी क़िला के अंदर जा पहुंचे और काफिरो को क़त्ल करने लगे। इस हंगामे में राजा मारा गया। लोगो ने घबरा कर हथियार दाल दिए .मुसलमानो ने जाबुल पर क़ब्ज़ा कर लिया।
अगला पार्ट (बदहवासी )
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fatah kabul (islami tareekhi novel) part 45
मुलाक़ात। …..
मुहब्बत और औरत की मुहब्बत अजीब होती है। वह जिससे मुहब्बत करती है उसके लिए समुन्दर में छलांग लगाने ,आग में कूद पड़ने और पहाड़ से जस्त मारने पर तैयार हो जाती है। जो औरत जज़्बाती नहीं होती उसकी मुहब्बत पाक होती है। कमला भी ऐसी ही औरतो में थी। उसे इल्यास से मुहब्बत हो गयी थी। जब उसने देखा राबिआ जिसे सुगमित्रा समझ रही थी मंगेतर है और वह उसकी तलाश में आये है तो वह उसे राज महल से निकाल लेने पर तैयार हो गयी। उसने उससे भी पहले जब इल्यास जेल खाने से छूट कर आये थे यह समझ लिया था की राजकुमारी सुगमित्रा उन्हें चाहने लगी है। वह न राजकुमारी के बराबर हसीं थी न दौलत मंद उसने उन्हें भाई बना लिया था अब वह अपने भाई को खुश करने के लिए कोशिश कर रही थी।
वह हज़ार तकलीफे उठा कर काबुल पहुंची। उसे वहा जाते ही मालूम हो गया की सुगमित्रा की शादी की तैयारियां बड़े ज़ोर व शोर से हो रही है। राजा के महलो से लेकर गरीबो के झोंपड़ी तक शादियाने बज रहे है। गरीबो के झोपडो में रात को गीत गाये जाते है और अमीरो के मकानों में वेश्या के नाच और गाने होते है राजा के महलो में भी तवाइफ़ों का झमगट रहता था।
उसके रिश्तेदार काबुल में थे। खासे अमीर आदमी थे। वह उनके यहाँ जाकर ठहरी और इस कोशिश में मशगूल हुई की क़स्र शाही में जाकर सुगमित्रा से मिले और इल्यास का पैगाम उस तक पहुचाये। उसने खुफ़िआ खुफ़िआ यह भी मालूम किया की राजकुमारी इस शादी से रज़ामंद नहीं है। ज़्यादा औरतो ने उससे यही कहा की वह रज़ामंद है लेकिन कुछ ने यह भी कहा की शायद उसे यह शादी पसंद नहीं। क्यू की वह उदास और परेशान सी रहने लगी है।
कमला को यह बात मालूम हो गयी की राजा के महल में बारी बारी से एक एक दो दो अमीरो के घरो की औरते और लड़किया जाती रहती है। उसने यह भी मालूम किया की राजा बड़े रंगीले है जो हसीन औरते और माहिरा लड़किया उनके महल पहुंच जाती है उनसे दिल बस्तगी कर लेते है। वह खुद काफी हसीं थी उसे खौफ हुआ की कही ऐसा न हो की वह राजा के सामने पद जाये और राजा उसे भी अपनी नफ़्स परसती का शिकार बनाना चाहिए। वह अज़मत और अस्मत के सामने अपनी जान की भी परवा नहीं करती थी। फिर भी वह इस फ़िक्र में रही की किसी तरह राजा के महल में पहुंच जाये।
अचानक चंद रोज़ के बाद उसके अमीर रिश्तादार की औरतो के बुलाने का नेवता भी आ गया। उसे बड़ी ख़ुशी हुई। वह अमीर आदमी की बीवी को खाला थी। वह दूर की रिश्ता की खाला थी भी। उसके एक लड़की थी जो कमला से बड़ी थी .उसकी शादी हो चुकी थी। वह भी ससुराल से मायका आयी थी। वह आम सूरत की लड़की थी। कमला की खाला ने उससे कहा “बेटी ! राजा कुछ अच्छा आदमी नहीं है तू महल में न जाती तो अच्छा था। “
कमला ने कहा ” तुम मेरी फ़िक्र न करो। राजा मेरी तरफ आँख उठा कर भी नहीं देख सकता “गरज़ वह इसरार करके उनके साथ महल में गयी। तमाम महल में औरते और लड़किया बिखरी पड़ी थी। हसीन क़हक़हों और दिलकश आवाज़ों से फ़िज़ा गूँज रही थी। नौ ख़ेज़ व हसीन लड़किया रंगीन तितलियों की तरह बगीचों और सहनो में उडी फिर रही थी। उनमे से हर एक उम्दा और तरह तरह का लिबास पहने थे। अपनी शान दिखाने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा ज़ेवर पहन कर आयी थी। अच्छे लिबास और उम्दा जेवरात ने उन हसीं लड़कियों के हुस्न में चार चाँद लगा दिया थे। कमला भी खूब बन सज कर आयी थी। कई जगह तवायफे नाच गए रही थी।
कमला सुगमित्रा से मिलना चाहती थी। लेकिन वह उसे कही नज़र न आयी। वह उसकी तलाश में मसरूफ हुई। एक लड़की से उसे मालूम हुआ की राजकुमारी अपने छोटे महल में रहती है। बहुत कम वहा से निकलती है। उसके पास रानी की इजाज़त के बगैर कोई नहीं जा सकता। वह रानी से इजाज़त लेने चली गयी। रस्ते में राजा का सामना हो गया।
बूढ़े राजा ने उसे ललचाई नज़रो से देखा और कहा ” क्या नाम है तुम्हारा लड़की। ‘
“कमला” उसने जवाब दिया।
राजा : तुम काबुल की रहने वाली नहीं हो।
कमला : मैं दादर के इलाक़ा के रहने वाली हु।
राजा : यही वजह है की मैंने पहले नहीं देखा। तुम तो अप्सरा हो अप्सरा कहा जा रही हो ?
कमला : मैं राजकुमारी को देखना चाहती हु।
राजा : लो, यह हमारी अंगूठी लो और राजकुमारी को देख आओ। जो तुम्हे टोके यह अंगूठी उसे दिखा देना और जब तुम उसे देख आओ तो यह अंगूठी हमें वापस कर देना।
राजा ने अंगूठी उतार कर उसके हाथ में रख दी और मुठी बंद करके उसका हाथ दबाया और चला गया। कमला अंगूठी पाकर बहुत खुश हुई ,वह महल के अलग अलग हिस्सों से गुज़रने लगी। जो बांदी या कोई औरत उसे टोकती वह उसे अंगूठी दिखा देती। टोकने वाली सर निचे करके एक तरफ हट जाती।
गरज़ सुगमित्रा के छोटे महल में दाखिल हुई , यह महल निहायत खूबसूरत था। उसके दर व दिवार कमरे और बरामदे खूब आरास्ता थे सेहन के दो हिस्से थे। एक हिस्सा चबूतरा तरह तरह के खुशनुमा पत्थरो से बनाया गया था। दूसरा हिस्सा बगीचा था। निहायत दिलकश बगीचा था। उसमे निहायत खुशनुमा फूलो की क्यारिया थी। कई सब्ज़ा के लान थे। अंगूरों की टेटिया। थी सेब की दरख्तों की क़तार थी। गरज़ बगीचा निहायत फरहत (खुश) दिलकश था। इस महल में बांदी और राजकुमारी की सहेलिया सब नौ ख़ेज़ व कमान आबरू थी। एक लड़की कमला को राज कुमारी के पास ले गयी। इस वक़्त यह बगीचा में थी। तनहा बैठी थी ,उसके सामने फूलो का ढेर लगा हुआ था। वह एक बड़ा हार गूंध रही थी। लड़की दूर से राजकुमारी को दिखा कर चली गयी। कमला दबे क़दमों राजकुमारी के पास पहुंची। उसने देखा सुगमित्रा कुछ मफ़हूम और उदास है। कमला ने उस मुखातिब करके सलाम किया। राजकुमारी ने सलाम लिया और उसे देख कर गौर करने लगी जैसे कुछ याद कर रही हो। आखिर उसने कहा। “मैंने तुम्हे दादर के धार में देखा था। “
कमला : राजकुमारी ने ठीक पहचाना।सुगमित्रा : किस लिए आयी हो ?
कमला : अभी अर्ज़ करूंगी पहले यह बताओ उदास क्यू हो ?सुगमित्रा : कुछ तबियत खराब रहती है।
कमला : माफ़ करना आपको कोई बीमारी नहीं है। अगर आप मुझसे अपना हाल छुपायँगी तो बड़ा फायदा होगा। मैं थोड़े वक़्त में सारी बाते सुन्ना और कहना चाहती हु। क्या तुम पेशावर के राजकुमार को पसंद नहीं करती हो ?
सुगमित्रा ने कमला की तरफ देखा। राजकुमारी को हैरत थी। की वह पहली मुलाक़ात में ऐसे कैसी बाते कर रही है। कमला ने फिर कहा। “मैं बड़ी मुश्किल से यहाँ आयी हु। वक़्त जाया न कीजिये। सही बात बता दीजिये।
सुगमित्रा : हां मैं उसे न पसंद करती हु।
कमला : मैं इस क़ैदी की पयम्बर हु जिसे आपने दादर के धार में से रिहा कर दिया था।
सुगमित्रा ने हैरत और ख़ुशी भरी नज़रो से देखा कहा ” तुम सच कहती हो “
कमला : सच कह रही हु। वह तुम्हारे लिए बहुत बेकरार है।
सुगमित्रा : कहा है वह ?
कमला : दादर आ गया है।
सुगमित्रा का चेहरा कुछ फीक पड़ गया। उसने कहा ” लेकिन वह यहाँ नहीं आ सकता। “
कमला : ज़रूर आएगा। शायद तुम्हे मालूम नहीं। वह इस्लामी लश्कर लेकर आया है। और मुसलमानो ने दादर तक इलाक़ा फतह कर लिया है।
सुगमित्रा : मगर इतने वह यहाँ आएगा इतने मुझे ज़बरदस्ती उसके पल्ला से बांध दिया जायेगा जिससे मुझे नफरत है।
कमला : मुझे इसीलिए पहले भेजा है। अगर तुम तैयार हो तो मैं तुम्हे अपने साथ ले जा सकती हु।
सिगमित्रा : किस तरह ?
कमला : पहले यह बताओ तुम तैयार हो।
सुगमित्रा : मैं तुम्हे बहन कहूँगी। मेरी बहन मैं इस बेवफा के लिए समुन्दर में छलांग लगाने को तैयार हु।
कमला : तो तुम किसी तरह क़िला से बाहर चलो। फिर मैं सब कुछ कर लुंगी।
सुगमित्रा :यह न मुमकिन है। महाराजा और महारानी मुझे कही आने जाने नहीं देते कुछ सोच कर मगर हां एक बात मुमकिन है। दो ही तीन रोज़ में मुक़ददस गार के क़रीब मेला होगा। इस गार के मुबारक चश्मे में से पानी लाने के लिए मुझे जाना पड़ेगा। अगर इस वक़्त तुम कुछ कर सकती हो तो कर लेना।
कमला : इत्मीनान रखो मैं सब कुछ कर लुंगी।
सुगमित्रा : चुप हो जाओ। मेरी सहेलिया आरही है।
कमला : इस बात को याद रखना भूल न जाना।
सुगमित्रा : याद रखूंगी।
इस वक़्त कई नौ ख़ेज़ और मा जबीन लड़किया वहा आगयी सुगमित्रा ने उनसे कहा। “यह मेरी मुंह बोली बहन है इसका नाम। ..
वह नाम न जानती थी। कमला ने जल्दी से कहा “कमला है ” सुगमित्रा हंस पड़ी। उसके दिलकश चेहरा पर नूर बिखर गया।
अगला पार्ट ( जाबुल पर क़ब्ज़ा )
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fatah kabul ( islami tareekhi novel) part 44
बसत पर ग़लबा ….
दादर के फतह हो जाने से इस नवाह का तमाम इलाक़ा काँप उठा। लोग बस्तिया छोड़ कर छोड़ कर बसत और जाबुल की तरफ भागने लगे। बसत वालो को भी उन भगोड़ो की ज़बानी दादर की फतह और मुसलमानो की पेश क़दमी का हामिल मालूम हो गया।
बसत में एक छोटा सा क़िला था। वहा का क़िला दार जाबुल का मा तहत था। उसके पास कुल पांच हज़ार फ़ौज थी उसने जाबुल के राजा को लिखा की मुसलमान बढे चले आ रहे है। फ़ौरन ज़्यादा से ज़्यादा मदद भेजे।
उधर उसने यह अकलमंदी की की जो लोग दिहात से भाग भाग कर आ रहे थे। उनमे जो जवान और लड़ने के क़ाबिल थे उन्हें फ़ौज में भर्ती कर लिया। उससे इसकी ग्रुप बढ़ गया।
लेकिन यह वह लोग जो मुसलमानो से डर कर भाग आये थे। उन पर मुसलमानो का दबदबा छाया हुआ था। वह पनाह लेने आये थे। यह फ़ौज में जबरिया भर्ती कर लिया। मजबूर हो कर वह हथियार बांध कर लड़ाई के लिए तैयार हो गए।
मुसलमानो की पेश क़दमी की खबरे उस ज़ोर शोर से आरही थी की तमाम बसत वालो पर बद हवासी सी छ गयी थी। शहरी लोग वहा से जाबुल भागने की तैयारी करने लगे। क़िला के हाकिम ने उन्हें रोक लिया। उन्होंने दरख्वास्त की कि उनके अहले व अयाल को जाने की इजाज़त दे दी जाये। हाकिम को ख्याल हुआ की उससे भी लोगो में बददिली पैदा हो जाएगी। लिहाज़ा उसकी भी उसने इजाज़त न दी।
पनाह गज़ीनों की आमद सिलसिला जारी था। लोग बड़ी ही बे सर व समाली के साथ बीवी बच्चो को लिए भागे चले आरहे थे। और हर गिरोह जो आता था वह मुसलमानो के बारे में नई रिवायत ब्यान करता था। उन रिवायतों को सुन सुन कर बसत वाले खौफ ज़दा हो रहे थे। अगर वह हिम्मत से काम लेते तो मुसलमानो का मुक़ाबला अच्छी तरह कर सकते थे लेकिन उन पर ऐसी दहशत तारी हुई जैसे मुस्लमान नहीं जिन थे।
एक रोज़ एक गिरोह सख्त बदहवासी भागा हुआ आया। उसने ब्यान किया की मुसलमानो की तादाद बे शुमार है। हम लोगो ने छिप कर उन्हें देखा है। उनकी सही तादाद का पता न लगा सके। वह यलगार किये बढे चले आरहे है। बसत का क़िला उनके सैलाब को न रोक सका।
इससे और भी बसत वाले घबरा गए। इस आखरी काफला की आमद के तीसरे दिन इस्लामी लश्कर का हरावल नमूदार हुआ। इल्यास इस दस्ता के अफसर थे। बसत वालो ने उसे देखते ही क़िला के फाटक बंद कर लिए। सिपाही और अफसर फ़सील पर पहुंच गए और शहर के लोगो पर घबराहट तारी हो गयी। माह पीकर औरतो और नाज़नीन लड़कियों के चेहरे पीले हो गए। माओ ने अपने बच्चो को सीना से लगा लिया।
इल्यास के दस्ता ने क़िला के क़रीब आकर अल्लाहु अकबर का नारा लगाया। बच्चे औरते और लड़किया सब उछल पड़ी। इल्यास के एक तरफ हो गए उनके फ़ौरन बाद दूसरा दस्ता नमूदार हुआ उसने भी नारा तकबीर बुलंद किया। इस नारे के शोर से कुल की बुनयादे तक हिल गयी। यह दस्ता भी अलग हो गया। इसी तरफ एक दस्ता के बाद दूसरा दस्ता आता और नारा तकबीर लगा कर उतरता रहा। दिन छिपे तक लश्कर की आमद जार रही।
रात को मुसमानो ने अपने कैंप में कसरत से आग रोशन की। बसत वाले क़िला के ऊपर से उन्हें देखते रहे। और उनकी चुस्ती को देख कर हैरान रह गए।
अगले रोज़ सुबह की नमाज़ पढ़ते ही अमीर अब्दुर्रहमान ने हमला का हुक्म दे दिया। मुसलमान जल्द से जल्द मुसलाह (हथियार लेकर ) हो हो कर मैदान में निकलने लगे। जब उन्होंने सफ़हे क़ायम की तो बसत वालो ने उन्हें हौसला देने के लिए जय कारे लगाने शुरू किये। इन जय कारो से मुसलमानो में जोश आ गया। उन्होंने तेज़ी से बढ़ना शुरू किया।
जब वह क़िला के क़रीब पहुंचे तो बसत वालो ने बड़ी फुर्ती से उन पर तीरो की बारिश की। मुसलमानो ने इस तरह ढाले आगे बढ़ा दी जिनसे घोड़ो के सरो और खुद उनकी हिफाज़त होगी। तीर उनकी ढालो पर उड़ कर पड़ने लगी। कुछ तीर घोड़ो के और कुछ सवारों के भी लगे। लेकिन न घोड़ो ने परवाह की न सवारों ने। उनकी रफ़्तार में फ़र्क़ आया। वह बराबर बढ़ते रहे।
बसत वालो ने देखा और हैरान रह गए। जब मुसलमान ज़्यादा क़रीब पहुँच गए तो उन्होंने पत्थर। जब यह भरी पत्थर ढालो पर आकर पड़े तो खतरनाक आवाज़े पैदा करती। उनसे कुछ सवारों और घोड़ो के इस क़द्र चोटे आयी की घोड़े और सवार दोनों गिर पड़े जो सवार गिर गए उन्हें घोड़ो ने कुचल डाला।
मगर अब भी शीरन इस्लाम की रफ्तार में फ़र्क़ नहीं आया। और लगातार तेज़ी से बढ़ते रहे। यहाँ तक की फ़सील के निचे जा पहुंचे उनमे से बहुत से सवारों ने कमंदि फेंकी जो कंगोरो में अटक गयी और जान बाज़ सवार उनके ज़रिये से ऊपर चढ़ने लगे।
मुसलमानो के दस्ते एक के पीछे आरहे थे। फ़सील के काफिरो ने पत्थर बरसाने बंद कर दिए और ऊपर चढ़ कर झांकना शुरू किया। जो दस्ते फ़सील से फासले पर थे उन्होंने बड़ी फुर्ती से कमाने और जो काफिर झांक रहे थे उनके सर व सीनो में तराज़ू हो गए। जिन लोगो के तीर लगे वह होलनाक चीखे मार कर फ़सील से निचे गिरे। उनमे से कुछ तो उन मुसलमानो पर आ पड़े जो कमंदो के ज़रिये से ऊपर चढ़ रहे थे कई मुस्लमान उनके झटके से निचे गिर पड़े। कुछ ज़ख़्मी काफिर निचे मुसलमानो के घोड़े पर जा गिरे। घोड़े भड़क उठे। समझे कोई बला ऊपर से गिरी। मगर जब इंसानो को देखा तो उन्हें पैरो से कुचलने लगे।
तीरो की दो ही बाड़े चली थी की बसत वाले पीछे हट गए। इस अरसा में बहुत से मुस्लमान कंगोरो को पकड़ कर फ़सील पर जा कूदे और वहा पहुंचते ही उन्होंने तलवारे सौंत कर निहायत जोश से हमला कर दिया। काफिरो ने उनके हमले ढालो पर रोके लेकिन मुसलमानो की तलवारे ढालो को फाड़ डाला और ढालो वालो के भंडारे खोल दिए।
दुश्मन यह कैफियत देख कर इस क़द्र ख़ौफ़ज़दा हुए की पीछे हट लार भागने और सीढ़ियों के ज़रिये से निचे उतरने लगे .मुस्लमान उनके पीछे झपटे और उन्हें तलवारो की धार पर रख कर क़त्ल करने लगे।
चुकी फ़सील पर ज़हमत करने वाला कोई बाक़ी न रहा इसलिए मुस्लमान तेज़ी से कमंदो के ज़रिये से फ़सील पर पहुंचे और वहा से ज़ीनो के रास्तो से क़िला के सेहन में उतरने लगे।
जो मुस्लमान क़िला में पहुंच जाते थे निहायत जोश से हमले करके दुश्मनो को क़त्ल करने लगते थे। काफिरो पर मुसलमानो का दबदबा छाया हुआ था ही वह मुक़ाबला न करते मुस्लमान उन्हें खीरे ककड़ी की तरह काट डालते। थोड़ी ही देर में लाशो के ढेर लग गए। मुसलमानो का एक पड़ा दरवाज़ा की तरफ झपटा और जो काफिर उनके सामने आते उन्हें मारता काटता फाटक तक पहुंच गया। फाटक के मुहाफिज़ीन उन्हें देखते ही भाग गए। दो मुसलमानो ने बढ़ दरवाज़ा खोल दिए।
अमीर अब्दुर्रहमान और तमाम लश्कर के घोड़े दौड़ा कर क़िला में दाखिल हो गए। मुसलमानो ने दुश्मनो को घास फूंस की तरह काटना शुरू कर दिया। बसत वाले सिपाही भाग रहे थे। और मुस्लमान उनके पीछे दौड़ कर उन्हें क़तल कर रहे थे। इस दार व गीर में क़िला का हाकिम आ गया एक मुजाहिद ने उस ज़ोर से उसके तलवार मारी की उसका सर उड़ गया।
यह देख कर काफिरो के हौसले कमज़ोर हो गए उन्होंने हथियार डाल दिए मुसलमानो के एक दस्ता ने उन्हें गिरफ्तार करना शुरू कर दिया। एक दस्ता शहर के अज़ीम लोगो और उनकी बीवियों ,बेटियों और बेटो को गिरफ्तार करने लगे। एक दस्ता माल गनीमत जमा करने लगा।
इस मुरका में सिर्फ पांच मुस्लमान शहीद हुए और काफिर ढाई हज़ार मारे गए। इस क़िला में से भी बहुत सी दौलत मुसलमानो के हाथ आयी मर्द औरते और बच्चे क़ैदी भी बहुत मिले।
असर के वक़्त तक क़िला पर मुसलमानो का मुकम्मल क़ब्ज़ा हो गया। इस क़िला पर अब्दुर्रहमन ने सौ मुजाहिदो को छोड़ा और दूसरे रोज़ जाबुल की तरफ कोच कर दिया।
अगला पार्ट ( मुलाक़ात )
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FATAH KABUL (ISLAMI TAREEKHI NOVEL) PART 43
राफे की रवानगी…..
मगरिब की नमाज़ पढ़ कर राफे ,इल्यास और अम्मी तीनो ने खाना खाया। जब खाने से फारिग हो चुके तो राफे ने कहा ” महाराजा काबुल मेरा बड़ा पास व लिहाज़ करते है। बुद्धमत वालो का बड़ा लामा तो तिब्बत में होता है मगर मेरी क़द्र व मन्ज़िलत भी उसी के बराबर की जाती है। मैं कई बार काबुल जाकर राबिआ को देख चूका हु लेकिन उससे तन्हाई में मिलने का मौक़ा एक बार भी नहीं मिला। मैंने बहुत कोशिश की है और मुलाक़ात भी हुई तो उस वक़्त जब वह जवान हो कर यह भूल चुकी थी कि कौन थी और कैसे काबुल में आयी है। महाराजा और महारानी की शफ़्क़तों ने उसे पिछली बाते सब भुला दी।
अम्मी : वह तो जब अगवा की गयी बच्ची थी। न समझ और कम अक़्ल बच्ची। उसने इस्लाम की आगोश में बचपन गुज़ारा और कुफ्र की आगोश में होश संम्भाला। वह अगर सब कुछ भूल गयी है तो हैरत की बात नहीं। लेकिन हैरत तो इस पर कि बिमला तुम्हे न पहचान सकी।
राफे : बिमला ने मुझे कहा देखा ?
अम्मी : धार में एक बार नहीं कई बार। उसने मुझे बताया की वहा के पेशवा बड़े बुज़ुर्ग है। मैं कई बार उन्हें देख चुकी हु। लेकिन उनके सामने जाने की हिम्मत नहीं हुई। शायद इस वजह से की मेरी रूह गुनहगार थी। अगरउनके सामने जाती तो वह मेरे दिल का हाल मालूम कर लेते।
राफे को बड़ी हैरत हुई। उन्होंने कहा “क्या बिमला तुमसे मिली थी ?
” हां” अम्मी ने कहा और बिमला के तमाम हालात उनसे ब्यान किये। राफे ने कहा “बद बख्त औरत ! उसने हमें बर्बाद किया ही लेकिन खुद भी बर्बाद रही। अब वह कहा है ?”
अम्मी : उसने कमला को इसलिए काबुल भेजा था की वह सुगमित्रा को किसी तरह काबुल से बाहर ले आये। उसके पीछे खुद भी चली गयी। कहती थी की अगर कमला सुगमित्रा को बाहत तक ले आयी तो वह उसे अपने साथ हमारे पास ले आएगी।
राफे : यह कमला कौन है।
अम्मी : दादर के क़रीब बस्ती की रहने वाली है। उसने इल्यास को भाई बना लिया है। वही उन्हें दादर के धार में लेकर पहुंची थी। जब तुमने इल्यास को क़ैद कर दिया दिया था तो उसने भी उनकी रिहाई में कोशिश की थी। लेकिन इल्यास को सुगमित्रा ने रिहा करवाया। कमला उनके साथ ही क़िला से बाहर निकल आयी और इल्यास को सालेही के पास पंहुचा दिया। यह वाक़्या इल्यास से सुनो। यह अच्छी तरह ब्यान करंगे।
राफे : सुनाओ बेटा इल्यास।
इल्यास ने कमला के तमाम वाक़्यात ज़रा तफ्सील से ब्यान किये। राफे ने कहा ” मैं कमला क समझ गया। दादर ,बस्त ,जाबुल, और काबुल की कोई औरत और लड़की ऐसी नहीं है जिसे मैं नहीं जानता। इन शहरो के अलावा उनके इलाक़ो की तमाम लड़किया और औरतो से खूब वाक़िफ़ हु। मुझे याद आगया। दुआ के रोज़ वह लड़की तुम्हारे पास खडी थी बड़ी बड़ी आँखों वाली जिसकी लम्बी पलके थी।
इल्यास : आपने पहचान लिया वही लड़की है।
राफे : वह लड़की भोली भी है और नेक भी ,वह ज़रूर काबुल जाकर कोशिश करेगी मगर उसकी रसाई सुगमित्रा तक न हो सकेगी।
इल्यास : क्या राजा उसे अपनी नज़र में रखता है ( निगरानी) .
राफे : नहीं ,बल्कि राजा और रानी को उससे बहुत ज़्यादा मुहब्बत है। वह दोनों उसे एक लम्हा के लिए भी अपनी नज़रो से दूर नहीं होने देते। जिस अरसा तक मैं धार में रहा कोशिश करता रहा की उसे दादर में बुला लू। राजा से कहा उसने वादे भी किये लेकिन रानी ने न भेजा था। मगर बड़ी मुश्किल से और तमाम पेशवाओ के कहने से धार में दुआ में शरीक होने को भेजा था। मगर उसकी हिफाज़त का इस क़द्र इंतेज़ाम और अहतमाम किया था की न कोई उसके पास जा सकता था। न वह किसी के पास आ सकती थी।
इल्यास : कही राजा और रानी कुछ शक तो नहीं।
राफे : शक किस पर करते। सुगमित्रा को वह समझते है की वह सब बाते भूली हुई है। अगर उन्हें कुछ खौफ या ख्याल हो सकता है तो बिमला का।
इल्यास : मुमकिन है उसकी वजह से उसकी हिफाज़त और निगरानी ज़्यादा तर की जाती हो।
राफे : मैं तो यह समझता हु की उन्हें राबिआ से बहुत ज़्यादा मुहब्बत है इसलिए उसकी हिफाज़त व निगरानी में ज़्यादा अहतमाम करते है।
इल्यास : बिमला भी कमला के पीछे गयी है।
राफे : यह बुरा हुआ। वह कम्बख्त राबिआ से इस क़द्र मुहब्बत करती है की अगर वह उसके हाथ लग गयी तो वह खौफ है कही वह उसे और और कही न ले जाये।
इल्यास : मैंने आपको शयद यह नहीं बताया की बिमला मुसलमान हो गयी है।
राफे : कैसे हु ,किसने किया ? उसे तो मैंने बहुत समझाया था लेकिन वह टस से मस न हुई।
इल्यास : बस खुदा ने उसके दिल में कुछ बात डाल दी।
राफे : कही वह कोई और फरेब देने के लिए तो मुसलमान नहीं हुई।
इल्यास : उसके दिल की बात कौन जान सकता है।
अम्मी : मेरा ख्याल है वह किसी लालच से या कोई फरेब देने के लिए मुसलमान नहीं हुई। सच्चे दिल से मुसलमान हुई है। उसने कमला को हिदायत कर दी थी की वह किसी से उसके मुसलमान होने का ज़िक्र न करे।
राफे : खुदा करे वह सच्चे दिल से मुसलमान हुई हो।
इल्यास : और खुदा करे वह राबिआ को यहाँ लाने में कामयाब हो जाये।
राफे : अमीन ,अच्छा राजा गिरफ्तार हो गया।
इल्यास : राजा भी और रानी और राजकुमारी भी। धार बुत के जिसका नाम बुध ज़ोर है अमीर ने हाथ काट डाले और आँखे निकल ली।
राफे : उसमे था ही क्या की सोने का बुत था। मुझे हैरत होती है की बुद्धमत वाले किस क़द्र सदा लोह है की उस बुत की पूजा करते है जो नफ़अ पंहुचा सकता है न नुकसान।
राफे : अब अमीर का क्या इरादा है ?
इल्यास : जब तक मैं आया हु उन्होंने कुछ तय नहीं किया था। उस वक़्त तय करेंगे आप भी ईशा की नमाज़ पढ़ने चले .अमीर से मुलाक़ात हो जाएगी।
राफे : मैं यहाँ महज़ तुमसे मिलने और तुम पर अपने आपको ज़ाहिर करने आया था। खुश क़िस्मती से अम्मी जान से भी मुलाक़ात हो गयी है। अभी आम तौर पर ज़ाहिर होता होना नहीं चाहता। क्युकि उससे मेरा मक़सद मर जाएगी। मैं चाहता हु की काबुल पहुंच जाऊ और सुगमित्रा से मिलने और उसे अपने साथ लाने की कोशिश करू।
अम्मी : उसे सुगमित्रा मत कहो। उसका नाम राबिआ ही बड़ा प्यारा है।
राफे : तुमने सच कहा। अब मैं उसे राबिआ ही कहा करूँगा।
उस वक़्त ईशा की अज़ान हुई। इल्यास उठ कर नमाज़ पढ़ने चले गए। राफे ने वही वज़ू करना शुरू कर दिया .जब इल्यास मैदान में पहुंचे तो उन्होंने अमीर अब्दुर्रहमान को वहा देखा। उस रोज़ सर्दी और दिनों से ज़्यादा थी। आम तौर पर मुसलमान कम्बल ओढ़ ओढ़ कर आये थे कुछ अदना आबए पहुंचे थे।
चांदनी रात थी लेकिन क़िब्ला की तरफ कई जगह आग के अलाव रोशन थे। उनकी रौशनी मैदान में फैली हुई थी। जमात के साथ नमाज़ पढ़ी गयी। जब सब मुस्लमान नमाज़ से फारिग हो गए तो अमीर अब्दुर्रहमान ने कहा ” मुजाहिदीन इस्लाम ! इस मुल्क में सर्दी ज़्यादा है। सर्दी का मौसम क़रीब आता जा रहा है। जबकि अब उस दर्जा सर्दी है तो सर्दी के ज़माना में क्या आलम होगा। इसलिए मैं चाहता हु की हम जल्द से जल्द काबुल पहुंच जाये .और अगर खुदा की मदद शामिल हाल हो तो उसे फतह कर ले। वर्ना सर्दी ज़्यादा परेशान करेगी। हम गर्म मुल्क वाले इतनी सख्त सर्दी को बर्दाश्त न कर सकेंगे। मैंने क़िला दादर की हिफाज़त का इंतेज़ाम कर दिया है कल हम बस्त की तरफ रवाना हो जायेंगे। सब लोग रात ही में तैयारी कर मैं और चाशत के वक़्त तक नाश्ता से फारिग हो जाये। अज़ीज़ इल्यास ! राजा तो गिरफ्तार हो गया। लेकिन पेशवा का पता न चला।
इल्यास को खौफ हुआ की की कही हम्माद बोल न उठे लेकिन वह वहा न थे क़िला की हिफाज़त उनके सुपुर्द की गयी थी .इल्यास खामोश रहे। अब्दुर्रहमान ने कहा ” ऐसा मालूम होता है वह पहले भाग गया। “
इल्यास : या अमीर ! शब् खून की खबर पेशवा ने ही दी थी।
अब्दुर्रहमान : मुझे मालूम है वह हमारा मोहसिन है मैं सब लोगो से कहता हु पेशवा से कोई कुछ अर्ज़ न करे।
उसके बाद सब लोग उठ उठ कर चले गए। इल्यास भी अपने खेमे पर चले आये उन्होंने राफे की रवानगी पर तैयार देख कर कहा ” कहा जा रहे हो चाचा जान ?”
राफे : बेटा जा रहा हु। इंशाअल्लाह काबुल में मुलाक़ात होगी।
इल्यास : अमीर आप को पूछते थे। जब मैंने उन्हें बताया की शब् खून की खबर उन्होंने ही दी थी तो उन्होंने अयलान कर दिया की कोई शख्स पेशवा से तरुज न करे।
राफे : इंशाअल्लाह उनसे काबुल में मिलूंगा।
अगला पार्ट ( बस्त पर तसल्लुत )
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fatah kabul (islami tareekhi novel) part 42
बाक़िया हैरतनाक हाल …..असर की नमाज़ के बाद इल्यास और राफे दोनों फिर एक जगह जमा हुए अम्मी भी आगयी। राफे ने बाक़िया हाल इस तरह बयान करना शुरू किया।
“आतिश परस्त बूढ़े ने कबिलियो की ज़बान और उनकी मज़हबी किताबे पढ़ने का जो मश्वरा दिया था। वह निहायत ही अच्छा रहा। इससे बड़ा फायदा पंहुचा। अगर हम उनकी ज़बान और उनकी किताबो से वाक़िफ़ न होते तो वहशी काबुली हमें ज़रूर क़त्ल कर डालते। यह भी अच्छा हुआ की हमने काबुल वालो जैसा लिबास पहन लिया। दरअसल जासूस के लिए यह ज़रूरी है की जिस क़ौम और मुल्क में जाये उसकी माशरत ,ज़बान और मज़हब से पूरी पूरी वाक़फ़ियत हो ताकि ज़रूरत के वक़्त उनके से बन सके।
ज़रंज से जब हम आगे बढे तो बुध मज़हब वालो का इलाक़ा शुरू हो गया हम दोनों के पास उम्दा अरबी घोड़े थे। अगर हम चाहते तो एक एक दिन में काफी सफर कर सकते थे मगर हमें हर बस्ती हर गाँव हर क़स्बा और हर शहर में एक एक दो दो रोज़ ठहर कर बिमला और राबिआ का पता लगाना पड़ता था इसलिए हम तेज़ी से सफर नहीं कर सकते थे।
हमने अजरंज में क़याम किया। कई रोज़ ठहरने और जुस्तुजू करने के बाद हमें मालूम हुआ की बिमला यहाँ आती थी। उसके साथ राबिआ भी थी। राबिआ की तबियत कुछ खराब हो गयी थी। उसने कई दिन वहा रह कर उसका इलाज किया। यह भी मालूम हुआ की अजरंज के राजा ने बिमला से राबिआ को लेना चाहा लेकिन वह तैयार न हुई। और वहा से जल्दी ही रवाना हो गयी उसके वहा से जल्द चले जाने की यह वजह भी हुई की राजा अज़रंज बिमला पर फ़िदा हो गया था। वह उसे अपने महल में डालना चाहता था। बिमला खूब जानती थी की राजा कली कली का रस चूसने वाले भंवर की तरह नफ़्स के बन्दे और हवस का गुलाम होते है। आज जिस पर फ़िदा हुए उसे महल में डाला रानी बनाया और जब कल दूसरी पर फ़िदा हुए तो पहली को लोंडी बनाया और दूसरी को रानी बनाया। उससे उनकी हवस बढ़ती और नफ़्स ज़ोर करता रहता है वह वहा से रात को खिसक गयी।
हम दोनों अज़रंज से दादर की तरफ रवाना हुए। सर्दी का ज़माना शुरू हो गया हमें सर्दी ज़्यादा तकलीफ देने लगी। जो नकदी ज़रंज के बूढ़े ने दी थी वह काम आयी। हम दोनों ने दो पोस्तीन ख़रीदे उन्हें पहन कर सर्दी से अमांन पायी।
दादर के क़रीब वाले इलाक़ा को हमने अच्छी तरह से देखा। हमें मालूम हुआ की बिमला हर गाँव में ठहरती गयी थी। इसका पता इसलिए जल्द चल जाता था की वह कम्बख्त और पहाड़ी लड़कियों और औरतो से ज़्यादा हसीन और माहिर थी। जहा वह जाती लोग उस पर फ़िदा हो जाते।
जब हम दादर में आये तो पता लगा की बिमला यहाँ भी दो हफ्ते ठहरी थी। वहा से बसत चली गयी थी। हम बस्त में पहुंचे .वहा कुछ पता नहीं चला। हमें ख्याल हुआ की शायद वह यहाँ तक नहीं आयी और किसी गैर मारूफ बस्ती में जाकर रहने लगी है। हम वहा से लौटने का इरादा किया की एक रोज़ हमें शहर के बाहर दो आदमी लड़ते हुए मिले .वह हाथा पायी पर तैयार हो गए। हम दोनों ने उनमे बीच बचाओ कराया। उनसे लड़ने की वजह पूछी। उनमे से एक ने कहा एक औरत बिमला थी। मैं उस पर उस वक़्त से फ़िदा हु जब वह जवान हुई थी। वह कही गायब हो गयी थी .अचानक से यहाँ मुलाक़ात हो गयी। उसके एक लड़की हुई थी वह उसके साथ थी मालूम नहीं उसका शौहर मर गया था या उसे छोड़ गया था। वह मेरे पास रहने को रज़ा मंद हो गयी थी लेकिन यह बदमाश उसे अगवा करके ले गया।
दूसरे ने कहा ” उस औरत ने मुझे धोका दिया। यहाँ से जाबुल ले गयी और वहा जाकर गायब हो गयी “.
मैंने उन लोगों को बताया की वह औरत न मालूम कितने आदमियों को धोका दे चुकी है। मैं भी उसी का सताया हुआ हु और और उसकी तलाश में हु।
गरज़ मुझे यह मालूम हो गया की वह जाबुल चली गयी है। हम दोनों भी वही रवाना हो गए और जाबुल जा पहुंचे .वहा हमने उसे हर चंद तलाश करते रहे। जाबुल में कुछ लोग ऐसे थे जो मुसाफिरों के लिए सवारी का इंतेज़ाम कर दिया करते थे। हमने उनसे याराना गाँठा और बातो बातो में उनसे पता लगाया। एक अधेड़ उम्र के आदमी ने हमें बताया की वह उस औरत और उसके साथ जो लड़की थी उन दोनों को काबुल में पंहुचा आया है लेकिन उस औरत में मना कर दिया था की कि किसी को उसके यहाँ आने और यहाँ से चले जाने का हाल न बताये।
हम दोनों काबुल रवाना हो गए। जब काबुल के क़िला के सामने पहुंचे तो रात हो चुकी थी क़िला का फाटक बंद हो गया था। हमें बाहर ठहरना पड़ा। फ़सील के निचे एक दरख्त के साया में पत्थरो के पास हम पड़ गए घोड़े दरख्त की जड़ से बाँध दिए।
शायद एक तिहाई रात गयी थी की दो सवार आये। उन्होंने हमसे फासला पर घोड़े बांधे और फ़सील के निचे गए। चांदनी रात थी। चाँद आसमान में तैर रहा था। हम दोनों देख रहे थे। किसी फ़सील के ऊपर से कमन्द डाली। यह दोनों चिढ गए। हम समझ गए की कोई अहम मामला है। हमने उनके घोड़े वहा से दूर ले जाकर बाँध दिए।
थोड़ी देर में दोनों फ़सील से उतरे। एक गठरी सी उनके पास थी। उनमे से एक घोड़ो को लेने गया। जब वहा न मिले जहा वह छोड़ गए थे तो उसने जाकर कहा ” घोड़े भाग गए “
दूसरे ने कहा “भाग नहीं सकते। तुम तलाश करो। “
पहला फिर घोड़ो को तलाश करने चल दिया। हमने एक आवाज़ सुनी “ज़ालिमों ! क्यू मुझे तकलीफ दे रहे हो। ”
मैंने अबदुल्लाह से कहा ” यह कोई औरत है। “
अब्दुल्लाह : है चलो उसकी मदद करे।
हम दोनों दबे क़दमों चल कर उस आदमी के पास पहुंचे हमें देखते ही वह भाग निकला। हमने गठरी खोली उसमे एक सेम तन अठारा साला लड़की थी। संगीन निगाहो से हमें देखा। मैंने उसे तसल्ली दी और बताया की हम मुसाफिर है तुम्हे यहाँ लाने वाले भाग गए। “
उस लड़की ने बताया की वह वज़ीर आज़म काबुल की बेटी है। यह दोनों डाकू थे उसे चुरा लाये। वह हमारी बहुत ममनून हुई।
सुबह को हम उसे लेकर क़िला में दाखिल हुए। वह हमसे रास्ता ही में से अलग हो कर अपने मकान पर चली गयी। काबुल में मुसाफिरों से बड़ी बाज़ पर्स होती थी। हमसे भी हुई लेकिन किसी ने हमें वहा से निकाला नहीं।
एक रोज़ हम बाजार में जा रहे थे की शोर हुआ राजा की सवारी आरही है हम दोनों एक तरफ खड़े हो गए। पहले सवार गुज़रे फिर एक सवारी पर राजा आया उसके साथ राबिआ थी। मैं उसे देख कर बेचैन हो गया और पुकारा ” राबिआ राबिआ ” खैरियत हुई की मेरी आवाज़ बुलंद नहीं हुई। अब्दुल्लाह ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया। .राजा की सवारी चली गयी। भीड़ हट गयी। मालूम होता है की राबिआ को राजा ने ले लिया है अगर राजा को मालूम हो जाता की तुम उसके बाप हो तो सच में वह तुम्हे जासूस समझ कर मरवा डालता। “
मेरी समझ में भी यह बात आगयी ,मैं वक़्त का इंतज़ार करने लगा। कई महीने गुज़र गए लेकिन फिर राबिआ को देखना नसीब न हुआ। लोगो से दरयाफ्त करने पर मालूम हुआ की वह लड़की मतलब राबिआ राजा की बेटी है। मैं समझा की मैंने धोका खाया है।
लेकिन यह मसला एक दिन हल हो गया। हम दोनों काबुल के बाहर उस गार को देखने गए जो बड़ा मुक़द्दस समझा जाता है वहा वज़ीर ज़ादी मिल गयी। उसने हमें पहचान लिया वह इशारे से हमें एक तरफ ले गयी। और हमें कुछ जवाहरात दे कर कहा ” अपनी ज़ुबान बंद रखना। “
मैंने कहा ‘एक शर्त से। तुम यह बताओ की सुगमित्रा क्या वाक़्या राजा की बेटी है। ” उसने बताया राजा बे औलाद है। एक औरत बिमला उसकी लड़की थी। राजा ने उसे खरीद कर उसे बेटी बना लिया है। मैंने उसे अपना क़िस्सा सुनाया। उसने कहा अब तुम अपनी बेटी को सब्र करो। राजा उसे नहीं देगा और अगर अपनी ज़िन्दगी चाहते हो यहाँ से चले जाओ। “
जब मैंने इसरार करके उससे कहा की मैं उस लड़की के बगैर ज़िंदा नहीं रह सकता तब उसने कहा की दादर के धार में जो पेशवा है उसके पास चले जाओ। राजा उसका कहना मानते है। उसे रज़ामंद करलो। वह राजा से तुम्हारी बेटी दिला सकता है।
हम अगले ही दिन वहा से चले आये। दादर में पहुंचे और पेशवा से मिले हम पर उसका ऐसा रुअब पड़ा की उससे कुछ कह न सके। हम उसके शागिर्दो में दाखिल हो गए और तृतपक पढ़ने लगे। अब्दुल्लाह का दिल अचानक घबराने लगा। वह वहा से चले आये मैं वही रहा। मेरी क़द्र मन्ज़िलत बढ़ती रही। यहाँ तक की पेशवा के शागिर्दो में सबसे सबक़त ले गया।
कुछ अरसा के बाद पेशवा मर गया। लोगो ने मुझे पेशवा बना दिया। अगरचे मैं पेशवा हो गया था लेकिन मैंने कभी बुत के सामने सर झुका नहीं। यह मेरी दास्तान।
इल्यास : बड़ी अजीब दास्तान है।
राफे : मैंने मुख़्तसर के साथ क़िस्सा बयां किये है। अगर तफ्सील से ब्यान करता तो कई रोज़ में खत्म होते।
अब दिन छिप गया था। यह लोग मगरिब की नमाज़ तैयारी करने लगे
अगला पार्ट (राफे की रवानगी)








