Author: umeemasumaiyyafuzail@gmail.com

  • fatah kabul (islami tarikhi novel) part 11

     मर्ज़बान की  अदावत,,,,,,,,

                                               


      जासूसों का काफला जो  सौदागरों के भेस  में काबुल रवाना हुआ था। चार आदमीओ पर मुश्तमिल था। उनके नाम यह है  :सालेही ,अब्बास ,मसूद और इल्यास। इनमे सलेही  मेरा काफला थे। इस क़ाफ़ले में  सबसे कमसिन इल्यास थे। चुके पहाड़ी इलाक़े में  सफर करने का ख्याल था इसलिए  ऊँट साथ ले गए थे घोड़ो पर ही सामान तेजारत बार  किया गया और घोड़ो पर ही यह लोग सवार हुए। 

    • इन लोगो ने अपना मख़सूस अरबी लिबास पहना। वह  लिबास जो मुअज़्ज़ज़ अरब पहना करते थे। अवल शलवार उसमे ढीली आस्तीनों की अबा  जो  टखनों तक लम्बी थी। अबा पर चादर  सर पर  अमामा  अमामे  पर अरबी वज़ा का रुमाल और रुमाल  पर डोरिया बंधे हुए थे। पहलुओं में मियानो में तलवार लटक रही थी। हाथो में नेज़े थे। पेटी में खंजर थे। पुश्तों पर  ढाले पड़ी हुई थी। शानो पर कमाने थे। 
    • चारो तरफ एक धज थी। इल्यास चके नो उम्र व सब्ज़ा आगाज़ थे। खूबसूरत और वजीह थे। बुलंद क़ामत और मज़बूत जिस्म के थे। सीना चौड़ा था और और इसलिए वह उस लिबास में  बहुत ही अच्छे मालूम होते थे। उनकी तमन्ना यह थी के जिस तरह भी मुमकिन हो जल्द से जल्द काबुल में पहुंच जाये। उन्होंने अपनी इस ख्वाहिश का इज़हार अपने साथियो पर क्र दिया था। उनके साथिओ को उनके चाचा और उनके मंगेतर के हालात मालूम हो चुके थे उन्होंने उनकी आरज़ू के मुताबिक़ तेज़ी से सफर शुरू कर दिया। 
    • वह बसरा से रवाना हुए। ईरान में होकर काबुल पहुंच सकते थे। उन्होंने ईरान का रास्ता इख़्तियार किया। इराक और ईरान में चुके इस्लामी हुकूमत थी इसलिए  इन दोनों मुमालिक में उन्हें कोई अंदेशा नहीं था। वह बड़ी बेतकल्लुफी से सफर करके ईरान में दाखिल हो गए। 
    • ईरान का मुल्क मुसलमानो के क़ब्ज़े में नया नया आया था। २४ हिजरी ६४४  ईस्वी में फतह हुआ था। उस वक़्त तमाम ईरानी मुस्लमान नहु हुए थे। बहुत काम ईमान लाये थे। ज़्यदा तर लोग जज़ीए ऐडा करते थे। और अपने मज़हब पर क़ायम थे। वह जरतशी थे। आतिश परस्ती  उनका मसलक था। आग को मज़हर इलाही समझ कर उसकी पूजा करते थे। वह खुदा मानते थे  .एक याज़्दान दूसरा हरमन। याज़्दान को  खुदाये खैर समझते थे और अर्हमान को खुदाए शर  जानते थे। 
    •             ईरान के तमाम बड़े शहरो में  आतंकदे क़ायम थे। उन आतंकदो में हमेशा आग रोशन रहती थी। और ईरानी उस आग को सजदा करते रहते थे। 
    •            यह काफला  जब ईरान  के बड़े  शहरो  में से  गुज़रा तो लोग उन्हें सौदागर समझ कर उनके पास आये और  उनका माल खरीदना चाहा। लेकिन उन्होंने कह दिया के वह काबुल जा रहे है। उस माल की तिजारत वही  करंगे।  ईरान में भी पर्दा नहीं था। उन्हें उनके माल को देखने के लिए मर्द और औरते सब ही आते थे। वह जानते थे के अरब उसके हुक्मरान है। वह उनकी इज़्ज़त और अज़मत करते थे। 
    • लेकिन इल्यास को देख कर उनसे मुहब्ब्बत करने पर मजबूर हो जाते थे  .देर तक उनके पास रहते थे  ख़ुसूसन औरते ज़्यदा तर  या तो  इल्यास से बाते करती थी। उनके मुताल्लिक़ उनके  खानदान के बारे में  माल तिजारत के मामले में तरह ररह के सवालात करती। इल्यास बड़ी नरमी से उनहे जवाब देते। 
    •        औरते और लड़किया  या तो सलेही वगेरा से उन्हें ज़्यदा उम्र का समझ कर शर्माती थी और इल्यास को कमसिन समझ कर उनसे बाते करती थी  या उनकी वजाहत व सूरत देख कर उनसे  मानूस हो जाती थी। 
    •       इल्यास चाहते  थे के न उन्हें देखे न उनसे  बाते करे मगर जब वह उन्हें घेर लेती थी तो मजबूरन उनसे बाते करते  थे। उनमे बाज़ महविशे बड़ी बेबाक और शोख होती थी। बड़ी बेतकल्लुफी  से बात करती थी। 
    •                           एक रोज़ वह हमदान में मुक़ीम थे। एक ज़माना में हमदान ईरान का दारुल सल्तनत रह चूका था। काफी बड़ा शहर था। बहुत सी औरते शाम के वक़्त इस काफला में आयी उनमे कई निहायत हसीं और काफिर अदा थी। उन्होंने इल्यास के गिर्द घेर  डाल लिया  .उस वक़्त सलेही। अब्बास और मसूद वहा नहीं थे। कही गए हुए थे। यहाँ मुसलमानो ने छाओनी क़ायम की हुई थी। कुछ फ़ौज मौजूद थे। लेकिन यह फ़ौज शहर से  बहार रहती थी। और यह काफला शहर के बिलकुल क़रीब मुक़ीम हुआ था। यह लोग ईरानियों से मिल जल कर यह मालूम करना चाहते थे के काबुल वाले की लड़ाई की तयारी कर रहे है या नहीं। यही मालूम करने के लिए सही वगेरा शहर में गश्त लगाने गए थे और इल्यास तनहा था। 
    •                          एक  माह पारा  इल्यास  तलवार जो  मियान में पड़ी हुई थी हाथ लगा कर कहा :”इस तलवार से तुम क्या काम लेते हो ?
    •                        इल्यास ने मुस्कुरा कर कहा  :”जो काम बड़ी तलवार करती है वही यह भी करती है। 
    •           उस हसीना ने  माना ख़ेज़ निगाहो से देख और कहा :”क्या तुम तलवार  चलाना जानते हो ?
    • इल्यास :हमारी क़ौम की औरते भी तलवार चलना  जानती है। 
    • हसीना :औरतो को तो रहने दो मैं  तो तुम्हारी बात कर रही हु। 
    • इल्यास :मैं भी जनता हु। 
    • हसीना : मुझे यक़ीन नहीं आता। 
    • इल्यास :क्यू ?
    • हसीना : न मालूम क्यू। 
    • इल्यास : यह तो अच्छा ही है के तुम्हे यक़ीन न आये। 
    • इस पर तमाम महविशे हसने  लगी। थोड़ी देर के बाद सलेही  वगेरा आगये और हसीनो का झमगट वहा से रुखसत हो गया। 
    •                यह काफला ईरान को तये करके शहर ज़रनज में पंहुचा। यह शहर ईरान के इलाक़े में वाक़े था। किसी ज़माने में यहाँ का मर्ज़बान बादशाह ईरान का बज्गुज़ार था। जब ईरानी हुकूमत का तख्ता उल्टा गया  और यज़ीद गर्द शाह ईरान जो आखरी फ़रमानवा था  दुनिया से रुखसत हो गया तो  शहर ज़रनज  का वाली आज़ाद व खुद मुख़्तार हो गया। 
    •                इस काफला इस क़ाफ़ले ने शहर ज़रनज  में  क़याम किया। वहा के लोग बड़े सरकश मालूम हुए। उन्हें अरबो से अदावत व कदूरत पैदा हो गयी थी। इस अद्वैत की वजह यह थी के ईरानी हुकूमत  जो निहायत  पुरानी और ताक़तवर थी  अरबो ने ख़तम  कर डाली थी। इस शहर के तमाम लोग आतिश परस्त थे। ईरानी उनके हममजहब थे। उन्हें मलाल होना कुदरती बात थी। उन अरबो के साथ कुछ अच्छी तरह पेश नहीं आये। 
    •                  जब मर्ज़बान  को उनके आने की इत्तेला हुई  उसने उन्हें अपने सामने तलब किया। यह चारो अपने मख़सूस  लिबास में उनके सामने हाज़िर हुए। उसने देखा। वह इल्यास को देख कर चौंक पड़ा। उसने उन्हें अपने क़रीब बुलाया और कहा “मैंने शायद पहले कभी तुम्हे देखा होगा। 
    • इल्यास ने कहा  “मैं  बसरा में रहता हु। अगर आप वहा गए हों तो यक़ीन है देखा होगा। 
    • मर्ज़बान :मैं कभी बसरा नहीं गया  और बसरा क्या हमदान भी नहीं गया। कही और देखा है। तुम इस शहर में पहले कभी नहीं  आये। 
    • इल्यास :नहीं इस शहर में आने का पहला मौक़ा है। 
    •           मर्ज़बान कुछ सोचने लगे। उसने जल्दी से कहा “ओह याद  आगया मैंने तुम्हे ख्वाब में देखा था  चाँद रोज़ का अरसा हुआ जब मैंने एक खौफनाक ख्वाब देखा था।  इस ख्वाब का खुलासा है के मैंने देखा अरबो ने इस क़िले पर हमला कर दिया है मैं उनसे लड़ने के लिए  निकला। एक नौजवान ने मेरे रिसाला पर हमला किया। उसकी सूरत बिलकुल तुम्हारी तरह थी। 
    • इल्यास :ख्वाब का एतबार किया। अगर आप अरबो से छेड़खानी नहीं करंगे  तो अरब आपके मुल्क पर हरगिज़ हमलावर नहीं होंगे। 
    • मर्ज़बान :मुसलमानो ने ईरान पर हमला करके उसे तबाह कर दिया है। मेरे मुल्क पर हमला करते तो क्या खौफ हो सकता है। 
    • इल्यास : मुसलमानो ने किसी मुल्क पर बेवजह कभी हमला नहीं किया  ईरान पर हमला करने की वजह या थी के शाह ईरान के पास जब रसूल अल्लाह ने दावत इस्लामी भेजी तो उसने अजराह  तकब्बुर इस मुक़द्दस  दावत नामा को चाक कर डाला और अपने एक वाली को हुक्म दिया के वह रसूल अल्लाह को पकड़ लाये। यह वजह इस पर लश्कर कशी  की हुई। वह अपनी ज़ोर क़ूवत पर मगरूर था  खुदा ने उसके ज़ोर को तोड़ दिया। 
    • मर्ज़बान :कुछ भी हो मैं तुम लोगो से खुश नहीं हु। तुम्हारी क़ौम को बिलकुल पसंद नहीं करता। तुम्हे हुक्म देता हु इसी वक़्त यहाँ से चले जाओ वरना तुम्हे गिरफ्तार करके क़तल कर दिया जायेगा। 
    • इल्यास :इस वक़्त शाम हो रही है हम सुबह चले जायँगे। 
    • मर्ज़बान : सुबह नहीं। अभी।
    • इल्यास : हम छेड़ करना नहीं चाहते। सौदागर है अभी चले जायँगे। 
    •             यह लोग मर्ज़बान के पास से वापस आये और उसी वक़्त वहा से रवाना हो कर कई कोस के फैसला पर मैदान में जा ठहरे। 

                                                      अगला भाग (एक हमदर्द )

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  • fataha kabul (islami tarikhi novel) part 10

    जासूसों का काफला। ………

                           


                                इल्यास की माँ ने कहा  ” राफे चले गए। मैं उनकी वापसी का  इंतज़ार करने लगी  .दिनों से हफ्ते  से हफ्तों गुज़र गए महीनो से साल गुज़र गए लेकिन वह नहीं आये  .शुरू शुरू में तुम कभी राबिया को  और राफे को याद कर लेते थे। पूछने लगते थे  राबिया कहा गयी  राफे कहा गए  .मै ठंडा साँस  भर कर चुप हो जाती। और जब तुम ज़्यदा इसरार करने लगते के मैं कह देती दोनों मुल्क हिन्द गए है। तुम पूछते कब  आएंगे। मैं क्या जवाब देती। लेकिन बच्चे अपने हर सवाल का तसल्ली बख्श जवाब चाहा करते है। आखिर मैं कह देती  जब खुदा को मंज़ूर है आ जायँगे। इससे तुम्हारी तसल्ली तो न होती लेकिन तुम मान जाते। 

    • रफ्ता रफ्ता तुम उन दोनों को भूलने  लगे। मैंने तुम्हारी तालीम का बंदोबस्त किया। तुम उस शगल में लग गए। मै तुम्हारी तालीम व तरबियत में मसरूफ हो  कर उन दोनों को भूलने की कोशिश करने लगी। तुम बच्चे थे इसलिए तुम तो सब कुछ भूल गए। मगर मैं न भूल सकी। दोनों की याद कांटे की तरह खटकती रही। दीन तो खैर जो तो गुज़र जाता  लेकिन  रात मुश्किल से गुज़रती।  बिस्तर पर पड़ते ही राबिया राफे याद आजाते  घंटो पड़ी सोचा करती के न मालूम राबिया कहा होगी  किस हाल में होगी। राफे ज़िंदा है या मर गए। एक यह अजीब बात है के दिल इस बात को नहीं  मानता के इन दोनों  कोई मर गया। बल्कि यक़ीन है के दोनों ज़िंदा है 
    • बेटा !अगरचे इस वाक़ेया को पन्द्रा साल गुज़र गए है लेकिन अब तक नहीं भूली। मजूझे ऐसा मालूम होता है के जैसे छह महीने या साल भर गुज़रे है। तुम अलबत्ता भूल गए हो। यह है वह राज़ जो अब तक  मैं  तुमसे छुपाये   हुई थी। तुम्हारी मंगेतर और तुम्हारे चाचा काबुल गए है। मुझे यक़ीन है के दोनों वही है या तो राफे को राबिया का अभी तक पता चला या  नहीं मगर वह उसे हासिल करने पर क़ादिर नहीं  हुए है। इस फ़िक्र में हु के उसे काबू में करके ले आये। 
    • मैं तुम्हे इसीलिए काबुल भेजना चाहती हु के तुम वहा जाकर अपने चाचा और मंगेतर की भी सुराख़ रसानी करो। अगर तुम्हारी कोशिशों से वह दोनों या उनमे से कोई भी मिल जाये तो मुझे इत्मीनान व सुकून हासिल हो जाये  .या  मैं कह सकती हु बेटा के राबिया इस वक़्त रश्क हूर होगी। ऐसी हसीं जिसका दुनिया में जवाब न मिलेगा  .अगर वह औरत भी हाथ  आजाये जो उसे ले गयी है तो बहुत अच्छा हो। 
    • इल्यास: अगर वह हाथ आजाये और मैं उसे यहाँ ले  आऊं तो तुम उसके साथ क्या करोगी ?
    • अम्मी : मैं उससे इन्तेक़ाम लुंगी। उसने मेरे दिल को दुखाया है जिसने पन्द्रह साल मुझे बेचैन कर रख्हा है। मैं उसे बेचैन और तड़पते देखना चाहती हु। 
    • इल्यास : लेकिन अम्मी जान उसने जो कुछ किया दिल से मजबूर हो कर किया वह राबिया को प्यार करती थी। उसे ख्याल हुआ के वह राबिया से जुड़ा होकर रूहानी तकलीफ उठाएगी इसलिए वह उसे अपने साथ ले गयी। किसी बुरी निय्यत से तो उसने ऐसा नहीं किया?
    • अम्मी : मैं भी उससे ऐसा इन्तेक़ाम नहीं लेना चाहती हु जिससे उसे जिस्मानी अज़ीयत पहुंचे  बल्कि जिससे दर्द में मैं मुब्तिला हु  उसी में उसे देखना चाहती हु।
    • इल्यास : क्या खबर है के वह औरत ज़िंदा है या मर गयी। 
    • अम्मी : `मेरा ख्याल है के वह भी ज़रूर ज़िंदा होगी  उस वक़्त उसकी उम्र कुछ ज़्यदा नहीं थी। २५ साल की होगी अब उसकी उम्र ४० साल के क़रीब हुई होगी। 
    • इल्यास : जहा मैं  राबिया और राफे का सुराख़ लगाउंगा  वहा उसे भी तलाश करूंगा। लेकिन उसके चेहरे में कोई खास अलामत शनाख्त की हो। 
    • अम्मी : कोई खास बात मैंने उसके  चेहरे में नहीं  देखी थी। अलबत्ता उसकी सूरत बड़ी दिलकश थी। आंखे  बड़ी बड़ी थी। पेशानी के बिच में बिंदी  लगाती थी। 
    • इल्यास : अगर राबिया और राफे मिल गए तो शायद उसका भी पता चल जाये। 
    • अम्मी : और राफे के दोस्त  इबादुल्लाह का भी पता लगाओ। 
    • इल्यास : क्या इबादुल्लाह भी वापस नहीं आये ?
    • अम्मी : वह एक या डेढ़ साल बाद आये थे। उन्होंने बताया था के वह और राफे काबुल तक पहुंच गए थे। उस औरत का वहा तक सुराख़  लगाया था। राबिया भी उसके साथ थी लेकिन उसने राबिया को वहा नहीं देखा। 
    • इल्यास : क्यू उन्होंने घरो में घुस कर तलाश किया था। 
    • अम्मी : वहा घरो में घुसने की ज़रूरत नहीं बेटा। मालूम यह हुआ है के उस क़ौम में पर्दा नहीं है औरते बेनक़ाब और बेहिजाब और बाजार में आती जाती है। उन्होंने वहा की हर औरत और हर लड़की को देखा लेकिन न वह औरत मिली न राबिया। 
    • इल्यास :अम्मी ! क्या उस मुल्क में पर्दा का रिवाज नहीं है ?
    • अम्मी : बिलकुल नहीं। औरते और मर्द हर तक़रीब और हर मेला में और हर तेहवार में एक जगह जमा होते है कोई किसी से पर्दा नहीं करता। 
    • इल्यास :अजीब मुल्क है और अजीब लोग है। 
    • अम्मी : अब तो अम्मी जान मेरा यह दिल चाहता है के मैं उड़ कर काबुल  पहुंच जाऊं। 
    • अम्मी : एक बात ख्याल रखना बेटा  किसी औरत के दाम फरेब में न आना। सुना है वहा की हसीं लड़किया और खूबसूरत औरते मर्दो को  अपने जाल में  फाँस कर अपने मज़हब में दाखिल कर लेती है। 
    • इल्यास ; क्या कोई मुस्लमान बुतपरस्त  बन सकता है ?
    • अम्मी : जानती हु नहीं बन सकता। नौजवानी का जज़्बा दीवाना बना देता है। 
    • इल्यास : जवानी उन लोगो को दीवाना बना सकती है जो अपने मज़हब से वाक़फ़ियत न रखते हो। लेकिन जिन्हे मज़हब से वाक़फ़ियत  है। जो खुदा से डरते है  जो दीनवी ज़िन्दगी  को  चाँद रोज़ा जानते है वह हरगिज़ नहीं बिक सकते। 
    • अम्मी : तुम सच  कह रहे हो बेटा।  यह बात हमेशा याद रखना के शैतान इंसान की घात में लगा रहता है। वह उसे बहकाने  फुसलाने और गुनहगार बनाने में एड़ी छोटी का ज़ोर लगा देता है। दौलत की तमा सल्तनत की हवस इज़्ज़त की छह और  हुसन  की तलब  यह सब शैतानी तरकीबे है। जो उन में से किसी तरग़ीब में आज्ञा उसने दुनिया के लिए  दीन  को खो दिया। और जिसने दीन को मज़बूती से पकड़  रखा उसने सब कुछ पा लिया। 
    • इल्यास : मैं  इन सब नसीहतों पर अमल करूंगा अम्मी जान। 
    •               उसी रोज़ शाम के वक़्त अमीर अब्दुल्लाह बिन आमिर ने उन्हें  तलब किया। वह खुश खुश उनके पास पहुंचे। उस वक़्त अमीर के पास तीन आदमी बैठे थे। तीनो  अधेड़ उम्र के थे। इल्यास ने उनके पास जाकर सलाम किया। अमीर अब्दुल्लाह ने सलाम का जवाब  दे कर कहा :”आओ अज़ीज़ इल्यास बैठो। 
    •                इल्यास एक तरफ बैठ गया। अमीर ने कहा :”हमने चार आदमी काबुल जाने के लिए मुन्तख़ब किये है। तीन इस वक़्त यह हमारे पास बैठे है। एक तुम हो लेकिन तुम बहुत कमसिन हो हमारा  दिल नहीं चाहता के तुम्हे वहा भेजे। 
    • इल्यास : मैं  कमसिन ज़रूर हु लेकिन दिल का कमज़ोर नहीं हु। मैंने जिस वक़्त काबुल जाने की दरख्वास्त की अमीर की खिदमत  में पेश की थी उस वक़्त मुझे मालूम नहीं था के अम्मी मुझे वहा क्यू भेज रही है। मगर अब मुझे मालूम हो चूका है अरसा पंद्रह साल का हुआ जब  मेरी चाचा ज़ाद बहन को एक हिंदी औरत अगवा करके ले गयी थी। मेरे चाचा उसकी तलाश में गए। दोनों अब तक वापस नहीं आये। वहा जाकर मैं उन का  सुराख़ लगाऊंगा।
    •               अमीर को यह सुन कर बड़ा ताज्जुब हुआ। इल्यास ने उन्हें मुफ़स्सल दास्ताँ  सुनाई  .अमीर ने कहा :”तब तो ज़रूर जाओगे। यह तुम्हारी मदद  करंगे। यह लोग सौदागारो के भेस में जायँगे तुम भी उनके साथ रहोगे। सौदागरी करना और सुराख़ लगाना। तुम तैयार हो गए हो। 
    • इल्यास : जी हां मैं बिलकुल तैयार हु। 
    • अमीर : अच्छा तो कल तुम रवाना हो  जाओगे। गालिबन तुम तीनो को जानते होंगे। 
    • इल्यास : अच्छी तरह  जानता हु। उससे भी वाक़िफ़  यह सौदागर करते है। 
    • अमीर : इसलिए उन्हें भेजा जा रहा है। इतना अरसा इसी तलाश व जुस्तुजू में गुज़रा के किन चीज़ो की काबुल और वहा के शहरो में ज़रूरत होती है  उन ईरानी सौदागरों  से जो काबुल जाते रहते है  मालूमात हासिल करके गौरनमेंट इस्लामिया की तरफ से चीज़े खरीद दी गयी है। हमारी ख्वाहिश है के तुम लोग बड़े शहरो में एक जगह रहना। दिहात में दो दो चले जाना। लेकिन शाम को चारो एक जगह इकट्ठे हो जाया करना। अगर खुदा न  ख्वास्ता तुम में से कोई किसी आफत में मुब्तेला हो जाये तो बाक़ी लोग फ़ौरन वापस चले आये। 
    •             उन लोगो को अमीर ने रुखसत किया। दूसरे रोज़ यह मुख़्तसर काफला काबुल की तरफ रवाना हो गया। 

                                                      अगला भाग (मर्ज़बान की अदावत )




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  • fatah kabul (islami tarikhi novel) part 9

    •  गुमशुदगी ……. 

                                                                 इल्यास  की माँ जब यह क़िस्सा सुना रही थी तो उनका दिल भर आया था। वह सर झुका कर खामोश हो गयी। इल्यास ने उनकी तरफ देखा। वह बड़ी दिलचस्पी से वाक़ेयात सुन रहे थे। जो वह बयां कर रही थी। वह चाहते थे के जल्द  अज़ जल्द वह बयां करे के फिर क्या हुआ राबिया आयी या नहीं  उसे क्या हुआ। 

    • जब उनकी माँ को चुप बैठे देर हो गयी तो उन्होंने कहा “फिर क्या हुआ अम्मी जान ?
    • उन्होंने आहिस्ता से सर उठा कर इल्यास को देखा के उनकी आंखे नम है। वह बड़े मुतास्सिर हुए। “अम्मी जान  तुम्हारी तबियत  कैसी है। 
    • उन्होंने भर्रायी आवाज़ में कहा “अच्छी है बेटा मु झे ऐसा मालूम हो रहा है जैसे वह दिन आज ही है। वह वाक़ेआ आज ही गुज़रा है। जबकि उस वाक़ेया को गुज़रे चौदा साल हो गए  है। मैंने हर बरस और हर बरस का हर दिन हर दिन का हर पहर  गिन गिन कर और बड़ी तकलीफ से  काटा है। मई दुआ करती हु के अल्लाह तुम्हे जवान करे और तू मेरे दर्द दिल का मदावा करे। खुदा ने मेरी दुआ क़ुबूल की। माशाल्लाह तुम जवान हो गए। अब यह तुम्हारे हाथ में है के मेरे दिल की खलश को दूर करो। 
    • इल्यास :अम्मी जान !इंशाल्लाह मैं तुम्हरे दिल को सुकून देने के लिए अपनी जान देने से दरेग न करूँगा। 
    • अम्मी : तुमसे यही उम्मीद  है मेरे चाँद। हक़ीक़त यह है के तुम्हे इस काम में अपनी जान की बाज़ी लगानी होगी। 
    • इल्यास :मैं जान ही की बाज़ी लगा दूंगा। बयान करो अम्मी जान फिर क्या हुआ।            
    •                   अम्मी ने ठंडा सांस भरा और कहा  ” राबिया  की वापसी का इंतज़ार करने लगी। वक़्त गुज़रता रहा। न राबिया आयी न राफे आया  मेरी तशवीश बढ़ने लगी। जो जो वक़्त गुज़रता गया मेरी परेशानी बढ़ती जाती थी। अचानक मेरे दिल में  होक उठी और जी चाहा खूब चीख कर रोऊँ लेकिन मैंने ज़ब्त किया। 
    •                       उसके थोड़े ही देर के बाद राफे आये। सख्त परेशान और बदहवास आँखे गम और दर्द में डूबी हुई। पेशानी अर्क आलूद। होंटो पर पपड़िया जमी हुई उनकी यह हालत देख कर मेरा दिल धक् से हो गया। मई राबिया को भूल गयी। उनकी जाबो हाली देख कर उनकी फ़िक्र में गिरफ्तार हो गयी। मैंने जल्दी से कहा खैर है राफे तुम्हारी यह क्या हालत है। 
    •                   वह मेरे पास ा खड़े हुए और उन्होंने मरी हुई ज़बान से कहा “खैर नहीं है अम्मी। 
    • मैं :क्या हुआ। 
    • राफे :मई लूट गया मेरी अकल पर  पत्थर पड़ गए थे। 
    • मैं : खुदा के लिए कुछ तो कहो मेरा दिल  होल रहा है। 
    • राफे : क्या कहु वह दगाबाज़ हिंदी औरत यहाँ से चली गयी है। 
    • मैं  :चली गए कहा ?
    • राफे :खुदा  ही जनता है कहा गयी। 
    • मैं :और मेरी राबिया ?
    • राफे :बदबख्त उसे साथ ही ले गयी है। 
    •           इतना सुनते ही मेरा दिमाग चकराया। फिर मुझे कुछ खबर नहीं रही। मैं बेहोश हो गयी।  कितने आरसे बेहोश रही मैं  नहीं कह सकती। अलबत्ता जब मुझे होश आया और सोचने समझने के क़ाबिल हुई तो मुझे बतया गया  के  एक दिन और एक रात हो गए बेहोश हुए गुज़र गए है। मैं बहुत नहीफ हो गयी थी। मुझे यह भी मालूम न हुआ के राफे सारी सारी रात और तमाम दिन मेरे पास बैठे मेरी देख  भाल करते रहे कई कई तबीबों को दिखया  .जब तुम रोने लगे  तो मैं तसल्ली देते थे। 
    •              जब मुझे होश आया तो मैं  खली दिमाग थी। कोई बात मेरे ज़हन में नहीं थी। तुमने मुझे पुकारा। तुमसे मुझे इस क़दर मुहब्बत है के अगर तुम मेरी क़बर पर  भी खड़े हो कर पुकारो तो शायद मैं जवाब दू। मैंने तुम्हे देखा चाहा के तुम मुझ से लिपट जाओ। मेरे जज़्ब दिल ने तुम पर असर किया। तुम दौड़ कर मेरे पास आये और मुझ से लिपट गए। मेरे दिल को बाद सुकून हुआ। 
    •               लेकिन और भी ऐसी हस्ती थी जिससे मुझे ऐसी मुहब्बत थी जैसी तुमसे वह राबिया थी। फ़ौरन ही मुझे उसका ख्याल  आगया। वह भी मुझ से बहुत मुहब्बत करती थी। एक मर्तबा मुझे बुखार  आगया था और मुझ पर गफलत तारी हो गयी थी। मुझे राफे ने बताया था के राबिया आंधी रात तक पास बैठी  रोटी और मुझे पुकारती रही थी। बड़ी मुश्किल से राफे ने उसे तसल्ली दे कर सुलाया था। 
    •                होश में आने के बाद जब मैं  हवास में आयी और तुम मुझसे लिपट गए तो मुझे राबिया याद आयी। ताज्जुब हुआ के वह क्यू मेरे पास नहीं आयी। मैंने राफे से पूछा :राबिया नहीं आयी क्या ?
    •              राफे ने दूसरी तरफ मुँह फेर लिया। मैं समझी वह देख रहे है के राबिया क्यू नहीं आयी। मुझे बाद में मालूम हुआ के  उन्हें मेरे कहने से बड़ा सदमा हुआ था और उन्होंने दूसरी तरफ मुँह इसलिए फेर लिया था। के मैं उनके तासुररात को न देख सकू। 
    •             लेकिन बेटा तुमने मुझे हक़ीक़त से आगाह कर दिया। तुमने कह दिया के राबिया को तो हिंदी औरत ले गयी। तुम्हारे यह कहते ही मेरे दिमाग के परदे खुल गए। मुझे याद आगया के राफे ने आकर कहा था  के हिंदी औरत राबिया को ले गयी। फिर बी मुझे सन्नाटा सा तारी हो गया और मेरी हालत फिर बिगड़ने लगी। राफे ने देख लिया  उन्होंने मेरी तसल्ली के लिए कहा “उस हिंदी औरत को राबिया से बड़ी मुहब्बत है। और उसे सैर करने ले गयी है। 
    •         मुझे इन्तेहाई यास में उम्मीद की झलक नज़र आयी। मैंने उनकी तरफ देख कर कहा “क्या कुछ पता लग गया है  ?
    • उन्होंने  कहा : इंशाल्लाह राबिया तुम्हारे पास आजायेगी। 
    •           मैं उस रोज़ उठने क़ाबिल न हो  सकी  दूसरे रोज़ कुछ तवानाई उठाया लेकिन कमज़ोरी  की वजह से उठ न सकी।  राफे मेरी बड़ी दिलदहि और खिदमत कर रहे थे। यूँ तो मोहल्ला की तमाम औरते  और सब रिश्तेदार मेरे पास आते जाते रहते  और  रात  दिन खिदमत करते थे मगर हक़ीक़ी खिदमत राफे ने की। 
    •             आठ दस दिन के बाद मैं बहुत हद तक तंदुरुस्त हो गयी। जब कभी मुझे राबिया याद आजाती  मेरा दिल  तिलमिला जाता। मगर मैं ज़ब्त करती। क्यू के मैं देख रही थी के राफे को भी बड़ा सदमा  है। खुदा ने एक हूर अता की थी। हमने उसे अपने हाथो से खो दिया था  घर में दो ही बच्चे थे  एक तुम और राबिया।  तुम दोनों से घर की रौनक थी  रौशनी थी फरहत थी  राबिया चली गयी  घर की रौनक आधी रह  गयी थी। रौशनी फीकी पद गयी थी। 
    •                जी चाहता था के मैं राफे मलामत करू। क्यू वह हिंदी  औरत के पीछे अंधे हो गए थे। क्यू उन्होंने उस नागिन को खूबसूरत  परिंदा समझा था क्यू राबिया को उसके पास ले गए थे। क्यू उसके पास छोड़  आये थे। लेकिन वह इस क़दर गम ज़दा और परेशान रहते थे  के उन्हें मलामत करने की हिम्मत न होती थी। मगर शायद उन्होंने मेरे ख़यालात मेरी नज़रो से भांप लिया था। 
    •             एक रोज़ वह मेरे पास  आये उन्होंने कहा “अम्मी मैं वाक़िफ़ हु के तुम राबिया से इल्यास से बढ़  कर मुहब्बत करती हो। अपनी औलाद से चाहतीहो। उसकी गुमशुदगी ने तुम्हारी जान ही लेनी चाही थी। लेकिन खुदा ने रहम किया और तुम बच गयी। मैं यह भी जनता हु के तुम मुझे क़ुसूर वॉर समझती हो। तुम्हारी आंखे मलामत कर रही है। मुझे एतराफ़ है के क़ुसूर मैंने ही किया है न मैं  राबिया को उस मक्कार औरत के पास छोड़  आता न वह उसे लेजाती न तुम्हारी दुनिये मुहब्बत ताराज होती। तुम्हारी मसर्रत को मैंने लूटा है। तुम्हारी सेहत को मैंने गहन लगाया है। इंशाल्लाह मै ही  तुम्हारी मसर्रत और सेहत को वापस लाऊंगा। इजाज़त दो के मैं  रबिया को वापस लेने रवाना हो जाऊ। 
    •          बेटा ! मेरी तो यह वाली आरज़ू थी के कोई राबिया को ढूंढ कर लाये। लेकिन मैं जानती थी के वह दुनियाए इस्लाम में नहीं  है बल्कि ऐसे मुल्क में चली गयी  जी इस मुल्क से भी जिसमे हम रहते है  बहुत बड़ा है  बस्ते  है जो बुतपरस्त है। जिसमे नेज़ इस्लाम ने ज़ियाबाज़ी नहीं की है। उनके मशरत अलग है। मज़हब अलग है। उन्हें मुसलमानो से कोई हमदर्दी नहीं है। ऐसे मुल्क और ऐसे लोगो में  राफे को कैसे  जाने की इजाज़त दे देती। चुनांचा मैंने कहा :”इस मुल्क की जिसके मुताल्लिक़ हमें कुछ भी मालूम नहीं है तुम या कोई मुस्लमान  कभी नहीं गए। न रास्तो से वाक़िफ़ हो  न मालूम वहा के लोग तुम्हारे साथ किस तरह  पेश आये। इसलिए तुम्हारा वहा जाना मुनासिब नहीं मालूम होता। 
    • राफे : मैं किसी बात से नहीं घबराता। मुस्लमान हु। मुसलमान घबराता नहीं। राबिया के मुहब्बत ने मेरे दिल में में तड़प पैदा करदी है औलाद की आग बुरी होती है। फिर तुमने उसे ही नहीं मुझे भी  पाला है। तुम्हारे दिल को जो सदमा पंहुचा है। उसे मैं भी समझता हु। मुझे इजाज़त दो और दुआ करो के रब्बुल आलमीन मुझे कामयाब और सरखरो वापस  लाये। 
    •        मैंने  उन्हें हर चाँद समझाया। नशेब व फ़राज़ दिखाए लेकिन वह बज़िद रहे आखिर मैंने उन्हें इजाज़त दे दी। वह बहुत खुश हुए। उन्होंने उस रोज़ से लम्बे सफर की तैयारी शरू करदी। उनके एक दोस्त थे इबादुल्लाह  वह भी उनके साथ जाने को तैयार हो गए। 
    •       चुके राफे को तुमसे भी बड़ी मुहब्बत थी और वह नामालूम मुद्दत के लिए तुम से  जुदा  हो रहे थेइसलिये जब तक  तैयारी में मसरूफ रहे रोज़ाना तुम्हारे लिए अच्छी अच्छी खाने पीने की चीज़े लाते रहे। तुम्हे ताज्जुब हो रहा था। लेकिन मैं समझ रही थी। 
    •    आखिर वह जुमे के रोज़ नमाज़ पढ़ कर रुखसत हुए। और मैंने उनकी सलामती और बा मुराद आने की दुआ मांगी 


                                           अगला भाग  (जासूसों का काफला )



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  • fatah kabul (islami tarikhi novel) part 8

     लाबत चीन। ……. 

                                          

                             

                 इल्यास  की माँ ने कहा “बेटा  वह औरत कुछ ऐसा हुस्न  और ऐसी शान रखती थी के जो उससे एक बार बात कर लेता था उसका  ग्रोवेदा बन जाता था। उसकी आवाज़ निहायत दिलकश और निहायत  प्यारा था। शायद उसी वजह से  वह मुबल्लिग़ बना कर भेजी गयी थी। वह राबिया को बहुत पसंद करती थी। राबिया भी उससे  मानुस हो गयी थी। और ऐसी मानुस के उसके आने का इंतज़ार किया करती थी। 

    • एक रोज़ जब वह आयी तो उसने राबिया से  कहा “भाई चीनी की गुड़िया तुम हमें बहुत अच्छी मालूम होती हो। 
    • वह :क्या तुम मुल्क हिन्द जाना पसंद करोगी। 
    • राबिया :अम्मी जान भी चलेंगी।
    •           इल्यास की माँ ने कहा :”मुझे बेटा तुम और राबिया अम्मी जान ही कहते थे। तुम्हारी देखा देखि  मोहल्ला और सारे बच्चे भी अम्मी जान ही कहते थे। यहाँ तक के राफे भी अम्मी जान ही कहने लगे थे  गोया मेरा लक़ब ही अम्मी जान हो गया था। उस औरत ने कहा  “यह बात तुम अपनी अम्मी जान से पूछो। “
    • रबिए :तुम पूछ लो। 
    • वह :नहीं तुम ही पूछो। 
    •     राबिया ने मुझ से कहा :मुल्क हिन्द में चलोगी अम्मी जान। 
    •  मैंने कहा  बेटी !उस मुल्क में  सर्दी बहुत होती है। मैं और तुम वहा की सर्दी  बर्दाश्त न कर सकेंगे। 
    • औरत ने कहा :हां हमारे मुल्क में सर्दी  ज़्यदा होती  है लेकिन सर्दी से बचने के लिए गरम खुशनुमा कपडे होते है। उन्हें पहन कर सर्दी बिलकुल ही मालूम नहीं होती है। उस मुल्क का सब्ज़ा शेरे  पानी के  चश्मे  ,अंगूर ,सेब। सारदा,किशमिश ,बादाम ,पिस्ता यह सब फल और मेवे  खाने को मिलते है। उन्हें खाने से भी सर्दी मालूम नहीं होती और  बहुत कवि हो जाता है सेहत भी बहुत अच्छी हो जाती  है। और चीनी की गुड़िया जब तू यह चीज़े खायेगी तू और भी खूबसूरत मालूम होगी सफ़ेद सुर्खी झलकने लगेगी। 
    • राबिया बड़े शौक़ से उसकी बाते सुन रही थी। उसने कहा “जब तू और हम मुल्क हिन्द में चलेंगे। 
    • कुछ देर और बाटे करके वह औरत चली गयी।  बातो से मालूम हुआ के उसे हिन्द देखने का बड़ा शौक़ हो गया है। चुनांचा उसने उसी रोज़ या उसके दूसरे दिन  मौक़ा पाकर तुमसे बाटे की। तुम दोनों  को खबर नहीं थी के मैं भी पास बैठी  तुम्हारी बाते सुन रही हु। 
    • उसने तुमसे कहा :”वह हिंदी बोलने वाली औरत है न। 
    • तुमने कहा : हां। 
    • राबिया : वह हिंदी की बड़ी तारीफ करती है। वहा मज़ेदार फल और मेवे  होते है। सब्ज़ा और फुलवारी कसरत से है। सर्दी के ज़माने में खुशनुमा लिवास पहनते है  वहा चलोगे। “
    • तुमने कहा :नहीं। 
    • राबिया ने हैरत भरी निगाहो से  तुम्हे देख कर कहा  नहीं क्यू। 
    • तुमने कहा :इसलिए वहा के लोग कुछ अच्छे नहीं है। 
    • राबिया ने जल्दी से कहा “लेकिनयह औरत जो हमारे यहाँ आयी है  बड़ी अच्छी है। 
    • तुम :मुझे वह औरत ही बहुत बुरी मालूम होती है। 
    • रबिए :आखिर क्यू। 
    • तुम :खबर नहीं। 
    • राबिया हंस पड़ी  वाह  वाह औरत बुरी मालूम होती है। लेकिन यह खबर नहीं क्यू। 
    • तुम :उससे बाते न किया करो। 
    • राबिया : क्या बुराई है ?
    • तुम : बस यह समझ लो के वह औरत बहुत बुरी है। 
    • रबिए को कुछ नागवार हुआ। उसने कहा “वह बुरी क्यू है आखिर उसमे क्या बुराई देखि तुमने। 
    • तुम : मेरा दिल कहता है। 
    • राबिया :तुम्हारा दिल ही बुरा है। 
    • तुम : कैसे? 
    • राबिया :वह एक औरत को बुरा समझ रहा है। 
    • तुम : राबिया मुझे वह औरत इसलिए बुरी मालूम होती है के जब से घर में आयी है तुम्हे अपने पास बिठाये  रखती है  
    • राबिया :वह मुझे लबत चीन कहती है। 
    • तुम : वह ज़रूर तुम्हे नज़र लगा देगी। 
    •           राबिया हंस पड़ी। इतने में राफे आगये। उन्होंने मेरे पास आकर कहा “रात से उस हिंदी औरत को बुखार आगया है । उसने राबिया को बुलाया है। 
    • मैंने कहा  “ले जाओ वह उसी बहुत मुहब्बत करती है। 
    • उन्होंने रबिए को बुलाया। मैंने उसे कपडे पहनाये। वह कपडे जो उसे बहुत पसंद थे। काश मैं उसे उस रोज़ न जाने देती। मगर षड़्नी टाला नहीं करती। मेरा दिल चाहता था के  मैं उसे खूब  स्वारू। मैंने उस का खूब बनाओ सिगांर किया। चश्म बद्दूर वह हूर की बच्ची मालूम होने लगी। तुम भी पास खड़े थे जब मैं उस  तैयार कर चुकी तो उसने मुझे अदब से सलाम किया। मैंने उसे गले से लगा लिया। तुम उसे बेतहाशा  देखे जा रहे थे। उसने तुम्हारी तरफ देखा और शर्मा गयी। 
    • राफे ने उसकी ऊँगली पकड़ ली और ले चले मैं ख़ुशी ख़ुशी उसे देख रही थी तुमने मेरी तरफ  देख कर कहा। न जाने दो  उसे अम्मी जान “
    • न मालूम क्यू तुम्हारे यह कहते ही मेरे दिल पर चोट सी लगी। और जी चाहा के  मैं राफे को आवाज़  देकर राबिया को रोक लू। लेकिन फ़ौरन ही ख्याल हुआ के हिंदी औरत बीमार है। उसने बुलाया है  थोड़ी ही देर में आजायेगी। मैंने तुम से कहा जाने दो बेटा  अभी आजायेगी। अगर ऐसा  है तो तुम भी उसके साथ चले जाओ। तुम कुछ सोचने लगे फिर बोले “मैं क्यू जाऊ किसी ने मुझे बुलाया थोड़ी है। 
    • मैंने कहा :अच्छा न जाओ। राबिया ज़रा सी देर में आजायेगी। 
    • तुम वह से ताल गए। शायद बगीचे में चले गए। उस वक़्त ज़ुहर का वक़्त तंग हो चूका था। और असर का वक़्त शुरू हो  चूका था। थोड़ी ही देर में असर  की अज़ान हुई। मैने वज़ू किया  नमाज़ पढ़ी। जब दुआ मांगने के हाथ उठाये तो मेरा दिल कुछ बेचैन हो गया। राबिया को याद करके भर आया  .मैंने उसकी सलामती की दुआ मांगी। और उसकी वापसी का इंतज़ार करने लगी। 
    •           दिन  छिप गया राफे रबिए को लेकर नहीं आये। मुझे बड़ा फ़िक्र हुआ। तुम्हे फ़िक्र नहीं गुस्सा था। शायद यह गुस्सा के बगैर तुम्हारी इजाज़त के राबिया चली गयी। तुमने खाना खा लिया लेकिन मैं न खा सकीय। यहाँ तक के काफी रात आगयी। रात चांदनी थी। चाँद निकल आया था और नूर की बारिश  कर रहा था। आसमान और ज़मीन दोनों रोशन हो रहे थे। तुम कुछ देर इंतज़ार करके सो रहे थे। मैंने ेशा की नमाज़ पढ़ी। इधर मैं नमाज़ से फारिग हुई उधर किसी के आने का खटका हुआ। मैंने सर उठा कर देखा राफे तनहा आरहे थे। मेरा दिल धक् से हो गया। जब वह मेरे पास आये तो मेरी ज़बान से बेसाख्ता निकला मेरी बच्ची कहा है ?
    • राफे इत्मीनान से मेरे पास बैठे। और कहा खबराओ नहीं राबिया को हिंदी औरत ने अपने पास रोक लिया है 
    • मैं :क्या उसकी तबियत अभी तक ख़राब है ?
    • राफे :नहीं अब अच्छी है। 
    • मैं :फिर तुम राबिया को क्यू नहीं लेते आये। 
    • राफे : वह ज़िद करने लगी के उसे यही छोड़ जाओ। मैं छोड़ आया। कोई फ़िक्र की बात नहीं है। सुबह सवेरे  ले आऊंगा। 
    • मैं  : मैंने उसकी वजह से अभी तक खाना नहीं खाया। 
    • राफे : अब खा लो मैं भी खाऊंगा। 
    •      मैंने  और राफे ने  खाना खाया  और अपने बिस्तरों में  चले गए। राफे की तो मुझे खबर नहीं के वह जागते रहे या सो गए। लेकिन मैं न सो सकीय। शुरू रात में तो कुछ परेशानी सी रही और जो जो रात ज़्यदा आती गयी परेशानी एक अजीब करब और इज़्तेराब में बदलती गई  खुद को तसल्ली देती लेकिन इज़्तेराब काम होने के बजाये और बढ़ता गया। पिछली रात को शायद कुछ देर के लिए आंख लग गयी थी। जब आंख खुली तो फजर की अज़ान हो रही थी। मैं जल्दी से उठी  और राफे भी उठ चुके थे  वह नमाज़ पढ़ें मस्जिद में चले गए मैंने उठ कर नमाज़ पढ़ी  थोड़ी देर में राफे आये तुम भी उठ चुके थे। मैंने उनसे कहा जल्दी जा कर राबिया को लेकर आओ। 
    • उन्होंने मुस्कुरा कर कहा : राबिया की एक गैर हाज़री ने तुम्हे  इस  क़द्र परेशान कर दिया है ज़रा दिन चढ़ जाये मैं ले आऊंगा। 
    •   मैं  समझ गयी वह बगैर नाश्ता किये जाना नहीं चाहते। मैंने जल्दी जल्दी नाश्ता त्यार करके उन्हें और तुम्हे खिलाया और राफे से कहा ” लो जाओ और राबिया को लेके आओ। 
    • राफे मेरे कहने से चले गए और मैं  बड़ी बेसब्री   से उसके आने का इंतज़ार करने लगी। 


    •                              अगला भाग   (गुमशुदगी ) 



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  • fatah kabul (islami tarikhi novel) part 7

     गौतम बुध। .. 

    • इल्यास की अम्मी ने कहना शुरू किया। “उस औरत ने बयान किया के गौतम बुध ने हिन्दुओ की तमाम किताबे गौर से पढ़ी। ख़ुसूसन दर्शन शास्त्र लेकिन उन किताबो के पढ़ने से उनकी तसल्ली नहीं हुई। वह बचपन ही से हर बात को सोचने और समझने की कोशिश करते थे। जों जों उनकी उम्र और उम्र के साथ साथ इल्म पढता किया उनके गौर व फ़िक्र करने की सलाहियत भी बढ़ती गयी। 
    • जब वह जवान हुए और उन्होंने देखा के बाज़ इंसान खुश हाल है बाज़ मालदार है। बाज़ हुक्मरान है। यह लोग खूब ऐश व इशरत करते बड़े आराम से ज़िन्दगी गुज़ारते है। लेकिन ज़्यदा तर लोग गरीब है। मज़दूर है। रात दिन मेहनत करते है। और फिर भी अपना और अपने अहल व अयाल का पेट नहीं पाल सकते। आये दिन बीमार और रोगी रहते है। बड़ी तकलीफ और मुसीबत से दिन गुज़ारते है तो उनकी तकलीफो और मुसीबतो को देख कर वह प्रगंडा रहने लगे। उनका ख्याल और भी पुख्ता होता चला गया के इंसान ने पिछले जन्म में अच्छे और बुरे जो अमाल किये उनके मुताबिक़ उस जन्म में राहत और तकलीफ प् रहा है। उससे वह और भी गौर व फ़िक्र में मुब्तिला रहने लगे। 
    • इल्यास :लेकिन अम्मी जान उन्होंने यही क्यू सोचा के लोग पिछले जन्म के आमाल के नतीजा में आराम या तकलीफ उठा रहे है। क्या उस वक़्त जब दुनिया पैदा हुई सब ही अमीर और मालदार थे। 
    • अम्मी :उस औरत का अक़ीदा यही था। 
    • इल्यास :मगर वह ज़माना अगर वह ज़मान ऐसा था तो बहुत ही बुरा ज़माना होगा। क्यू के जब सब लोग अमीर थे उनका काम कोण करता होगा और अगर हर काम खुद ही करता होगा तो उन्हें आजकल सा ऐश आराम हासिल न होगा। उस ज़माने में सब ही गरीब होंगे और वह एक दूसरे के काम करते रहते होंगे। 
    • अम्मी :चुके मैं उनकी बातो को लयेनि और फ़ुज़ूल समझी इसलिए मैंने उससे इसके मुताल्लिक़ ज़्यदा गुफ्तुगू नहीं की वरना यह मसला ऐसा है के कट जजती हो ला जवाब हो सकता है। 
    •          गरज़ गौतम बुध के गौर व खोज की हालत दिन ब दिन बढ़ती गयी। वो अक्सर औक़ात सर झुकाये सोचते रहते और अक्सर ठंडा साँस भर कर कहने लगते। क्या किसी तरीक़ा से इंसान दीनवी तकलीफ से आज़ाद हो सकता है। 
    •                 जब उनकी  उम्र ३० साल की हुई तो एक रात को उनपर कुछ ऐसी हालत तारी हुई के राज पाट और अज़ीज़ व अक़ारिब सब को घर छोड़ कर घर को खैर बाद कहा और जंगल में निकल गए वहा वह दुनिया और दुनिया वालो में दूर रह कर रियाज़त करने लगे। वह निजात का रास्ता तलाश कर रहे थे। उन्होंने वेदो का मुताला किया। मगर उनमे उन्हें कोई बात ऐसी नज़र न आयी है जिसे इख़्तियार करके वह निजात हासिल कर सके। चुनांचा उन्होंने वेदो को इल्हामी किताब मैंने से इंकार कर दिया। फिर उन्होंने दर्शन किताबो को खूब पढ़ा। मगर उनसे भी दिली तस्कीन नहीं हुई। उन्होंने सोचा के खाने पीने से नफ़्स बढ़ता है। ख्वाहिशे बढ़ती है। और ख्वाहिशो के बढ़ने से इंसान बुरे काम करने लगता है। अगर इंसान खाना पीना छोड़ दे तो नफ़्स सर कशी न करे तो ख्वाहिश पैदा न हो। और जब ख्वाहिश पैदा न हो न हो तो इंसान बुरे काम न करे। जब बुरे काम ही न करे तो अगले जन्म में तकलीफ और मुसीबते ही न उठाये। 
    •                 चुनांचा उन्होंने खाना तर्क कर दी। फल वगेरा कहते और कुछ पी लेते छह साल उन्होंने इसी तरह बसर किये लेकिन इस नफ़्स कशी और तर्क खाना से भी कुछ न हुआ। बावजूद ज़बरदस्त रियाज़त करने के बाद उनकी मतलब बरारी न हुई। 
    • इल्यास ; अम्मी जान वह रियाज़त किया करते थे ?
    • अम्मी :उन बातो को सुनने से जो ख़यालात तुम्हारे दिल में पैदा हो रहे है वही मेरे दिल में पैदा होते रहे थे और मैं उस औरत से से सवालात करती रहती थी। वह कहती थी के उनका तप यानि रियाज़त यह थी के वह चार जानो बैठ जाते। आंखे बंद कर लेते और हाथ नाफ के ऊपर उस तरह रख लेते जिस से पुतलिया की तरफ रहती और किसी धयान में मुब्तिला हुए जाते घंटो इसी तरह बैठे रहते। 
    •  इल्यास :शायद इसी तरह खुदा की इबादत किया करते थे। 
    • अम्मी :खुदा के तो वह क़ायल ही न थे। मैं तो यह समझती हु के इस तरह बैठ कर वह सोचा करते थे के इंसान की तकलीफे किस तरह दूर हो हो सकती है। 
    •                 जब इस तरह मुद्दत गुज़र गयी और उन्हें कोई बात हासिल न हुईं तो वह गया में चले गए। और वहा एक दरख्त के साया में समाधि लगा कर बैठ गए। अरसा तक बैठे रहे। दफ्तन  उनका दिल रोशन हो गया उन पर हक़ीक़त खुल गयी। क़ुदरत का जो राज़ वह खोलने के दरपे थे वह खुल गया। शायद उन्हें इल्हाम हुआ के जिसको तकलीफ देने और ख़ेज़ा को तर्क करने से कोई फायदा नहीं है। बल्कि अगर इंसान अगर पाकीज़ा ख्याल साफ़ दिल और तमाम जानदारों पर रहम करने वाला हो तो निजात पा सकता है उन्हें यह यक़ीन हो गया के सच्चाई रहम और दिल की सफाई निजात के असली ज़राये है। 
    •                       चुनांचा  उन्होंने समाधि छोड़ दी। गौर व फ़िक्र करना तर्क कर दिया। और एक नए मज़हब की तब्लीग शुरू करदी। उनका मसलक यही था  की सफाई करो। सच बोलो और हर जानदार पर रहम करो। यह जानदार पहले तुम्हारी तरह इंसान थे। अपने बुरे आमालो की सजा में जानवर और दूसरे जानदार बन गए है। उन्हें न मारो। न सताओ वर्ना तुम भी उनके ही जॉन में आओगे और जिस तरह तुम आज उन्हें सताओगे उसी तरह कल तुम सताये जाओगे। उन्होंने नरवान पर बड़ा ज़ोर दिया बल्कि सच पूछो तो उनके मज़हब का दारोमदार ही नरवान पर था। 
    • इल्यास :नरवान किसे कहते है ?
    • अम्मी :नरवान उसे कहते है के इंसान अपनी जान को पाकीज़ा बना कर दुनिया की तमाम लज़्ज़तो और ऐश व राहत की ख्वाहिशो को तर्क कर दे। अगर नरवान हासिल हो जाये तो इंसान बार बार पैदा होने और मरने के जंजाल से छूट जाये। जब तक नरवान हासिल न हो उस वक़्त तक इंसान कभी अवागोन के चक्क्र से नहीं  निकल सकता। 
    •                           बुध का ख्याल था के दुनिया की ज़िन्दगी तकलीफो और मुसीबतो से भरी  और नफ़्स की ख्वाहिशो ही आदमी को अवागोन के जाल में फंसा देती है। इंसान उसी वक़्त नरवान प् सकता है जबकि उसे किसी क़िस्म की ख्वाहिश न रहे बल्कि ख्वाहिश का मिलान भी न रहे। 
    • खुदा की हस्ती के वह इसलिए क़ायल न थे के रूह और मादा को अब्दी और अज़ली समझते थे उनका अक़ीदा था के किसी चीज़ को कोई पैदा नहीं करता बल्कि खुद बखुद पैदा हो जाती है। और हर चीज़ जो पैदा होती है वह एक रोज़ खुद ही मर जाती है। उन्होंने ज़ात पात की तमीज भी उड़ा दी थी। कहते थे हर शख्स ख़्वाह वह किसी ज़ात का क्यू न हो नरवान हासिल करके निजात पा सकता है।  
    •                               उन्होंने अपने मज़हब के दो वसूल क़ायम किये है एक नरवान और दूसरा अहिंसा। मतलब किसी जानदार को सताना। उन्होंने यह भी बताया था के नरवान आठ तरीक़ो पर अमल करने से हासिल होता है। १)सही नज़र यानि किसी चीज़ पर बुरी नज़र न डाली जाये। बुरी नज़र से ही बुरी ख्वाहिश पैदा होती है। २)सही इरादा यानि इरादा में बुख्तगी होनी चाहिए जिन बातो को करने का इरादा करे उन पर अटल रहे। ३)सच बोलना। ४)दुरुस्त किरदार यानि चाल चलन अच्छा रखे आवारगी इख़्तियार न करे। ५)हलाल की। ६)सही वर्ज़िश। ७)ठीक याददाश्त। ८)सच्चा धयान उनका क़ौल था के नरवान हासिल करना हमारे अमाल पर मुंहजिर है। और नरवान हासिल करके हम निजात पा सकते है। 
    •                       गौतम बुध ने सबसे ज़यादा नरवान पर ज़ोर दिया था। नरवान हासिल करने के लिए जान को पाक बनाना ज़रूरी था। और जान को पाक बनाने के लिए तमाम बुरी बातो से परहेज़ करना ज़रूरी था। चोरी और बदकारी से बचना। दुसरो की बुराई न करना। किसी से नफरत न करना। बुरे अलफाज़ न निकलना ,जिहालत से दूर रहना। 
    •               चुके बुध के मज़हबी उसूल हिन्द वालो के मज़हब मिलते जुलते थे इसलिए लोग उनके मज़हब में दाखिल होने लगे। मगर बरह्मणो ने उनकी सख्त मुखालिफत की। उनकी मुखालिफत की वजह यह थी के हिन्द में बरह्मनो ने चार जाते ब्राह्मण,छत्री ,वेश और शूद्र क़ायम की थी। ब्राह्मण मज़हबी रहनुमा थे। छतरी हुकूमत करते थे। वेश तिजारत और लेन देन का काम करते थे और शूद्र सबकी खिदमत करते थे। 
    •                         गौतम बुध ने उनकी ज़ात पात की बंदिशों को दूर कर दिया। ब्रह्मणो को यह बात नागवार गुज़री उन्होंने बुध की मुखालिफत की लेकिन फिर भी बुध का मज़हब फैलता गया। बहुत से सेठ साहूकार राजा महाराजा बुध के मज़हब में दाखिल हो गए। यहाँ तक के खुद उनका बाप भी ुका पेरुकार बन गया। और उनके तमाम खानदान ने उनका मज़हब इख़्तियार कर लिया। 
    •                 बुध ने ताप्ती और गंधातक दरियाओं के संगम पर तरबीनी घाट के नज़दीक कृषि नगर नामी मुक़ाम पर वफ़ात पायी। 
    •                    बुध मज़हब और गौतम बुध के हालात उस औरत ने बड़ी देर में बयां किये थे मेने मुख़्तसर तुम्हे सुनाये है 
                                                  अगल भाग   (लाबत चीन )

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  • fatah kabul (islami tarikhi novel) part 6 ajeeb aqayed

     अजीब अक़ाइद 

    • जब इल्यास नमाज़ पढ़ कर आये तो उनकी माँ भी नमाज़ से फ़ारिग़ हो चुकी थी वह उनके पास आकर बैठ गए। उन्होंने कहा :”अम्मी जान तुम कहती हो के वो औरत बुध को भगवान् समझती थी। 
    • अम्मी :बेटा ! उसने मुझे बताया था के खुद भगवान् बुध के कालिब में आये थे दरअसल वह भगवान् की क़ायल नहीं थी। उसकी बातो से पता चला था के खुद बुध ही ने भगवान् के बारे में कोई साफ़ राये ज़ाहिर नहीं की। मालूम ऐसा होता है के वह खुदा के हसती ही के क़ायल नहीं थे। इसी लिए वह औरत इस बहस को फ़ुज़ूल समझती थी। वह बुध के बुत अपने पास रखती है और बुतो ही की पूजा करती थी। उन्हें ही नऊज़ुबिल्लाह खुदा समझती थी। 
    • इल्यास :खुदा की मख्लूक़ किस क़दर अहमक़ है। हर चीज़ को पूजने लगती है जिससे वह डरती है या जिसकी वह इज़्ज़त व अज़मत करती है। 
    • अम्मी: यही बात है रसूल अल्लाह के मबऊस होने से पहले तमाम अरब का यही हाल था। हर क़बीला ला बुत अलग था और वह उसकी पूजा करती था और यह बुत अजीब अजीब सूरत और शक्ल होते थे। उनसे दो मर्द की सूरत का था। बड़ा कवि हिकल मर्द। यह बुत मुक़ाम दुमता अल नजदल में था। और क़बीला क्लब उसकी पूजा किया करता था। नाइला औरत की शक्ल का था। निहायत हसीन औरत का मुजस्समा। यह बुत बहुत मशहूर कबीलो में था और सब क़ाबिले उसकी पूजा किया करते थे। नसर गिद्ध की शक्ल था हमीरी क़बाएल उसे पूजते थे। और भी बहुत से बेशुमार बुत थे। तरह तरह के सुरतो के। जब मैं ख्याल करती हु तो बेइख्तियार हसी आजाती है के हमारे बुज़ुर्ग भी क्या थे। जो पत्थरो के तस्वीरो को पूजते और उन्हें खुदा मानते थे। यह तो खुदा ने हम पर अहसान किया के उसने हमारी हिदायत के फख्र बानी आदम हज़रत मुहम्मद रसूल अल्लाह को नबी बना कर हमारी हिदायत के लिए भेजा। उन्होंने हमारे लिए हज़ारो तकलीफे उठाये। हमें ज़लालत और गुमराही से निकाला हम से बुत परस्ती छुड़ाई। हमें खुदा के क़ाएल बनाया और खुदा के सामने ला झुकाया। 
    • इल्यास : सच कहा तुमने अम्मी जान। वह औरत नमाज़ तो क्या पढ़ती होगी। 
    • अम्मी :नमाज़ उसके मज़हब में नहीं थी। जैसे उसके अक़ीदे अजीब थे ऐसे ही उसकी इबादत का तरीक़ा अजीब था। वह बुध के बुत के सामने हाथ जोड़  बैठ जाती थी। कुछ पढ़ती थी। किसी ऐसी ज़बान में जिसे बार बार सुनने पर भी मैं नहीं समझी। हाथ जोड़े पढ़ती और बुध के बुत को देखती रहती। बड़े गौर और अहतराम से फिर आंखे बंद कर लेती। देर तक आँखे  बंद किये इस्टेग्राक की हालत में बैठी रहती। फिर बुत को सजदा करती और उठ कर आँखे खोल देती। उसकी इबादत का तरीक़ा था। मेरे ख्याल में वह बुत को ही भगवान् या खुदा समझती थी। 
    • इल्यास:खुदा समझे।  आखिर यह बुध थे कौन ?
    • अम्मी :उस औरत ने उसके बारे में बहुत बड़ा अफसाना बयान किया था। मुझे साडी बाते तो याद नहीं रही। कुछ कुछ हालात याद रहे है। वह कहती थी बुध राजकुमार थे। 
    • इल्यास :राजकुमार किसे कहते है ?
    • अम्मी :राजकुमार शहज़ादा को कहते है। 
    • इल्यास : खूब !वह शहज़ादा थे। 
    • अम्मी :हां वह कहती थी के नेपाल कोई मुल्क है जो पहाड़ के अंदर है। उसकी तराई में शाकिया  क़ौम के क़ौम के छत्रियो की एक रियासत थी। मामूली रियासत नहीं बल्कि अच्छी खासी हुकूमत। का दारुल सल्तनत शहर “कपिल दस्तु “था। उनके राजा का नाम शादू दहन था। उनके एक लड़का था। उसका नाम बुध था। वह शाकिया क़ौम  में होने की वजह से “बुध “शाकिया मणि। “गौतम “भी कहलाते थे कहते है वह हज़रात ईसा  की पैदाइश से साढ़े पांच सौ बरस पहले हुए थे चुके अपनी माँ बाप के एकलौते थे इसलिए उनकी परवरिश बड़े लाड प्यार से हुई थी। उन्होंने अच्छी तालीम हासिल की थी। शास्त्रों को बड़ी ताउज्जैह से पढ़ा था। ख़ुसूसन दर्शन शास्त्र और गौर से पढ़ते थे। 
    • इल्यास :यह शास्त्र क्या है ?
    • अम्मी :उस औरत की मालूमात बड़ी वसी थी। उसने बयान किया था के हिन्द में सब एलपीजी बुतपरस्त है। उनके आलिमो ने जिनको बरहमन कहते है। बड़े गौर व खोज और सोच विचार के बाद दर्शन शास्त्र एक किताब तस्नीफ़ की। उस किताब में यह बताया है के लोग किस तरह निजात हासिल कर सकते है। उसका लैब लबाब यह तथा के इंसान को जो तकलीफ या राहत होती है वह उसके पिछले कर्मो का नतीजा है। इंसान अपने अमाल का नतीजा बर्दाश्त करने के लिए बार बार जन्म लेता यानी पैदा होता है। इस अवगुन से बचने की तरकीब यह है के इंसान अक़ीक़त से आगाह हो जाये। बुरे काम न करे अच्छे अमाल करता रहे ताके  उसे फिर जन्म लेने की ज़रूरत ही न पड़े। 
    •  इल्यास :अजीब किताब है और उसमे अजीब बाते दर्ज है। 
    • अम्मी :उसने यह भी बताया था के क़दीम हिन्दुओ के छह दर्शन है। उन दर्शनों का मज़मून बहुत पेचीदा और बड़ा ही औक है। उन दर्शनों के नाम यह है १)सा मुखिया “दर्शन “उसमे यह बतया गया है के रूह और मादा दोनों क़दीम है। एक दूसरे से जुदा है। दुनिया की तख़लीक़ मादा से हुई है। दुनिया का पैदा करने वाला कोई नहीं है। बल्कि मादा और रूह की वजह से हर चीज़ खुद ही पैदा हो जाती है। 
    • २)योग दर्शन है। इस दर्शन में ईश्वर या खुदा का नाम भी और उसका ज़िक्र भी है लेकिन उसमे ईश्वर या खुदा को दुनिया का पैदा करने वाला नहीं माना गया। 
    • इल्यास :अम्मी जान अजीब बात है यह तो अगर खुदा  और मादा को पैदा नहीं किया तो फिर किसने किया ?
    • अम्मी :वह कहती थी जिस तरह ईश्वर मतलब खुदा हमेशा से है उसी तरह रूह और मादा हमेशा से है। न किसी ने खुदा को पैदा किया न रूह और मादा को। 
    • इल्यास:   यह बात कुछ समझ में नहीं आती।  तो दुनिया खुद बा खुद पैदा हो गयी। 
    • अम्मी :उसका ख्याल आइए ही था। 
    • इल्यास :यह मुमकिन नहीं। वह  पड़ी थी। 
    • अम्मी :  वही क्या उसकी  सारी क़ौम धोका में पड़ी है। ऐसा मालूम होता है के दुनिया के इस खित्ते में  रसूल नहीं आये। वह  जानते ही नहीं के खुदा  है उनके बुज़ुर्ग दुनिया  इसी तरह  देखते आये है वह इस गलत  में मुब्तेला मुब्तेला हो गए  रूह और मादा को  किसी ने पैदा ही नहीं किया। अज़ खुद पैदा हो गए। खुदा की वक़अत उनकी नज़रो में ऐसी भी नहीं जैसी  बनाने वाले कुमहार की। 
    • इल्यास :कैसी  गुमराही में पड़े हुए ह यह लोग। अच्छा और कौन कौन से  दर्शन है। 
    • अम्मी :तीसरा दर्शन नियाये दर्शन है उसमे इल्म मंतिक की तशरीह है। चौथा दिलशीषक दर्शन है। उसमे इल्म ताबियात का ज़िक्र है। पाँचवा पुरो मीमान्सा दर्शन है। उसमे अमल यानि कर्म का तज़किरा है। और वैद के मुताल्लिक़ तर्ज़े माशरत की तफ़सीलहै। छठा देदान्त सोनतर दर्शन है उसमे रूह और खुदा के एक होने की बहस है। यानि रूह खुदा है और खुदा रूह है। 
    • इल्यास :तोबा तोबा कैसे लघु ख़यालात है उनके तुमने वेद का ज़िक्र किया यह वेद क्या है। 
    • अम्मी:वह औरत कहती थी के हिन्द वाले चार वेद मानते है। एक रग वेद। दूसरा साम वेद। तीसरा बज्र वेद। चौथा त्रिवेद। वेद के मायने जानने के है। कहती थी के संस्कृत दान भी नहीं समझते। वेद को श्रुति भी कहते है। श्रुति के मायने है “सुना हुआ” . वह यह भी कहती थी के हिन्द वालो का यह अक़ीदा है के जिस तरह ईश्वर यानि खुदा रूह और मादा हमेशा से है उसी तरह वेद भी हमेशा से है। 
    • इल्यास :वाह वाह खुदा की क़सम जो बात है लाजवाब है। वेद भी खुदा की तरह हमेशा से है। इससे मालूम हुआ के खुदा ने वेद भी नहीं भेजे बल्कि वह खुद बा खुद पैदा हो गए।   
    • अम्मी:बेटा मैंने उस औरत से कहा था के कही हिन्द वाले पुरे जाहिल ही तो नहीं भला इन बातो को अक़लमंद इंसान किस तरह मान सकते है। खुदा कोई चीज़ ही नहीं रहा। हर चीज़ खुद बा खुद पैदा होती चली गयी। वह कहने लगी इन बातो का कोई ताल्लुक़ से है। मैंने कहा अजीब अक़ीदे है। 
    • इल्यास :अच्छा बुध के मुताल्लिक़ और क्या बताया था उसने ?
    • अम्मी ;अभी सुनाती हूँ। 

                  
                                           अगला पार्ट (गौतम बुध )    

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  • Fatah kabul (islami tarikhi novel) part 5 ajeeb mazhab


    अजीब मज़हब।

    • इल्यास बड़े गौर से उन हालात को सुन रहे थे। उन्होंने कहा :अम्मी जान उससे मालूम हुआ हिन्द पुर फ़िज़ा मुल्क है। “
    • अम्मी :उस औरत ने जब उस मुल्क के हालात बयान किये तो मुझे भी उसके देखने का बड़ा इश्तियाक़ पैदा हो गया था। लेकिन उस मुल्क में एक बड़ी कमी है। और उस कमी की वजह से मेरा सारा शौक़ ठंडा पड़ गया। 
    • इल्यास :वह क्या कमी है अम्मी जान ?
    • अम्मी :बावजूद वहा तरह तरह के फल है। क़िस्म क़िस्म के मेवे है। बड़े लज़ीज़ और खुश ज़ायक़ा मगर खुजूरे नहीं है। 
    • इल्यास :खुजुरे नहीं है। 
    • अम्मी :हां बेटा। 
    • इल्यास : बस वहा कुछ भी नहीं है। हज़ार क़िस्म के मेवे हो और हज़ार किसम के फल हो लेकिन जब खुजुरे नहीं तो तो कुछ भी नहीं। लेकिन वहा के लोग कहते क्या है। 
    • अम्मी :वही मेवे और फल जो वहा पैदा होते है। 
    • इल्यास :क्या लुत्फ़ आता होगा उन्हें शायद वह खुजूरो के ज़ायक़ा से वाक़िफ़ नहीं है। 
    • अम्मी :जब वहा यह चीज़ होती ही नहीं तो वह उसका ज़ायक़ा क्या जाने। 
    • इल्यास :अम्मी जान तुमने उस औरत से उसके मज़हब के बारे मरे कुछ पूछा नहीं था?
    • अम्मी :उस रोज़ तो मौक़ा न मिल सका। मगर अगले रोज़ जब वह आयी तो मैंने उससे पूछा। मेरा ख्याल है के वो किसी झूठे नबी की पेरू है। मगर दरयाफ्त करने पर पता चला के वह किसी और मज़हब पेरू है। उस मज़हब की जो चीन और शिमाली हिन्द में फैला हुआ है। 
    • इल्यास :चीन में कोई और मज़हब है। 
    • अम्मी :बेटा दुनिया में न जाने कितने मज़हब है। मगर उस औरत ने जो अपने मज़हब की बाते बताई तो  मैं हैरान रह गयी। के दुनिया में कैसे कैसे लोग मौजूद है। मेरी उस औरत से जो बाटे हुई थी वह सब ज़रा तफ्सील से बयां करूंगी। वह औरत अपने मज़हब की मुबल्लिग थी। जब दूसरे रोज़ हमारे घर आयी तो मैंने उसकी बड़ी खातिर की। राबिया को भी उससे कुछ उन्स हो गया था। उसके आते ही वह भी उसके पास आगयी। औरत भी राबिया को बहुत चाहने लगी थी। उसने उसको अपनी गोद में बिठा लिया और कहा “मुल्क चीन में बहुत खूबसूरत गुड़िया बनाई जाती है। राबिया उन सब गुडियो से भी ज़्यादा खूबसूरत है। यह चीन से ज़्यादा दिलफरेब अगर इसके मुजस्समे बनाये जाये तो लोग देख कर हैरान रह जाये। 
    • मैंने पूछा :क्या तुम्हारे मुल्क में इंसानी के मुजस्समे बनाये जाते है ?
    • उसने कहा:हां एक ज़माने में औरतो और मर्दो के निहायत खूबसूरत मुजस्समे बनाये जाते थे। लेकिन जब से भगवान् बुध ने जन्म लिया है उस वक़्त से अब सिर्फ उनके मुजस्समे बनने लगे है। उनके मैंने वाले उनके बूत बनाते और उनकी पूजा करते है। 
    • इल्यास :ओह्ह!अब समझा मै वह औरत बुतपरस्त थी। 
    • अम्मी :हां मगर वह अपने आपको बुतपरस्त नहीं कहती थी। उसका अक़ीदा था के भगवान् बुध के कालिब में दुनिया वालो की हिदायत के लिए ए थे। वह निजात के तरीके बता कर गए। जो शख्स उन तरीक़ो पर चलेगा उसे निजात मिलेगी। जो उन तरीक़ो पर नहीं चलेगा वह जून के चककर में फंसा रहेगा। 
    • इल्यास : जून का चक्कर कैसा?
    • अम्मी:उसके बारे में उसका अक़ीदा अजीब था। वह अवा गोन की कईल थी। मतलब रूह पहल बदल कर मुख्तलिफ कालिबो में सड़ा पाने के लिए आती जाती रहती है। 
    • इल्यास : मैं समझा नहीं अम्मी जान। 
    • अम्मी :मैं भी बहुत देर में समझी थी। वह कहती थी के एक लाख और कई हज़ार जून मतलब कालिब है। गुनहगार इंसान उन तमाम कालिबो में आना मतलब पैदा होता और जाता यानि मरता रहता है उसके बाद उसे निजात मिलती है। उसका अक़ीदा था के कीड़े मकोड़े कुत्ते,बिल्ली,शेर,सांप गरज़ के हर जानवर ,परिन्द।हशरातुल अर्ज़ सब जानदार पहले इंसान थे। बुरे काम करने की वजह से उन जूनो कालिबो में आगये है। और सजा भुगत रहे है। 
    • इल्यास : अजीब अक़ीदा था उसका वह यह नहीं समझती थी के जिस तरह अल्लाह ताला ने इंसानो को पैदा  किया है इसी तरह तमाम जानवरो और दूसरे ज़ी रूह को पैदा किया है। 
    • अम्मी :उस मौज़ू पर मैंने उसको बहुत समझाना चाहा लेकिन वह कुछ भी नहीं समझी। शुरू में इंसान पैदा हुआ था। सजा के तौर पर वह जानवर बनता गया। वह खुदा यानि भगवान् को मानती थी लेकिन उसे ख़ालिक़ मुख़्तार कुल और फ़ना करने वाला नहीं मानती थी। उसका अक़ीदा था के रूह और माद ,खुदा की तरह से अज़ली है। खुदा किसी चीज़ को पैदा नहीं करता बल्कि हर चीज़ खुद पैदा हो जाती है। और खुद ही फ़ना हो जाती है। . 
    • इल्यास :कैसा वाहियात अक़ीदा था उसका। तुमने उसे क़ुरान शरीफ की आयते नहीं सुनाई ?
    • अम्मी :क्यू न सुनाती। मैंने उसे बताया के खुदा वह है जिसने दुनिया और दुनिया की हर चीज़ को पैदा किया है।हर पर क़ादिर है। उसके हुक्म के बगैर ज़र्रा भी हरकत नहीं कर सकता। वह ही सब कुछ पैदा करता है। उसके इल्म में हर चीज़ है। वही रिज़्क़ देता है। इज़्ज़त और ज़िल्लत देता है दौलत और हुकूमत देता है।  जलाता और मारता है। मैंने जब उसे आयते पढ़ पढ़ कर सुनायी और उनका तर्जुमा करके समझाया तो कहने लगी यह कलाम पढ़ रही हो यह तो बहुत प्यारा है। लेकिन हमारी किताब त्रिपिटक से मुताबिक़त नहीं करता। 
    • इल्यास :त्रिपिटक क्या है ?
    • अम्मी :उनका धर्म शास्त्र यानि मज़हबी किताब। 
    • इल्यास :उसने अपनी मज़हबी किताब पढ़ कर नहीं सुनाई थी ?
    • अम्मी :क्यू न सुनाती। बात बात में कुछ पढ़ती थी लेकिन वह ज़बान कुछ अजीब थी। गैर मानूस। लेकिन एक तो वह औरत खूबसूरत थी दूसरे उसकी आवाज़ बड़ी प्यारी थी। जब बाते करती थी तो फूल झड़ते थे जी चाहता था के वह कुछ कहे जाये और चुप बैठे सुने जाये। 
    • इल्यास :ऐसा मालूम होता है के उस मज़हब के लोगो ने अपने मज़हब की तब्लीग के लिए खूबसूरत औरतो को इसलिए मुन्तख़ब किया था के उनके हुस्न से लोग मशहूर हो कर उनके मज़हब में दाखिल हो जाये। 
    • अम्मी :मेरा भी यही ख्याल हुआ था। लेकिन उसको यहाँ कामयाबी नहीं हुई थी। वह औरत कहती थी के उस मुल्क के लोग अजीब है। न तो बहस मुबाहसा करते है। न अपने मज़हब के खिलाफ कुछ सुन्ना चाहते है न दूसरे मज़हब मज़हब पर तनक़ीद करते है। मैंने उससे कहा के उस में सब लोग मुस्लमान है ला इलाहा इलल्लाल्लाह मतलब अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के रसूल है उसके मैंने वाले है।  वह तनसीख़ (अवगुन )के क़ायल नहीं है। उनका अक़ीदा है के अल्लाह ने ही हर चीज़ को पैदा किया है। वही बक़ा और फ़ना पर क़ादिर है। जो कुछ होता है उसी के हुक्म से होता है। वह ज़बरदस्त क़ुदरत वाला है। बेनियाज़ और बड़ा मेहरबान वाला है। उसे माफ़ करने की क़ुदरत है। जो शख्स गुनाह करके पछताता आजज़ी और तोबा करता है वह उसके गुनाह माफ़ कर देता है तुम्हारे भगवान की तरह आजिज़ व लाचार  नहीं  है। जो न किसी को पैदा करता है न जिलाता है न मरता है न कुछ दे सकता है। न ले सकता है न दे सकता है बल्कि एक कोना में बैठा रूह और मादा का तमाशा देखता रहता है। वह देखता है के इंसान गुनाह करता है जानवर इतयात नहीं करते मगर उन्हें सजा नहीं दे सकता। जो लोग अच्छे आमाल करते है उन्हें उसका सिला नहीं दे सकता। रूहे खुद मुख़्तार है। मादा बागी है रूह जिस्म में चाहती है आज खुद उसमे हालूल कर जाती है। कोई उसे रोक नहीं सकता। तुम्हारा भगवान् क्या कमज़ोर और किस क़दर आजिज़ है। वह औरत इन बाटी बातो को सुन कर भौंचिकि रह गयी। मुझे ख्याल हुआ के शायद उसपर इन बातो का असर हुआ है। मगर वह बड़ी मुतअस्सब थी। जो असर हुआ था वह जल्दी जायल हो गया। और फिर वह तनसीख़ पर गुफ्तुगू करने लगी। 
    • इल्यास :क्या उसके मज़हब का मदार तनसीख़ पर ही था। 
    • अम्मी :उसके अक़ीदे कुछ अजीब थे। उन अक़ीदों में से एक अक़ीदा यह भी था के जब एक मर्तबा मैंने उससे कहा के जब रूह और मादी मोद ही खेलते है रूह दूसरे जिस्म में खुद चली जाती है तो तुम्हारा भगवान् क्या करता है। यह सुन कर वह कुछ गड़बड़ा सी गयी। 
    • इल्यास :मगर खुदा के मुताल्लिक़ उसका क्या अक़ीदा था ?
    • अम्मी :जब मैंने खुदा के मुताल्लिक़ बाते की तो वह कुछ टालने लगी। कहने लगी भगवान् को तो हम मानते है लेकिन हम अपने कर्मो के खुद ज़िम्मेदार है इसलिए भगवान् या खुदा हमे सजा नहीं देता बल्कि हम खुद अपने कर्मो के फल भुगते है। ओह्हो ! अज़ान हो रही है बेटा ज़ुहर की नमाज़ पढ़ कर आती हु। जब आओगे तब तुम्हे और हालात बताउंगी। और आखिर में यह भी बताउंगी के तुम्हे काबुल क्यू भेजना चाहती हु। 
    •              इल्यास उठ कर मस्जिद की तरफ चले गए। और उनकी अम्मी उठ वज़ू करने लगी। 
         
                                                   अगला भाग (अजीब अक़ाइद )

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  • Fatah kabul (islami tarikhi novel)part 4

    मुल्क हिन्द 

     

                  

    •    अम्मी ने कहना शुरू किया “बेटा अगले रोज़ राफे एक औरत को लेकर अपने साथ लाये बड़ी खूबसूरत थी. उसकी चाँद सी पेशानी पर बिंदी लगी हुई थी। साड़ी बांधे थी। कानो में बुँदे थे। जिसमे क़ीमती मोती लटक रहे थे। पैरो में चप्पल थी। उसकी सूरत से बड़ी शान ज़ाहिर थी। उसका लिबास देख कर मुझे बड़ी हैरत हुई क्यू के उससे पहले मैंने कभी ऐसा लिबास नहीं देखा था। वह फ़ारसी ज़बान बोल लेती थी। 
      • राफे ने कहा :यह है वो औरत जिसका मैंने ज़िक्र किया था। 
    • मैंने उस औरत को ताज़ीम की उसे बिठाया उसी वक़्त राबिया आगयी। वो हैरत से उस औरत को देखने लग गयी। औरत ने भी उसे देखा। उसकी आंखे और चेहरा कह रहे थे के उसने राबिआ को पसंद किया। और उसे देख कर वो हैरान हो रही है। आखिर उससे रहा न गया उसने बढ़ कर राबिया का हाथ पकड़ कर कहा :आओ बेटी ऐसा मालूम होता है के मैंने पहले  भी कही देखा है। 
    • राबिआ ने कहा “मगर मैंने तुम्हे कभी नहीं देखा। 
    • औरत: ठहरो मई सोच लू मैंने तुम्हे कहा देखा है। 
    •   वो माथे पर हाथ रख कर सोचने लगी वह सोच रही थी और हम सब उसे देख रहे थे। राबिआ भी देख रही थी अचानक उसने निगाहे उठा कर कहा :”याद आगया मैंने तुम्हे ख्वाब में देखा था। 
    • राबिआ बेइख्तियार हंस पड़ी उसने कहा। ख्वाब में देखा था ?
    • औरत:हां ख्वाब में देखा था तुम एक पहाड़ी पर खड़ी थी बेटी अक्सर ख्वाब किस क़दर सच्चे होते है। 
    • राबिआ : मगर मई पहाड़ी पर कहा खड़ी हु। 
    • औरत :तुम ऊपर ही खड़ी हो। 
    • वह राबिआ को प्यार करने लगी और फिर उसे गोद में लेकर बैठ गयी। उसी वक़्त तुम आगये। तुम्हें हैरत से उस औरत को देखा। वह तुम्हे देख कर चौंक गयी। तुमने आते ही पूछा यह कौन है ?
    • मैंने बताया “यह एक परदेसन है”
    • इल्यास ने कहा :”यह तमाम वाक़या मुझे याद आगया। उस औरत की आंखे बड़ी बड़ी थी। सर के बाल भूरे थे। 
    • अम्मी :”हां काश वह औरत हमारे यहाँ न आयी होती वह बड़ी मनहूस क़दम साबित हुई……हां तो मै उस औरत से बाते करने लगी। राफे चले गए। तुम मेरे पास बैठ गए। मैंने उससे पूछा “तुम कहा की रहने वाली हो। 
    • उसने जवाब दिया “तुम्हारे पड़ोस में एक मुल्क ईरान है। ईरान से मिला हुआ काबुल। है काबुल की रहने वाली हु। 
    • काबुल भी कोई मुल्क है ?
    • वह :है मुल्क है। मगर कुछ ज़ायदा बड़ा नहीं है। दरअसल काबुल बार्रेअज़ाम हिन्द का एक हिस्सा है। 
    • मैं : यह बारेआज़म हिन्द कहा पर है। 
    • वह :काबुल से जुनूब व मशरिक़ की तरफ कोह हिमालय से समुन्दर के किनारे तक फैला हुआ है. लाखो मुरब्बा मील में बस्ता है। करोड़ो आदमी आबाद है। पहाड़ की ऊँची चोटिया बर्फ से ढकी रहती है। उस पहाड़ के मगरबी कोने में काबुल है। उसके जुनूब में समंदर है। उस समंदर को बहिरा हिन्द कहते है. उस समंदर में कुछ दूर एक छोटा सा जज़ीरा है। जिसे जज़ीरा लटका कहते है। मगरिब में बलूचिस्तान और बहिरा अरब वाक़े है। मशरिक़ में बर्मा का मुल्क है। यह बार्रे आज़म निहायत ही फ्रख है। और क़ुदरत ने उसमे साडी दुनिया की बाते एक ही जगह जमा कर दी है। 
    • ऐसे पहाड़ भी है जिन पर हमेशा १२ महीने बर्फ पड़ती रहती है। और वह बर्फ पोश रहते है।इतने ऊँचे है के कोई आजतक उनकी चोटी पर नहीं पहुंच सका। मालूम नहीं क़ुदरत के क्या क्या अजीब मौजूद है। वह इसकदर सर्दी होती है के यूरोप में भी नहीं होती। उन पहाड़ो का ज़ेरे हिस्सा नियाहत सर सब्ज़ व शादाब है. अजीब अजीब बोतिया होती है।बाज़ ऐसी बूटिया है जो हर मर्ज़ की दवा है। उनमे शिफा ही शिफा है। एक मर्तबा तो मरने वाले इंसान को भी ज़िंदा करके बिठा देती है। बाज़ मुख्तलिफ अमराज़ में काम आते है। बाज़ टूटी हुई हडिया को जोड़ देती है। बाज़ दीहातों का कष्ट बना देती है। बाज़ ऐसी है जो रांग को चांदी और तांबे को सोना बना देती है। 
    •                     मै हैरत से उसकी बाते सुन रही थी। मेने कहा :”क्या तुम यह सच बयान कर रही हो ?”
    • उसने कहा :बिलकुल सच कह रही हु ईश्वर ने कोह हिमालय को मख़ज़न राज़ बनाया है। कोई उसके राज़ो को नहीं जनता। उसमे जो जड़ी बूटिया है कोई उनके ख्वास से पूरी तरह वाक़िफ़ नहीं है। उस पहाड़ में ऐसे ऐसे बन है। जिनमे दुनिया भर के जानवर नज़र आते है। दरिंदे,परिंदे,चरिन्दे सब मौजूद है। कश्मीर दुनिया की जन्नत है। ऐसा पुर बहार खित्ता दुनिया के गोशा में नहीं है। दमन कोह से  आगे हमवार मैदान है जो हज़ार मील में फैले हुए है। उन मैदानों में छोटे छोटे बेशुमार नदिया और बड़े बड़े ला तादाद दरिया बहते है। उन नदियों और दरियाओं की वजह से तमाम मैदान सब्ज़ा से ढके हुए है। खेती खूब होती है। साल में तीन फसले होती है। एक फसल खरीफ दूसरी रबी और तीसरी ज़ायेद कहलाती है। गेहू उम्दा क़िस्म का पैदा होता है। जौ ,चना ,बाजरा ,मक्की ,मूंग ,अरहर,तिल ,गुड़ और खुदा जाने क्या क्या पैदा होता है। मेवे और फल कसरत से होते है। हर मौसम में एक न एक फल पैदा होता रहता है। बाग़ात कसरत से है। रेगिस्तान भी है। ऐसे रेगिस्तान जहा पानी का नाम व निशान नहीं है।                                                                                          अरब की रेगिस्तान की तरह सैंकड़ो मील में फैलते चले गए है। उन रेगिस्तानों में खुश्क पहाड़            बिलकुल झुलसे हुए मालूम होते है। वहा इस गज़ब की गर्मी होती है के इंसान तेज़ धुप और गरम हवा में झुलस जाते है। ऐसे जंगल भी है जिनमे दाखिल हो कर इंसान भटकता रहता है। और अगर वो रास्ता से वाक़िफ़ नहीं होता तो वहा से नहीं आ सकता। वही भटकते भटकते मर जाता है। किसी ने उन जंगलो की छान बीन नहीं की। कोई नहीं जनता उन जंगलो में क़ुदरत के क्या राज़ पोशीदा है। 
    •                       छोटी छोटी नदियों और बड़े बड़े दरियो के किनारे पर गाँव क़स्बे और शहर आबाद है। उस बार्रे आज़म हिन्द के कई सूबे है। हर सूबे की ज़बान अलग है।वहा की बाशिंदो की सुरते अलग है। तबई हालत अलग है। माशरत अलग है पोषिष अलग है। गरज़ हर चीज़ अलग है। 
    •                        मैं उस औरत की बाते  सुन कर  बड़ी हैरान हो रही थी। मैंने कहा :”आज तुमने अजीब  बाते बयां की है। 
    •               उसने कहा :हक़ीक़त यह है के बार्रे आज़म हिन्द के बारे में कुछ ज़यादा बयां न क्र सकीं। मुझमे क़ुदरत बयां नहीं है। वह एक अलग ही दुनिया है। ऐसी दुनिया जिसे देखने वाला हैरान रह जाता है। 
    • मैं :क्या वह खित्ता मुल्क शाम से भी ज़ायदा अच्छा है। 
    • वह :शाम और मिस्र उसके सामने कोई हक़ीक़त नहीं रखते जो इंसान चाहे वो किसी मुल्क का बाशिंदा हो जब उस मुल्क को देख लेता है  तो वहा से आने का उसका जी नहीं करता। वहा दूध की नहरे बहती है। उस कसरत से दूध होता है।के मुसाफिर जिस बस्ती में भी जाता है उसकी तावज़ा  दूध से की जाती है। घी पानी कीतरह खाने के साथ दिया जाता है। वहा के लोग बड़े फारिग अलबाल और मार्फा हाल है। 
    • मैं :सुना है वहा चांदी और सोना भी अफरात है। 
    • वह :सोने और चांदी का कोई हद व शुमार नहीं है। गरीब आदमियों के पास भी मनो चांदी और सेरो सोना होता है। वहा की औरते चांदी में सफ़ेद और सोने में ज़र्द रहती है। ईश्वर ने उसे दौलत की कान बनाया है।खाम पैदावार इस कसरत से होती है के एक साल की पैदावार वहां के बाशिंदो को कई साल के लिए काफी होती है।  वहा कहत का अंदेशा नहीं होता लोग कसरत से मवेशी पालते है। मुल्क के हर हिस्से में ज़राअत की जाती है। हर बस्ती में आधी से ज़्यदा ज़मीने चरागाह के तोर पर छोटी रहती है। अगर तुम उस मुल्क को देखो तो मेरा दावा है के कभी वहा से वापस आने की ख्वाहिश न करो ।   
    • मैं :मगर वहा जाना भी क्या आसान है ?
    • वह :कुछ ज़्यदा मुश्किल भी नहीं है। आखिर हम लोग भी यहाँ आये है। 
    • मैं :हम में से कोई बगैर खलीफा की इजाज़त के किसी गैर मुल्क में नहीं जा सकता। 
    •         मझे दफ्तान ख्याल हुआ के मैंने उसकी कोई मदारत तो की नहीं। मई जल्दी से उठी और अंगूर लेकर उसके सामने पेश किये। उसने बेतकल्लुफ खाने शुरू क्र दिए और मझे कुछ देर बाद अगले रोज़ आने का वादा कर के चली गयी। 

                                             अगला पार्ट (अजीब मज़हब )

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  • fatah kabul (islami tarikhi novel)part 3 gam ke badal

     गम के बादल। ……. 


                मेरी माँ मुझे ऐसी दास्ताँ सुनाती जा रही थी जो मई बिलकुल भूल चूका था। लेकिन अब उनकी याद दिलाने से इस तरह कुछ कुछ याद  आरहा था जिस तरह भूला हुआ ख्वाब याद आने लगता  है। मुझे याद आगया था के एक गोरी चिट्टी लड़की जिसके रुखसार ताज़ा गुलाब की  पत्तियों की तरह सुर्ख सफ़ेद थे जिसका चेहरा गोल और आंखे बड़ी बड़ी थी। जिसकी सूरत निहायत ही पाकीज़ा और दिलफरेब थी। मेरे साथ खेला करती थी। उसकी प्यारी सूरत अब तक मेरे दिल पर नक़्श थी। मई अक्सर सोचा करता था के यह किसकी सूरत मेरे दिल पर नक़्श हो गयी है। खुद ही ख्याल करने लगता के शायद मैंने कोई ख्वाब देखा था। 

    • लेकिन अब माँ ने जो दास्ताँ  मुझे सुननी शुरू की उसने मेरी ज़िन्दगी के गुज़िश्ता औराक़ उलटने शुरू किये। और मेरी याद ताज़ा होने लगी। भुला हुआ अफसाना याद आने लगा। मैंने कहा। “अम्मी जान मुझे भी कुछ कुछ बाते याद आने लगे  है। क्या राबिया के दाहने गाल पर तिल  भी था ?”
    • अम्मी :हां था उस तिल ने उसकी खूबसूरती को और बढ़ा दिया था। उसकी आंखे ऐसी बड़ी बड़ी और खूबसूरत थी की हिरणी की आँखों को मात करती थी। जो देखता था तारीफे करता था। उसकी भवें बहुत ही घनी और प्यारी थी। पलके नेजो की बाड़  थी। पेशानी चाँद से ज़्यदा रोशन थी। चेहरा गोल और निहायत ही दिलकश था। मुँह छोटा था। लब बारीक और कमान की तरह ख़मीदा थी। दांत हमवार और मोतियों की लड़ी थे। खर्ज़ वह निहायत ही हसीन लड़की थी। 
    • मैंने जब अपने हाफ़िज़े पर ज़ोर डाला तो उस लड़की की जो मेरे दिल में बसी हुई थी ऐसी ही तस्वीर थी। मैंने कहा :मुझे वह लड़की याद है पर ख्वाब की तरह। 
    •            मेरी माँ ने ठंडा साँस भर कर कहा “अब तो साडी बाटे ही ख्वाब की तरह लगती है। बीटा जैसे जैसे मई बयान करती जाऊ तुम्हे वाक़ेयात याद आते जाये। अल्लाह वह भी क्या दिन थे। हर इंसान की ज़िन्दगी में एक दौर ख़ुशी और राहत का भी आता है लेकिन यह दौर बहुत ही मुख़्तसर होता है। उसके बाद दर्द व तकलीफ और रंज व गम का ज़माना आता है। जो काटे नहीं कटता। 
    • हमारे भी  ऐश व रहत के अय्याम पालक झपकते गुज़र गए। लेकिन यह मुसीबत और रंज का दौर कटे नहीं कटता बीटा खुदा तेरे भी ऐश व रहत के दौर लाये। 
    • इल्यास ने अमीन कहा और पूछा “अम्मी जान फिर क्या हुआ। “
    • अम्मी :जब तुम दोनों की मगनी हो गयी तो तो शायद राबिया की माँ ने राबिया को कुछ उसके मुताल्लिक़ बता कर हिदायत कर दिया की तुम्हारे सामने बेहिजाबाना न आया करे। वह एतियात करने लगी। तुम्हे शायद यह बात नागवार गुज़री। तुम समझे वह तुम से रूठ गयी है। तुम हमेशा जब वह रूठ जाती थी तो मना लिया करते थे मगर इस मौके पर तुम भी रूठ गए और दोनों अलग अलग रहने लगे। मई और राबिया की माँ दोनों को रूठा देख कर हस्ते थे। एक रोज़ ऐसा इत्तेफ़ाक़ हुआ के तुमने राबिया को फूलो की कंज में जा पकड़ा। वह घबरा कर इधर उधर देखने लगी। शायद अपनी माँ को देख रही थी जिसने उस पर पाबन्दी आयेद कर दी थी वह तो वहा न थी अलबत्त्ता शहतूत के दरख्तों की क़तार में क़रीब ही में कड़ी हुई तुम दोनों को देख रही थी और मई तुम दोनों के इतनी पास थी की तुम्हारी बाते भी सुन रही थी तुमने कहा :राबिया तुम खफा क्यू हो ?
    •              राबिया की आंखे झुक गयी। उसने सर झुका कर कहा “मई खफा नहीं हु “तुमने कहा “खफा नहीं हो तो मेरे पास आती क्यू नहीं। बोलती क्यू नहीं खेलती क्यू नहीं। 
    • राबिया :हमारी अम्मी जान ने मना कर दिया है। 
    • तुम :वह तो बड़ी अच्छी चची जान है। उन्होंने क्यू मना कर दिया। 
    • राबिआ  : कहती है अब हम बड़े हो गए है हमे खेलना नहीं चाहिए। 
    • तुम :क्या बड़े खेला नहीं करते ?
    • राबिया : खबर नहीं अम्मी जान से पूछना। 
    • तुम :राबिया तुम्हे किस क़द्र बाटे बनाना आगयी है। 
    • राबिया :खुदा की क़सम मई बाटे नहीं बनाती। 
    • तुम :अच्छा चलो चची जान के पास तुम्हारे सामने पूछूंगा। 
    •           राबिया ने तुम्हे घबरा कर देखा और जल्दी से कहा नहीं नहीं तुम मेरे साथ न चलो। 
    • तुम ;क्यू। 
    • राबिया :वह खफा होंगी। 
    • तुम :क्या वह मुझ से नाराज़ है ?
    • राबिया :नहीं। 
    • तुम : मेरी अम्मी जान से खफा है। 
    • राबिया :नहीं। 
    • तुम : फिर तुम्हे मेरे साथ देख क्यू खफा होंगी। 
    •             रबिए फिर चुप हो गयी “जवाब दो न “वह बेचारी क्या जवाब देती जब तुमने ज़्यदा तक़ाज़ा किया तो उसने शर्मीले  लहजे  में कहा “भई  हम से न पूछो हमे शर्म आरही है। “
    • तुमने कह :”उसमे शर्म की क्या बात है “?
    • राबिया :शर्म  ही की तो बात है। 
    •            गरज़ तुम पूछ रहे थे और वह  बता न सकती थी। मई तुम्हारी बाते सुन रही थी। और हंस रही थी। जब उसने बतया तो तुम बिगड़ कर चल दिए। उसने तुम्हे रो कर कहा “ठहरो”
    • तुम रुक गए उसने कहना शुरू किया :”भई उस दिन आदमी जमा हुए थे  न “?
    • बस  उन आदमियो ने मन किया है। 
    •   तुमने कहा शरीर कभी कहती है अम्मी जान ने मना किया है कभी कहती है लोगो ने मना किया है “
    • रबिए :तुम समझते तो हो नहीं। 
    • तुम: समझती कंही। 
    •    राबिया शर्मा गयी मई तुम्हारे पास चली आयी रबिए चली गयी मैंने तुम्हे बताया राबिया तुम्हारी मंगेतर हो गयी है। खुदा ने खैर रखी  तो चंद दिनों में वह तुम्हरी दुल्हन बन जाएगी। इसी लिए उसकी माँ ने उसे तुम से बाते  करने को मना कर दिया है। यही वह बात है जो शर्म की वजह से तुम से कह नहीं सकती। 
    •     तुम समझ कर चुप हो गए  थे इसी वाक़िया के ही चंद रोज़ बाद राबिया की माँ फिर से बीमार हो गयी। और ऐसी बीमार हुई के दो महीने में पैगाम मौत ा पंहुचा उसके इंतेक़ाल ने हम सबको गम में मुब्तिला कर दिया। फिर हमारे घर में रंज व  अलम के बदल छ गए। हमें जो थोड़ी बहुत ख़ुशी मेस्सर थी वह जाती रही। राफे बहुत सख्त ग़मज़दा रहने लगे। मई उन्हें भी तसल्ली देती और अपने आपको भी। राबिया को बड़ा रंज हुआ था। वह अक्सर अपनी माँ की क़ब्र पर जाती और घंटो रोया करती मै उसे समझती और वहा से उठा लाती। 
    • उसकी माँ और तुम्हारे अब्बू की क़ब्रे क़रीब के बाग़ में थी। .एक रोज़ राफे ने आकर मुझसे कहा की  दो मर्द और एक औरत  किसी गैर मुल्क से आये है। बड़े क़द अवर और सुर्ख सफ़ेद रंग के है। तीनो जवान है किसी मज़हब की तब्लीग़ करते है। 
    • यह बात में खूब जानती थी के बहुत से झूठे नबी अरब में पैदा हो चुके है। मुझे ख्याल हुआ के यह तीनो मर्द और औरत उन्ही झूठे नबियो में से किसी नबी पीरू होंगे मैंने उनसे पूछा “क्या वह किसी झूठे नबी के पीरू है ?
    • उन्होंने जवाब दिया :”नहीं वह अरब या मुल्क शाम के बाशिंदे भी नहीं। काबुल के रहने वाले बताते है जी हिन्द में से एक शहर है। 
    • मैं  :मैंने काबुल का नाम पहले नहीं सुना। न हिन्द का नाम सुना है। 
    • राफे :हिन्द एक बड़ा ज़बरदस्त मुल्क है। जुग़राफ़िया दा कहते है के हिन्द और इराक व ईरान के बीच में पहाड़ो का ज़बर्दस्त फैला हुआ है। 
    • मैं :क्या हिन्द  भी अरब जैसा मुल्क है। 
    • राफे :जो मर्द  आये है उनमे से एक से मैंने बाटे की थी वह  कहता है  के हिन्द निहायत सरसब्ज़ व शादाब मुल्क है। उसके चप्पा चप्पा पर दरिया और चश्मे जारी है तरह तरह के मेवे है। उम्दा उम्दा बाग़ात है। ज़मीन सब्ज़े से लदी हुई है। उसने जो उस खित्ता की तारीफे इस क़द्र की है के उसके देखने का बड़ा इश्तियाक़ पैदा हो गया। 
    • मैं : मगर  उस मुल्क का ज़िक्र मैं तो कभी नहीं सुना। 
    • राफे :मैंने भी नहीं सुना था। अमीर ने उन में से एक आदमी को बुला कर वहा के हालात दरयाफ्त किये थे मालूम हुआ है के उस मुल्क में सैंकड़ो  बादशाह है। उनका मज़हब बूत परस्ती है। बड़े खुशहाल और मालदार लोग है। सोने और चांदी की बड़ी इफरात है। वहा की औरते ज़्यदा तर सोना पहनती है। और ताज्जुब यह के मर्द भी सोने के जेवरात पहनते है। वहा के बादशाहो को राजा कहते है। राजा आम तौर पर नंगे रहते है। जेवरात से अपने बदन को ढंके रहते है। 
    • मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ मैंने कहा :उस औरत को जो मर्दो के साथ आयी है किसी रोज़ बुला कर लाओ तो मैं उससे कुछ हालात मालूम करू। “
    • उन्होंने कह :मैं कल ही बुला कर लाऊंगा। उस औरत के आने का  इंतज़ार करने लगी। 
    •        

                                                           अगला भाग (मुल्क हिन्द )





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  • FATAH KABUL (ISLAMI TARIKHI NOVEL) PART 2 MANGNI

     मंगनी। …….

    • इल्यास खुश होते हुए अपने घर पहुंचे। उनकी अम्मी ने उनको देखा। उनका चेहरा भी ख़ुशी से खिल उठा। उन्होंने कहा :बीटा हस्ते हुए आरहे हो। अल्लाह तुम्हे हस्ता हुए रखे क्या अमीर ने तुम्हारी दरख्वास्त   मंज़ूर कर ली ?
    • इल्यास :जी हां मगर बहुत कुछ कहने सुनने के बाद। 
    • अम्मी :मई जानती थी तुम अभी नो उम्र हो इसीलिए उन्हें तुम्हे इजाज़त देने में ताम्मुल हुआ होगा। 
    • इल्यास : जी हां। 
    • अम्मी : लेकिन तुमने यह नहीं कहा के अमीरुल मोमेनीन हज़रत उस्मान गनी रज़ि अल्लाह ने तुम्हे थोड़ी उम्र में अमीर कैसे मुक़र्रर कर दिया। 
    • इल्यास : यह बात  कहने की नहीं थी अम्मी जान वह खफा होते। अमीर बड़े पुर जोश और मुदब्बिर है। कहने लगे लश्कर के साथ जाना। 
    • अम्मी : लश्कर के साथ जाने में वह बात न होती जो तनहा जाने में होती। 
    • इल्यास : अब बताओ मुझे वहा तनहा क्यू भेज रही हो। 
    • अम्मी ने ठन्डे साँस लिया और कहा : बीटा अब तक मैंने तुमसे छुपाया मगर आज तुम्हे वह सब हालात सुनती हु जिन्होंने मेरी ज़िन्दगी को तल्ख कर रहा है। 
    • इल्यास : सुनाइए तुम्हारी बातो ने तो मुझे हैरान कर  दिया है। 
    • अम्मी : वाक़ेयात ही हैरान करने वाले है। 
    • इल्यास : क्या कोई राज़ है अम्मी जान ?
    • अम्मी : है राज़ ही है। 
    • इल्यास : तो खुदा के लिए उस राज़ का पर्दा उठाइये। 
    • अम्मी : उठाती हु। 
    • अम्मी ने फिर ठंडा साँस भरा और कहना शुरू किया 
    • “जब तुम पैदा हुए थे तो तमाम खंडन को बड़ी ख़ुशी हुई थी उसकी वजह यह थी की तुम्हारे दादा बहुत बूढ़े हो गए थे। तुम्हारे बाप औलाद से नाउम्मीद हो गए थे और और तुम्हारे चाचा ने शादी करने से इंकार कर दिया था। 
    • इल्यास : क्या मेरे कोई चाचा भी थे अम्मी जान। 
    • अम्मी :हां तुम्हारे चाचा भी थे निहयात शानदार जवान थे। वह तुम्हरे बाप मतलब अपने भाई को बाप समझते थे। उनकी बड़ी इज़्ज़त करते थे। मुझे अपनी माँ समझते थे मई भी उन्हें बेटे की तरह प्यार करती थी उन्हें भी तुम्हरे पैदा होने से बड़ी ख़ुशी हुई थी। जब उन्होंने तुम्हे अपनी गोद में लेकर तुम्हारा मुँह चूमा तो मई उन्हें देख रही थी। ख़ुशी से उनकी आंखे चमक रही थी। उस वक़्त बे इख़्तियार मेरी ज़बान से निकला “राफे क्या अच्छा होता के तुम अपना बियाह कर लेते। तुम्हारी लड़की होती और वह लड़की इल्यास से बियाही जाती। राफे ने मेरी तरफ देखा उन्होंने कहा :मेरा शादी करने का इरादा नहीं था मगर अपने इल्यास के लिए शादी करूंगा। शायद खुदा तुम्हारी आरज़ू पूरी करदे। 
    • मुझे सुनकर बड़ी ख़ुशी हुई। मेने कहा राफे जिस तरह तुमने आज मेरे दिल को खुश किया है अल्लाह इसी तरह तुम्हारे दिल को ख़ुश रखे  
    •  चंद ही रोज़ बाद मैंने एक निहयात ही हसीं और तरहदार लड़की केसाथ उनका बियाह करा दिया। खुदा की शान है के बियाह के एक साल बाद लड़की पैदा हु। लड़की क्या थी चाँद का टुकड़ा थी। चंदे आफताब और चंदे महताब। राबिया उसका नाम रखा वह और तुम परवरिश पाने लगे। जब तुम पांच बरस के और वह चार बरस की हुई तो घर की रौनक और दोबाला हो गयी। तुम दोनों के मासूम हंसी से माकन का गोशा गोशा हँसता हुआ मालूम होता था। सरे घर वाले खुश रहते थे। घर जन्नत का नमूना बना हुआ था। क्युकि बहिश्त वह है जिसमे कोई तकलीफ न हो हमे भी कोई तकलीफ कोई गम कोई फ़िक्र न था। आराम था राहत थी और ख़ुशी थी। 
    •  एक बात अजीब थी इल्यास तुम और राबिया कभी न लड़ते थे। हलाके तुम्हारी उम्र के बच्चो लड़के और लड़कियों को हम रोज़ाना लड़ते देखते थे छोटे बच्चो में किसी न किसी बात पर लड़ाई हो ही जाती है.मगर तुम दोनों में न होती थी। हमने यह भी देखा के अगर कभी राबिया तुम से रूठ जाती तो तुमने उसे मना लिया। तुम दोनों की सारा खंडन तारीफे करता रहता था। मोहल्ले वाले प्यार करते थे। 
    • अचानक हमारी ख़ुशी को गहन लग्न शुरू हो गया। राबिया की माँ बीमार पड़ गयी। तबीबों ने उसे दब्दील अब व हवा का मशवरा दिया। राफे उन्हें मुल्क शाम ले चलने की तैयारी करने लगे। तुम्हारे अब्बू और मई भी तैयार हो गए। आखिर एक रोज़ हमारा मुख़्तसर काफला मुल्क शाम की तरफ रवाना हुआ। खुदा जाने हम किस किस शहर में से होकर दमश्क़  में पहुंचे। निहायत अच्छा और बड़ा शहर था। वहा पहुंच कर एक हफ्ता में सफर की कसल दूर हुआ। उसके बाद राबिया की माँ की तबियत सभलने लगी मगर खुद राबिया पसमुर्दा रहने लगी। चंद ही रोज़ के बाद वह अच्छी खासी बीमार हो गए। अब उसका इलाज शुरू हुआ। दमिश्क़ बड़ा शहर है। बड़े बड़े अहल फन वहा मौजूद है। कई बाकमाल तबीब थे सबने राबिआ का इलाज किया लेकिन कोई अच्छा अफका न हुआ। उसकी सेहत जवाब देने लगी। अब उसको फ़िक्र हुआ। कई तबीबों ने यह गए दी के उसे यहाँ की अब व हवा रास न आयी। उसे उसके वतन इराक में ले जाओ। 
    •   राबिया की माँ सेहत कुछ बहाल हो गयी थी। अगर साल छह महीने वह वहा और रहती तो बिलकुल तनददरुस्त हो जाती। लेकिन राबिया की बीमारी ने उसे हौले दिया। और वह वापस वतन आने को तैयार  हो गयी। मैंने और तुम्हरे अब्बा जान ने राफे और उसकी बीवी को मशवरा दिया के जब तक बीवी की तबियत बिलकुल ठीक न हो जाये दोनों वही रहे और हम रबिए को लेकर इराक चले जाये। लेकिन राबिया की माँ ने इस तजवीज़ को न मन वह भी साथ चलने पर बज़िद हुई आखिर हम सब वापस लौटे। 
    •  बेटा !इल्यास जब राबिया बीमार हो गयी तो तुम भी शोखी ,शरारत हंसना और बोलना भूल गए  थे। तुम भी चुपचाप और कुछ खोये खोये से रहगम का नासूर भरा ते। मई तुम्हारे बाप और राफे तुम्हारी हर चंद दिलदहि करते लेकिन तुम्हारी पसमुर्दगी दूर न होती थी। तुम ज़्यदा तर राबिया के पास बैठे रहते थे। 
    • हम फिर लम्बा सफर ऊँटो पर तये करके इराक में आगये। राबिया की तबियत यहाँ आते ही बहुत कुछ बहाल हो गयी। और वह खेलने कूदने लगी। तुम्हारी पसमुर्दगी भी जाती रही। 
    •  एक रोज़ अचानक तुम्हारे अब्बू बीमार हो गए और तीन ही रोज़ के अरसा में दाग माफ़रीक़ात दे कर अदम को सुधारे। बेटा  !मेरी दुनिया अंधेर हो गए। दिल की बस्ती उजड़ गयी। ख़ुशी गम में बदल गयी। राफे और उसकी बीवी को भी बड़ा सदमा हुआ ।तुम और राबिया भी कई रोज़ तक रोते  रहे। मई कुछ ऐसी पामाल गम हुई के बिस्तर पर पड़ गयी राबिया की माँ और राफे ने मेरी बड़ी दिलदहि की और यह मशवरा दिया के मई तुम्हारे लिए ज़िंदा रहु। 
    • मैंने भी अपने दिल को बहलाना और समझाना शुरू कर दिया। आखिर रफ्ता रफ्ता मेरी तबियत सभलने लगी। छह महीने में जाकर गम का नासूर भरा। मेरा दिल ठिकाने हुआ और मई तुम्हे देख कर जीने लगी। 
    • अब तुम राबिया बड़े समझदार होने लगे थे। तुम्हारी तिफलना शोख़िया जा रही थी। लेकिन अब लड़कपन का ज़माना शुरू हो गया था। तुम्हरी हरकते अब भी प्यारी मालूम होती थी दोनों दिन भर रहते थे। तुम्हे देख कर हम तीनो यानि राफे राफे उसकी बीवी जीते थे। 
    • राफे को शायद यह ख्याल हुआ के कही मई यह न समझने लग जाऊ के वह राबिया को इल्यास की शरीक हयात बनाना  पसंद न करे इसलिए उसने खुद ही एक रोज़ मुझ से कहा :भाभी जान तुम्हे याद है इल्यास पैदा हुआ था तुमने क्या कहा था 
    •  यह सुन कर मेरा दिल भर आया। मैंने ज़ब्त करके कहा “याद है “
    • राफे :भला क्या कहा था तुमने ?
    • अम्मी :जब तुमने इल्यास को गोद में लेकर उसका मुँह चूमा था तो मेरे दिल में एक बात पैदा हुआ था जो मैंने तुम पर ज़ाहिर कर दिया था। 
    • राफे :मई वो ख्याल ही सुन्ना चाहता हु। 
    • अम्मी :मैंने कहा था राफे क्या अच्छा होता के तुम अपना बियाह कर लेते। तुम्हारे लड़की होती और वह लड़की इल्यास से बियाही जाती जाती। 
    • राफे :मैंने तुम्हारे कहने और इल्यास की खातिर से बियाह किया था। खुदा ने तुम्हारी आरज़ू पूरी कर दी। लड़की हुई और खुदा की शान है के राबिया और इल्यास दोनों एक दूसरे को प्यार करते है। 
    • अम्मी :खुदा वंद दोनों को परवान चढाये। 
    • राफे :भाभी जान दुनिया में लड़की वाला कुछ नहीं कहा करता। लेकिन मई तुम्हारी इज़्ज़त और इल्यास से मुहब्बत करता हु। इसलिए मई चाहता हु के राबिया और इल्यास की मगनी हो जाये। 
    •   मेरे दिल में राफे की बातो का बड़ा असर हुआ। मैंने उसे दुआ दी और कहा “तुमने उस वक़्त जिस क़दर मेरे दिल को खुश किया है।. उसे मई जानती हु या मेरे अल्लाह। इल्यास तुम्हरा है। तुम उसका हाथ पकड़ लो। राबिया मेरी है उसे मेरी गोद में देदो। 
    •  उसी हफ्ता जुमा के रोज़ राफे ने बिरादरी और मोहल्ला के लोगो को जमा करके मगनी की रस्म अदा  करदी। तुम दोनों को मालूम भी न हुआ के तुम्हे किस रिश्ता में जकड़ दिया गया है। मुझे उससे बड़ी ख़ुशी हुई। और मेर दिल में राफे और उसकी बीवी की और इज़्ज़त व मुहब्बत क़ायम हो गयी। 
                                                
                                                अगला पार्ट (गम के बादल )
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