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  • fatah kabul ( islami tareekhi novel) part 41

    fatah kabul ( islami tareekhi novel) part 41

     


    राफे की दास्तान …. 

             इल्यास ज़ुहर की नमाज़ पढ़ कर कैंप में वापस आये। उनकी अम्मी और राफे भी नमाज़ पढ़ चुके थे।  इल्यास ने अपने चाचा से कहा ” माफ़ करना ,मैं लड़ाई का शोर सुन कर ज़ब्त न कर सका।  चला गया। 

    राफे : मेरे भोले बहादुर भतीजा यह बे अदबी नहीं जोश इस्लाम और शौक़ शहादत तुम्हे खींच कर ले गया। अगर तुम न जाते या हिचकिचाते तो मैं तुम्हे बुज़दिल समझता। तुम खींचे चले गए मुझे बड़ी ख़ुशी हुई  मुसलमान के दिल में जोश जिहाद और शौक़ शहादत नहीं उसका इमांन मुकम्मल नहीं। जिहाद में दुनयावी फायदा भी और दीनी भी। दुनवी फायदा तो शोहरत और माल गनीमत है और दीनी फायदा यह है की इस्लाम का झंडा बुलंद होता है। उनके इलावा आख़िरत  सुधर जाती है। मुजाहिद के बड़े से बड़े गुनाह अल्लाह माफ़ कर देता है। मर गए तो शहीद हुए। ज़िंदा रहे तो गाज़ी कहलाये। दोनों सूबो में जन्नत के मुस्तहिक़ हो गए। 

    अम्मी : मेरा बेटा ज़बरदस्त मुजाहिद है। 

    राफे : हर मुसलमान बड़ा मुजाहिद है। शायद  ही कोई ऐसा मुसलमान हो जो मरने से डरता हो और जिहाद से जी चुराता हो। अरब औरते गहवारा ही में अपने बच्चे को जिहाद का सवाब और उसकी खूबिया ज़हन नशीन करा देती है। जब वो होश सँभालते है तो उन्हें उनके बुज़ुर्गो के कारनामे सुनाती है। जिहाद और ग़ज़्वह के वाक़ेयात ब्यान करती है। उन्हें बहादुर बनने की तरग़ीब देती है। डर और खौफ उनके दिलो से निकाल देती है। और जब वह ज़रा बड़े हो जाते है तो फुनूँन अरब सिखाती है। घोड़े की सवारी की मश्क़ कराती है। और जब लड़कपन छोड़ कर जवानी  में क़दम रखते है तो उन्हें जिहाद पर भेजती है। 

    अम्मी : हर माँ यही  करती है बेटा। 

    राफे : मैं भी यह कह रहा हु। जिसके एक बेटा होता है वह भी अपने बेटे को बचाती नहीं बल्कि इस्लाम की आगोश में  जिहाद के मैदान में धकेल देती है। और उसकी सलामती की दुआ नहीं मांगती बल्कि यह दुआ करती है की अल्लाह  जो उसके लिए बेहतर हो वह कर। इस सरखरू और  इसकी वजह से मुझे सरखरू बना। 

    इल्यास एक तरफ  बैठ गए। अम्मी ने पूछा ” तुमने खाना खा लिया बेटा ?”

    इल्यास : अभी नहीं खाया। 

    अम्मी हम दोनों ने भी नहीं खाया। चलो पहले खाना खा लो। 

    इल्यास : चलिए। 

              तीनो उठ कर खेमे के दूसरी तरफ गए। वहा दो कम्बलो का पर्दा हो रहा था अम्मी खाना उतार कर लायी और तीनो  ने बैठ कर खाना खाया। खाने के दौरान में इल्यास ने कहा ” चाचा जान ! मैं आपके हालात सुनने का बड़ा मुश्ताक़ हु। “

    राफे : अम्मी जान को तो मैं सुना चूका हु। खाना खा कर तुम्हे भी सुना दूंगा। 

             जब तीनो खाने से फारिग हुए तो राफे ने कहा ” तुम्हारी अम्मी जान को शुरू के हालात सुना दिए है। अब मैं वहा से ब्यान करता हु जहा से राबिआ और बिमला की तलाश करने चला। जब मैं सफर की तैयारी शुरू   की तो किसी  से कोई ज़िक्र नहीं किया। ख़ुफ़िया ख़ुफ़िया तैयारी  करने लगा मेरे नेक दोस्त  इबादुल्लाह थे। इत्तेफ़ाक़ से  उन्हें मालूम हो गया। वह  भी मेरे साथ चलने पर ज़िद कर ली मैं इंकार न कर सका। उन्हें साथ लेकर चलने पर तैयार हो गया। उन्होंने भी तैयारी कर्ली और हम दोनों इस मुल्क की तरफ रवाना हुए जिसके मुताल्लिक़ कुछ भी न जानते  थे। 

    इत्तेफ़ाक़ से बिमला  के मुल्क की ज़बान बहुत  कुछ सीख लिया था। बोल भी लेता था और लिख पढ़  भी लेता था। बिमला से बा क़ायदा इसकी तालीम हासिल की थी। हम इराक से ईरान आगये और वहा से कदंज के इलाक़ा में पहुंचे खास शहर क़दांज में जाकर मालूम हुआ की बिमला वहा ठहरी थी  और राबिआ उसके साथ थी। उन्होंने बताया  की उसका इरादा काबुल जाने का था। 

    ज़रंज में ऐसा इत्तेफ़ाक़ हुआ की एक रोज़ में तनहा वहशत  ज़ेर असर जंगल में चला गया। दुपहर तक घूमता रहा जब  तबियत  को ज़रा सुकून हुआ तो वापस लौटा थोड़ी दूर ही चला था की शेर की गरज सुनी। मुझे ख्याल हुआ की  शायद शेर ने मुझे देख  लिया है और गुर्रा रहा था मैं होशियार हो गया और मैंने कमान में तीर जोड़ लिया उसी वक़्त चीख  की आवाज़ आयी मैं समझ गया की शेर ने किसी आदमी पर हमला कर दिया। मैं  झपटा चंद ही क़दम चला था की एक मैदान में जो जंगल के बीच में था शेर को एक आदमी पर झपटते देखा। मैंने फ़ौरन तीर मारा    मेरी  तरफ शेर की पेट थी तीर उसके पीछे जा लगा। वह ग़ज़बनाक होकर पलटा। मैंने जल्दी से दूसरा तीर कमान  में रख  कर खींचा और उसकी आंख को निशाना  बना कर छोड़ा तीर पर निशाना पर लगा शेर की आंख में घुस गया  वह तिलमिला कर भागा। मैंने तीसरा तीर मारा। वह उसके जिगर में पेवस्त हो गया। शेर औंधे मुंह ज़मीन     पर  जा पड़ा। 

              अब मैं उस शख्स को देखने दौड़ा  जिसे शेर ने गिरा दिया था। उस अरसा में वह उठ कर बैठ गया। मैंने उसके पास  जाकर पूछा। कहो कही निशान तो नही आयी ?

    वह शख्स किसी क़द्र  सन  रसीदा था हरा लिबास पहने थे।  अच्छे तब्क़ा से मालूम होता था। उसने कहा यज़दा    ने तुम्हारी मदद के लिए भेज  दिया।  मैं बाल बाल  बच गया। तुम्हारा शुक्रिया अदा नहीं कर सकता। 

     वह आतिश परस्त था उठ कर  मेरे साथ  हो लिया। मैंने दरयाफ्त किया तुम यहाँ कैसे आये थे। 

    वह बोला ” शामत का मारा सैर करने  चला आया था। घोड़ा बाँध कर मैदान में आकर बैठा ही था  की यह कम्बख्त  शेर कही से आ निकला। 

    वह मुझे साथ लेकर अपने घोड़े  के पास पंहुचा और मुझे घोड़े पर सवार करने को बोला जब मैंने इंकार किया तो वह उसकी बाग़ पकड़  कर वह भी मेरे साथ हो लिया। 

    जब हम शहर में आये और मैं उससे रुखसत होने लगा तो उसने कहा तुम मुसाफिर हो और अरब हो। जब तक यहाँ रहो  मेरे मकान पर ठहरना। 

    मैंने कहा मेरा एक साथी और भी है। उसने कहा उसे भी ले आना पहले तुम मकान देख लो। 

    मैं उसके साथ मकान पर पंहुचा उसका मकान निहायत आली शान था। मेरा ख्याल सही निकला। वह अमीर था उसकी  बीवी और नौजवान बेटी ने मेरा इस्तेकबाल किया। जब उन्हें बूढ़े ने अपनी दास्तान सुनाई और उन्हें मालूम हुआ  की मैंने शेर  को मार कर उसे बचाया है तो वह दोनों मुझे शुक्र गुज़ार निगाहो से देखने लगी और उन्होंने मेरा बहुत बहुत  शुक्रिया अदा किया। उन्होंने मेरी बड़ी खिदमत की। जान बचाने के सिला में बूढ़ा मुझे पांच हज़ार दिरहैम  देने लगा मैंने इंकार कर दिया। वह और उसकी बेटी मेरे और भी मश्कूर हुए। 

    बूढ़े ने मुझसे वहा आने की वजह पूछी। मैंने उससे अपनी तमाम राम कहानी सुनाई। बूढ़ा बोला ” अच्छा मैं समझ गया  .वह औरत तो मेरे बाग़ में आकर ठहरी थी। बड़ी हसींन थी। ज़रूर तुम उसके दाम फरेब में आगये। वह लड़की  भी उसके साथ थी। मैंने उसे उसकी बेटी समझा था। वह भी बड़ी खूबसूरत थी। बुध मत को मैंने वाली थी। वह शायद  काबुल गयी है। 

    मैंने कहा ” मैं भी काबुल जाऊंगा। 

    उसने  कहा ” अगर तुम इसी लिबास और इसी हालात में जाओगे तो मारे जाओगे। पहले उनकी ज़ुबान हासिल करो  और उनकी मज़हबी किताबे पढ़ो और फिर उनका क़ौमी लिबास पहन कर उनके मुल्क में जाओ। वह तुम्हे फरेब  देकर आयी है। तुम उसे जल देना। 

    मेरी समझ में यह बात आगयी। मैंने कहा ” आपका मश्वरा  मुनासिब है लेकिन यहाँ मुझे कौन बुध मत की किताबे  पढ़ायेगा। “

    उसने कहा ” उसका मैं इंतेज़ाम कर दूंगा। 

    उसने अपना आदमी मेरे साथ मेरी क़याम गाह पर भेजा और मैं इबददुल्लाह दोनों उसके यहाँ उठ गए। इबादुल्लाह  मुझसे कुछ छोटे थे हम दोनों वहा रहने लगे। एक आदमी मुझे तृप्तक पढ़ाने लगा एक महीना तक हम  वहा रहे। मैं देख रहा था की उस बूढ़े की जवान बेटी इबादुल्लाह की तरफ माएल हो रही है। इबादुल्लाह उससे बचते  थे। एक रोज़ उस लड़की ने इबादुल्लाह से तन्हाई में कह दिया की वह उनसे मुहब्बत  करती है उन्होंने   साफ़ कह दिया की मज़हब खलेज दरमियान में हाएल है। इबादुल्लाह यह बाते मुझसे ब्यान करके मुझे वहा से चलने  को कहा। मैंने बड़ी मुश्किल से बूढ़े  से इजाज़त हासिल। की 

    जब मैं चलने लगा तो बूढ़े ने कहा ” मैं तुम्हारा इस दर्जा मश्कूर हु की अगर तुम पसंद करो तो मैं अपनी बेटी से तुम्हारी  शादी कर दूँ। मेरे बाद तमाम दौलत तुम्हारी होगी। 

    मैंने उससे कहा ” पहले मुझे अपनी बेटी तलाश  करनी चाहिए “उसने मुझसे इक़रार लिया की जब मैं वापस आऊं तो  उसके यहाँ ठहरु “मैंने मान लिया। उसने हम दोनों के लिए कई जोड़े कपड़े कबिलियो जैसे बना कर दिए और बहुत  कुछ नकदी भी दी। हम वहा से आगे चल पड़े। उस वक़्त असर की अज़ान हुई और यह दोनों नमाज़ के लिए उठ  गए। 

                           अगला पार्ट ( बाक़िया हैरतनाक हाल) 

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  • fatah kabul (islami tareekhi novel) part 40

    fatah kabul (islami tareekhi novel) part 40

     बोद्ध ज़ोर का हश्र …. 

                                                              

                                                        


    जब मुसलमानो  का दादर पर क़ब्ज़ा पूरी तरह से हो गया तो सुबह सादिक़ हुई। कई मुसलमानो ने मिल कर  अज़ान दी। यह पाहि सदाए तौहीद थी जो दादर के क़िला में बुलंद हुई मुसलमानो ने वज़ू किये और खुले मैदान में नमाज़ की तैयारी करने लगे। उन्हें यह  खौफ भी न हुआ की वह काफिरो के क़िला में है। चंद ही घंटे हुए की उन्होंने क़िला फतह कर लिया। कही कुफ्फार नमाज़ की हालत में उन पर हमला न कर दे। उन्होंने जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ी। काफिरो को अपने घरो से निकलने की जुर्रत ही न हुई। नमाज़  फारिग हो कर वह कुछ देर बैठे रहे फिर शहर और क़िला पर तसल्लुत करने के लिए चले। 

    इस वक़्त आफ़ताब  निकल आया था और धुप दरख्तों की चोटियों और ऊँची दीवारों पर फैल गयी थी। दादर के लोग खौफ व दहशत से सहमे हुए थे और घरो में छिपे बैठे हुए थे। लीडर अब्दुर्रहमान ने पांच सौ सवार इल्यास को देकर हुक्म दिया की राजा के महल मुहासरा करके अगर कोई उनकी मुज़हमत करे तो उसे क़त्ल कर डाले और राजा को गिरफ्तार करके उसका तमाम खज़ाना और सारा साज़  व सामान ज़ब्त कर ली। एक जस्ता एक और अफसर को दे कर हुक्म दिया की वह शहर के रईस के घरो पर ताखत करे और खुद एक दस्ता लेकर धार की तरफ चले। 

    इल्यास जब राजा के महल  के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा की महल की फ़सील पर अपने रिसाला के सिपाहियों को लिए खड़ा है। राजा का महल एक छोटी से घढ़ ही थी उस घड़ ही की दीवारे पत्थर  की निहायत मज़बूत थी। इल्यास झंडा  हाथ में लेकर कर अपने दस्ता को वही ठहरा कर बढे और बुलंद आवाज़ से कहा ” मैं राजा से बाते करना चाहता  हु। “

    राजा आगे आया उसने कहा ” कहो क्या कहते हो ?”

    इल्यास हम सुलह का पैगाम लेकर आये लेकिन तुमने न माना जिस लश्कर पर तुम्हे नाज़ था वह पारह पारह हो गया  जिस क़िला पर तुम्हे ज़अम न था  वह फतह हो चूका है। अब तुम किस भरोसा पर हमारा मुक़ाबला करने को तैयार  हो। 

    राजा : हम हिन्द वालो को तुम नहीं जानते हम आखरी दम तक लड़ा करते है। 

    इल्यास : गलती न करो। अगर  तुम हथियार डाल दो तो मैं वादा करता हु की  तुम्हारे साथ अच्छा सुलूक किया जायेगा  . 

    राजा : बहादुर हथियार नहीं डाला करते। तुम इस बात पर घमंड न करो की तुमने धोका से क़िला फतह कर लिया है। इस महल को फतह न कर सकोगे। तुम्हारे लिए अब भी मैं यही कहता हु की तुम अगर यहाँ स चले जाओ तो तुमसे  कोई अर्ज़ न करूंगा। 

    इल्यास : जब क़िला तुम्हे पनाह न दे सका तो यह गढ़ही क्या पनाह देगी। 

    यह कह कर वह लौट आये और उन्होंने दस्ता को आगे बढ़ जाने का हुक्म किया। जैसे ही मुसलमान बढे राजा ने अपने सिपाहियों को तीर बारी का हुक्म दिया। ऊपर से मुसलमानो पर तीर बरसने लगे। मुसलमानो ने ढालो पर रोके  फिर भी कुछ तीर मुसलमानो को लगे और वह ज़ख़्मी हो गए। 

    इल्यास ने मुसलमानो को पैदल हो जाने का हुक्म दिया। वह जल्दी जल्दी घोड़ो से कूदने लगे और ढालो की आड़ लेकर  उस तेज़ी से झपटे की राजा और उसके सिपाही उन्हें रोक न सके। वह गढ़ही के दरवाज़े पर पहुंच गए दरवाज़ा तोड़ने लगे। 

              सिपाहियों ने ऊपर से पत्थर बरसाने लगे। मुसलमानो ने वह भी ढालो पर रोके। आखिर थोड़ी देर में दरवज़ा तोड़  दिया और तलवारे सौंत कर अंदर घुसे। इस महल के दो हिस्से थे। एक मरदाना और दूसरा ज़नाना मरदाना हिस्से में  सिपाही ऊपर से उतर कर आ गए और मुक़ाबला करने लगे। मुसलमानो ने अल्लाहु अकबर का नारा लगा कर  उन पर इस ज़ोर से  हमला किया की उनकी लाशें गिरा कर अगर सहन भर दिया  जिस सिपाही पर जो मुस्लमान  हमला करता था उसका सर उड़ा देता था। सिपाही भी राजा के तरग़ीब देने से बड़े जोश में आ कर हमला  करते थे लेकिन उनकी तलवारे गोया कंद हो गयी थी और मुसलमानो की तलवारे बराबर काट कर रही थी। इल्यास  बड़ी बहादुरी से लड़ रहे थे वह जिस सिपाही पर हमला करते थे उसके दो टुकड़े कर डालते थे। अगर कोई  अजल रसीदा हमला करता था तो उसे भी हलाक कर डालते थे। यहाँ तक की वह मारते काटते राजा के क़रीब पहुंच गए  . 

               राजा तड़प कर उनके मुक़ाबले में आगया  और निहायत शिद्दत से उनपर हमला करने लगा। वह सब्र व इस्तेक़लाल  से उसके हमले रोकते रहे जब देर हो गयी तो उन्होंने अल्लाहु अकबर का नारा लगा कर तलवार मारी। राजा  ने अपने तलवार रोक ली। राजा की तलवार कट कर दूर जाकर गिरी अगर इल्यास चाहते तो दूसरा हमला  करके निचे गिरा देते मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया और कहा ”  तुम्हे तुम्हारी फ़ौज क़िला गड़ही रिसाला ख़ास  और तुम्हारा माबूद कोई भी पनाह न दे सका। ‘उन्होंने एक मुस्लमान को इशारा किया। उसने राजा को गिरफ्तार  कर लिया। 

    राजा के गिरफ्तार होते ही उसके सिपाहियों के जी छूट  गए वह भागे उन्होंने गलती की भागने का रास्ता बंद था। मुसलमानो ने  उनका पीछा करके उन सबको क़त्ल कर दिया। 

    अब इल्यास कुछ सिपाही लेकर रनवास मतलब ज़नाना  महल में घुस गए उन्हें देखते ही बांदियो ने चिल्लाना शुरू कर दिया।  रानी और राजा की बेटी चीख पड़ी। इल्यास ने उन्हें तसल्ली दी और कहा ” घबराओ नहीं तुम्हारा बाल भी बेका न होगा  .”

    इल्यास ने महल की तमाम औरतो को हिरासत में ले लिया और महल का सब साज़ व सामान सोने चाँदी के जेवरात  और बर्तन सोने और जवाहरात के छोटे छोटे बुत जिनकी पूजा रानी राजकुमारी करती थी और नक़द जो कुछ था  सब अपने क़ब्ज़े में   कर लिया। उन्होंने फिर खज़ाना पर धावा बोला और खज़ाना का ताला तोड़ कर वहा से सोने और  चाँदी के सिक्के जवाहरात ,याक़ूत  तख़्त चांदी के और कई ताज सोने के गरज़ सब कुछ ले लिया। अब वह धार  की तरफ चले। उन्होंने रास्ता में देखा की मुस्लमान रईसों और मालदारों के घरो में घुस घुस कर  नक़द ज़ेवर और क़ीमती  साज़ व सामान पर क़ब्ज़ा कर रहे है। 

     जब इल्यास धार पर पहुंचे तो उन्होंने देखा की धार का दरवाज़ा बंद है और हज़ारो आदमी ऊपर से पत्थर और तीर  बरसा रहे है। लीडर अब्दुर्रहमान को जोश आगया। वह अल्लाहु अकबर का नारा लगा कर बढे। तमाम मुसलमानो ने  नारा तकबीर बुलंद किया। 

    उस नारा की  आवाज़ से कुफ्फार घबरा गए। कई आदमी ऊपर से उछल कर निचे आ गिरे। वह शायद यह समझे की  मुसलमानो ने दरवाज़ा तोड़ डाला और अंदर धार के सहन में उतरने का मुसलमानो को मौक़ा मिल गया उन्होंने  झपट कर दरवाज़ा तोड़ डाला और तलवारे सौंत कर सहन में घुस गए। वहा जाते ही उन्होंने क़त्ल आम शुरू किया  . दम के दम में हज़ारो आदमियों को मार डाला जो बाक़ी रहे उन्होंने अमांन मांगी। उनसे हथियार ले गए  और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 

    इल्यास भी राजा और उसके औरतो के लेकर धार में दाखिल हुए उन्होंने उन्हें लीडर अब्दुर्रहमान के सामने पेश करके कहा ” यह राजा और उनकी औरते है ” 

    अब्दुर्रहमान : उन्हें बुत के पास ले चलो। और जो लोग गिरफ्तार है उन्हें भी लाओ। 

                           इस कमरा में जिसमे बुत था सैंकड़ो औरते और लड़किया मौजूद थी। सब निहायत  ख़ौफ़ज़दा और सहमी  हुई थी। कुछ ज़ार ज़ार  रो रही थी। राजा रानी और राजकुमारी को हिरासत में आता देख कर क़रीब क़रीब सब ही  रोने लगी। अब्दुर्रहमान ने कड़क कर कहा “खामोश हो जाओ। “

                सब खामोश हो गयी। लीडर ने एक तरफ औरतो को खड़ा  किया और दूसरी तरफ मर्दो को। उनके पीछे मुस्लमान  खड़े हो गए। अब्दुर्रहमान इल्यास को साथ लेकर बुत के पास गए। उन्होंने धार वालो से मुखातिब होकर कहा  ” ए अहले  शिर्क ! तुम आज तक इस बुत की पूजा करते रहे हो अगर यह तुम्हारा खुदा कोई ताक़त रखता है तो उससे  कहो की यह हम मुसलमानो को मिटा दे। ‘

    सब चुप रहे। किसी को कुछ कहने की हिम्मत न हुई। अब्दुर्रहमान ने कहा ” तुम चुप हो अपने खुदा से कुछ कहते। अच्छा  मैं तुम्हारे खुदा को देखता हु। “

    यह कह कर उन्होंने तलवार के दो हाथ मारे जिससे बुत के दोनों हाथ कट गए यह बुत खालिस सोने का था। अब्दुर्रहमान ने कहा ” लो मैंने तुम्हारे खुदा के हाथ काट दिए। इस पर भी वह मुझे सजा नहीं दे सका। 

       उसके बाद उन्होंने उसकी आँखों में से दोनों याक़ूत निकाल लिए और राजा से मुखातिब हो कर कहा ” तुम पर       अफ़सोस है। तुम आज तक इस बुत की पूजा करते रहे हो जो कुछ भी नहीं कर सकता। बेकार महज़ है। बुरा भला कोई काम नहीं कर सकता। 

    अब भी सब  लोग चुप थे। इस धार में सोने चांदी का बहुत कुछ सामान और जेवरात थे। नकदी भी बहुत थी  . मुसलमानो ने वह सब निकाल लिया। तमाम माले गनीमत एक जगह जमा किया गया। बे शुमार दौलत हाथ आयी। पांचवा  हिस्सा दरबार खिलाफत के लिए निकाल कर बाक़ी तमाम लश्कर पर तक़सीम कर दिया गया। एक एक सवार  के हिस्सा में चार चार हज़ार दिरहैम आये। अफसरों को उससे दो गुना मिला। 

                       अगल भाग ( राफे की  दास्तान ) 

  • fatah kabul (islami tareekhi novel )part 39

    fatah kabul (islami tareekhi novel )part 39

     

    दादर की फतह….. 




    हम्माद राफे जैसे वह पेशवा समझ रहे थे और इल्यास के कहने से चले। उन्होंने अपने दस्ता को बुलाया और उन्हें यह  समझा कर की दुश्मन शब् खून मारने वाला है मुसलमानो को होशियार कर दो। उन्हें तमाम सिम्तो पर भेज दिया। और खुद लीडर के खेमा की तरफ चले। 

    उन मुहाफ़िज़ दस्तो ने सेंट्रो में जाते ही नींद से बेदार हो कर जिहाद के लिए आओ के नारे लगाए और जब उन्होंने देखा की मुस्लमान कलबलाने लगे है तो होशियार के नारे इतनी ऊँची आवाज़ से लगाए जो कैंप  से बाहर न जा सके। 

    मुस्लमान जल्दी जल्दी उठ उठ कर मुस्लाह होने लगे  और बाहर निकलने लगे जब उन्हें बताया जाता की दुश्मन शब् खून मारने वाला है तो वह लड़ाई के लिए तैयार हो जाते।  हम्माद ने लीडर को उठाया और उन्हें सूरत हाल से आगाह किया। वह भी जल्दी से मुसलः हो कर बाहर निकल आये। और  हम्माद से मज़ीद वाक़्यात पूछे। हम्माद ने पेशवा  के आने और खबरदार करने का हाल सुनाया। उन्होंने कहा ” देखो  तुम ऐसा करो की आधा लश्कर लेकर  कैंप से बाहर शिमाल  की तरफ ज़रा फासले पर चले जाओ और मैं आधा लश्कर लेकर जुनूब की  तरफ जाता हु जब दुश्मन कैंप की तरफ चले तो तुम उसे पीछे से घेर लो मैं भी आजाऊंगा उसे हलाली सूरत में नरगा में लेना चाहिए। “

    हम्माद : कुछ मैं अर्ज़ करू। 

    अब्दुर्रहमान : कहो। 

    हम्माद : लश्कर के तीन हिस्से कर लीजिये। एक हिस्सा खेमे की पहली क़तार के पीछे छिपा दीजिये। एक हिस्सा मेरे  साथ दीजिये। और एक हिस्सा अपने साथ रखिये। हम दोनों शिमाली जुनूबी  किनारो पर छिप कर बैठ जाएँ। जब दुश्मन  आगे बढ़ आये तो हम उसके बराबर और पीछे से घेरा डाल लें और अचानक हमला करके लड़ाई शुरू  कर दें। इस तरह हम उन्हें चारो तरफ से घेर लेंगे। 

    अब्दुर्रहमान : निहायत मुनासिब तदबीर है तुम्हारी। अच्छा जल्दी करो। 

    हम्माद ने लश्कर के तीन हिस्से किये। एक हिस्सा अब्दुर्रहमान को दिया और दूसरा  अपने तहत में रखा और तीसरा  ओबैदुल्लाह एक अफसर के सुपुर्द किया। ओबैदुल्लाह ने अपना दस्ता खेमो के पीछे छिपा दिया और हम्माद और अब्दुर्रहमान अपने दस्ते लेकर एक शिमाल की तरफ लेकर और दूसरी जुनूब की तरफ कैंप से फासला  पर जाकर अँधेरे में छिप गए। 

    थोड़ी   ही देर में हम्माद ने देखा की क़िला का दरवाज़ा खुला। कई मशाले नमूदार हुईं और उन मशालों की रौशनी में टिड्डी  दिल लश्कर क़िला से बाहर निकल कर इस्लामी कैंप की तरफ बढ़ा। वह सब लोग पैदल थे। शायद इस वजह से घोड़ो  पर सवार हो कर नहीं आये थे की कही टापों  की आवाज़ से मुसलमान ख़बरदार न हो जाये और निहायत तेज़ी  मगर पूरी एहतियात से आ रहे थे। उनके साथ चंद अफसर घोड़ो पर भी सवार थे। 

    बढ़ते बढ़ते जब वह इस इस मैदान को तय करने लगे जिसके दोनों किनारो पर मुस्लमान छिपे हुए थे  मुसलमानो ने  सांस तक रोक लिए दुश्मन बढ़ कर जब इस्लामी कैंप के क़रीब  पहुंच गया तो एक तरफ से लीडर अब्दुर्रहमान और दूसरी  तरफ से हम्माद अपने अपने सिपाहियों को लेकर इस तरह उठे की कोई खटका न हुआ। उन्होंने मियान  संम्भाल लिए और कुछ लोग आहिस्ता आहिस्ता क़िला की तरफ बढ़ कर हलाली सूरत में काफिरो के पीछे आगये। 

    क़िला दादर  सिपाहि आने वाले खतरा से बे खबर बढे चले आ रहे थे जब वह बिलकुल कैंप के किनारा पर पहुंच गए तो उबैदुल्लाह  और उनके साथियो ने अल्लाहु अकबर का नारा लगा कर अचानक उनपर हमला कर दिया। इस नारा को सुन कर दादर वाले घबरा गए और जब  उनपर हमला हुआ तो और भी ख़ौफ़ज़दा हो गए लेकिन अब उनके  लिए सिवाए लड़ने के कोई चारा नहीं रहा था। उन्होंने ढालो पर मुसलमानो की तलवारे रोकी और खुद भी अपनी तलवारे  मियानो से खींच लें और शोर करके मुसलमानो से भिड़ गए। 

    यही वह शोर था जो इल्यास ने सुना था और वह नेज़ा हिलाते हुए बढे थे। वह भी हंगामा की जगह पर पहुंच गए और उन्होंने  नेज़ा से हमला करके कई काफिरो को छेद डाला। उन्हें फ़ौरन ही ख्याल हुआ की नेज़ा से इस मौके पर तलवार  ज़्यादा काम देगी। लिहाज़ा उन्होंने नेज़ा डाल दिया और तलवार निकाल कर निहायत जोश से हमला किया।  हर मुसलमान अपनी ताक़त से ज़्यादा ज़ोर से लड़  रहा था और इस फुर्ती से हमले कर रहा था जैसे वही सारे  दुश्मनो को क़तल करना चाहता है। 

    कुफ्फार भी डट गए और बड़ी बहादुरी से लड़ने लगे वह भी मुसलमानो को  क़तल व ज़ख़्मी कर रहे थे। उन्हें यह ख्याल  था की तमाम मुस्लमान सामने है इसलिए दिल जमई से जंग में मसरूफ थे अलबत्ता इस बात से हैरान थे की  मुसलमानो को शब् खून मारने की इत्तेला किस तरह हो गयी। 

    जंग की आग भड़क उठी थी और इस शोले इंसानो को अपनी लपेट में ले रहे थे। अँधेरे में तलवारे उठ उठ कर सर व तन के फैसले कर रही थीं मार धाड़ हो रही थी और सर उछल उछल कर गिर रहे थे चुकि अँधेरा हो रहा था इसलिए यह नहीं मालूम होता था की कौन फ़रीक़ ज़्यादा मर रहा है और खून किस क़द्र बह रहा है। 

    लड़ाई कैंप के किनारे पर हो रही थी न तो अभी काफिर कैंप में दाखिल हुए थे और न मुसलमान उन्हें पीछे धकेल सके थे एक ही जगह लड़ाई हो रही थी लेकिन लड़ाई का महाज़ लम्बाई में कैंप के एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैला हुआ था। 

    दुश्मन शायद इस डर से खामोश था की किसी क़िस्म के नारे वगैरा न लगा रहा था की वह समझता था सारे मुसलमान उसके मुक़ाबले में नहीं आये है लड़ने वाले मुहाफ़िज़ है कही शोर करने से सारे मुसलमान बेदार और होशियार  हो कर मुक़ाबला में न आ जाये। मुसलमान भी खामोश थे और  ख़ामोशी से तलवारे चला रहे थे। 

    रात अँधेरी थी आसमान से ज़मीन तक अँधेरा फैला हुआ था सियाह आसमान में सितारे जगमगा रहे थे। क़ुदरत ने आसमान  को इन रोशन से आरास्ता किया था की कही जगह न रही थी। कैंप में कुछ जगह अब भी अलाव रोशन थे  और इस रौशनी के मद्धम अक्स में लड़ने वाले एक दूसरे को देख देख कर  पहचान पहचान कर हमले कर रहे थे  . 

    जबकि तलवारे काट कर रही थी और सरफरोश क़त्ल हो हो कर  गिर रहे थे। एक ग्रुप दूसरे को हराने के लिए एड़ी  चोटी का ज़ोर लगा रहा था। उस वक़्त अचानक दुश्मनो के पीछे और दोनों पहलुओं से अल्लाहु अकबर के  नारे  की आवाज़े आयी और साथ ही उन तीनो तरफ से भी उनपर हमला हो गया। 

    मुसलमानो ने तलवारे सोनत कर इस तरह दुश्मनो को क़त्ल करना शुरू  कर दिया जिस तरह काश्त कार खेती काटा करते है  .उनकी खून आशाम तलवारो ने बे तकल्लुफी से काट शुरू  कर दी। 

    इस हमले से काफिर घबरा गए। अब उन्होंने समझा की जिस हाल में वह मुसलमानो को फसाने के लिए आये थे इसमें  खुद ही फंस कर रहा गए है। मुसलमानो ने  उन्हें चारो तरफ से नरगा में ले लिया है। अब उनके लिए वापसी का कोई  रास्ता नहीं रहा था। वह मौत की लड़ाई लड़ने लगे और इस फ़िक्र में लग गए की आगे वाले मुसलमानो को  काट कर कैंप में दाखिल हो जाये चुनांचा उन्होंने बड़े ज़ोर से हमला किया। मुसलमानो को तलवारो की धारो  पर रख लिया  . 

    लेकिन मुस्लमान भी पत्थर की चट्टान की तरह जम गए उन्होंने उनके हमले रोक कर खुद भी जोश और तेज़ी से हमले  शुरू किये  और हर हमला में दुश्मनो की काफी तादाद ज़ब्ह करके  डाल दी। 

    उधर मुसलमानो ने दुश्मनो के पीछे और दोनों पहलुओं से हमले करके उन्हें क़त्ल करना शुरू कर दिया। उन्होंने सफो की  सफ्हे बिछा दी और लाशो पर लाशें डाल दी। खून पानी की तरह बहने लगा। ज़मीन पर फिसलन  हो गयी  बेशुमार काफिर मारे गए। 

    मुसलमानो के नारा लगाने के बाद फिर ख़ामोशी छा गयी। सिवाए तलवारो की खटा खट और खचा खच के या ज़ख़्मी  और क़त्ल होने वालो की आह व बका के और कोई आवाज़ न आ रही थी। 

    थोड़ी ही देर में  ज़्यादा  तादाद में काफिर मारे गए जो बाक़ी बचे उन्होंने हथियार डाल दिए। मुसलमानो ने उन्हें गिरफ्तार  कर  लिया जब सब गिरफ्तार कर लिए गए तो लीडर अब्दुर्रहमान ने कहा ” मौक़ा है इसी वक़्त क़िला   पर  भी धावा कर दो। “

    मुसलमान बड़ी ख़ुशी से तैयार हो गए चुनांचा  दो हज़ार जांबाज़ अब्दुर्रहमान और इल्यास की सरकर्दगी में तेज़ी से क़िला  की तरफ बढे। मशअल बरदार अभी तक मष्ति लिए दरवाज़ा पर खड़े थे शायद वो समझ रहे थे की उनकी क़ौम  ने मुसलमानो को ज़बह कर दिया है और फतह के बाद वापस आरही है। 

     लेकिन जब मुसलमान दरवाज़े के क़रीब पहुंचे और मशाल बरदारो ने उन्हें देखा तो वह खौफज़दा हो कर मशाले फ़ेंक  फ़ेंक कर ” मुस्लमान आगये ” के नारे लगाते क़िला के अंदर भाग गए। उनके पीछे मुसलमान भी पहुंचे  और उन्होंने  क़िला के अंदर जाकर अल्लाहु अकबर का नारा लगाया। क़िला वाले इस हेबत नाक नारा की आवाज़ सुन कर  काँप गए। इल्यास ने जीना चढ़ कर ब्रिज पर जाकर कबीलो का झंडा उतार कर इस्लामी झंडा लगा दिया। इस तरह  एक खून रेज़ जंग के बाद मगर फिर भी बहुत आसानी से मुसलमानो का दादर पर क़ब्ज़ा हो गया। .. 

                                        अगला भाग ( बुध ज़ोर का हश्र ) 

  • fatah kabul ( islami tareekhi novel) part 38

    fatah kabul ( islami tareekhi novel) part 38



    इंकेशाफ राज़ ( राज़ का ज़ाहिर होना )






    मुस्लमान असर के टाइम लौट कर अपने कैंप पर पहुंच गए। सबसे पहले उन्होंने असर की नमाज़ पढ़ी और कुछ देर आराम किया। मगरिब की अज़ान होने पर जमात के  साथ नमाज़ पढ़ी और अलाव जला कर खाने का इंतेज़ाम करने लगे। 
    इस इस्लामी लश्कर के साथ कुछ गुलाम भी थे। वह लकड़िया काट लाये जो रात भर जलाई जाते। शुरू रात से जो अलाव रोशन होते तो सुबह तक रोशन रहते। 
    खाना खा कर मुसलमानो ने ईशा की नमाज़ पढ़ी और सो रहे। एक दस्ता दो सौ सवारों का हमाद की सरकिर्दगी में लश्कर की हिफाज़त पर खड़ी हुई जिसने गश्त शुरू किया। जो की यह खौफ था की कही दुश्मन शब् खून न मारे इसलिए पहरा का ज़्यादा इंतेज़ाम क़िला की तरफ था। 
    जब एक तिहाई रात गुज़र गयी तो हम्माद ने  देखा की क़िला  की तरफ से एक साया लश्कर की तरफ बढ़ा चला आ रहा है। वह हैरान रह गए और उन्होंने गौर से देखना शुरू किया। कई अलाव की रौशनी उस पर पड़ रही थी लेकिन वह साया इतनी दूर था की ठीक तौर पर मालूम न हो सका की  क्या है। साया  भी रुक गया। हम्माद खुद अँधेरे में घोड़े से उतर कर खड़े  हो गए और अपने साथियो को आगे बढ़ने का हुक्म दिया। वह लोग बढे चले गए। 
    हम्माद ने साया की तरफ टिकटिकी लगा। दी उन्होंने देखा की साया ने फिरसे हरकत की और क़दम क़दम आगे बढ़ना शुरू किया। जब वह ज़्यादा क़रीब आगया तो उन्होंने पहचान लिया वह आदमी था जो आहट से भड़कता चौकता आहिस्ता आहिस्ता चला आ रहा था। उन्होंने उसकी कपड़े से पहचान लिया की वह क़िला वालो में से है। हम्माद  और अँधेरे में हो गए ताकि उसकी नज़र न पड़े और वह निगाहो से ओझल भी न हो। 
    आने वाला कैंप के किनारा पर आ खड़ा  हुआ। वह उनसे कई क़दम के फासला पर था। उसकी नज़रे कैंप का जायज़ा  ले रही थी।   वह गालिबन यह देख  रहा था की लोग सोते है या जाग रहे है। कुछ जगह अभी तक अलाव रोशन थे  लेकिन कुछ के अलाव के शोले बुझ गए थे अलबत्ता अंगारे पड़े दहक रहे थे। मुस्लमान खेमो के अंदर घुसे  आराम व इत्मीनान से  सो रहे थे। 
    वह शख्स अपना कुछ इत्मीनान करके कैंप के अंदर दाखिल हुआ। हम्माद ने यह समझा की वह सुराग लगाने नहीं आया  क्यू की अगर यह देखने आता की मुस्लमान जाग रहे है या सो रहे है तो वापस चला जाता। उनका ख्याल हुआ  की वह शायद अमीर को क़तल करने में आया है वह उसके पीछे लग गए। 
    मुस्लमान के खेमे क़तार दर क़तार थे जब वह दो सेंटर आबूर कर गया तो हम्माद ने दबे क़दमों जाकर उसकी गर्दन  जा दबोची।  उनका ख्याल था की वह चीख उठेगा और घबरा कर भागने की कोशिश करेगा लेकिन न चीखा न घबराया   न भागने पर आमादा हुआ बल्कि निहायत नरमी से हम्माद का हाथ अपनी गर्दन के ऊपर से हटाने लगा  हम्माद की गिरिफ्त सख्त तर होती गयी। उन्होंने कहा ” बोलो तुम कौन हो ?” 
    उस शख्स ने आहिस्ता से कहा ” मैं तुम्हारा दोस्त हु दुश्मन नहीं। मेरी गर्दन से हाथ उठा लो  मैं कही नहीं भाग रहा। 
    हम्माद : मगर दुश्मन का क्या एतबार। 
    वही शख्स : मैं समझता था की मुस्लमान बहादुर होते है मगर तजर्बा कुछ और बता रहा है पहले मैं कह चूका हु  की मैं दुश्मन  नहीं हु। दोस्त हु और अगर तूम दुश्मन भी कहते हो तो इस वक़्त मैं निहत्ता हु। मुझसे डरना क्या। 
    उसकी इस बातो से हम्माद को शर्मिंदा हुए। उन्होंने उसकी गर्दन छोड़ दी और कहा ” मुस्लमान और डर और खौफ के नाम  से भी आशना नहीं होता। मैंने गर्दन इसलिए नहीं पकड़ी थी की तुम मुझ पर हमला करोगे बल्कि मस्लेहत  और दूर अंदेशी थी। 
    अच्छा बताओ तुम कौन हो। 
    वही शख्स : मेरा ख्याल है की अगर तुम मुझे रौशनी में देखोगे तो पहचान लोगे। 
    हम्माद : आओ रौशनी में चलो। 
    वह उसे रौशनी में ले गए जब उन्होंने देखा तो हैरान हो गए। वह पेशवा था। हम्माद ने कहा “तुम….. “
    पेशवा ने उनके मुँह पर हाथ रख कर कहा ” खामोश रहो ” 
    हम्माद : तुम किस लिए आये हो ?
    पेशवा : इल्यास से मिलने। वक़्त बातो में जाया न करो मुझे फ़ौरन उसके खेमे में लेकर चलो। 
    हम्माद : जब तुम इल्यास से बाते कर रहे थे मैं तुम्हारी नज़रे देख रहा था मैं समझ गया था की तुम उनसे मिलने ज़रूर  आओगे। आओ मेरे साथ चलो। 
    वह उन्हें लेकर खेमे पर पहुंचे। उन्होंने बाहर  ही से इल्यास को आवाज़ दी क्यू की उन्हें मालूम था की उनके खेमा में  उनकी माँ भी मौजूद है। इल्यास ने जवाब दिया। ” अभी आ रहा हु “
    पेशवा ने हम्माद से कहा ” मैं इल्यास से बाते कर लूंगा तुम्हे बताता हु की राजा शब् खून मारने के लिए आ रहा है। आधी  रात का वक़्त शब् खून के लिए तय हुआ था। तुम अपने लश्कर को होशियार करके ऐसी तदबीर करलो की दुश्मन  नरगा में आजाये। 
    हम्माद को बड़ी हैरत हुई की पेशवा क़िला से निकल कर इल्यास से मिलने और मुसलमानो के शब खून सा आगाह  करने आया है। उन्हें खौफ हुआ की कही वह इल्यास को क़त्ल  करने न आया हो और उसके पास कोई हथियार छिपा हुआ न हो।  उन्होंने कहा ” मैं तुम्हे तन्हाई में इल्यास से मिलने की इजाज़त नहीं दे सकता। 
    पेशवा : वक़्त को जाया न करो। मैं क़सम खाता हु की इल्यास को नुकसान पहुंचाने नहीं आया। 
    इस अरसा में इल्यास भी बाहर आगये उनके खेमा के सामने अभी तक अलाव रोशन था और एक गुलाम अलाव के पास  पड़ा सो रहा था। इल्यास ने आग की रौशनी में पहले हम्माद को फिर पेशवा को देखा। वह पेशवा को देख कर हैरान रह गए। उन्होंने कहा ” तुम… और इस वक़्त यहाँ “
    पेशवा : तुम इस वक़्त हैरान हो हो रहे हो इससे ज़्यादा उस वक़्त करोगे जब मैं तुम पर एक राज़ ज़ाहिर कर दूंगा। 
    हम्माद से मुखातिब हो कर उसने कहा ” तुम जाओ और लश्कर को होशियार कर दो। वरना पछताओगे। 
    हम्माद ने इल्यास से कहा ” यह कहते है दुश्मन शब् खून मारने का इरादा से आ रहे है। मैं लश्कर को होशियार कर  दू। 
    इल्यास ने जल्दी से कहा ” तो खुदा के लिए जाईये। जल्दी कीजिये अगर दुश्मन सर पर आ गया तो क्या होगा। लीडर  को भी खबर  दे दीजिये। मैं भी उनसे बाते करके आरहा हु। “
    हम्माद वहा से चले गए। इल्यास ने कहा ” अब राज़ ज़ाहिर कीजिये ” 
    पेशवा : बेटा मैंने तुम्हे उसी वक़्त पहचान लिया था जब तुम पहली मर्तबा धार में मिले थे। मैंने सबके सामने तुम्हारे साथ जो कुछ  किया मुझे वही करना चाहिए था। लेकिन बाद में मैंने तुम्हारा इम्तेहान लिया सुगमित्रा को इसलिए पास भेजा  की तुम्हे आज़माऊ। आज दुनिया में शायद ही कोई ऐसा शख्स हो उसका कहना न माने। बड़े बड़े महाराजा  और राजकुमार उसके अदना इशारे पर जाने तक देने को तैयार हो जाते है लेकिन तुम  इम्तेहान में पुरे उतरे  मेरे इशारा पर तुम्हे जेलखाने से निकाल दिया गया मैंने जब मालूम  कर लिया की तुम सही सलामत निकल गए   तो मुझे इत्मीनान हुआ। मेरा ख्याल था तुम फिर वापस न आओगे मगर तुम आये और लश्कर के साथ आये जब तूम दिन में क़िला  में गए थे मैं तुम्हे देख कर हैरान रह गया था। 
    इल्यास : लेकिन तुमने अभी तक राज़ ज़ाहिर न किया। 
    पेशवा : मैं उस राज़ पर आ रहा हु। बेटा ! मैं कोई गैर नहीं हु। तुम्हारा चाचा हु। 
    इल्यास सख्त हैरान हुए उसी वक़्त खेमा के अंदर से आवाज़ आयी ” बेटा राफे “
    राफे : क्या अम्मी जान। 
    अम्मी खेमा से बाहर निकल कर आयी। राफे ने उन्हें सलाम किया। उन्होंने उन्हें अपने सीने से लगा लिया  और कहा  ” बेटा ! तम्हे जुदा हुए पंद्रह साल हो चुके है लेकिन तुम्हारी आवाज़ मैंने पहचान ली थी। खुदा का हज़ार हज़ार  शुक्र व अहसान है तुमसे मिलने की बड़ी आरज़ू थी पूरी हो गयी। राबिआ से मिलने की आरज़ू रह गयी है। 
    राफे ; इंशाअल्लाह वह भी पूरी होगी। 
    इल्यास  अभी तक हैरान थे  जब उनकी हैरत कुछ कम हुई  तो वह राफे से लिपट गए। 
    उन्होंने कहा ” अच्छे चाचा जान ! तुमने पहले ही मुझे क्यू आगाह न किया। 
    राफे : वह मौक़ा मुनासिब न था। 
    अम्मी : राफे ! क्या यह सच है की राबिआ ही का नाम सुगमित्रा है। 
    राफे : यह बिलकुल  सच है। बड़ी मुश्किल से मैंने उसका खोज निकाला है उसे यहाँ से निकाल ले जाने की कोशिश  में इतना ज़माना गुज़र गया। महाराजा काबुल उसकी बड़ी हिफाज़त करते है इसलिए अभी तक कामयाबी  नहीं हुई। 
    अम्मी ने इल्यास से मुखातिब हो कर कहा ” तुमने सुना बेटा क्या तुमसे मैंने यही बात कही थी न “?
    इल्यास :  हां तुमने यही कहा था। 
    अम्मी : मैं तुमसे और अपनी राबिआ से मिलने के लिए सफर की सहूलते उठा कर यहाँ तक आयी हु। 
    राफे उसका जवाब देते की शोर बुलंद हुआ। राफे ने कहा ” शायद मुक़ाबला शुरू हो गया। 
    इल्यास : चाचा जान तुम अम्मी जान के पास ठहरो मैं जिहाद में शरीक होने के लिए जाता हु। 
    राफे : जाओ खुदा तुम्हारी मदद करे। 
    इल्यास जल्दी जल्दी मुसलाह ( हथियार लेकर ) घोड़े पर सवार हुए और नेज़ा हिलाते हुए चले। 
                                                   अगला भाग ( दादर की फतह ) 
  • fatah kabul ( islami tareekhi novel) part 37

    fatah kabul ( islami tareekhi novel) part 37

     पुरजोश हमला …… 




    जब वह दरबार से निकल कर थोड़ी दूर चले उन्होंने पेशवा की सवारी आती देखी। उस  पेशवा की जिसने इल्यास को क़ैद कर दिया था। उसकी सवारी के आगे सवारों का एक दस्ता था। दस्ता के पीछे धार के पुजारी थे। उनके पीछे पेशवा था। पेशवा के पीछे सवार थे। 

    हम्माद इल्यास और उनके साथी सड़क के किनारे पर खड़े हो गए जब सवारी उनके सामने आयी तो पेशवा  ने इल्यास को गौर से देखा उसने सवारी रुकवाई  और इल्यास को आगे  आने का इशारा किया। वह उसके पास जाकर खड़े हुए। पेशवा ने कहा : 

    “नौजवान ! तुम्हारा क्या नाम है ?

    ” इल्यास” उन्होंने जवाब दिया। 

    पेशवा चौंका। उसने कहा ” तुम्हरा वतन कहा है ?

    इल्यास : वतन अरब। 

    पेशवा : अरब तो तमाम अरबो का वतन है। तुम रहते कहा हो ?

    इल्यास : बसरा। 

    पेशवा : तुम धार में आये थे। 

    इल्यास समझ गए उसने उन्हें पहचान लिया। उन्होंने कहा ” है मैं आया था। 

    पेशवा : उस वक़्त तुम जासूस थे ?

    इल्यास : है अब मैं सिफारत पर आया हु। 

    पेशवा : राजा ने मसलेहत का क्या जवाब दिया। 

    इल्यास : वह तैयार नहीं है। 

    पेशवा : मैं समझता था। अब तुम्हारा  क्या इरादा है। 

    इल्यास : मेरा क्या इरादा हो सकता है। लीडर इसके बारे में तय करेंगे। 

    पेशवा : ठीक है। 

    उसने इशारा किया और उसकी सवारी बढ़ी। यह लोग भी चले और क़िला से निकल कर अपने लश्कर में आये। लीडर  से राजा की तमाम गुफ्तुगू ब्यान किया। लीडर ने कहा ” उसका इरादा लड़ाई का मालूम होता  है। आज इंतज़ार  करो। देखो वह मैदान में आता है या नहीं। अगर आज वह मैदान में न निकला तो इंशाल्लाह कल क़िला पर हमला  किया जायेगा। “

    चुनांचा तमाम लश्कर में अयलान कर दिया की होशियार रहो और दुश्मन की नक़ल व हरकत पर निगाह रखो। मुसलमान देख रहे थे की दादर के सिपाही फसिलो पर घूम रहे है। सबसे ऊँचे दरवाज़ा पर लाल झंडा लहरा रहा है यही उनका  क़ौमी झंडा था। 

    वक़्त गुज़रता रहा। दुपहर हुआ। दिन ढला आखिर शाम हो गयी लेकिन अहले दादर ने कोई नक़ल व हरकत नहीं की  . वह बदस्तूर क़िला बंद रहे दूर दूर फ़सील के ऊपर से झांक कर मुसलमानो को देखते रहे। दिन छिपते ही तमाम फ़सील पर मशाल रोशन हो गयी। उस रौशनी में सिपाही चलते फिरते नज़र आने लगे। इस्लामी कैंप में भी आग  के अलाव जगह जगह जला दिए गए। सर्दी का ज़माना था। सर्दी काफी होती थी मुसलमान आग के अलाव के गिर्द  बैठ गए और तापने लगे। लेकिन मुसलमानो का क़ायदा था की बेकार न बैठते थे या तो कोई शख्स क़ुरान शरीफ  पढता था  उसकी तशरीह और तफ़्सीर बयान करता। या हदीस शरीफ पढता या क़ौमी बहादुरों के क़िस्से और तारीखी  वाक़ेयात बयान होते थे। 

    सुबह की नमाज़ पढ़ कर लीडर अब्दुल्लाह ने हमला का एलान कर दिया। मुसलमान खुश हो गए। वह जिहाद करने आये थे। जिहाद से बढ़ कर वह कोई काम न समझते थे। उन्हें सरफ़रोशी में लुत्फ़ आता था। सब अपने अपने खेमो पर जा कर मुसलह हुए और घोड़ो पर सवार हो के मैदान में निकले। 

    लीडर अब्दुर्रहमान भी पहुंच गए। वह इस फ़िक्र में थे की पहला में किसे अफसर मुक़र्र करे। इल्यास उनकी खिदमत  में हाज़िर हुए और दरख्वास्त की कि हिरावल का अलम उन्हें अता किया जाये ,लीडर ने कहा : तुम कमसिन मुजाहिद हो मैं किसी तजर्बा कार शख्स को हरावल पर अफसर मुक़र्र करना चाहता हु। 

    इल्यास : तजर्बा लड़ने ही से हासिल होता है। लीडर मेरी लड़ाई ज़रंज में देख चुके है। 

    लीडर ने कुछ देर सोचा और अलम इल्यास को दे कर “जो शख्स  पहल करता है वह उसका मुस्तहिक़ है लो तुम झंडा लो और  खुदा का नाम लेकर पढ़ो। लेकिन यह एहतियात करना की जोश में आकर मुसलमानो को या खुद को खतरा  में न डाल देना। 

    इल्यास : मैं जोश का क़ाएल नहीं हु। 

    वह झंडा लेकर पांच सौ सवारों के साथ अल्लाहु अकबर का नारा लगा कर आगे बढे दादर के सिपाहियों ने फ़सील  के ऊपर से देखा। उन्होंने तबल जंग बजा कर एलान कर दिया। क़िला वालो को मालूम हो गया की लड़ाई शुरू हो गयी  वह घबराहट और परेशान हो गए राजा भी ब्रिज बैठ गए उसने हुक्म दिया की जिस वक़्त मुस्लमान तीरो की ज़िद   में आजाये उनपर तीर की बाढ़ मारे। 

    मुसलमान आहिस्ता आहिस्ता बढे चले आरहे थे। जब क़िला के क़रीब पहुंच गए तो इल्यास ने उन्हें रोक दिया और अगली सफ पियादा हो कर ढालो के साया में बढ़ने का हुक्म दिया। और उसके पीछे सवारों का दस्ता  लेकर बढे। मुसलमानो की अगली सफ  ने ढाले इस तरह बुलंद कर ली जिनसे खुद भी महफूज़ रहें और पिछले सवारों के घोड़ो  की भी हिफाज़त करते रहे। 

    जब यह एक तीर के फासला पर पहुंचे तो काफिरो ने शोर करके तीरो की बारिश शुरू की यह तीर मुसलमानो की ढालो पर पड़े। कुछ तीर पिछले सवारों पर भी गए उन्होंने भी ढाल पर रोक लिए। 

    अब क़िला से बराबर तीरो की बारिश हो रही थी। मुस्लमान मज़बूती  से ढाले पकड़ें आगे बढ़ रहे थे। वह खमोश थे कुफ्फार बड़ी  बे फ़िक्री और इत्मीनान से तीर बरसा रहे थे। कुछ दूर चल कर इल्यास ने अचानक तीर बारी का हुक्म दिया। पियादा सफ ने ढाले इस क़द्र ऊँची कर ली जिससे सवार महफूज़ हो गए। और सवारों ने हैरत अंगेज़ फुर्ती  के साथ कमाने शानो से उतार कर हाथो में ली। तरकशों में से तीर निकाले और ताक कर सबने इस तरह एक साथ  तीर छोड़े जैसे वह एक ही कमान से निकले हो। यह तीर सनसनाते हुए तेज़ी से लपके कुछ कुफ्फार के तीरो  से टकरा कर रास्ता ही में गिर पड़े। कुछ फ़सील के कंगारू से जाकर टकराये लेकिन ज़्यदातर फ़सील के ऊपर  जाकर ग़ाफ़िल सिपाहियों के लगे। कई सिपाहियों के पेशानियों में तीर तराज़ू हो गए। वह होलनाक चीखे मार  कर औंधे मुंह गिर पड़े। जो फ़सील से लगे खड़े थे उनमे से कई फ़सील से निचे गिर पड़े और उनकी हड्डियों का चूरा  हो गया। 

    कई तीर सिपाहियों के सीनो में लगे वह भी लौट गए चुकी कुफ्फार ग़ाफ़िल थे और उस वक़्त तक उनपर तीर बारी नहीं होती थी मुसलमानो ने अचानक तीरो की बाढ़ मारी उससे काफिरो का बहुत ज़्यदा नुकसान हुआ। इतने काफिर  संम्भले इतने मुसलमानो ने दूसरी और फिर तीसरी बाढ़ मारी। इन तीरो से भी क़िला वालो को काफी नुकसान हुआ  और डर कर बैठ गए। फ़सील की दिवार पर्दा बन गयी। 

    जब मुस्लमान क़िला के पास बिलकुल क़रीब पहुंचे तो  उनके तीर बेकार हो गए और जब तीर बारी बंद हो गयी  तो फ़सील  वालो को मौक़ा मिल गया उन्होंने भारी भारी पत्थरो फलखनो के ज़रिये फेंकने शुरू किये उन पत्थरो से मुसलमानो के हाथ बहक गए  और पत्थरो ने उन्हें कमज़ोर कर दिया। ज़ख़्मी फ़ौरन वहा से हटा दिए गए। अब मुसलमानो  ने ऐसा  किया की जिस शख्स ने दाहने हाथ से ढाल पकड़ रखी थी उसके पास वाले मुस्लमान ने दाहने हाथ में  अपनी ढाल ली और बाए हाथ से बराबर वाले मुस्लमान की ढाली पकड़ ली। इस  तरह  हर ढाल दो दो आदमियों  ने संम्भाल ली। अब जो पत्थर ढालो पर आकर लगे उन्हें मुसलमानो ने रोक लिया।  वह ढालो से टकरा कर  निचे गिरने लगे। 

    फ़सील के ऊपर से कुफ्फार देख रहे थे। वह मुसलमानो की हर जुरअत और जिसारत देख कर होल डर गए। उन्हें ऐसा मालूम  हुआ जैसे लोहे की दिवार उठी चली आरही है ढाले लोहे की थी और मुस्लमान ने उन्हें एक दूसरे से  मिला लिया था  . 

    फ़सील के सिपाही उन्हें हैरत से देख रहे थे। इस्लामी सवार जो बढे चले  आरहे थे और जिन्होंने तीर बारी बंद क्र दी थी। उन्होंने  फिर तीर कशो में से निकाल निकाल कर कमानो में रख रख कर चिल्ले खींचे और जो लोग फ़सील के ऊपर  से झांक रहे थे ताक कर उन पर निशाने लगाए। यह तीर  निशाने पर बैठे और बहुत से काफिर चीखे  और फ़सील  से निचे आ पड़े दूसरे सिपाही ने तेज़ी से और तुन्द से पत्थर बरसाने लगे। इतने ज़्यादा और इस फुर्ती से बरसाए  की मुसलमानो को आगे बढ़ना न मुमकिन हो गया। 

    फिर भी मुस्लमान घबराये नहीं। पत्थरो की बारिश में खड़े रहे कई मुस्लमान ज़ख़्मी हुए लेकिन फिर भी डरे नहीं। इल्यास ने समझ लिया  की मुस्लमान आगे बढ़ कर फ़सील तक नहीं पहुंच सकते। उन्होंने मस्लेहत देख कर अपने दस्ते  को वापसी का हुक्म दे दिया।  मुसलमानो ने अल्लाहु अकबर का नारा लगाया। काफिर ख़ौफ़ज़दा हो गए लेकिन  जब उन्होंने उन्हें पीछे फिरते देखा तो खुश हो कर तरह तरह के नारा लगाने लगे। 

                         अगला पार्ट ( इंकेशाफ राज़ ) 

  • fatah kabul (islami tareekhi novel ) part 36

    fatah kabul (islami tareekhi novel ) part 36

     सुलह का पैग़ाम ….. 

    दादर वालो को यह मालूम हो गया था की इस मुल्क पर मुसलमानो ने लश्कर कशी कर दी है। और अर्जनज तक का इलाक़ा फतह कर लिया है। उन्होंने यह भी सुन लिया की अर्जनज (जगह का नाम ) का हुक्मरान महारानी और राजकुमारी के साथ मुस्लमान हो गया है। उन्हें उसके मुस्लमान होने का बड़ा ताज्जुब हुआ था उस नवाह में यह मशहूर था की अर्जनज का हुक्मरान अपने मज़हब में बड़ा पक्का और बहुत मज़बूत है। 

    साथ ही उन्होंने यह भी सुना की इस्लामी लश्कर बढ़ा चला आ रहा है उन्होंने जंगी तैयारियां पहले से कर रखी थी। वह खुद मुसलमानो पर चढ़ाई का इरादा कर रहे थे की मुस्लमान ही वहा   आ पहुंचे। उनकी लश्कर कशी से उनपर उनकी खौफ तारी  हो गयी। 

    दादर का राजा बड़ा बहादुर और जंगजू था। उसने क़िला पर फौजे चढ़ा दी। जगह जगह पत्थरो और तीरो के ढेर लगा दिए। फलखन और कमाने रखवा दी। गरज़ फायदे का पूरा पूरा इंतेज़ाम  कर लिया। और अपने जासूस भेज कर मुसलमानो का हाल मालूम करने लगा  जो की दादर में बड़ा धार था और उस धार में बुध ज़ोर का बुत था उस बुत की उस इलाक़ा के तमाम लोग बड़ी इज़्ज़त और अज़मत करते थे। इसलिए जब मुसलमानो की हमला आवरी की खबर मशहूर हुई तो दादर की हिफाज़त के लिए गिरोह नवाह से बहादुरों के गिरोह आने लगे। पहले तो दादर   में ही  लश्कर काफी था और उनके आने से गिरोह बढ़ गया। उधर दादर के वाली ने महाराजा काबुल से मदद तलब  की और जो खत उन्हें लिखा उसमे तहरीर किया की :

                               “आप मुसलमानो  पर हमला की तैयारी कर रहे थे। खुद मुसलमानो ने ही हमला कर दिया। और अरजनज तक का इलाक़ा फतह कर चुके है। दादर उनक सामने है जिस जोश व खरोश से वह आरहे है उससे खौफ है कही दादर भी उनके क़ब्ज़ा में न चला जाये जल्द मदद भेजे। “

    यह लेटर भेज कर वह मदद का इंतज़ार करने लगा , अभी  मदद आयी थी न कोई क़ासिद आया था की एक रोज़ कई  जासूसों भागे हुए आये। सख्त परेशान और बदहवास थे। उन्होंने आ कर बयान किया की इस्लामी लश्कर क़रीब  आगया है अगरचे लश्कर की तादाद तो कुछ ज़्यादा नहीं है लेकिन उस लश्कर का हर सिपाही बड़ा जांबाज़ और बहादुर  है हमने उनके सामने से शेरो  बदहवास हो कर भागते देखा है या तो वह जादूगर  है और उनके जादू के ज़ोर  से जंगल का बादशाह  उनके सामने नहीं ठहरता भाग जाता है या उनका रोअब उसके ऊपर ऐसा  पड़ता है  .की वह उनके सामने नहीं ठहरता। 

    इन जासूसों ने कुछ ऐसा मुबालगा आमेज़ स्टोरी बयां किये जिससे अहले दादर के दिलो पर भी रोअब व खौफ तारी हो गया  आखरी मर्तबा जासूस खबर लाये की इस्लामी लश्कर बहुत क़रीब आगया है। सिर्फ एक मंज़िल का फासला रह गया है कल वह ज़रूर क़िला के सामने आ जायेगा। 

    दूसरे रोज़ दादर का वाली सुबह ही से दरवाज़ा के क़रीब वाले ब्रिज में चढ़ गया और मुसलमानो के आने  का इंतज़ार  करने लगा जब दुपहर ढल गया तब उसने दूर फासला पर इस्लामी अलम ( झंडा) लहराता हुआ देखा। वह और उसके  फौजी अफसर गौर से देखने लगे उनके देखते ही देखते इस्लामी मुजाहिदीन घोड़ो पर सवार बड़ी शान से आते  दिखे। 

    उन्होंने क़िला के पास आकर अल्लाहु अकबर का नारा लगाया उस नारा की आवाज़ को सुन  कर वाली उछल पड़ा। और लोग भी घबरा गए। उन्होंने देखा की मुसलमान मैदान में फैलने लगे है जो ग्रुप आता था वह नारा तकबीर  लगाता और फैल जाता। उन्होंने आते ही बड़ी फुर्ती से खेमे नस्ब करना शुरू किये दम के दम में खेमो का शहर  क़िला के सामने आबाद हो गया। 

    इस्लामी लश्कर थोड़ा थोड़ा   आ रहा था शाम तक आता रहा। दिन छिपते ही इस्लामी कैंप में आग के अलाव रोशन  हो गए। तमाम क़िला में शमे जलने लगी। लेकिन  इस्लामी कैंप में इस क़िस्म की रौशनी का कोई इंतेज़ाम नहीं था।  बल्कि जगह जगह जो अलाव रोशन थे उनसे रौशनी फैल गयी थी। यह रौशनी बहुत काफी थी। उस रौशनी में  कैंप के अंदर मुजाहिदीन चलते फिरते नज़र आरहे थे। जो बड़ी बे खौफी और बड़े इत्मीनान से चल फिर रहे रहे थे। 

    दादर के वाली को खौफ हुआ की कही मुस्लमान रात ही को क़िला पर धावा न बोल दे। इसलिए उसने चारो तरफ पहरा  बिठा दिया। और मुहाफिजों को हिदायत कर दी की ज़रा सा खटका होने पर सारे लश्कर को बेदार व होशियार  कर दे। 

    रात अहले दादर ने बड़े बेचैनी और परेशानी की हालत में गुज़री। सुबह मुसलमानो ने जमात के साथ नमाज़  पढ़ी और अलग  हो गए। फ़सील के ऊपर खड़े मुहाफ़िज़ उनकी नक़ल व हरकत देख   रहे थे जब कुछ दिन चढ़ा तो तीन  मुस्लमान क़िला के क़रीब आये उनमे इल्यास भी थे उसने पुकार कर कहा ” ए अहले दादर ! हम क़ासिद है तुम्हारे वाली  के पास आये है। “

    थोड़ी देर के बाद वाली ब्रिज में नमूदार हुआ उसने कहा ” कहो क्या कहना चाहते हो ?”

    उस इस्लामी सिफारत के मीर वफ्द हम्माद अंसारी थे। उन्होंने कहा ” इतने फासले से क्या बात चीत हो सकती है या तो तुम  निचे उतर कर हमारे पास आओ  या हमें ऊपर अपने पास बुलाओ। “

    वह चला गया और उसने अपना दरबार बड़ी शान से आरास्ता किया। तमाम दरबारियों को बुला लिया। जब सब आकर  अपनी  अपनी जगह बैठ गए तब उसने क़ासिदो को तलब किया। मुस्लमान पहले क़िला में दाखिल हुए। उन्होंने देखा  की रास्तो पर वह दादर की फ़ौज मुसलह खड़ी है। दरअसल दादर की वाली ने मुसलमानो को मरग़ूब  करने के लिए अपनी तमाम फ़ौज रास्तो पर खड़ी कर दी थी। और रास्तो के इधर उधर जो थोड़े बहुत मैदान  थे उनमे भी सवार खड़े कर दिए थे ताकि मुस्लमान उस ज़्यादा लश्कर को देख ख़ौफ़ज़दा हो जाये। 

    क़ासिद उन्हें देखते हुए बढ़ते रहे। यहाँ तक की वह दरबार में दाखिल हुए और सीधे चल कर वाली या राजा के तख़्त  के सामने जा खड़े हुए। वहा के वज़ीर ने कहा ” तुम लोग बड़े ही वहशी हो। नहीं जानते की राजा के सामने हाथ जोड़  कर और सर झुका कर आना चाहिए। 

    हम्माद ने कहा ” वहशी हम है या तुम। राजा या वाली की हिफाज़त के लिए होता है और मुहाफ़िज़ अवाम का खादिम कहलाता है। एक खादिम के लिए यह कब रवा है की वह तख़्त पर खुदा बन कर बैठे और जिन लोगो का वह खादिम है वह उसके सामने हाथ जोड़ कर आये। “

    राजा : इन बातो को रहने दो। बताओ तुम क्या पैग़ाम लाये हो ?

    हम्माद : हम अम्न व सुलह का पैग़ाम लाये है तुम हम पर लशकर कशी की तैयारी कर रहे थे। शायद इस वजह से की तुमने हमें कमज़ोर समझा है यह ख्याल किया था की ईरानी और रूमी दो ज़बरदस्त सल्तनतों से मुक़ाबला करके  हमारी ताक़त जाती रही है और तुम आसानी से हम पर फतह हासिल करोगे।  हम यह बताने आये है की हम कमज़ोर  नहीं है। तुम्हे तुम्हारे घरो ही में रोक सकते है। और यह कहने आये है की लड़ाई से कोई फायदा   नहीं  है सुलह लड़ाई से बेहतर है। “

    राजा : हम भी लड़ाई  नहीं समझते। 

    हम्माद : बस तो मामला बहुत जल्द तय हो सकता है। हमारी तीन शर्ते है उनमे से चाहे जिस शर्त को क़ुबूल करे। 

    राजा : अपनी शर्ते बयान करो। 

    हम्माद : पहली शर्त यह है की तुम मुस्लमान हो जाओ। हमारे भाई  बन जाओगे हम तुम्हारे दुःख दर्द में शरीक होंगे। तुम हमारे  दुःख दर्द  में शरीक होना हमारा पैग़ाम इसलिए है की तुम खुदा के बन्दे हो। खुदा से बगावत   कर  रहे हो। बुतो की पूजा करते हो। उन्हें छोड़ दो। खुदा की इबादत करो। 

    राजा : यह बात मंज़ूर नहीं की जा सकती। 

    हम्माद : तब तुम हमारी इताअत क़ुबूल कर लो और हमें जज़्या दो। 

    राजा : यह भी न मुमकिन है। 

    बस तो तीसरी बात जंग की रह जाती है और तलवार हमारे तुम्हारे दरमियान फैसला कर देगी। 

    राजा को गुस्सा आगया। उसने कहा ” तुम्हे अपनी बहादुरी पर बड़ा नाज़ है। लेकिन जिस क़ौम से तुम्हारा मुक़ाबला  है जब उसकी बहादुरी देखोगे तो तुम्हारे नाज़ व गुरूर खाक में मिल जायेगा मैं तुम पर यह मेहरबानी कर  सकता हु की अगर तुम वापस जाना चाहो तो तुमसे कोई गरज़ न करू। अगर तुम लड़ोगे तो याद रखो तुममे से एक को  भी ज़िंदा न जाने दूंगा। 

    हम्माद : हमारा नाज़ अपनी बहादुरी पर नहीं। खुदा की मदद पर है हम तुम्हारी मेहरबानी नहीं चाहते। अगर तुम लड़ाई पर आमादा हो तो तुम हम भी तैयार है। 

    राजा : बस या तुम्हे और कुछ कहना है। 

    हम्माद : हमने पैग़ाम पंहुचा दिया। और कुछ कहना नहीं है। 

    राजा : जब तो लड़ाई पर ही फैसला ठहरा है। 

    हम्माद : हम इस बात को पहले जानते थे। लेकिन याद रखो यह क़िला तुम्हे पनाह न दे सकेगा। 

    राजा : या तुम्हे कही पनाह न मिल सकेगा। 

    हम्माद और उनके साथी वहा से चले आये। 

                                                अगला पार्ट (पुरजोश हमला ) 

  • fatah kabul ( islami tareekhi novel ) par 35

    fatah kabul ( islami tareekhi novel ) par 35

     बिमला आगोश इस्लाम में …… 

    यह दोनों ईशा के टाइम लश्कर में पहुंचे उस वक़्त अज़ान हो रही थी बिमला ने कहा ” कहा चले गए थे बेटा “
    इल्यास : मैं अपनी बहन के पास गया था। 

    बिमला : अच्छा ,बहन को साथ ही लाये हो। देखु तो। 

    उसने बढ़ कर कमला को देखा। शायद उसे पहचान लिया ” अच्छा बी कमला है। तुमने तो मुझे न पहचाना होगा। 

    कमला : मैंने देखा ज़रूर है। 

    बिमला : मैं तुम्हे अच्छी तरह जानती हु। तुम्हारे पिता तो अच्छी तरह है। 

    कमला : अच्छी तरह है। 

    इसी वक़्त इल्यास की माँ आगयीं। कमला ने उन्हें सलाम किया। उन्होंने दुआ दे कर कहा ”  इल्यास शायद तुम्हारे पास गए थे। 

    कमला : जी हां। 

    अम्मी : आओ बेटी बैठो। 

    इल्यास : अम्मी ! मैं नमाज़ पढ़ आऊं। 

    अम्मी : पढ़ आओ बेटा। मैं भी पढ़ लू। 

    इल्यास नमाज़ पढ़ने चले गए। सब मुसलमानो ने एक जगह जमा हो कर जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ी। हज़ारो आदमियों  का चांदनी में एक साथ रुकू  और सजदा करना निहायत भला मालूम हो रहा था। खुदा  के बन्दों ने खुदा  को सजदा करके उसकी हस्ती को साबित कर दिया था ,वह कोह सारो में रेग ज़ारो में दरिआयो में समुन्दरो में जहा जाते  थे खुदा की वहदानियत की मुनादी करते थे। 

    जब इल्यास नमाज़ पढ़ कर आये तो देखा की कमला को उनकी अम्मी खुजुरे खिला रही है। कुछ देर के बाद यह सब  सो गए। सुबह अज़ान सुनते ही उठे ,ज़रूरीअत से फ़ारिग हुए नमाज़ पढ़ी। बिमला ने कहा ” क़सम है उसकी जिसने हमें तुम्हे और सबको पैदा किया है। की तुम्हारे इबादत करने का तरीक़ा बड़ा पाया है तुम मिल कर रहते हो यहाँ तक की मिल कर खाना खाते हो और मिल कर इबादत करते हो। तुम्हारी हर बात अच्छी होती है। कई मर्तबा मेरे दिल में  आयी की मैं भी तुम्हारे साथ मिल कर इबादत करू। मगर रुक गयी। 

    अम्मी : एक जाहति इत्तेफ़ाक़ और मिल कर इबादत करते देखने से कुछ नहीं होता। पहले इस्लाम की तालीम से वाक़फ़ियत  हासिल करो। इस्लाम  कहता है ,खुदा एक है। हर वक़्त हर जगह मौजूद रहता है।  न कभी सोता है ,न थकता  है। वही जिलाता है ज़िन्दगी देता ,पैदा करता और मारता है। बड़ी क़ुदरत वाला है। उसके हुक्म के बगैर ज़र्रा  भी हरकत नहीं कर सकता। जिसको जितना चाहता है रिज़्क़ देता है। जिसको चाहता है इज़्ज़त देता है। अज़मत  देता है। हुकूमत देता है और सल्तनत देता है। जिससे जब चाहता है इज़्ज़त ,दौलत और हुकूमत सब छीन लेता है  जिसे चाहता है ज़लील व रुस्वा कर देता है। उसकी खुदाई में कोई शरीक नहीं है। ज़मीन से आस्मां तक  हुकूमत  है सजदा उसी को सजावार है।  वही इबादत के लायक है। लेकिन बे शऊर और बद अक़्ल इंसान अपने बनाये हुए उस बुतो को पूजने लगता है जो अपने बदन पर बैठी हुई मंखी तक को नहीं उड़ा सकता आग की पूजा करने लगता  है जिसे खुद अपने हाथ से जलाता है। और भी बहुत सी ऐसी चीज़ो को पूजने लगता है जिससे वह डर जाता है  .या जिसकी बहुत ज़्यादा इज़्ज़त व अज़मत करने लगता है हक़ीक़त यह है की खुदा को किसी ने नहीं देखा। कुछ  मर्द और औरते ऐसी खूबसूरत होती है की उन्हें देखने की ताब नहीं होती। खुदा को देखने की कैसे ताब  हो सकती है  खुदा अपने बन्दों का बड़े से बड़ा गुनाह माफ़ कर देता है लेकिन शिर्क का गुनाह माफ़ नहीं करता। मुशरिक को हरगिज़ नहीं बख़्शेगा। गैर अल्लाह की पूजा करने वालो का ठिकाना दोज़ख है। दोज़ख बहुत बड़ी  जगह है। वह ऐसी आग है जो अज़ाब तो देती है लेकिन ज़िंदगी का खात्मा  नहीं करती। इंसान उसमे जीता ही रहेगा  और जो सिर्फ खुदा को पूजेगा। वह जन्नत में जायेगा। जन्नत ऐसी आराम व राहत की जगह है जहा न फ़िक्र है  .न ग़म आराम ही आराम है। बेहतर से बेहतर चीज़े खाने को  और अच्छे से अच्छा लिबास पहनने को मिलता है। यही निजात  है। दुनिया निजात ही की मतलाशी है। और चूँकि खुदा की इबादत का तरीक़ा भी होना चाहिए और यह तरीक़ा  इस्लाम ने बता दिया है। इसलिए निजात उसे ही मिलेगी जो इस्लाम इख़्तियार करेगा। 

    बिमला ने ठंडा सांस लेकर कहा ” किस खूबी से तुमने स्पीच की है और किस अच्छे तरीके से समझाया है। भई मेरे दिल बड़ा  असर हुआ है। मैं मुसलमान होना चाहती हु। “

    इल्यास और उनकी अम्मी खुश हो गयी। उनकी अम्मी ने कलमा शहादत पढ़ाया और मुसलमान कर लिया। 

    कमला देखती रही। अगरचे  उसने भी इल्यास की माँ  की स्पीच सुनी थी लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ। इल्यास  ने कहा ” जबसे मैंने तम्हे देखा था। मेरी तमन्ना थी की तुम मुस्लमान हो जाओ। लेकिन कह न सकता था। खुदा  ने खुद बखुद मेरी आरज़ू पूरी कर दी। “

    बिमला : मैं  अपने मज़हब से पूरी जानकारी रखती हु। मैं अक्सर सोचा करती थी की उस मज़हब का मदार नर्वाण पर है।  नर्वाण उसको कहते है की इंसान अपनी जान  को पाकीज़ा बना कर अपने नफ़्स से दुनिया की नज़्ज़ातो और ऐश  व राहत की ख्वाहिशो  की भी मिटा दे अगर नर्वाण हासिल हो जाये तो इंसान बार बार पैदा होने और मरने की  जंजाल से छूट जाता है लेकिन जब तक नर्वाण हासिल  न हो बराबर आवागवन के चक्क्र में फंसा रहता है। 

    लेकिन बुध मज़हब में खुदा के बारे में साफ़ राये ज़ाहिर नहीं  की गयी है खुद महात्मा बुध ने खुदा के बारे में साफ़ साफ़  ब्यान नहीं किया है बल्कि वह उस बहस ही को फ़ुज़ूल समझते है। इसी से लोगो ने धोका खाया की की वह खुद  भगवान् मतलब खुदा थे। और उनके बुत बना कर उन्हें ही पूजने लगे। मैं बुध मज़हब में थी मैंने उस मज़हब की तब्लीग  भी की लेकिन आज कहती हु की मुझे इत्मीनान नहीं था मेरी रूह सच्चाई की तलाश में थी। और मैंने आज  उसे पा लिया है। “

    कमला पर अब भी कोई असर नहीं हुआ। इल्यास ने कहा ” लश्कर कोच करने वाला है। चलो कमला। मैं तुम्हे पंहुचा  दू। जब लश्कर तुम्हारी बस्ती के क़रीब पहुंचेगा मैं उसमे शामिल हो जाऊंगा। 

    कमला : चलो। 

    बिमला : मैं तुमसे एक दरख्वास्त करती हु कमला। 

    कमला : दरख्वास्त नहीं  मुझे हुक्म दो। 

    बिमला : अभी तुम मेरे मुस्लमान होने का किसी से तज़करा न करना। 

    कमला : मैं किसी से न करूंगी। 

    बिमला : एक मैं  यह चाहती हु की तुम काबुल में चली जाओ और सुगमित्रा से मिलने की कोशिश करो। अगर उस तक  रसाई हो जाये तो यह देखो  जिसके साथ उसकी शादी होने  वाली है वह उससे राज़ी है या नहीं। अगर रज़ामंद है तो  तुम इल्यास का ज़िक्र उससे कर दो।  कह दो की जिसे तुमने जेल खाना से रिहा कराया था वह तुम्हारे मुल्क में आगया  है और तुम्हारे लिए बे क़रार है। ज़रूर उस पर असर होगा और अगर वह रज़ामंद नहीं है तब भी तुम इल्यास  का ज़िक्र उससे करो और कह दो की वह तुमसे मिलना चाहता है और किसी ज़रिये से उसे काबुल से बाहर  निकाल लाओ। मैं क़िला से बाहर  उस गार के क़रीब तुम्हे मिलूंगी जिसके अंदर वह चश्मा है जिसे काबुल के लोग  मुक़द्दस और मुबारक समझते है। 

    कमला : यह बात तो मुझे  मालूम है की सुगमित्रा उस शादी पर रज़ामंद नहीं है उसे महाराजा और महारानी    मजबूर  कर रहे है। 

    बिमला :  जब तो पक्का तुम्हारे साथ  चली आएगी फिर मैं सब कुछ कर लुंगी बोलो तुम काबुल जाओगी। 

    कमला : ज़रूर जाउंगी। मैं अपने भाई के लिए बड़ी से बड़ी क़ुर्बानी कर सकती हु। 

    बिमला : शाबाश तुमसे यही उम्मीद है। 

    इन सबने मिल कर नाश्ता किया। इल्यास की माँ ने बिमला से कहा ” तुम्हारा इस्लामी नाम होना ज़रूरी है। मैं तुम्हारा नाम  फातिमा रखती हु। “

    बिमला का नाम फातिमा रखा गया। इधर यह नाश्ता से फारिग हुए उधर खेमे उखाड़े और ऊँटो और खच्चरों पर लादे  जाने लगे। इल्यास कमला  को साथ लेकर पहले चल पड़े उनके जाने के कुछ ही देर बाद लश्कर भी उनके पीछे  चल पड़ा। 

                                                   अगला पार्ट ( सुलह का पैगाम ) 

  • FATHA KABUL ( ISLAMI TAREEKHI NOVEL) PART 34

     ग़मज़दा नाज़नीन। 

     

    इल्यास की माँ को जब यह मालूम हुआ की अरब औरते वही रहेंगी तो उन्हें बड़ी फ़िक्र हुई। वह काबुल तक जाना चाहती थी। बिमला उनकी हम ख्याल थी। दोनों ने इल्यास से कहा “अगर हम दोनों यही रहे तो बड़ी तकलीफ होगी। तुम लीडर से कहा कर हमें साथ ले चलने की इजाज़त लेलो। 

    इल्यास ने कहा “यह बहुत मुश्किल है। वह मुझे यहाँ रखना चाहते थे। कहने सुनने से मुझे साथ चलने की इजाज़त  दी है। 

    बिमला : तुम कहो तो। शायद इजाज़त देदे। और अगर तुम न कह सको तो मुझे साथ ले चलो। मैं इजाज़त ले दूंगी। 

    इल्यास ने मुस्कुरा कर कहा ” हमारे लीडर औरतो की बात नहीं मानते। 

    बिमला : तो तुम हिम्मत करो। 

    इल्यास : है मैं जाऊंगा। 

    बिमला : अभी चले जाओ सुबह लश्कर कोच कर जायेगा। वह इंतेज़ाम में मसरूफ होंगे शायद न मिल सके या मिले तो बात करने का मौक़ा न मिले। 

    इल्यास : अच्छा अभी जाता हु। 

    वह वहा से चले और लीडर के पास पहुंचे। लीडर अब्दुर्रहमान ने कहा ” अब  किस लिए आये हो तुम ?

    इल्यास : एक दरख्वास्त लेकर हाज़िर हुआ हु। 

    अब्दुर्रहमान : कहो। 

    इल्यास : आपको मालूम है की मेरी माँ ने इतने  लम्बे सफर की ज़हमत बुज़ुर्गी की हालत में राबिआ को तलाश करने के लिए  उठायी है। वह औरत जो राबिआ को अगवा करके लायी थी मिल गयी है। इससे यह बात सच हो गयी है  की सुगमित्रा ही राबिआ है। उस औरत ने यह भी बताया है की उसकी शादी पेशावर की राजकुमार से होने वाली है  .उससे माँ की परेशानी और फ़िक्र बढ़ गयी है। उनकी और  उस औरत की जिस का नाम  बिमला है यह दरख्वास्त  है की उन्हें भी लश्कर के साथ चलने की इजाज़त दी जाये। 

    अब्दुर्रहमान : इससे क्या फायदा होगा। 

    इल्यास : बिमला और उसके नवाह वहा के मर्दो और औरतो से खूब वाक़िफ़ है। वह इस बात का पता लगायेंगी की सुगमित्रा को किसी ज़रिये से अपने पास बुलाये और हमें खबर कर दे। शायद खुदा कर दे और हम उस तक पहुंच जाये। 

    अब्दुर्रहमान : बात ठीक है लेकिन लश्कर के साथ उन दो औरतो के इंतेज़ाम में बड़ी वक़्त होगी। 

    इल्यास : यह मैं जानता हु लेकिन अगर उन्हें यहाँ रहने पर मजबूर किया गया तो उनके दिल टूट जायेंगे और उन्हें बड़ा सदमा होगा। 

    कुछ देर गौर करने के बाद लीडर ने कहा ” अच्छा कितनी भी वक़्त हो हम उनके लिए इंतेज़ाम करेंगे। उनसे कह दो। 

    इल्यास : बहुत बहुत शुक्रिया। 

     इल्यास सलाम करके उठे और खुश खुश अपनी माँ के पास आये। उनकी माँ ने कहा “बेटा !  तुम खुश होते आरहे हो  .अल्लाह तुम्हे हमेशा खुश रखे क्या लीडर ने हमारे चलने की इजाज़त दे दी है ?”

    इल्यास :हां अम्मी जान ! लीडर ने इजाज़त दे दी है। तैयारी कर लीजिए। 

    उनकी माँ और बिमला दोनों खुश  हो गयी। उनकी माँ ने कहा “अल्लाह का शुक्र है बेटा ! मुझे तैयारी ही क्या करनी है। मुसाफिरत में हु हर वक़्त तैयार रहती हु। 

    दूसरे रोज़ लश्कर दादर की तरफ रवाना हुआ।  जो एक पहाड़ी इलाक़ा था रस्ते निहायत दुश्वार गुज़ार थे इसलिए बड़ी वक़्त से सफर तय हो रहा था। जब यह बस्ती के क़रीब पहुंचे जहा कमला रहती थी। लीडर ने बस्ती से दो मील इस तरफ क़याम कर दिया। फौजि सिपाहियों ने खेमे खड़े करने शुरू कर दिए सबसे पहले बिमला और इल्यास की अम्मी का खेमा खड़ा हुआ। यह एक दोनों एक खेमा में रहती थी। इल्यास अम्मी के ठहरने का इंतेज़ाम करके कमला से मिलने चले। 

    उन्होंने असर की नमाज़ पढ़ ली थी। आफ़ताब मगरिब की तरफ झुक गया था। ऊँची ऊँची चट्टानों की वजह से धुप गायब होने लगी थी  . इल्यास ने इस बात का भी ख्याल नहीं किया की दिन छिपने वाला है। वह तेज़ी से चले। जब उस  चट्टान के क़रीब पहुंचे जिस पर बैठ कर कमला ने उन्हें रुखसत  किया था और एक दर्दनाक गीत गया था तो उन्हें  कमला  के गाने की आवाज़ आयी। गाते गाते वह रोने लगी। उसकी हिचकी बंध गयी। इल्यास क़रीब पहुंच चुके थे  .उनका दिल उसका गीत सुन कर और  उसे रोता देख कर गुदाज़ हो गया था। आंखे पुर नम हो गयी थी। वह आहिस्ता  से घोड़े से उतरे। घोड़े को वही छोड़ा और चुपके चुपके उसके पास पहुंच कर पुकारा ” बहन “

    कमला  ने सर झुका रखा था उसने जल्दी से मोरनी जैसी गर्दन उठायी उसकी  आँखों से  आंसू के सैलाब बह रहे थे। हसींन चेहरे पर ग़म  के बादल छाए हुए थे। उसने आंसू से भरे आँखों से इल्यास को देखा। उसका ग़म एकदम ख़ुशी में  बदल गया। ग़म के आंसू ख़ुशी के आंसू बन गए। उसने फीके मुस्कराहट से कहा ” कौन भाई !”

    इल्यास ने उसके सर पर हाथ रख कर कहा ” हां तुम्हारा भाई अपना वादा पूरा करने  आया है। “

    कमला : मुझे  यक़ीन नहीं आता। 

    इल्यास : क्या मुझे भूल गयी ?

    कमला : भाई ! भूल जाती तो तुम्हे याद करके रोया क्यू करती। 

    वह जल्दी से उठी और इल्यास के शाने से लग कर रोने लगी। इल्यास ने कहा “यह क्या ? अब किस लिए रोती हो। 

    कमला ने अलग हो कर कहा “हमारे देस में यह दस्तूर है की जब बहन भाई से जुदा होती है तब रोती है और जब मिलती है तब रोती है। अच्छे तो रहे भाई ?

    इल्यास : खुदा से फज़ल से अच्छा रहा। बहन तुम तो अच्छी रहीं। 

    कमला : ज़िंदा हु। मैंने होने पिता को अपना और तुम्हारा सब हाल बता दिया था जब मैं तुम्हे याद करके रोती थी तो वह  तसल्ली दिया करते थे। आओ उनके पास चले। वह तुमसे मिल कर बहुत खुश होंगे। 

    इल्यास : मैं इस्लामी लश्कर के साथ आया हु। लश्कर यहाँ से चंद मील के फासला पर मुक़ीम है। मैं तुमसे मिलने चला  आया था। दिन छिपने वाला है। मेरी अम्मी भी लश्कर के साथ है। वह मेरा इंतज़ार करेंगी। अब इजाज़त दो कल इंशाल्लाह  आऊंगा। 

    कमला : वाह।  अच्छे आये इजाज़त मांगने वाले। पहले पिता जी के पास चलो। उनसे मिल कर जाना। चांदनी रात है। चले जाना। आओ मेरे साथ चलो। 

    इल्यास : चलो। मैं घोड़ा ले लू। 

    कमला : घोड़ा कहा है। 

    इल्यास : देखो वह सामने खड़ा है। अभी लाया। 

    इल्यास घोड़ा ले आये और कमला के साथ चले। अभी वह रास्ता ही में थे की दिन छिप गया। उन्होंने मगरिब की नमाज़  पढ़ी। फिर वहा से चले जब वह उसकी झोपड़ी पर पहुंचे तो कमला के पिता मिले। वह उन्हें देख  कर हैरान  रह गए। उन्होंने कहा ” मुसाफिर ! तुम आगये ?

    इल्यास ने सलाम करके कहा ” मैंने अपनी बहन कमला से आने का वादा किया था। 

    बूढ़े ने कहा ” मुझे तुम्हारे आने यक़ीन न था लेकिन कमला को यक़ीन था। अब तो न जाओगे तुम। 

    इल्यास : अब मैं अपनी बहन को साथ ले जाऊंगा। 

    बूढ़ा : और यह बूढी हड्डिया ?

    इल्यास : तुम्हे भी साथ ले जाऊंगा। 

    बूढ़ा : अरे भई कमला ! अपने मेहमान की खातिर तो करो। 

    कमला जल्दी से कुछ दूध और जो कुछ उसने पका रखा था।  इल्यास ने खाया और बूढ़े से कहा  ” अब मैं इजाज़त चाहता हु। 

    बूढ़ा हैरान रह गया। कमला ने कहा ” यह लश्कर के साथ आये है। यहाँ से कुछ फासले पर मुक़ीम है। 

    बूढ़ा : चलो बेटा मैं पंहुचा आऊं। 

    इल्यास : मैं चला जाऊंगा। तुम तकलीफ न करो। 

    कमला : मैं चली जाऊ पिता जी। सुबह आजाऊंगी। 

    बूढ़ा : चली जा। 

    इल्यास : नहीं कमला तुम तकलीफ न करो। मैं चला जाऊंगा। 

    कमला : मैं अपने भाई को अकेला  न जाने दूंगी। 

    बूढ़ा : है तो चली जा कमला। 

    गरज़ कमला इल्यास के साथ चली उन्होंने उसे घोड़े पर सवार किया और खुद चले। 

                               अगला पार्ट ( बिमला आगोश इस्लाम में ) 

  • fatah kabul (islami tareekhi novel ) part 33

     बाक़िया दास्तान 

     


    इलियास वहा से सीधे अपनी माँ के पास पहुंचे उन्होंने उनसे वह तमाम हालात बयान कर दिए जो औरत से सुने थे। उनकी माँ ने कहा “वह कम्बख्त भी मुसीबतें ही झेलती रही है। मैंने उसके लिए बद्दुआ नहीं की खुदा ने खुद उसे सजा दी है। लेकिन खैर यह तो मालूम हो गया की मेरी राबिआ सुगमित्रा बानी हुई है। आराम व राहत से है। शहज़ादी है। मगर यह अफ़सोस है की वह काफिर है। “

    इलियास : उसका अफ़सोस मुझे भी है। लेकिन वह ऐसे काफिर बनाई  गयी जब उसे कुछ पता नहीं था। 

    अम्मी : अब न राबिआ को मैं पहचान  सकती हु न वह मुझे। 

    इल्यास ; अम्मी जान !  वह मुझे और तुम्हे क्या खुद  को भी नहीं जानती पहचानती। 

    अम्मी : अगर किसी तरह मैं उससे मिल सकू तो शायद वह पहचान जाये। 

    इल्यास : फ़िलहाल तो यह मुमकिन नहीं। 

    अम्मी : मैं जानती हु। जब वह औरत ही उससे मिल नहीं सकती जो उसे वहा लायी तो मैं कैसे मिल सकती हु। तुमने उस औरत से राफे का कुछ हाल नहीं पूछा। शायद उसे मालूम हो। 

    इल्यास : वह कमज़ोर है क़िस्सा  बयान करते करते थक गयी थी। उसने फिर बुलाया है। कहती थीं कुछ और हालात सुनाऊँगी। 

    अम्मी : फिर कब जाओगे तुम। 

    इल्यास : कल जाने का इरादा है। 

    अभी वह बाते ही कर रहे थे की सलेही ने आवाज़ दी। वह उनके पास आगये। सलेही ने कहा “लीडर ने दादर की तरफ  लश्कर को कोच करने का हुक्म दे दिया है। वह चाहते है तुम और मैं ढाई सौ सवारो के साथ रह जाये अरब औरते  भी हमारे साथ ही रहे। “

    सलेही : तब तुम लीडर के पास चले जाओ और उनसे कह सुन लो। 

    इल्यास : तुम भी चलो। 

    सलेही : चलो मैं भी चलता हु। 

    दोनों लीडर के पास पहुंचे उन्हें सलाम किया और बैठ गए लीडर ने कहा ” !इल्यास ! हम  चाहते है की तुम और सलेही  औरतो के साथ  यही रहो। 

    इल्यास : मुझे हुक्म मानने में कोई उज़्र नहीं। लेकिन उस औरत से कल इस बात के तस्दीक़ हुई की राजकुमारी सुगमित्रा  ही राबिआ है।  दादर के क़रीब एक बस्ती है। उसमे एक लड़की कमला रहती है। मैं उसके ज़रिये से सुगमित्रा  के पास पैगाम भेजना चाहता हु। 

    अब्दुर्रहमान : इजाज़त है। अच्छा सलेही !  तुम यहाँ रहना। 

    सलेही ; बेहतर। 

     अब्दुर्रहमान :हमने लश्कर को तैयारी का हुक्म देदिया है। .इल्यास तुम भी तैयार हो जाओ। परसो लश्कर कोच करेगा। 

    इल्यास : मैं हर वक़्त तैयार हूँ। 

    इल्यास और सलेही दोनों वहा से उठ आये। इल्यास अगले रोज़ झोपड़ी पर पहुंचे। औरत उनकी आहट सुन कर बाहर निकल  कर आगयी। वह दरख्त के  साये में फर्श पर बैठ गयी। इल्यास उसके सामने बैठ गए। उन्होंने देखा की उसके चेहरे पर कल से ज़्यादा रौनक है। औरत  ने कहा ” मैं आज सुबह से तुम्हारा इंतज़ार कर  रही थी “

    इल्यास : मैं भी सुबह  ही आने वाला था लेकिन लीडर ने बुला लिया था उनके पास से सीधा तुम्हारे पास आ रहा हूँ. 

     औरत : इल्यास! मुझे तुमसे मुहब्बत हो गयी है। 

    इल्यास : मैं मश्कूर हु। मैं तुम्हे अपना बुज़ुर्ग समझता हु। 

    औरत : बिमला ने तुम्हारे साथ बुराई की है। अब वह भलाई करना चाहती है। और यहाँ तक तैयार है की तुम्हारे लिए अपनी जान भी दे सकती है  . 

    इल्यास समझ गए की उस औरत का नाम बिमला है। उन्होंने कहा “तुम्हारी जान क़ीमती है खुदा उसे सलामत रखे। 

    बिमला ने उन्हें देखा और मुस्कुरा कर कहा “हर शख्स की जान क़ीमती है। लेकिन रात मैंने इरादा कर लिया है की तुम्हारी और  सुगमित्रा की भलाई की कोशिश में अगर  मेरी जान भी रहे तो परवाह न करुँगी। 

    इल्यास : सुगमित्रा नहीं राबिआ कहो। 

    बिमला : जब वह फिरसे मुस्लमान हो जाएगी तब राबिआ कहूँगी। 

    इल्यास : अच्छा तो यह है की पहले तुम मुस्लमान हो जाओ। 

    बिमला : शायद उसका भी वक़्त आ जाये। लेकिन तुम इक़रार करो। 

    इल्यास : क्या ?

    बिमला : मुझसे जुदा न होंगे। 

    इल्यास : मैं वादा करता हु की अगर तुम मेरे पास रहोगी तो मैं अपनी माँ की तरह तुम्हारी इज़्ज़त और खिदमत करूँगा।  

    बिमला : ज़माना की ठोकरे उठा कर मैंने सबक़ हासिल किया है बद क़िस्मती से मेरे कोई औलाद नहीं है। मैंने तुम्हे  अपना बेटा समझ लिया है। 

    इल्यास : यह मेरे लिए बड़े फख्र की बात है। 

    बिमला : अब सुनो महाराजा काबुल ने सुगमित्रा की शादी तय करदी है पिशावर के राजा का एक लेपालक है उसके साथ होने  वाली है। मगन मतलब शादी कि तारीख का खत जाने वाला है। मुझे यह भी मालूम हुआ है की इसी महीने में यह खत भेजा जायेगा। मैं चाहती यह हु की  यह खत न जाये। या अगर चला जाये तो शादी न हो। 

    यह खबर सुन कर इल्यास के दिल पर झटका सा लगा। लेकिन वह ज़ब्त कर गए। उन्होंने कहा ” खत या शादी रोकने  की क्या तदबीर हो सकती है ?”

    बिमला : महाराजा किसी की मानने वाले नहीं है। सिर्फ एक ही तदबीर है। 

    इल्यास : क्या ?

    बिमला : मुसलमान काबुल पर जल्द से जल्द चढ़ाई कर दे। 

    इल्यास ; कल लश्कर दादर की तरफ रवाना हो जायेगा। अगर खुदा  ने चाहा और दादर जल्द फतह हो गया तो  फिर काबुल पर चढ़ाई  कर दी जाएगी। 

    बिमला : दादर पहुंच कर महाराजा काबुल के पास एलची भेजना शायद महाराजा यह समझ कर की लड़ाई काबुल के दरवाज़े  पर आगयी है। शादी मुल्तवी कर दे। 

    इल्यास : मैं लीडर से कह कर क़ासिद रवाना करा दूंगा। एक बात दरयाफ्त करता हु। 

    बिमला : क्या ?

    इल्यास : तुम्हे मेरे चाचा राफे का भी कुछ हाल मालूम है। 

    बिमला :  बहुत अरसा हुआ जब मैंने दादर के पास देखा था। उस वक़्त वह एक भक्षु से त्रितपताक पढ़ा  करते थे। मैं कह चुकी हु  की मुझे मालूम है की वह मुझसे मुहब्बत किया करते थे। औरत मुहब्बत की नज़रो को   बहुत जल्द समझ लेती है मगर जब तक मैं उनकी बेटी को लायी हु उस वक़्त तक मुझे उनकी मुहब्बत तो क्या मेरे दिल में उनका ख्याल भी पैदा नहीं हुआ था। मगर जब मैंने उन्हें देखा तो उनपर बड़ा तरस आया और उनकी मुहब्बत का शोला मेरे दिल में भड़क उठा। जी चाहा उनसे माफ़ी मांग लू उनके क़दमों पर गिर जाऊ खुद भी रोऊँ और उन्हें भी रुलाऊँ। लेकिन हिम्मत न पड़ी। यह खौफ हुआ कही वह अपनी बेटी का इन्तेक़ाम न ले। सबर का पत्थर दिल पर  रख कर जुदा हो गयी। उसके बाद अब तक मैंने उन्हें नहीं देखा। 

    इल्यास ; न कोई खबर सुनी ?

    बिमला : नहीं हलाकि जब मैं होश में आयी हु तो सबसे पहले मुझे उनका ही ख्याल आया था। मैं उन्हें तलाश करती फिरि।  मायने तय कर लिया था की अगर वह मिल गए तो उनके सामने जाउंगी अगर वह सजा देंगे तो परवाह न करुँगी  मारना चाहेंगे तो उफ़ न करूंगी। मिन्नतें करूंगी। उनकी बन जाउंगी या उन्हें अपना लुंगी लेकिन क़िस्मत वह नहीं मिले। न उनकी कोई खबर ली। 

    इल्यास : तुमसे माँ मिलना चाहती है। 

    बिमला : क्या वह मुझे माफ़ कर देंगी ?

    इल्यास : उम्मीद है वो माफ़ कर देंगी। वह निहायत नेक खातून है। 

    बिमला : मैं खुद उनसे मिलना और माफ़ी मांगना चाहती हु। 

    इल्यास : तो चलो ! 

    बिमला : क्या अभी चलु ?

    इल्यास : जब चलना ही है तो अब और जब क्या। 

    बिमला : फिर चलो। 

    उस वक़्त उसने बसंती रंग की साड़ी बाँध रखी थी। उसके सफ़ेद रंग में बसंती रंग खूब खिल रहा था। वह इल्यास के साथ चल कर  उनकी माँ के पास आयी और बढ़ कर उनके सामने सर झुका कर खड़ी हो गयी और कहा ” इस गुनहगार का सर   झुका हुआ है। क़लम कर डालिये। 

    इल्यास की अम्मी का दिल भर आया। उन्होंने उसकी खूबसूरत चेहरा हाथ में लेकर सर उठा कर कहा “मैंने माफ़   कर दिया  तुम राबिआ को उसकी मुहब्बत से मजबूर  हो कर लायीं। यह ख्याल न किया की हमें भी उससे मुहब्बत है। उसकी जुदाई में हमारा क्या हाल होगा। तुमने हमें तड़पाया। खुदा ने तुम्हे तड़पाया और अब शिकायत और गिला  कैसा। 

    बिमला की आँखों में आंसू  झलक आये उसने कहा ” जो क्या उसकी सजा पायी। तुमने माफ़ कर दिया बड़ी मेहरबानी  की जब तक ज़िंदा रहूंगी तुम्हारी खिदमत करुँगी। 

    अम्मी : अब मैं तुम्हारी ही खिदमत में रहूंगी। 

    उस रोज़ से बिमला इल्यास की माँ ही के पास रहने लगी। 

                                              अगला पार्ट ( ग़मज़दा नाज़नीन ) 

  • fatah kabul (islami tareekhi novel) part 32

     आप बीती



     दूसरे रोज़ अब्दुल्लाह ने इल्यास के पास आकर कहा “चलिए वह औरत आपका इंतज़ार कर रही है “

    इल्यास  उनके साथ चले। वह एक बाग़ में झोपड़ी के अंदर रहती थी उनकी आहट पा कर बाहर निकल आयी। इल्यास ने उसे देखा। पहले जैसे वह जवान न रही। मगर हुस्न रफ्ता के  दिलकश आसार अब भी  चेहरा से ज़ाहिर थे। उसकी सेहत अच्छी थी। अच्छी सेहत ने चेहरे की दिलकशी को और बढ़ा दिया था। आँखों में अब भी तेज़ चमक थी। उसने इल्यास को देखा बगैर इरादा के इल्यास ने सलाम किया। उसने उन्हें दुआ दी और आगे बढ़ कर उनकी पेशानी को बोसा दिया। 

    झोपड़ी के बाहर रस्सी की चटाई बिछी हुई थी वह इल्यास का हाथ पकड़ कर  उस चटाई पर बैठी इल्यास  उसके सामने और अब्दुल्लाह एक तरफ बैठ गए। औरत ने कहा “बेटा !पहले तो इस बात की माफ़ी मांगती हु की मैंने तुम्हारे और तुम्हारी माँ का दिल दुखाया। हक़ीक़त यह है की दिल दुखाने का सिला मैंने पा लिया। मेरे दिल को जो तकलीफ पहुंची है उसे मैं ही खूब जानती हु। क्या तुम मुझे माफ़ कर दोगे। “

    इल्यास : जहा तक मेरा ताअल्लुक़ है। मैंने माफ़ कर दिया। अल्लाह भी माफ़ करे। रहा माँ का वह खुद माफ़ कर सकती है मैं उनकी तरफ से कैसे माफ़ी दे सकता हु। 

    वह :ठीक है लेकिन अगर तुम कोशिश करो तो वह माफ़ कर देंगी। 

    इल्यास : मैं यही कोशिश करूँगा। लेकिन पुरे पंद्रह साल उन्हें देखते हुए गुज़र गए है। 

    वह : इसका मुझे अफ़सोस भी   है और रंज भी है। लेकिन उस कम्बख्त दिल ने मुझे मजबूर कर दिया था। उस बच्ची से मुझे ऐसी मुहब्बत हो गयी थी की मैं अंधी हो गयी थी। किसी बात का ख्याल न रहा। मैं उसे बहला फुसला कर  ले आयी। चाहती थी की कलेजा से लगा कर रखूंगी। लेकिन बुरे नियत वालो ने मुझे मजबूर  कर दिया और मैंने  उस दरबे बहा को फरोख्त कर डाला समझी थी की उसके पास रहूंगी। बेटी समझ कर पालूंगी। लेकिन ज़बरदस्ती  उससे जुदा कर दी गयी। तड़पी। तिलमिलाई। मगर एक कमज़ोर औरत थी कुछ कर न सकी  तड़पी जिस तरह तुम्हारी अम्मी  तड़पी होंगी। 

    वह चुप हो गयी। इलियास उसके चेहरे की तरफ देख रहे थे। उन्होंने कहा “राबिआ को भी अपने अज़ीज़ो का छूटने का रंज हुआ होगा  . 

    वह : बहुत ज़्यादा रंज हुआ था। महीनो रोती रही थी। मुझे डर हो गया था कही उसकी सेहत खराब न हो जाये। लेकिन ज़माने  ने उसके ग़म का न देखा। वह मुझे अपनी माँ समझने लगी अब तो वह मुझे पहचानती भी नहीं। 

    इल्यास : वह तुम्हे  और किसी को क्या खुद अपने आपको भी नहीं पहचानती। 

    वह : यही बात है। मुझे अगर कुछ तसल्ली हो जाती है तो इस बात से की वह राहत आराम से है और जवानी ने उसे ऐसा निखार दिया है  जैसे कली खिल कर खुशनुमा फूल बन जाता है। इस वक़्त वह सारे काबुल में और काबुल में ही नहीं  तमाम हिन्द में बल्कि मैं तो यह कहु की सारी दुनिया में आप ही अपनी नज़ीर है। शबाब ने उसके हुसन को  हज़ार दर्जा बढ़ा दिया है। ऐसा दिलकश हुस्न ऐसा दिलफरेब और भूला चेहरा। ऐसे नाज़ो अंदाज़ परियो में भी नहीं  होंगी। जो उसे एक नज़र देखता उसका बंदा बे दाम बन जाता है। 

    इल्यास : मैंने उसे क़रीब से देखा है। उसकी खूबसूरती उसके हुस्न और उसके रानाई के बारे में खूब  जानता हु। मैं उसके तमाम हालात  सुन्ना चाहता हु। किस तरह तुम लायी। कहा रखा। किसके  फरोख्त किया। 

    वह : यह एक लम्बी दास्ताँ है। जी तो यह  चाहता है की उस दास्तान की जज़्यात तक बयां कर दूँ। लेकिन वक़्त ज़्यादा  लगेगा न मैं सारे हालात बयांन कर सकुंगी न तुम सुन सकोगे। इसलिए मुख़्तसर बयान करती हु। मुझे राबिआ  से मुहब्बत हो गयी थी। बे पनाह मुहब्बत।  मैं उसे  अपने साथ रखना चाहती थी। लेकिन न मैं वहा रह सकती  थी और न उसका  बाप और न तुम्हारी अम्मी उसे  मेरे साथ आने की इजाज़त दे सकती थी   इसलिए मैंने यह इरादा कर लिया की ख़ुफ़िया तौर पर उसे ले जाऊं। मैं जानती थी की उसके अब्बू मुझे चाहने लगे है। उन्होंने इशारा  में मुझसे  यह बात कही थी की अगर मैं मुस्लमान हो जाऊं तो वह मुझे अपनी बीवी बना ले। मैं दिल में हंसी  .लेकिन उनसे चिकनी चपड़ी बाते करती रही। अचानक से मुझे बुखार आगया। वह मुझे देखने आते  और घंटो बैठे  रहते। मैं उनसे राबिआ को लाने के लिए कहा। .वह ले आये। मैंने रात को उसे रोकने की कोशिश की। वह मेरी हर बात  को हुक्म समझते थे। छोड़  कर चले गए। मेरा दिल बेईमान हो गया मैं आधी रात को उसे लेकर वहा से चल पड़ी   और दूसरे गैर मारूफ रास्तो से रात दिन  चल कर पहले अरजनज में पहुंची। वहा से यहाँ आगयी। राबिआ सारे  रास्ते रोती रही  और  वापस जाने की ज़िद करती रही। मैं उसे समझाती और ज़्यादा ज़्यादा उसकी तसल्ली करती। मेरे साथ  जो आदमी थे वह निहायत मक्कार  बड़े लालची थे। उन्होंने मुझे तरग़ीब देना शुरू की कि मैं  महाराजा काबुल  के हाथ फरोख्त कर दूँ।  मैं इंकार  करती रही। हम काबुल में जा पहुंचे। उन बदबख़्तो ने  साज़ बाज़  करके राजा को वह लड़की  दिखा दी। महाराज ने उसे पसंद किया। महारानी  ने देखा तो उसपर लट्टू हो गयी  .काबुल  के वज़ीर आज़म ने मुझ पर डोरे डालने शुरू किये। मुझे बहकाया की लड़की महाराजा के हाथ बेच दू।  दाम अच्छे और मुँह मांगे मिल जायेंगे और मैं उसके पास रहूंगी। मैं उसके बात में आगयी। सच तो यह है मैं उसे  बेचना नहीं चाहती थी लेकिन इधर तो मेरे साथियो ने मुझे मजबूर किया। इधर वज़ीर ने फुसलाया। मैं तैयार हो गयी दो लाख  मेरे साथी ले गए और एक लाख मेरे पास रह गए। लड़की मुझसे ले  ली गयी। उसके बुध मज़हब  में दाखिल  करने की रस्म बड़ी धूम धाम से अदा हुई। कई रोज़ तक जश्न होते रहे। लड़की को कुछ मालूम न हुआ। उसका  नाम सुगमित्रा रखा गया।  कुछ दिन तो मुझे रनवास में रहने दिया गया। शायद इस वजह से कि लड़की नए  माहौल से रानी और राजा से ,कनीज़ों और रनवास वालियों से मानूस हो जाये। कुकी जब सुगमित्रा ने नयी ज़िन्दगी  शुरू की  वहा उसका दिल लग गया। वह रानी से इस दर्जा मानूस हो गयी कि उसे अपनी माँ समझने लगी   तो न मालूम क्यू मुझे महाराजा ने कश्मीर जाने का हुक्म दे दिया। इंकार से  फायदा न समझ कर मुझे जाना पड़ा।  रुपया मेरे साथ था।  मैं कई बरस तक वहा रही या रखी गयी। अमीरो की सी शान से रफ्ता रफ्ता रूपया खर्च   हो गया। जब मैं काबुल वापस आयी तो रनवास में जाने की इजाज़त न मिली। मैं दादर गयी। वह से फिर काबुल  वापस आगयी। 

    मुझे काबुल आकर मालूम हुआ की बनारस से कुछ पंडित आये है। मैं उनसे मिली।  उन्होंने ,बनारस मथुरा ,इलाहाबाद   हरी द्वार के दिलकश मनाज़िर और हिन्द  दिलचस्पियों के हालात कुछ ऐसे  ब्यान किया की मुझे वहा  से जाने की शौक़ पैदा हुआ। मैं न समझी की पंडित मुझे उभार कर वहा ले जा रहे है। 

    गरज़  मैं उनके साथ चल पड़ी। वहा से पेशावर। पेशावर से लाहौर पहुंची। पंजाब को देखा। उस मुल्क में पांच दरिया  बहते है ,अच्छा सरसब्ज़ मुल्क है वहा से हरद्वार गयी। उस मुक़द्दस  दरिया में ग़ुस्ल किया जिसे अहले हिन्द सबसे  पाक समझते है। उसका नाम गंगा है ,गर्मियों के मौसम में वहा पहुंची थी। दरियाये गंगा का पानी मुझे बहुत पसंद आया  ,वहा से बनारस गयी ,यह मुक़ाम भी बहुत अच्छा था। दरियाए गंगा के किनारा पर है। यहाँ वह पंडित रहते  थे जो मेरे साथ आये थे ,या मुझे अपने  साथ लाये थे। 

    बनारस पहुंच  कर उन पंडितो की नियत पता चली। वह मुझे अपनी हवस का शिकार और बदकार बनाना चाहते थे  मालूम यह हुआ की मुझ पर बुरी तरह फरिफ्ता है। मैं घबरा गयी ,उन्हें जल दे कर जल्दी उनके पास से भागी। उस मुल्क में थी  जिसे मैं बिलकुल नहीं जानती थी। वहा से निकल कर और मुसीबतो में फँस गयी।  उस मुल्क में जो आदमी  भी मुझे माला गुमराह  बदकार ही मिला। मेरी आबरू रेज़ी की हर शख्स ने  कोशिश की मुझे   अफ़सोस  हुआ की इस मुल्क के लोग किस क़द्र मक्कार और गुनाह गार है मैंने बुढ़ियो के पास जाकर पनाह ली। वाज जवानो  से भी ज़्यादा शैतान निकली। गरज़ मैं बारह बरस तक उस मुल्क में मारी मारी फिरि। ज़िन्दगी थी बच गयी  और फिर काबुल में। आगयी 

    मुझे राबिआ या सुगमित्रा से जुदा हुए चौदा बरस से ज़्यादा  गुज़र चुके थे। मैं उसे देखने के लिए बे क़रार हो गयी। लेकिन   शाही महल में मुझे जाने की इजाज़त न थी। हर चंद कोशिश की रसाई न हुई। मैं राबिआ से  कोशिश कर रही थी  और एक पंडित मेरी आबरू लेने की फ़िक्र कर रहा था। मुझे मालूम न था उसने मेरी एक सहेली के ज़रिये से मुझे  कोई ऐसी दवा खिलवा दी जिसने मेरा दिमाग खराब कर दिया और मुझे पागल हो गयी। मेरी यह दास्तान है बेटा ! अब मैं थक गयी हु।  मेरी दरख्वास्त है कल फिर मेरे पास आना। मैं  बाक़िया हालत तुम्हे सुनाऊँगी। 

    इलियास उसे सलाम करके उठे और अब्दुल्लाह के साथ चले आये। 

                                          अगला भाग ( बाक़िया  दास्तान )