Category: fatah kabul part 37

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    fatah kabul ( islami tareekhi novel) part 37

     पुरजोश हमला …… 




    जब वह दरबार से निकल कर थोड़ी दूर चले उन्होंने पेशवा की सवारी आती देखी। उस  पेशवा की जिसने इल्यास को क़ैद कर दिया था। उसकी सवारी के आगे सवारों का एक दस्ता था। दस्ता के पीछे धार के पुजारी थे। उनके पीछे पेशवा था। पेशवा के पीछे सवार थे। 

    हम्माद इल्यास और उनके साथी सड़क के किनारे पर खड़े हो गए जब सवारी उनके सामने आयी तो पेशवा  ने इल्यास को गौर से देखा उसने सवारी रुकवाई  और इल्यास को आगे  आने का इशारा किया। वह उसके पास जाकर खड़े हुए। पेशवा ने कहा : 

    “नौजवान ! तुम्हारा क्या नाम है ?

    ” इल्यास” उन्होंने जवाब दिया। 

    पेशवा चौंका। उसने कहा ” तुम्हरा वतन कहा है ?

    इल्यास : वतन अरब। 

    पेशवा : अरब तो तमाम अरबो का वतन है। तुम रहते कहा हो ?

    इल्यास : बसरा। 

    पेशवा : तुम धार में आये थे। 

    इल्यास समझ गए उसने उन्हें पहचान लिया। उन्होंने कहा ” है मैं आया था। 

    पेशवा : उस वक़्त तुम जासूस थे ?

    इल्यास : है अब मैं सिफारत पर आया हु। 

    पेशवा : राजा ने मसलेहत का क्या जवाब दिया। 

    इल्यास : वह तैयार नहीं है। 

    पेशवा : मैं समझता था। अब तुम्हारा  क्या इरादा है। 

    इल्यास : मेरा क्या इरादा हो सकता है। लीडर इसके बारे में तय करेंगे। 

    पेशवा : ठीक है। 

    उसने इशारा किया और उसकी सवारी बढ़ी। यह लोग भी चले और क़िला से निकल कर अपने लश्कर में आये। लीडर  से राजा की तमाम गुफ्तुगू ब्यान किया। लीडर ने कहा ” उसका इरादा लड़ाई का मालूम होता  है। आज इंतज़ार  करो। देखो वह मैदान में आता है या नहीं। अगर आज वह मैदान में न निकला तो इंशाल्लाह कल क़िला पर हमला  किया जायेगा। “

    चुनांचा तमाम लश्कर में अयलान कर दिया की होशियार रहो और दुश्मन की नक़ल व हरकत पर निगाह रखो। मुसलमान देख रहे थे की दादर के सिपाही फसिलो पर घूम रहे है। सबसे ऊँचे दरवाज़ा पर लाल झंडा लहरा रहा है यही उनका  क़ौमी झंडा था। 

    वक़्त गुज़रता रहा। दुपहर हुआ। दिन ढला आखिर शाम हो गयी लेकिन अहले दादर ने कोई नक़ल व हरकत नहीं की  . वह बदस्तूर क़िला बंद रहे दूर दूर फ़सील के ऊपर से झांक कर मुसलमानो को देखते रहे। दिन छिपते ही तमाम फ़सील पर मशाल रोशन हो गयी। उस रौशनी में सिपाही चलते फिरते नज़र आने लगे। इस्लामी कैंप में भी आग  के अलाव जगह जगह जला दिए गए। सर्दी का ज़माना था। सर्दी काफी होती थी मुसलमान आग के अलाव के गिर्द  बैठ गए और तापने लगे। लेकिन मुसलमानो का क़ायदा था की बेकार न बैठते थे या तो कोई शख्स क़ुरान शरीफ  पढता था  उसकी तशरीह और तफ़्सीर बयान करता। या हदीस शरीफ पढता या क़ौमी बहादुरों के क़िस्से और तारीखी  वाक़ेयात बयान होते थे। 

    सुबह की नमाज़ पढ़ कर लीडर अब्दुल्लाह ने हमला का एलान कर दिया। मुसलमान खुश हो गए। वह जिहाद करने आये थे। जिहाद से बढ़ कर वह कोई काम न समझते थे। उन्हें सरफ़रोशी में लुत्फ़ आता था। सब अपने अपने खेमो पर जा कर मुसलह हुए और घोड़ो पर सवार हो के मैदान में निकले। 

    लीडर अब्दुर्रहमान भी पहुंच गए। वह इस फ़िक्र में थे की पहला में किसे अफसर मुक़र्र करे। इल्यास उनकी खिदमत  में हाज़िर हुए और दरख्वास्त की कि हिरावल का अलम उन्हें अता किया जाये ,लीडर ने कहा : तुम कमसिन मुजाहिद हो मैं किसी तजर्बा कार शख्स को हरावल पर अफसर मुक़र्र करना चाहता हु। 

    इल्यास : तजर्बा लड़ने ही से हासिल होता है। लीडर मेरी लड़ाई ज़रंज में देख चुके है। 

    लीडर ने कुछ देर सोचा और अलम इल्यास को दे कर “जो शख्स  पहल करता है वह उसका मुस्तहिक़ है लो तुम झंडा लो और  खुदा का नाम लेकर पढ़ो। लेकिन यह एहतियात करना की जोश में आकर मुसलमानो को या खुद को खतरा  में न डाल देना। 

    इल्यास : मैं जोश का क़ाएल नहीं हु। 

    वह झंडा लेकर पांच सौ सवारों के साथ अल्लाहु अकबर का नारा लगा कर आगे बढे दादर के सिपाहियों ने फ़सील  के ऊपर से देखा। उन्होंने तबल जंग बजा कर एलान कर दिया। क़िला वालो को मालूम हो गया की लड़ाई शुरू हो गयी  वह घबराहट और परेशान हो गए राजा भी ब्रिज बैठ गए उसने हुक्म दिया की जिस वक़्त मुस्लमान तीरो की ज़िद   में आजाये उनपर तीर की बाढ़ मारे। 

    मुसलमान आहिस्ता आहिस्ता बढे चले आरहे थे। जब क़िला के क़रीब पहुंच गए तो इल्यास ने उन्हें रोक दिया और अगली सफ पियादा हो कर ढालो के साया में बढ़ने का हुक्म दिया। और उसके पीछे सवारों का दस्ता  लेकर बढे। मुसलमानो की अगली सफ  ने ढाले इस तरह बुलंद कर ली जिनसे खुद भी महफूज़ रहें और पिछले सवारों के घोड़ो  की भी हिफाज़त करते रहे। 

    जब यह एक तीर के फासला पर पहुंचे तो काफिरो ने शोर करके तीरो की बारिश शुरू की यह तीर मुसलमानो की ढालो पर पड़े। कुछ तीर पिछले सवारों पर भी गए उन्होंने भी ढाल पर रोक लिए। 

    अब क़िला से बराबर तीरो की बारिश हो रही थी। मुस्लमान मज़बूती  से ढाले पकड़ें आगे बढ़ रहे थे। वह खमोश थे कुफ्फार बड़ी  बे फ़िक्री और इत्मीनान से तीर बरसा रहे थे। कुछ दूर चल कर इल्यास ने अचानक तीर बारी का हुक्म दिया। पियादा सफ ने ढाले इस क़द्र ऊँची कर ली जिससे सवार महफूज़ हो गए। और सवारों ने हैरत अंगेज़ फुर्ती  के साथ कमाने शानो से उतार कर हाथो में ली। तरकशों में से तीर निकाले और ताक कर सबने इस तरह एक साथ  तीर छोड़े जैसे वह एक ही कमान से निकले हो। यह तीर सनसनाते हुए तेज़ी से लपके कुछ कुफ्फार के तीरो  से टकरा कर रास्ता ही में गिर पड़े। कुछ फ़सील के कंगारू से जाकर टकराये लेकिन ज़्यदातर फ़सील के ऊपर  जाकर ग़ाफ़िल सिपाहियों के लगे। कई सिपाहियों के पेशानियों में तीर तराज़ू हो गए। वह होलनाक चीखे मार  कर औंधे मुंह गिर पड़े। जो फ़सील से लगे खड़े थे उनमे से कई फ़सील से निचे गिर पड़े और उनकी हड्डियों का चूरा  हो गया। 

    कई तीर सिपाहियों के सीनो में लगे वह भी लौट गए चुकी कुफ्फार ग़ाफ़िल थे और उस वक़्त तक उनपर तीर बारी नहीं होती थी मुसलमानो ने अचानक तीरो की बाढ़ मारी उससे काफिरो का बहुत ज़्यदा नुकसान हुआ। इतने काफिर  संम्भले इतने मुसलमानो ने दूसरी और फिर तीसरी बाढ़ मारी। इन तीरो से भी क़िला वालो को काफी नुकसान हुआ  और डर कर बैठ गए। फ़सील की दिवार पर्दा बन गयी। 

    जब मुस्लमान क़िला के पास बिलकुल क़रीब पहुंचे तो  उनके तीर बेकार हो गए और जब तीर बारी बंद हो गयी  तो फ़सील  वालो को मौक़ा मिल गया उन्होंने भारी भारी पत्थरो फलखनो के ज़रिये फेंकने शुरू किये उन पत्थरो से मुसलमानो के हाथ बहक गए  और पत्थरो ने उन्हें कमज़ोर कर दिया। ज़ख़्मी फ़ौरन वहा से हटा दिए गए। अब मुसलमानो  ने ऐसा  किया की जिस शख्स ने दाहने हाथ से ढाल पकड़ रखी थी उसके पास वाले मुस्लमान ने दाहने हाथ में  अपनी ढाल ली और बाए हाथ से बराबर वाले मुस्लमान की ढाली पकड़ ली। इस  तरह  हर ढाल दो दो आदमियों  ने संम्भाल ली। अब जो पत्थर ढालो पर आकर लगे उन्हें मुसलमानो ने रोक लिया।  वह ढालो से टकरा कर  निचे गिरने लगे। 

    फ़सील के ऊपर से कुफ्फार देख रहे थे। वह मुसलमानो की हर जुरअत और जिसारत देख कर होल डर गए। उन्हें ऐसा मालूम  हुआ जैसे लोहे की दिवार उठी चली आरही है ढाले लोहे की थी और मुस्लमान ने उन्हें एक दूसरे से  मिला लिया था  . 

    फ़सील के सिपाही उन्हें हैरत से देख रहे थे। इस्लामी सवार जो बढे चले  आरहे थे और जिन्होंने तीर बारी बंद क्र दी थी। उन्होंने  फिर तीर कशो में से निकाल निकाल कर कमानो में रख रख कर चिल्ले खींचे और जो लोग फ़सील के ऊपर  से झांक रहे थे ताक कर उन पर निशाने लगाए। यह तीर  निशाने पर बैठे और बहुत से काफिर चीखे  और फ़सील  से निचे आ पड़े दूसरे सिपाही ने तेज़ी से और तुन्द से पत्थर बरसाने लगे। इतने ज़्यादा और इस फुर्ती से बरसाए  की मुसलमानो को आगे बढ़ना न मुमकिन हो गया। 

    फिर भी मुस्लमान घबराये नहीं। पत्थरो की बारिश में खड़े रहे कई मुस्लमान ज़ख़्मी हुए लेकिन फिर भी डरे नहीं। इल्यास ने समझ लिया  की मुस्लमान आगे बढ़ कर फ़सील तक नहीं पहुंच सकते। उन्होंने मस्लेहत देख कर अपने दस्ते  को वापसी का हुक्म दे दिया।  मुसलमानो ने अल्लाहु अकबर का नारा लगाया। काफिर ख़ौफ़ज़दा हो गए लेकिन  जब उन्होंने उन्हें पीछे फिरते देखा तो खुश हो कर तरह तरह के नारा लगाने लगे। 

                         अगला पार्ट ( इंकेशाफ राज़ )